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जीवन संग्राम (एक प्रेम कथा) 2

जीवन संग्राम (एक प्रेम कथा) 2


   इस तरह से वैजु ने एक अलग आपात कालिन सभा बुलाया जिसमें राज्य के मुख्य अधिकारीयों को सामिल किया गया और कुछ गुप्चरों को लगाया गया जो आने वाली मुगल सेना की जानकारी लगातार देते रहे। इसके अतिरिक्त पड़ोसी राजाओं के पास भी वैजु ने अपने दो विश्वसनिय आदमीयों को संदेश लेकर भेजा कि आप हमारे साथ मिल कर मुगलों का सामना करे अन्यथा सभी मुगलों के अत्यचार का सामना करने के लिये तैयार रहे। इसके बाद वैजु ने सभा का समापन किया और अगले दिन मिलने का वादा करके सबसे विदा ले कर अपने घर को चल दिया। वैजु स्वयं एक बहादूर विद्वान व्यक्ति के साथ अपने नौ शक्तीशाली पुत्रों कि क्षत्र छाया में रहता था। जिससे जो वैजु का विरोध करने वाले राजय में उन सब कि बैजु के सामने विल्कुल नहीं चलती थी। वैजु ने अपने प्रत्येक पुत्रों को एक एक सेना की टुकड़ी की कमान सौप कर सब को युद्ध के मैदान गंगा कि ताराई में भेज दिया और एक ऐसी नहर का निर्माण करने को कहा गया जिससे गंगा का पानी उस विशाल विन्ध्य की घाटी में पहुंच सके जो जंगली और उसर भुमि है। वैजु के नौ पुत्र सब के सब एक से बढ़कर एक सुरमा और बहादुर जिनके खुन में वफादारी और शाहस कुट कुट कर भरा था।  सबसे बड़ा वेटा राजेन्द्र नाथ जो एक खतरनाक तलवार वाज तीर बाण घोड़ सवारी और ङर प्रकार के युद्ध को कला कौशल से युक्त है इसी तरह वैजु के प्रत्येक पुत्र हर तरह से सबल और सक्षम जिसपर वैजु को बहुत अभिमान था। जिस गांव का वैजु है उसके हि पड़ोस में एक गांव के रहने वाले व्राह्मण परिवार सदानन्द नाम के व्यक्ती भी रहते है। जिनको प्रेम से लोग (मुखिया के नाम से भी पुकारते है) इनके भी दो पुत्र है जो वहुत विर और सुरमा है जिनमें से एक मुरली और दूसरे विद्याधर है। यह दोनो मुखिया जो राजा के द्वारा जमिन का बहुत वड़ा हिस्सा जो लाखों एकड़ में फैला है जहां पर खेती का काम होता है जो गंगा किनारें उत्तर से लेकर दक्षिष विन्ध्य पर्वत तक फैला है। जिसकी देखभाल मुखिया और और उसके पुत्र करते है यह वैजु के विशेष वफादार और परम मित्र है। मुखिया सारी जमिन में खेती का कार्य कराते है और उसकी लगान आदि कास्तकारों से लेकर राजा के कोश में जमा कराना अनाज संग्रह कराना इत्यादि कार्य इनके जीम्मेदारी में होता है। यह सब बहुत संपन्न और राजा के दो बाजु के समान है राजा हरिश्चन्द्र इन पर बहुत भरोषा रखता है इसलिये इनको काफी जमिन दे रखा है। जिसमें यह अपनी स्वयं कि खेती कराते है। यह इनके अन्तर्गत कई सारे गांव भी दिये गये है। इनके पास बहुत सारे घोड़े हाथियों कि व्यवस्था राजा के द्वारा दि गइ है जो इनके सेवा में हमेशा दिन रात तत्पर रहते है। जैसे कपंड़ा साफ करने के लिये धोबी का खानदान  जिसके लिये अलग से जमिन को दिया गया है। लकड़ी का कार्य करने वाला लुहार, उसको भी जमिन दिया गया है जिने खाने के लिये। कुहार मिट्टि आदि का बर्तन बनाने वाले, नाई, इनके बहुत सारें शत्रु भी है। जो इनकी समृद्धि और शक्ती को देख कर जलते है। इसलिये यह लोग अपना गुट बना कर इस समय मुगल सेनावों से मिलकर इनके खिलफ सड़यन्त्र कर रहे है। जिसमें एक सबका नेता कमला नाम का व्यक्ती है। जो कोल भिल का नेता था जिसने मुगल सेना जिसने विजयपुर सामाराज्य को जितने के लिये उत्तर के जंगलों में अपना पड़ाव डाल रखा है। जहां पर कमला रात्री के समय जाकर विजयपुर के राजा की गुप्त जानकारियों को और उसके इरादे के बारें में बताता है कि राजा हरिश्चन्द्र मुगल सामाराज्य के साथ विद्रोह करने के लिये तैयार