भगवान पैसे की भाषा समझता है।
इसके पिछे कारण एक नहीं बहुत हैं,
पैसे से घर मिलता हैं, पैसे भोजन मिलता है।
पैसे से रहने के लिए स्थान मिलता हैं,
पैसे से पहने के लिए कपड़ा मिलता हैं।
पैसे से हर रिस्तें में जान आती है,
पैसे से जीवन को आराम मिलता है।
पैसे से ही हर बीमारी का इलाज होता है,
पैसे से ही समाज में अपना नाम, का इनाम हैं।
पैसे से ही मां हमकों प्रेम करती हैं,
पिता सम्मान देता है मित्र प्रेम से गले मिलते हैं।
पत्नी अपने आपको छोड़ कर नहीं भागती है,
बच्चें पापा-पापा दिन रात कहते नहीं थकते है।
जिनके पास पैसे नहीं वह पागल और आवारा हैं,
हर कोई उनको मारता और दुत्कारता रहता है।
शरीर को बीमार होने पर दवा भी नही मिलती हैं,
खान के लिए भोजन नहीं मिलता है, कपड़ा नहीं हैं।
रहने के लिये शरायं भी नहीं मिलता हैं,
हर रिस्तें में दोष नजर आता हैं अपने तो अपने परायें भी,
स्वयं से दूर भागते हैं स्वयं को परमात्मा भी दुत्कारता है।
और बार-बार मारने की धमकी देता हैं कहता हैं
इलाज कराने की की तेेरे अंदर सामर्थ नहीं हैं।
तो जी कर क्या करें गा मैं तुझको मार दुंगा कुछ ऐसा ही संसार का नियम सत्य और अटल हैं
जिसके खिलाफ जाने की सामर्थ स्वयं परमात्मा भी नही करता हैं।
आदमी तो इसके खिलाफ जाने की सोच से भी कतराता है,
इसके बारें में सोचने से ही उसको दिन में तारें नजर आते हैं।
हां यह जरुर हैं कि इसके लिये विद्रोही भी हैं,
जिन्हों हम जानवर कहते है उनके पास पैसे नहीं हैं।
ना ही वह हमारी तरह से पैसे की भाषा ही समझते है उनको समझाने के लिए मानव कई सदियों से लगा है ।
लेकिन आज तक वह सफल नहीं हो सकता हैं,
परमेश्वर भी उनसे नाराज हो चुका हैं
वह कहता है कि तुम पैसे की किमत समझो
नहीं तो मैं तुम्हें स्वर्ग के राज्य से निस्कासित करुगां,
लेकिन यह भी बड़े संकल्पी और स्वाभीमानी हैं
मनुष्यों के गुरु हैं यह मनुष्यों से कुछ बी नहीं सिखते है
यद्यपि मानव ही इस जानवरो और पक्षियो से सिखता है
उदाहरण के लिए इसने पक्षियों से सिखा आकाश में उड़ना
मछलियों से सिखा पानी में तैरना और बंदरों से चढ़ना
और भी बहुत सी खाने पिने की आदते भी जानवरों से सिखा है
लेकिन जानवर ठहरें स्वाभिमानी वह कुछ भी नहीं सिखे
क्योंकि वह आज भी प्रकृतिक हैं उनकोे नहीं चिंता हैं।
मनुष्यों की तरह से ना उनको घर चाहिए और ना कपड़ा
ना खाने की चिंता हैं और ना पहनने की चिंता है।
उनको इलाज कराने के लिए स्पताल जाने की जरुरत नहीं है।
उनके माता पिता भी उनसे पैसे के लिए प्रेम नहीं करते है
वह किसी विद्यालय भी नहीं जाते है, क्योंकिवह सब कुच सिख जातें है
वह झुठ और अज्ञान के शिकार नहीं होते हैं मनुष्यों की तरह से
क्योंकि वह मनुष्यों के गुरु है और अब वह समय आगया है
कि मानव फिर से अपने पुराने रुप में चाला जाये
प्रकृति की गोद में , यह अलग बात हैं की जानवर लुप्त
हो रहें हैं लेकिन अपना स्वभाव नहीं बदल रहें है
हमें भी अपने लुप्त होने के भय को अपने हृदय से निकाल कर बाहर फेकना है
और मस्त मलंग जीवन को जिना है अपने गुरुओं की तरह से बिना पैसे के
क्या यह संभव है कि हम बिना पैसे के इस जगत मे रह सकते है
पैसे ने ही हमें गुलाम बनाया हैं पैसे को त्याग कर हम स्वतंत्र होगे
