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कल्याण कारक प्रभु के लिए हमारा नमस्कार हो और सुखकारक सुख आनन्द का दान देने वाले प्रभु को हम सब का नमस्कार, और शान्ति दायक शान्ति को देने वाले उस सर्व शक्तिमान प्रभु को मेंरा नमस्कार, श्रद्धा और आदर भाव से और आदर भाव से मैं उसको नमस्कार करता हूं अत्यन्त मंगल रूप प्रभु के लिए हमारा बार-बार नमस्कार प्रणाम पहुचें।

ओ३म्  सह नाववतु 
सह नौ भुनक्तु 
सह वीर्यं करवावहै 
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै 
ओ३म्  शान्तिः शान्तिः शान्तिः 
Om Saha Nau-Avatu |
Saha Nau Bhunaktu |
Saha Viiryam Karavaavahai |
Tejasvi Nau-Adhiitam-Astu Maa Vidvissaavahai |
Om Shaantih Shaantih Shaantih ||
ओ३म्  मेरे परमात्मा हम दोनों गुरु शिष्य कि रक्षा कीजिये, और हम दोनों कि हर प्रकार से देख भाल किजिये हम दोनों साथ में मिलकर एक कार्य को करे एक समान शाहस और उत्शाह के साथ पराक्रम और धैर्य पूर्वक हे परमात्मा हमारा जो भी अध्यन किया हुआ हौं वह हम सब को आनंद और उर्जा प्रदान  करे न कि हम में राग द्वेष अहंकार अज्ञान को बढ़ाने का कारण बने ओ३म् शान्ति शान्ति शान्ति अर्थात त्रिविध दुखो को दूर करे भतिक, मानसिक, आध्यात्मिक |    
Meaning:
 Om, May God Protect us Both (the Teacher and the Student),
 May God Nourish us Both,
 May we Work Together with Energy and Vigour,
 May our Study be Enlightening and not give rise to Hostility,
 Om, Peace, Peace, Peace.

ओ३म् शं नो मित्रः शं वरुणः 
शं नो भवत्वर्यमा 
शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः 
शं नो विष्णुरुरुक्रमः 
Om Sham No Mitrah Sham Varunnah |
Sham No Bhavatv-Aryamaa |
Sham No Indro Brhaspatih |
Sham No Vissnnur-Urukramah |
  

ओ३म्  मित्र हमारे अनुकूल हो अर्थात मित्र यहाँ पर विद्युत् कि तरंगो  को कहा जा रहा  है, विद्युत् कि दो प्रमुख  तरंगे होती हैं एक फ्रेश दूसरा अर्थ इसको ही यहाँ मंत्रो में मित्र और अरुण कह रहे हैं, अरुण भी हमारे अनुकूल हो मित्र का मतलब अग्नि भी कर सकते हैं और वरुण मतलब जल से हैं इस तरह से विद्युत् दो प्रकार के होती है एक ए सी  दूसरी डी सी अर्थात एक सुखी विद्युत् जो प्रायः बैटरी में सुरक्षित होती दूसरी गीली जो टरबाईन से उत्पन्न कि जाती हैं, इस प्रकार से हम समझ सकते हैं कि सूर्य से हमे दो प्रकार कि शक्ति प्राप्त होती जिसे मित्र और वरुण कहते हैं वैदिक भाषा में जो प्रकाश हमे सूर्य से हमे दिन में मिलता है उसको मित्र कहते है, और जो प्रकाश रात्रि के समय में चन्द्रमा से मिलता हैं उसको वरुण कह सकते है |        


Meaning:
 Om, May Mitra be Propitious with Us, May Varuna be Propitious with Us,
 May the Honourable Aryama be Propitious with Us,
 May Indra and Brihaspati be Propitious with Us,
 May Vishnu with Long Strides be Propitious with Us,

नमो ब्रह्मणे 
नमस्ते वायो 
त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि 
त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि 
ॠतं वदिष्यामि 
सत्यं वदिष्यामि 
Namo Brahmanne |
Namaste Vaayo |
Tvam-[e]Iva Pratyakssam Brahmaasi |
Tvaam-[e]Iva Pratyakssam Brahma Vadissyaami |
Rrtam Vadissyaami |
Satyam Vadissyaami |

Meaning:
 Salutations to Brahman,
 Salutations to Vayu (the Breath of Purusha),
You Indeed are the Visible Brahman,
 I Proclaim, You Indeed are the Visible Brahman,
 I Speak about the Divine Truth,
 I Speak about the Absolute Truth,
तन्मामवतु 
तद्वक्तारमवतु 
अवतु माम् 
अवतु वक्तारम् 
ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः 
Tan[d]-Maam-Avatu |
Tad-Vaktaaram-Avatu |
Avatu Maam |
Avatu Vaktaaram ||
Om Shaantih Shaantih Shaantih ||

Meaning:
 May That Protect Me,
 May That Protect the Preceptor,
 Protect Me,
 Protect the Preceptor,
Om Peace, Peace, Peace.