हो गये है। जिसमें वैजु ने उनको भड़का कर युद्ध के लिये तैयार कर लिया जिसके साथ वनारस और ईलहाबाद के राजाओं की सेनायें भी एक साथ होगी। उस समय मुगल सामराज्य कि सेना का सेना पति शमशेर बहादूर था। उसने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए अपने गले से एक मोतियों कि माला निकाल कर कमला के हाथों में रखते हुए कहा आने दो सालों को हम उनको वैसे ही भुजेगें जैसे दाना भुजने वाला दाने को भर भुजता है अपनी भरसाई में, और आगें शमशेर नें कहा कमला को कि तुम जाकर विजयुर नगर की सेना और गांव में जाकर यह गुप्त रूप से प्रचार कर दो कि यदी जो हमारे मुस्लिम धर्म को ग्रहण कर लेगा उन सब को माफ कर दिया जायेंगा और उनको हम विजयपुर रियासत जितने के बाद बड़े बड़े पदों पर अपने अधिकारी नियुक्त करेंगें हमारा साथ दे। और कमला को वहे नया राजा बना दिया जायेगा। जिसको सुन कर कमला बहुत प्रसन्न हुआ। और रात्री के समय अपने घोड़े पर सवार हो कर विजयपुर के लिये रवाना हुआ, और सुबह होने से पहले भोर में ङी विजयपुर राज्य कि सिमा में प्रवेश करदिया जिसकी सुचना वैजु के गुप्तचरों के द्वारा वैजु और उसके पुत्र को होगई। वैजु ने कहा कि उसको रास्ते ही पकड़ कर जल में डाल दिया जाये ऐसा ही किया गया कमला को सैनिको ने पकड़ कर जेले में डाल दिया गया।     
 
      अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र के दरबार में कमला को पेश किया गया जहां पर उसने अपने अपराध स्विकार कर लिया और मुगलसेनापती कि योजना और उसके द्वारा दि गई मतिये कि माला भी राजा के समक्ष प्रस्तुत किया राजा ने कहा तुम्हारी की गद्दारी की सजा मौत दि जाती है। और अपने सैनिको को आज्ञा दिया कि इसको ले जाकर विजय पुर नगर के चौराहे फांसी पर लचका दिया जाये। उसी समय दरबार में एक दुत आने की गुजारिस की और उसको आने की आज्ञा राजा ने दि और पुछा उस दुत से कि बताओं क्या समाचार है। दुत ने बताया कि इलहाबाद और बनारस के राजाओं के प्रतिनिधी आयें है हमारे युद्ध  के निमंत्रण पर राजा से मिलना चाहते है रजा ने कहा उनको दरबार में आने दे। दरबार में दोनों राज्य के प्रतिनीधी पहले राजा का अभिवादन किया और कहा कि हमारी सेनाये मुगलसामराज्य की सेना से टक्कर लेने के लिये तैयार है।  राजा ने कहा हमे ऐसी ही आपलोगों क राजाओं से उम्मिद थी। इस तरह से पुरब से राजा काशी नरेश कि सेना और पश्चिम से इलहाबाद के राजा की सेना ने धावा बोल दिया जैसे ही उत्तर से मुगल सामाराज्य कि विशाल सेना लाव लस्कर के साथ गंगा की तराईयों प्रवेश किया । दोनो सेनायों में भयंकर युद्ध छीड़ गया। वैजु ने अपने पुत्रों से नहर के पानी से सारा का सार इलाका डुबो के रखा था जिससे मुगलसेना की दम उखड़ने लगे क्योंकि घोड़ों हाथीयो कि सेना किचड़ में फंस कर मरने लगे, आगें बढ़ने पैदल सेना भी किचड़ मेंफसने लगी जिसका फायदा बैजु कि सेना और उसके पुत्रों ने खुब उठाया और बहुत सारी सेना का संहार करदिया। अपने तिर बाड़ और तलवारों से ही पहाडियों के उपर खड़े हो करके। यह युद्ध कई दिनो तक चलता रहा जिसमे दोनों तरफ की सेनाओं के विर योद्धा और सैनिक मारे गये। जिसमे एक तोप के गोले से जिसका प्रयोग मुगल सेना ने अपने सेनापति शमशेर के कहने पर किया गया जिसमें वैजु की सेना के पैर उखड़ने लगे युद्ध के मैदान से क्योंकि वैजु का एक लड़का विरगति को उपलब्ध हुआ। उसके स्तान पर वैजु के दूसरे लड़के ने जगह लि और बड़ी बहादुरी से लड़ता रहा अपनी शासों तक लेकिन वह भी अधिक देर तक नहीं मुगल सेना का सामना कर सका वह भी बुरी तरह से मारा गया । जिसका प्रभाव राजा हरिश्चन्द्र और वैजु कि सेना पर