॥ ā no bhadrāḥ sūktam ॥
ā no᳚ bha॒drāḥ krata॑vo yantu vi॒śvato'da॑bdhāso॒ apa॑rītāsa u॒dbhidaḥ॑ ।
de॒vā no॒ yathā॒ sada॒mid vṛ॒dhe asa॒nnaprā᳚yuvo rakṣi॒tāro᳚ di॒vedi॑ve ॥ 1.089.01
de॒vānāṃ᳚ bha॒drā su॑ma॒tirṛ॑jūya॒tāṃ de॒vānāṃ᳚ rā॒tira॒bhi no॒ ni va॑rtatām ।
de॒vānāṃ᳚ sa॒khyamupa॑ sedimā va॒yaṃ de॒vā na॒ āyuḥ॒ prati॑rantu jī॒vase॑ ॥ 1.089.02
tānpūrva॑yā ni॒vidā᳚ hūmahe va॒yaṃ bhagaṃ᳚ mi॒tramadi॑tiṃ॒ dakṣa॑ma॒sridham᳚ ।
a॒rya॒maṇaṃ॒ varu॑ṇaṃ॒ soma॑ma॒śvinā॒ sara॑svatī naḥ su॒bhagā॒ maya॑skarat ॥ 1.089.03
tanno॒ vāto᳚ mayo॒bhuvā᳚tu bheṣa॒jaṃ tanmā॒tā pṛ॑thi॒vī tatpi॒tā dyauḥ ।
tad grāvā᳚ṇaḥ soma॒suto᳚ mayo॒bhuva॒stada॑śvinā śṛṇutaṃ dhiṣṇyā yu॒vam ॥ 1.089.04
tamīśā᳚naṃ॒ jaga॑tasta॒sthuṣa॒spatiṃ᳚ dhiyaṃji॒nvamava॑se hūmahe va॒yam ।
pū॒ṣā no॒ yathā॒ veda॑sā॒masa॑dvṛ॒dhe ra॑kṣi॒tā pā॒yurada॑bdhaḥ sva॒staye᳚ ॥ 1.089.05
sva॒sti na॒ indro᳚ vṛ॒ddhaśra॑vāḥ sva॒sti naḥ॑ pū॒ṣā vi॒śvave᳚dāḥ ।
sva॒sti na॒stārkṣyo॒ ari॑ṣṭanemiḥ sva॒sti no॒ bṛha॒spati॑rdadhātu ॥ 1.089.06
pṛṣa॑daśvā ma॒rutaḥ॒ pṛśni॑mātaraḥ śubhaṃ॒yāvā᳚no vi॒dathe᳚ṣu॒ jagma॑yaḥ ।
a॒gni॒ji॒hvā mana॑vaḥ॒ sūra॑cakṣaso॒ viśve᳚ no de॒vā ava॒sā ga॑manni॒ha ॥ 1.089.07
bha॒draṃ karṇe᳚bhiḥ śṛṇuyāma devā bha॒draṃ pa॑śyemā॒kṣabhi॑ryajatrāḥ ।
sthi॒rairaṅgai᳚stuṣṭu॒vāṃsa॑sta॒nūbhi॒rvya॑śema de॒vahi॑taṃ॒ yadāyuḥ॑ ॥ 1.089.08
śa॒taminnu śa॒rado॒ anti॑ devā॒ yatrā᳚ naśca॒krā ja॒rasaṃ᳚ ta॒nūnā᳚m ।
pu॒trāso॒ yatra॑ pi॒taro॒ bhava᳚nti॒ mā no᳚ ma॒dhyā rī᳚riṣa॒tāyu॒rgantoḥ᳚ ॥ 1.089.09
adi॑ti॒rdyauradi॑tira॒ntari॑kṣa॒madi॑tirmā॒tā sa pi॒tā sa pu॒traḥ ।
viśve᳚ de॒vā adi॑tiḥ॒ pañca॒ janā॒ adi॑tirjā॒tamadi॑ti॒rjani॑tvam ॥ 1.089.10
परमात्मा और किसान
एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप चाही ,तब धूप मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे. अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !
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