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् 
 भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङुलम् ॥१॥
Sahasra-Shiirssaa Purussah Sahasra-Akssah Sahasra-Paat |
Sa Bhuumim Vishvato Vrtva-Atya[i]-Tisstthad-Dasha-Angulam ||1||


अर्थ – पुरुष का तात्पर्य यहाँ पर ब्रह्मांडीय चेतना से है अर्थात परमेश्वर से वह परमेस्वर कैसा है? इसके लिए मंत्र कहता हैं कि हजारों सर, हजारों पैर, हजारों आँखों वाला है, और वह सम्पूर्ण भूमि में व्याप्त ब्रह्मांडीय शरीर वाला है | अर्थात वह सभी जीव जंतु प्राणी के शरीर अंगो को एक अपना बना कर उपयोग करता हैं और इन सब से परे सब के हृदय में जो दस अंगुल के परिणाम का हैं उसमे विराजमान रहता हैं|  

Meaning:
 The Purusha (Universal Being) has Thousand Heads, Thousand Eyes and Thousand Feet (Thousand signifies innumerable which points to the omnipresence of the Universal Being),
 He envelops the World from all sides (i.e. He pervades each part of the Creation), and extends beyond in theTen Directions ( represented by Ten Fingers ),

ओ३म्  पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् 
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥२॥
Purussa Evedam Sarvam Yad-Bhuutam Yacca Bhavyam |
Uta-Amrtatvasye[a-I]shaano Yad-Annena-Ati-Rohati ||2||

अर्थ- अगला मन्त्र पुरुष सूक्त का कहता है कि वह पुरुष वेद के समान वेद ही है जो सब कुछ जानता है वेद का मतलब जानना भी होता अर्थात परमेस्वर सब कुछ अंदर बाहर के सभी विषय को भली प्रकार से जानता है | वह सब का सार मूल है मूल का कोई कारण नही होता वह अकारण और निराकार है वही हम सब का भूत है, वही भविष्य है और वही हम सब का वर्तमान है, सब कुछ जो दृश्य अदृश्य जगत हैं वह सब मकणे कि जाल एक में ही बुना जा रहा हैं | एक घोसले से अधिक नहीं है वही भोजन है और वही खाने वाला है वही जन्म देता है और वही मारता है वही नश्वर और वही श्वर के रूप में बोलता है अर्थात अक्षर हैं जिसका कभी नाश नही होता है उसको ही जान कर  हम सब अपने सभी पापो दुखो बीमारियों अग्यांताओं से मुक्त हो सकते हैं|         

  

Meaning:
The Purusha is indeed All this (Creation) in essence; That which existed in the Past, and that which will exist in the Future,
 Everything (i.e the whole Creation) is woven by the Immortal essence of the Great Lord (Purusha); by becoming Food of which (i.e. by getting consumed in Whose Immortal essence through surrender) one transcendsthe gross world (and becomes Immortal).


ओ३म् एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः 
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥
Etaavaanasya Mahima-Ato Jyaayaash-Ca Puurussah |
Paado-Asya Vishvaa Bhuutaani Tri-Paad-Asya-Amrtam Divi ||3||
 


   अर्थ – यह मंत्र कहता है कि परमात्मा रूपी पुरुष अर्थात पुरुष विशेष श्वर जो इस शरीर से विशेष है वही ईश्वर है जो सारी महानतावो से भी महान है जिसको शब्दों में अभिव्यक्त नही किया जा सकता है उसका एक पैर दृश्यमय नश्वर जगत हैं और दूसरा पैर कारण हैं इस ब्रह्मांड का और तीसरा पैर अदृश्य हैं यह तिन पैर वाला है जिसको भुत, भविष्य, वर्तमान के समान हैं, इस लिए सभी माताओं से कहा जा रह हैं कि महँ पुरुषो को जन्म दे क्योंकि पुरुष पूर्णता को प्राप्त करने में समर्थ है|     

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