नाकरात्मक पड़ने लगा, जिससे उनकी सेना निरुत्साहित होने लगी। इसको देख कर मुगलों कि सेना और उसके सेनापती शमसेर का हौशला अत्यधिक बढ़ने लगा और उनकी सेना और चौगुने उत्साह से लड़ने लगी शमशेर हाथी पर सवरा अपनी सेना का हौशला बढ़ा रहा था अल्ला हु अकबर के नारे से जैसे सारा आकाश गुज रहा था। इधर वैजु और राजा हरिश्चन्द्र की कि सेना का हौशला पस्त हो रहा था उनको यह डर सता रहा थै इस तरह से यदि मुगलों की सेना आगें बढती रही तो विजयपुर पर फतह करने में दोदिन से अधिक नहीं। तभी रात्री ढलने लगी और दोनों सेनायें अपने अपने शिविरों में प्रस्थान करने लगी दोनों तरफ से घायल सैनिको को सिविरों में इलाज करने के लिये ले जाया जा रहा था। जिसमें दे वैजु के वेटों की लाशें भी थी जिसको देखकर वैजु की आंखें नम होगई लेकिन यह दूसरें अधिकारियों को प्रतित नहीं होने दिया। उसने राजा से मिल कर एक गुप्त सभा रात्री में ही बुलाने को कहा राजा नें सभी को आदेश दिया कि सभी जल्द से जल्द राजा हरिश्चन्द्र के शिवीर में आजाये  ऐसा ही हुआ। वैजु नें अपने मित्र मुखिया और उनके दो पुत्रों को खास रूप से आमंत्रित किया सभा में आनें कि जब सब आ गये। तब सेनापती बैजु नें अपने मित्र मुखिया को संबोधित करते हुए कहा कि आप तुरंत अपने दोनोप पुत्रों को सभी नगर के जनता को युद्ध के मैदान में इपने हथियार लोकर आने को कहे क्योंकि हमारे राज्य पर बहुत बड़ा खतरा आ चुका है। हम सब को एक साथ रात्री में हि हमला करना होगा। दिन के प्रकाश में इनसे युद्ध जीतने मुश्किल है। और सभी जनता इनको चारों तरफ से गेर कर उस इलाके कि तरफ खदेड़े जहां पर ज्यादा मात्रा में किचड़ है और वहां से निकलने ना दे हम सब सारी सेना को चारों तरफ से घेर कर चारों तरफ से तोप के गोलों से हमला करेंगे। इस तरह मुखिया के दो पुत्र अपने साथ अपने विश्वस्थ कुछ आदमीयों को लेकर अपने नगर के सभा युवावों को एकत्रित कर लिया और रात्री के अन्तिम पहर में सबने हमला बोल दिया मुगलों के शिविरों पर जब सभी गहरी निद्रा में सो रहे थे। कुछ एक पहरेदार सैनिकों को छोड़ कर अचानक हमला से वह से सम्हल पाते उससे पहल सभी सेना और बहादुर योद्धा वैजु के पुत्र मुखिया के पुत्रों ने ओर दुसरी राज्यों कि सेनाओं तांडव मचा दिया भयंकर मार काट चारो तरफ चल रहा था। उसी विच शमशेर मुगल सामराज्य का सेनापती अपने सिविर से बाहर निकला और बगल में ही मुखिया अपने वफादार सैनिको के साथ खड़ा था जिसने शमसेर के गले को अपने तलवार से अळग कर दिया । जिसकी सुचना मुगल सैनिको को मिलते ही उनमें भगदण मचगई सभी इधर उधर भागने लगे। उस मैदान से मे जाना आसान था लेकिन निकलना बहुत कठिन था क्योंकि वहां कि मिट्टि वहुत अधिक चिप चिपी थी पानी पाने से वह बहुत भयान बन चुकी थी जिससे उसमें निकलना मुगल सेनिको के लिये बहुत कठीन हो गया सब को घेर कर वैजु की सेना ने सबका सर कलम करदिया कुछ वड़ी मुस्किल से जान बचा कर वहां से भागने में सफल हुए। फिर भी सफलता के श्रेय वैजु सि सर राजा हरिश्चन्द्र ने मढ़ दिया और सभी ने मिल कर अपनी जीत कि खुशिया मनाने में व्यस्त हो गये। इस तरह से मुग सेना का बुरी तरह से हारने का सदमा को मुगल साम्राट दिल्ली में बैठा औरंगजेब बर्दास्त नहीं कर सका जिसके कारण वह मृत्यु को उपलब्ध हुआ। और उसके सामराज्य का पतन बहुत तिब्रता से होने लगा। एक समय ऐसा भी आयगा जब मुगल सामाराज्य केवल दिल्ली के कुछ इलाको में ही सिमट कर रह गया था।

