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शिव भक्त चंड की मार्मिक कथा

 

सिंहकेतु पांचाल देश का एक राजा था

 

     सिंहकेतु पांचाल देश का एक राजा था  जो की बहुत बड़ा शिवभक्त था।  शिव आराधना और शिकार उसके दो चीजें प्यारी थींवह शिकार खेलने रोज जंगल जाता था।  एक दिन घने जंगल में सिंहकेतु को एक ध्वस्त मंदिर दिखा।   राजा शिकार की धुन में आगे बढ़ गया पर सेवक भील ने ध्यान से देखा तो वह शिव मंदिर था जिसके भीतर लता, पत्रों में एक शिवलिंग था।

   भील का नाम चंड थासिंहकेतु के सानिध्य और उसके राज्य में रहने से वह भी धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया था।  चबूतरे पर स्थापित शिवलिंग जो कि अपनी जलहरी से लगभग अलग ही हो गया था वह उसे उखाड़ लाया।  चंड ने राजा से कहा- महाराज यह निर्जन में पड़ा थाआप आज्ञा दें तो इसे मैं रख लूंपर कृपा कर पूजन विधि भी बता दें ताकि मैं रोज इसकी पूजा कर पुण्य कमा सकूं।

    राजा ने कहा कि चंड भील इसे रोज नहला कर इसकी फूल-बेल पत्तियों से सजाना, अक्षत, फल मीठा चढ़ाना. जय भोले शंकर बोल कर पूजा करना और उसके बाद इसे धूप-दीप दिखाना।

    राजा ने कुछ मजाक में कहा कि इस शिवलिंग को चिता भस्म जरूर चढ़ाना और वो भस्म ताजी चिता राख की ही होफिर भोग लगाकर बाजा बजाकर खूब नाच-गाना किया करना।

   शिकार से राजा तो लौट गया पर भील जो उसी जंगल में रहता था, उसने अपने घर जाकर अपनी बुद्धि के मुताबिक एक साफ सुथरे स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और रोज ही पूजा करने का अटूट नियम बनाया।

        भीलनी के लिए यह नयी बात थीउसने कभी पूजा-पाठ न देखी थी।   भील के रोज पूजा करने से ऐसे संस्कार जगे की कुछ दिन बाद वह खुद तो पूजा न करती पर भील की सहायता करने लगी।  कुछ दिन और बीते तो भीलनी पूजा में पर्याप्त रुचि लेने लगी, एक दिन भील पूजा पर बैठा तो देखा कि सारी पूजन सामग्री तो मौजूद है पर लगता है वह चिता भस्म लाना तो भूल ही गया।

        वह भागता हुआ जंगल के बाहर स्थित श्मशान गया, आश्चर्य आज तो कोई चिता जल ही नहीं रही थीपिछली रात जली चिता का भी कोई नामो निशान न था जबकि उसे लगता था कि रात को मैं यहां से भस्म ले गया हूं।

        भील भागता हुआ उलटे पांव घर पहुंचा. भस्म की डिबिया उलटायी पलटाई पर चिता भस्म तनिक भी न थी. चिंता और निराशा में उसने अपनी भीलनी को पुकारा जिसने सारी तैयारी की थी।

          पत्नी ने कहा- आज बिना भस्म के ही पूजा कर लें, शेष तो सब तैयार है।   पर भील ने कहा नहीं राजा ने कहा था कि चिता भस्म बहुत ज़रूरी हैवह मिली नहीं, क्या करूं ! भील चिंतित हो बैठ गया।

         भील ने भीलनी से कहा- प्रिये यदि मैं आज पूजा न कर पाया तो मैं जिंदा न रहूंगा, मेरा मन बड़ा दुःखी है और चिन्तित है।   भीलनी ने भील को इस तरह चिंतित देख एक उपाय सुझाया।

         भीलनी बोली, यह घर पुराना हो चुका है, मैं इसमें आग लगाकर इसमें घुस जाती हूं, आपकी पूजा के लिए मेरे जल जाने के बाद बहुत सारी भस्म बन जायेगी, मेरी भस्म का पूजा में इस्तेमाल कर लें।

         भील न माना बहुत विवाद हुआ।   भीलनी ने कहा मैं अपने पतिदेव और देवों के देव महादेव के काम आने के इस अवसर को न छोड़ूंगी।   भीलनी की ज़िद पर भील मान गया।

        भीलनी ने स्नान कियाघर में आग लगायीघर की तीन बार परिक्रमा की।   भगवान का ध्यान किया और भोलेनाथ का नाम लेकर जलते घर में घुस गयी।   ज्यादा समय न बीता कि शिव भक्ति में लीन वह भीलनी जलकर भस्म हो गई।

      भील ने भस्म उठाईभली भांति भगवान भूतनाथ का पूजन कियाशिवभक्ति में घर सहित घरवाली खो देने का कोई दुःख तो भील के मन में तो था नहीं सो पूजा के बाद बड़े उत्साह से उसने भीलनी को प्रसाद लेने के लिये आवाज दी।

         क्षण के भीतर ही उसकी पत्नी समीप बने घर से आती दिखीजब वह पास आयी तो भील को उसको और अपने घर के जलने का ख्याल आयाउसने पूछा यह कैसे हुआ ? तुम कैसे आयीं ? यह घर कैसे वापस बन गया ?