लुट लेने दो सारी संपदा को जो इस जगत में हैं हम वैसे ही रहें गे
जानवर रहते है क्योंकि वही हमारें पुर्वज है हमें उनसे चीजो को नहीं सिखना है
हमें उनके समान बनना है हमें हमारें परमेश्वर से विद्रोह करना होगा,
जो पैसे की भाषा समझता है, क्यो पैसा के बिना मानव के अस्तित्व की कल्पना
कर सकते है जरुर कर सकते हैं.क्योंक् हमें पृथ्वी पर नहीं चंद्रमा और मंगल पर रहना है।
जहां पर अबी कुछ भी नहीं हैं यह समय पृथ्वी के विनाश का है
जिसके लिये इस पृथ्वी का भगवान हमें विवश कर रहा हैं
हम उसको अस्विकार करते है हमें नहीं रहना उसके इस स्वर्ग में
जहां पैसे की भाषा हर कोई समझता है ङम आग लगा देना चाहते है यह सब कुछ भष्म कर देना है इस पैसे ने कर दिया कुछ भी नहीं बचा है अब आग लगा देना है इस पैसे कोऔर इस आधुनिकता के
सामराज्य को हमें अपने के पास रहना है हमें यह पैसा ही विमार कर रहां है इस पैसे से स्वयं केो दुर करेम यह लोगों को नसेड़ी ,गजेड़ी, शराबी, वेश्यागामी , दुराचारी और अत्याचारी बनाता है
हमें मानवता के अस्तित्व को बचाना है तो इस भगवान को की हत्या करनी होगी जो पैसो की भाषा को समझता है। जिसने जानवरो को अपने सामराज्य से लुप्त कर दिया हैं और कर रहा हमें भा लुप्त होने के भाय से हमें पैसे का गुलाम बना रहा है, यह सभी पैसे वालें झुठु चोर लुटेरे और अत्या चारी है यही सच्चेंं में हमारें सच्चें मानव के हत्यारे है। यह चाहते है कि हम इनके पैसे के सामने आपने आत्मा का समर्पण करदें यह कभी संभव नहीं है। हमें असंभव को संभव करके दिखाना है और अफने जीवन को कम से पैसे के आश्रीत रहने के लिए तैया करना है । और यह कार्य बहुत आसान हैं ऐसा मैंने स्वयं के साथ किया लगभग 10 साल तक मैं बीना पैसे के रहा हु। हां उस समय मेरी शत्रु यह दुनिया बन गई थी लेकिन जब से मैं पैसे को कमाने लगा दुनिया हमसें प्रेम करने लगी लेकिन मेरा अस्तित्व मेरे खिलाफ हो गया है वह कहता है कि हमें एक ऐसे आंदोलन और क्रांति की ज्वाला को आगें बढ़ाना जिसमें पैसे कि गुलामी से अपने अस्तित्व को स्वतंत्र किया जासके यह पैसे इस दुनिया कि सबसे बड़ी बिमारीयों में से सबसे बड़ी हैं और यहं कैंसर और हार्ट अटैक, एड्स, सेभी बड़ी है। इस विमारी के शिकार लगभग सभी लोग है इसमें बड़े-बेड़े नेता अभिनेता और व्यापारी और सामान्य आदमी भी है इस विीमारी का एक इलाज हैं इसका त्याग आज के समय में यहीं सबसा बड़ा योग मैं समझता हु और उसी को मैं सबसे बड़ा ज्ञानी विद्वान मानता हु जिसने इस पैसे के चुंगुल से स्वयं को स्वतंत्र करने में सफल हो सका है। जब आपके पास पैसा नहीं होगा तोआपके पास कोई समस्या भी नहीं होगा। सारी समस्या की जड़ यह पैसा ही हैं इस पैसे को आग लगा दो और बिना पैसे के जिवान जिने का अभ्यस करे हम चाहते है कि लोग प्रकृत जिवन को जिये जिसके लिये ही हम इस भारत भुमि में एक बैदिक विश्वविद्यालय को बना रहें हैं। जहां इस पैसे के चुंगल से कैसे मुक्त होना है उसके बारें में अध्यन कराया जायेंगा। इस बिमारी के इळाज की कोई व्यवस्था नहीं हैं इसके लिये मैंने यह व्यवस्था को शुर किया हैं जिसको भी अपनी इस बिमारी से स्वयं को मुक्त करना चाहते है वह हमसें समर्क करें।
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