   राजा हरिश्चन्द्र को अपने जीत कि उम्मिद नहीं थी उन्होने केवल वैजु के कहने पर ही युद्ध का ऐलान किया और वैदु कि सुझ बुझ के कारण ही युद्ध में विजय को उपलब्ध हुए उसमें सबसे बड़ा घाटा भी बैजु को हि उठाना पड़ा क्योंकि उसके दो बहादुर पुत्र भी हजारों सेना के साथ शहिद होगये। विजयपुर के राजा हरिश्चन्द्र ने युद्द के कुछ दिनो के बदा ही एक शानदार जलसे का आयोजन अपनी हवेली में किया। सब को यथा योग्य जित की खुशी में बधाई के साथ उपहार में बहुत सारा अपना धन दान किया जो मुगलों की सेना से लुटा गया था। इसके अतिरिक्त वैजु को हजारों एकड़ जमिन दिया गया। इसके साथ मुखिया को भी कई सौ एकड़ जमिन को दिया गया। यह वैजु और मुखिय विजयपुर क्षेत्र के छनवर इलाके के सबसे बड़े जिमदार की उपाधी से नबजे गये। ऐसा ही सब कुछ चलता रहा। उधर दूसरी तरफ अग्रेंजी इश्ट इंडिया कम्पनी ने अपने पैर बंगाल में जमा लिया था और उसने अपने पैर पसारता हुआ बक्सर से होते हुए वनारस इलहाबाद अवध आदि पर अपना कब्जा जमाते हुये गंगा के रास्ते चलते हुये उसने अपना एक अड्डा विन्ध्य क्षेत्र में भी वसा लिया और इसका नाम उसने मिर्जापुर रखा। उसी बिच इस हरे भरे इलाके पर अंग्रेजो कि निगाह पड़ गई जब वह गंगा में यात्रा करते हुए वानरस से इलहाबाद दिल्ली के लिये सफर पर होते जिसको प्राप्त करने के लिये उन्होने एक बहुत खतरनाक सडयंत्र रचा जिसकी कानो कान वैजु को ही ना खबर हुई ना ही राजा विजयपुर के राजा हरिश्चन्द्र को ही हुआ। अंग्रेजो में एक बहुत चालाक और धुर्त किस्म का अफसर था जिसका नाम पिटर डिसुजा था उसनें राजा के दामाद को अपना मित्र बनालिया और उनको अपने साथ रख लिया उनके लिये अच्छि अच्छि विदेशी औरतों की व्यवस्था कर दि जिससे राजा का दामाद अपनी सारी राजा से संबंधित गुप्त जानकारीयां उन अंग्रेजो के सपुर्द कर दिया। जिसका अंग्रेजो ने काफी फायदा  उठाया। अंग्रेजों ने सिधा सिधा आमने सामने युद्ध नहीं किया क्योकि वह जानते थे कि वह इस तरह से गंगा के तराई में फंस जायेंगे और यहा कि जमिन इन जमिदारों और किसानो के साथा राजा केपक्ष में जित जायेंगी। क्योंकि छानबे क्षेत्र छनवर के इलाके से बाहर निकला आसान नहीं था वहां पर वहां के लोकल लोग बहुत अधिक थे। अंग्रेजों सबसे पहले वैजु को और राजा हरिश्चन्द्र को खत्म करने की योजना बनाई। बैजु को मारने के लिये उसके हि पड़ोष के मुखिया को भड़काया और उसे जिमिन का लालच दिया। यद्यपि वह वैजु और मुखिया दोनो मित्रा थे लेकिन जमिन के मामले में दोनों जिमदारों में सबसे अधिक धाक और राजा के साथ निकटता बैजु की अधिक थी उसके पास जमिन भी कफी अधिक थी मुखिया कि तुलना में इसको साथ वैजु कि अपनी सेना के साथ हथी घोड़ों से सुसज्जीत सेना भी थी। जैसा कि बैजु के पास अपनी सेना नहीं थी। इसके दो बेटों के साथ में किसानों मजदूरों की बड़ी सख्या थी। राजा हरिश्चन्द्र को मारने के लिये उनके दामाद को हि तैयार कर लिया गया इसका लालच दे कर कि राजो के दामाद को ही राजा विजयपर का बना दिया जायेगा। मुखिया बहुत सम्मान करता था वैजु का लेकिन अन्दर ही अन्दर वह कुढ़ता भी था उसकी तरक्कि को देख कर उसे भी हजारों एकड़ जमिन के लालच ने पकड़ लिया और वह अपने कुछ आदमियों को वैजु को मारने के लिये तैयार कर लिया। एक दिन वैजु राजा हरिश्चन्द्र से मिलकर साम के समय अपने कुछ वफादार सैनिको के और अपने एक पुत्र के साथ अपने हवेली को आ रहा था। सभी घोड़े से थे इनको मारने के लिये छानब क्षेत्र छनवर लाखों एकड़ का सुनसान इलाका जो बस्ती से दूर एकांत जंगली घास फुंस सरपत आदि से आच्छादित था। वहीं पर मुखिया ने अपने सशस्त्र सैकड़ों आदमियों को छुपा रखा था। जिसने वैजु के घुड़सवार सैनिकों को चारों तरफ से घेर कर तलवार भाला लाठी आदि से आक्रमड़ कर दिया। हंलाकि वैजु स्वयं एक श्रेष्ठ योद्धा के अतिरिक्त