संसार में सत्यवादियों के साथ अन्याय क्यों होता है।
संसार जो वास्तव में नहीं है, और जो यह कहने वाले सत्यवादि हुएं है, उनको संसार ने बहुत बुरी तरह से यातना दे दे कर उनको इस जगत से हमेंशा के लिए नष्ट कर दिया, लेकिन उनके शरीर के नष्ट होने के बाद लोगों ने उनको भगवान और अपने समाज का उद्धारक बना कर उनकी मूर्तियां बना कर उनकी पूजा पाठ आराधना और उपासना का पाखंड करना शुरु कर दिया। जब तक वह जिंदा तब तक उनको बहुत बुरी तरह से दुत्कारा और उनको तरह तरह की यातना दी, और उनके मरते ही उनको अपना कल्याणकर्ता के रुप में प्रचारीत करने का बहुत बड़ा अभियान चलाया गया। जिसके परीणाम स्वरूप साधारण जनता उनकी वास्तविक्ता से कभी भी परिचीत नहीं हो सकी और एक आडम्बर और झुठा जीवन जीने के लिए विवश हो चुकी है।
मैं ऐसे बहुत से उदाहरण के रूप में दे सकता हूं, सर्वप्रथम आज के समय में सबसे जिस धर्म के मानने वाले हैं, वह धर्म है ईशाइ है, इसके संस्थापक ईसा मसीह के माना गया है। ईशा मसीह को कितनी यातना दे कर शुली पर चढ़ा दिया गया था, यह बात किसी से छीपी नहीं है, लेकिन उनके मरते ही सभी जो पहले यहुदी थे वह ईशाई बन गए, और ईशाई धर्म का प्रचार करके लोगों को भारी मात्रा में ईशाई बनाया गया वास्वतव में यह धर्म दूनिया का सब अधिक घटिया धर्म है, लेकिन इसका बोल बाला सबसे अधिक इस दूनीया में है, जब उनका जन्म हुआ था अर्थात 25 दिसंबर को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं, और जब उनका खतना किया गया था, उसको नये साल के रूप में 1 जनवरी के रूप में मनाते हैं। ईशा मशीह भारत में आकर सत्य के ज्ञान को प्राप्त किया था, और जब उनको सुली पर चढ़ाया गया था उस समय उनकी मृत्यु नहींं हुई थी, उसके बाद वह भारत में आये थे और उन्होने भारत के कश्मिर के पहलगाम में रहकर अपने आगे के जीवन को व्यतित किया था, जहां पर उनकी समाधि आज भी उपस्थित है। और वह 150 साल तक जीवित थे।
महात्मा बुद्ध और महावीर के साथ भी कोई अच्छा व्यवहार दुनीया ने नहीं किया, मैंने सुना है कि इनके कान में सीसा घोल कर डाल दिया गया था। राम और कृष्ण के साथ भी अच्छा व्यवहार इस दुनीया ने नहीं किया था, जिसके कारण ही कृष्ण और राम को इस संसार से जाना पड़ा था। मन्सुर खां, सरमद इत्यादि को भी बुरी तरह से यातना देकर मार दिया गया था। शंकराचार्य भा ज्यादा समय तक इस पृथ्वी पर जीवित नहीं रह सके थे, स्वामी दयानंद को जहर दे कर मार दिया गया था, यदि आप खोज करेगें तो यह सत्य ज्ञात होगा की लगभग सत्य के जितने भी खोजी हुए हैं उन सभी को जब वह जिंदा थे तो उनको नहीं स्वीकारा था और ना ही उनकी मान्यता को ही लोग मानते थे। उनके बाद उनके पीछे से उनके नाम को लेकर बहुत बड़ी भीड़ एकत्रीत हुई जिसके कारण ही लोग उनके नाम को जानते है।
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