बहुत विद्वान ज्ञानी पुरुष था उसे पता था। कि उसकी जीत यहां संभव नहीं होगी क्योकि उसकी संख्यी बहुत कम है फिर भी उसने शेर कि तरह दहाड़ते हुये। अपने पुत्र और अंगरक्ष सैनिको का हौशला बढ़ाते हुए सब को खत्म कर दो क्या देख रहो हो। इस तरह उस एकांत में चारों तरफ घमासान तलवात भालें कि आवाज गुजने लगी। वैजु कि उम्र उस समय 75 साल थी फिर बी वह 20 साल और 25 साल के योद्धा के समान धमासान नर संहार कर रहा था। असने अच्छे अच्छे के छक्के छुड़ा दि लम्बा तगड़ा साढ़े सात फिट का ज्वान था उसके समा ही उसके सारे पुत्र भी सब लम्बे तगड़े हट्टे कट्टे और काफी मजदूर थे यहा पर बैजु के साथ केवल उसका सबसे छोटा वेटा था जिसकी अभी कुछ एक साल पहले हि शादी हुई है। यदि वैजु के सभी पुत्र यहां एक साथ होते तो इन पर विजय पाना कठिन था। इसलिये ही मुखिया ने यह चाल चली थी। इनको एकान्त में घेर कर मारा जाया जिसमें उसका साथ देने के लिये अंग्रेजों के भी दममी थे। यह लड़ाई कई घंटों तक चली अंत में मुखिया जो झाडियों के पिछे छुप कर सब देक रहा था। वह अचानक मौका पाकर झाड़िययों से बाहर निकल कर अपने तिस किलो वजनी तलवार के एक खतरना का बार से वैजु का धड़ अलग कर दिया। अब वह योद्धा जमिन पर पड़ा था। अभी तक वैजु अपने बहुत साथियों के साथ जो उसके सबसे चहेते अंगरक्षक थे सब ने मिलकर एक साथ कुल सैकड़ों लोग को मौत कि गर्त में हमेशां के लिये सुला चुके थे। जिनमे कुछ अपने थे और कुछ मुखिया के आदमी थे। बाकी सब जो अभी तक बचे थे उनको मारने के लिये मुखिया के आदमियों के साथ अंग्रेजों के सिपाहियों ने भी एक साथ गट बंदी कर लिया और उसी तरह से वैजु के पुत्र पर आक्रमण कर दिया जिस तरह से कौरवों ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को मारने के लिये सभी महारथी एक हो गये थे। इस तरह से वैजु के पुत्र की भी बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई। यह सुचना नगर गांव में ऐसे फली जैसी की सुखी घास में आग फैलती है। चारों तरफ त्राहि त्राहि मच गई इसके साथा अंग्रेजों कि सेनाओं गाव और नगर में डेरा डाल दिया एक तरह से कर्फ्यु लागु कर दिया किसी को भी घर के बाहर निकलने कि इजाजत नहीं थी। रजा को जब यह खबर मिली कि उसका वफादार और विरयोद्धा वैजु को उसके पुत्र के साथ मार दिया गया तब वह अपने कुछ वफादर सैनिको अंगरक्षको के साथ अपनी हवेली से वैदु कि हवेली के लिये उसको श्रद्धान्जली देने क् लिये उसी रास्ते से निकला जहां पर वैजु और उसके पुत्र की हत्या हुई। जिसके इन्तजार में घात लगाकर अंग्रेज सैनिक के साथ मुखिय के आदमी और राजा का दामाद बैठ हुए थे। उन्होंने सब मिल कर राजा के साथियों समेत राजा कि अंधेरी रात्रि में बड़ी निर्मम हत्या कर डाली जिसके कारण भयंकर कोहराम मच गया। इसी बीच राजा हरिश्चन्द्र का एक लौता दामाद राजा बना दिया गया। औरं इस तरह से अंग्रेजों ने अपने मन माफिक राजा बना कर अपनी नितियों को लागु करना सुरु कर दिया विजयपुर के राज्य में। मुखिया को सबसे बड़ा जिमदार बनाया गया और वैजु के बचें पुत्रों को कुछ सौ एकड़ जमिन जिने खाने का देखर बाकी सारी जमिन छिन ली गई। उस जमिन में से कुछ जमिन को मुखिया को दिया गया बैकि जमिन को अंग्रेज के उन सिपाहियो सैनिको को बांट दिया गया जो वैजु और उसको पुत्र के साथ राजा की हत्या करने में और अंग्रेजों की सत्ता को लागु करने में अंग्रेज सरकार कि मदत कि थी और वैजु के व्यक्तिगत सैनिको को नष्ट कर दिया गया। इसके साथ भयंकर लुट पाट वमभिचार किया गया अंग्रेज सिपाहियों के द्वारा जिसमें अक्सर भारतिय सैनिक थे जो दूसरे प्रान्तोम से बुलाये गये थे। उनको वहीं गांव और नगरों में हमेशा के लिये वशा दिया गया। शसस्त्र हथियारों जिनके पास आधुनिक राइफल और बंदुके थी। इस तरह से यह सारे अंग्रेज सैनिक के वंशज आज राजपुत गहरवार नाम से विजयपुर के इलाके में पाये जाते है।  अंग्रेजों ने अपने मकसद को तो प्राप्त कर लिया मगर वैजु और मुखिया दो खानदान में भयानक गृहयुद्ध छिड़ गया जिसे अंग्रेजो को शान्त करने में पसिने छुटने लगे। जो छः पुत्र अभी जीन्दा है वह किसी तरह से भी अपने पिता कि हत्या का बदला लेने के लिये उताले है जिनको शान्त करने के लिये। अंग्रेज के आदमियों का मुखिया की हवेली पर हमेशा पहरा रहता था। साथ में वैजु के परिवार और उनके पुत्रों को मुखिया परिवार के किसी भी सदस्य से मिलने की मनाही थी। यदि ऐसा पाया गया तो मृत्यु दण्ड दिया जायेगा। एक तरफ तो मुखिया कि हवेली में चहल पहल और हमेंशा खुशी का माहौल रहता हमेशा मेहमान हाथी घोड़ो से आते जाते रहते थे। दूसरी तरफ वैजु के परिवार में मातम का माहौल छाया रहता था। जिनमें तीन युवा और विधवां औरते भी थी जिनके पुत्र और पुत्री अभी छोटे छोटे थे। उनके उपर जैसे दुःखों का पहाड़ गिर गया था वह सब अभी अपने दुःखों से उभर नहीं पाये थे। कि एक दिन अचानक वैजु के दो मझले पुत्रों ने अपने कुछ विश्वस्थ आदमियों के साथ मुखिया के बड़े पुत्र को, वहीं छानबे छनवर के एकान्त में घेर लिया जब जब वह मिर्जापुर शहर से कुछ सामान ले कर अपने कुछ आदमियो के साथ सांम को वापिस आरहे थे। जहां पर उनके पिता वैजु को मारा गया था। वह इलाका इतना विरान और एकांत धिन में था जहां पर शिवाय कुछ पक्षिययों के और निल गांयों के कोई दूर दूर तक दिखाई नहीं देता था उस पर भी साम का समय जब सभी शर्दि के समय में अपने अपने घरों में ऱजाईयों में दुबके हुये कुछ आग का अलाव जला कर अपने शरीर को गर्म करते हुए अपने अपने झोपड़े में पड़े होते है। बाहर गांव में शिवाय कुछ अंग्रेज सिपाहियों के कोई नही जो वहीं के निवासी है। उनको भी नहीं पता की इस समय यहा गांव से आठ किलोमिटर दुर छनवर के मैदानों में क्या हो रहा है। जहां पर आज मुखिया का बेटा मुरली अपने आदमिययों के साथ अपनी जाने का भीख मांग रहा है। जिस पर वैजु के दो ज्वान वेटे तलवार और गंड़ासे से उसके एक एक अंगों को काट रहे है। अपने पिता और भाई की हत्या का बदला लेने के लिये। इस तरह से वैजु के पुत्रों ने मुरली को मार कर जैसे आग में जलते हुए घि डालते है यही काम किया। पहले तो किसी को पता ही नहीं चला कि मुरली कि हत्या कैसे हुई उनकी लास का भी पता नहीं चला क्योकि उनकी लास के टुकड़े करके रात्री के समय में गंगा कि धारा में प्रवाहित कर दिया गया था। जहां पर एक मछुआरें ने वैजु के पुत्रों को देख लिया था। जिसके कारण उनको उस माझी कि भी हत्या कर के उसको भी गंगा नदी में डाल दिया। अंग्रेज सैनिको ने बहुत इस हत्या का पता लगाने के लिये बहुत छान बिन की लेकिन कुछ पता नहीं चला।               

       मुखिया को इस बात का बहुत दुःख हुआ क्योंकि उस समय मुरली के चार पुत्र और एक पुत्री है। जो अभी छोटे छोटे बच्चे थे। जिनका नाम क्रमशः मातरूप, हरिशंकर, रमाशंकर, दयाशंकर जिसकी पालने पोषने शिक्षा के जिम्मेदारी थी इसके अतिरिक्त दूसरा पुत्र विद्या धर जो अभी कुछ दिन पहले ही अपनी दूसरी शादी कि है। वह अपनी नई पत्नी के साथ हनिमुन मनाने के लिये कश्मिर गये है। विद्याधर की पहली पत्नी का देहान्त हो चुका है जिसे एक पुत्र शुबेदार और एक शुगना नाम कि पुत्री है। आगे चल कर विद्या धर के दूसरी पत्नि को तिन पुत्र हुये जिसमें केशव, बुटी, हिरा है यह सब अभी एक साथ ही रहते है। जो विद्या धर की पत्नी को अच्छा नहीं लगता है। वह अपने लिये नई हवेली बनाना चाहते है। जिसके लिये मुखिया ने कहा ठीक है तुम्हारे लिये एक हवेलि का निर्माण कर दिया जायेंगा लेकिन तुम्हे मुरलि के बच्चों का ध्यान देना होगा जब तक कि वह स्वयं को सम्हालने के योग्य नहीं हो जाते, इस बात पर विद्या धर तैयार हो जाते है। और एक नई हवेली का निर्माण किया जाता हो जिसमें वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहने के लिये जाते है। और एक हवेली का और निर्माण किया जाता है जिसमें मुरली कि विधवा पत्नी अपने चार पुत्र और पुत्री के साथा रहने लगी इस तरह से मुखिया अपनी पत्नी के साथ अपनी हवेली में रहते थे। अचानक उनकी पत्नी बिमार हो जाती है। जिसको गंगा पार से चिकित्सों को बला कर दिखाया जाता है। लेकिन उनकी तवियत में सुधार नहीं आता है। और कुच महिने के बिमारी के बादे उनकी मृत्यु हो जाती है। क्योंकि वह अपने पुत्र मुरली से बहुत अधिक जुड़ी थी मुरली की अचानक युवा अवस्था  मृत्यु में वह बर्दास्त नहीं कर सकी। इस तरह से मुखिया अकेले पड़ गये उनकी उम्र अभी केवल साठ साल कि थी वह उस समय भी बहुत युवा और शानदार पुरुष था उसके पास जमिन जायदाद हाथी घोड़े की कोई कमी नही ना ही किसी नौकर चाकर कि उसे यह महशुष हुआ कि उसकी संपत्ति की देखभाल करने वाले कम है। जिससे उन्होने अपनी दूसरी शादी कर ली और उससे चार पुत्र पैदा किया। जो क्रमशः जित नारायन जो बहुत ताकतवर और सात फिटा ज्वान एक बहुत कुशल तलावार बाज आगे चलकर बना जिसने अपने तेज से सारा इलाका अपने कब्जे में कर लिया। जो अंग्रेजों कि आखं का तिनका बन गया था। दूसरा फौजदार जो अंग्रेजों का पक्का वफादार खुफिया गुप्तचर बना आगे चल कर, तिसरा अमर नाथ जो  खुखांर आतंकी की तरह में उभरा जिसके नाम से ही पुरा क्षेत्र कापंता था। वह किसी कि औरत को अपने पास रात विताने के लिये बुला लेता था। जो उसके आदेश का उलंघन करता था उसका सर कलम कर दिया जाता था। क्योंकि इनके साथ अंग्रेज भि थे। चौथा पुत्र माताशंकर जो अंग्रेज का सिपाही बन गया। इधर मुरली के बड़ा लड़का बहुत बडा जुआरी बना माता रूप जो अपना जीवन विलाश और ऐय्यास पुर्वक विताने में हि ही व्यतित करता थ। लोगों कि पंचायत करना उसका प्रमुख कार्य था। जवकी मुरली का दुसरा वेटा हरीशंकर जिमदार बना और जमिन की देखभाल करने के साथ उसका सारा हिसाब किताब रखता है। बजारों एकड़ में जमिन फैली है जिसमें हजारों किसानो के परिवार कार्य करते है कितने मजदूर का जीवन उस पर आश्रित है। तीसरा वेटा मुरली का रमाशंकर भी अपने घोड़े पर सवार हो कर ङरीशंकर के साथ किसनी के काम को देखता है। चौथा वेटा मुरली का बहुत पढ़ने लिखनें मेंतेज था इसलिये वह सरकारी इंजिनियर बन कर शहर से बाहर चला गया और अपनी सारी जींदगी बाहर ही व्यतित करता है। विद्याधर के पुत्र पुत्री सभी बड़े हो जाते है सब का शादी विवाह हो जाता है।  

      वैजु के परिवार को यह मुखिया के सभी लोग मिल कर एक एक कर के बारी बारी कर सभी पुत्रों और पौत्रों को धोखों से चाल चल कर अंग्रेजे कि सहायता से एक एक कर इस तरह से मारने लगे बारी करके जिससे किसी को सक भी ना हो और सब मारे भी जाये अर्थात खाने में जहर दे दिया या फिर दुर्घना करा दिया। सराकारी अंग्रेजी हुकुमत ने उन पर तरह तरह के आरोप को लगा दिया था। क्योकि अंग्रेजों को एक भहुत बड़े भुभाग पर अपना रेल्वेस्टेशन बनाना था। जिसका वैजु का परिवार विरोध कर रहा था। क्योंकि वह जमिन बाजार से सटी हुई किमती थी जो वैजु के परिवार के नाम थी। इस तरह से अंग्रेजों ने मुखिया की मृत्यु के बाद उनके तीनों वेटों को जीत नारायन , अमर नाथ , फौजदार को  अपने हाथ का मोहरा बना कर वैजु के सारे वंश का हि सफाया कर दिया। शिवाय वैजु की अन्तिम बहु को छोड़ कर, उसके लिये कुछ सौ एकड़ जमिन को छोड़ कर और उसकी सारी जमिन को मुखिया के परिवार को दे दिया जिसपर बाद में मुरली के पुत्रों का कब्जा बन गया क्योंकि यह जमिन की देखभाल करते थे। जितनारायन ने अपनी एक नौटंकी की कंपनी खोल रखी थी जो हमेंशा यात्रा पर ही रहता था। जब वह आता जो इधर गुंडे किस्म के लोग उभरते उसका सफाया कर देता था। अंग्रेज सभी का उपयोग मतलब से करते थे। जीत नारायन जो अंग्रेजो के कहने पर रेत कि खान को भी देखता था। जित नारायन के ना रहने पर रेत कि खान को अमरनाथ और फौजदार दोनो भाई देखते थे यह दोनो की चरित्र हिनता से साधरण जनता ने इनके खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस तरह से इनकी दुश्मनी  ऐसे लोगों से होगई जो इनके आतंक और अत्याचार से अत्यधिक दुःखी और परेशान थे। जिसके लिये उन्होने एक गुट बना लिया जिसका नाम तीवारी गुट था जिससे इन दोनो गुटों की लड़ाईयां अक्सर होती रहती थी। दूसरी तरफ मुरली का बड़ा लड़का मातारूप  भी इनके समान ही था वह लड़ाईयां नहीं करता। लेकिन जुआरी और विलाशिता के  लिये दुसरों की औरतों को देखना उसकी बुरी आदत थी। जिसके खिलाफ उस क्षेत्र के यादव लोगों ने विद्रोह कर दिया। जिसके लिये बराबर लड़ाई इन गुटों में होती कभी इस गुट के एक दो आदमी मारे जाते कभी उन गुटों के इनके पास बंदुक और दूसरे हथियार भी थे। जिसका यह सब गलत उपयोग करते थे। जिसकी वजह से आगे चल कर अंग्रेजो ने इन गुटों में समझौता कराने के लिये जमिनो का और बटवारां कराया जिसके जिम्मे जितनी जमिन थी। वह जमिन उन सब को दे दिया गया। इस तरह से जमिन कम होने लगी और सारे भाई एक में रह नहीं पाये उन्होने अलग होने का फैसला किया। और सवने अपने अपने लिये अलग अलग घर बनावाया सब का परिवार बढ़ रहा था। सबके कई कई पुत्र और पुत्रीयां थी।

     इस तरह से मुखिया के वंश में इस समय उसकी पहली पत्नी से दो पुत्र में मुरली और विद्याधर, जिसमें से  मुरली के चार पुत्र और विद्या धर के पहली पत्नी से एक पुत्र और दूसरी पत्नी से तीन पुत्र कुल मिला कर चार पुत्र विद्याधर के भी है। और स्वंय मुखिया के दुसरी पत्नी के चार पुत्र यह सब मिला कर कुल मुखिया के वंश में छः पुत्र और आठ पौत्र है। जो लग भग हम उम्र ही है उन सबने अपनी सारी समंप्ती का बटवारां कर लिया जिसमें जमिन के अतिरिक्त हाथी घोड़े सोने चादी भी उसके साथ नौकर चाकर भी बट गये। 

         इस पर भी अंग्रेज शान्त नहीं हुए उनको और जमिन की जरुरत पड़ गई रेल्वेस्टेसन के अतिरीक्त दूसरा बड़ा यार्ड बनाने के लिये जो पचास एकड़ का जमिन का टुकड़ा शहर के पास का था। जो जमिन मुखिया के दूसरी पत्नी के पुत्रों कि जमिन थी जिससे काफी आमदनी होती थी क्योंकि वह आम अमरुद का बगिचा था जिसको नष्ट करके वहां रेल्वे का यार्ड बनाने का प्रयाश कर रहे थे। जब इसकी बात एक अंग्रेज अधिकारी ने जीत नारयन मुखिया के बड़े से कि तो वह भड़क गया और उस अंग्रेज अधिकारी को अपनी दलान से मार कर भगादिया यह कहते हुए कि अब यहा कभी मत दिखाई देना नहीं तो तुम्हे जान से मार दुंगा। इस बात का पता जब और बड़े अंग्रेज अधिकारियों को चला तो उन सबने एक नई कुरुप योजना बनाई जीत नारायन जो इस समय सबसे अधिक तपां था उसको मारने कि, जिसके लिये उन्होने तिवारी गुट को अपने साथ ले लिया और उनको रेत कि खान देने का वादा किया जिससे बहुत बड़ी आमदनी जीतनारयन बंधुओं को होती थी। वह उनकी कमर को तोड.ना चाहते थे।       
क्रमशः

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