        भीलनी ने सारी कथा कह सुनायी.की जब धधकती आग में घुसी तो लगा जल में घुसती जा रही हूं और मुझे नींद आ रही है।   जगने पर देखा कि मैं घर में ही हूं और आप प्रसाद के लिए आवाज लगा रहे हैं।

          वे यह सब बातें कर ही रहे थे कि अचानक आकाश से एक विमान वहां उतरा, उसमें भगवान के चार गण थे।  उन्होंने अपने हाथों से उठा कर उन्हें विमान में बैठा लिया।

        गणों का हाथ लगते ही दोनों के शरीर दिव्य हो गए, दोनों ने शिव-महिमा का गुणगान किया और फिर वे अत्यंत श्रद्धायुक्त भगवान की आराधना का फल भोगने शिव लोक चले गये।

   जब से इस धरा धाम पर मानव की उत्पत्ति हुई तब से ही उसका सामना दुखों एवं परेशानियों से होना प्रारम्भ हो गया है । प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सुख - दुख , लगे रहते हैं , महापुरुषों का कथन है कि मनुष्य को दुख में घबराना नहीं चाहिए वरन् साहस से काम लेते हुए बुरे समय के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए ।

       इस संसार में विजयी वही हुआ है जिसने अपने धैर्य एवं धर्म को पकड़े रखा । अयोध्या के यशस्वी महाराज हरिश्चन्द्र ने अपने जीवन में दुसह कष्ट उठाये परंतु अपने सत्य, धर्म एवं धैर्य को नहीं छोड़ा जिसके फलस्वरूप साक्षात नारायण को प्रकट होना पड़ा । समय परिवर्तनशील होता है । प्रत्येक मनुष्य का समय सदैव एक जैसा नहीं रहता । महाभारत के विजेता परम यशस्वी पांडववीर अर्जुन के पराक्रम को कौन नहीं जानता ! परंतु जब उनका भी समय घूमा तो कोल भिल्लों ने गोपिकाओं को लूट लिया और अर्जुन कुछ नहीं कर पाये । मनुष्य अपने मस्तिष्क मों नित्य अगले दिन के नयी - नयी योजनाओं का ताना-बाना बुनता रहता है ! परंतु यह आवश्यक नहीं है कि उसकी सारी योजनाएं पूरी ही हो जायें । असुरराज बलि ने स्वर्गाधिपति बनने के लिए यज्ञों का सहारा लिया । १००वीं यज्ञ में पहुँचकर नारायण ने उसके सपनों को व्यर्थ कर दिया । किसी ने लिखा भी है कि---- "अपना सोचा होत नहिं , हरि सोचा तत्काल । बलि चाहत वैकुण्ठ को , भेज दिया पाताल ।।

   अर्थात मनुष्य को योजनायें तो बनानी चाहिए परंतु उसके क्रियान्वयन के लिए उचित समय की प्रतीक्षा अवश्य करनी चाहिए । असमय किये गये कार्य मनुष्य को निराश ही करते हैं। और परिणामस्वरूप मनुष्य हतोत्साहित हो जाता है, आज के अधिकतर मनुष्यों में उतावलापन देखा जा सकता है । दुख में भर भरा कर टूट जाना आज कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है । दुख के दिनों में धैर्य एवं साहस का अभाव सा दिखने लगा है । जबकि किसी ने अपनी लाईनों में लिखा है - "देखकर काली निशा को , भंवर तू मत हो निराश ! बंद कलियां भी खुलेंगी , रात ढल जाने के बाद !! अर्थात दुख रूपी काली रात में निराश न होकर उस काली रात्रि के बीत जाने की प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए ! क्योंकि यह सृष्टि का नियम है कि प्रत्येक काली रात्रि के बाद एक सुखद प्रभात अवश्य होता है । आज का मनुष्य अति महत्वाकांक्षी हो गया है । कोई भी कार्य करने पर उसके प्रतिफल के लिए प्रतीक्षा करना बहुत भारी लगने लगता है । परंतु परिणाम तो निर्धारित समय पर ही मिलेगा । उसके लिए व्यर्थ परेशान होना मनुष्य की नादानी ही है । समय पर अपने कर्म को यथोचित रूप से करते रहना और परिणाम के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करना ही मनुष्यों के लिए उचित है । कुछ लोग दुखों के पहाड़ से इतना ज्यादा दबे से प्रतीत करते हैं कि आत्महत्या तक करने का प्रयास करने लगते हैं । विचार कीजिये कि जिस जीवन को हम सृजित नहीं कर सकते उसे समाप्त करने का क्या अधिकार है । फिर आपके दुख में आपका परिवार भी तो दुःखी होता है और मनुष्य आत्महत्या करके स्वयं तो गया परंतु घरवालों का दुख चौगुना बढ़ जाता है । यहाँ पर मनुष्य को कर्म करते हुए दुख के समय को व्यतीत होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए ! दुःख और सुख सदैव चलायमान हैं यह कभी एक ही जगह नहीं रहते ।

    दुःख में जिसने भी अपने धैर्य , धर्म एवं साहस को पकड़े रखकर सत्यमार्ग को नहीं छोड़ा उसकी कीर्ति पताका आज भी फहरा रही है ।

       

संस्कृत शुभाषित

सृष्टि के प्रारंभ में मानव एवं सृष्टि उत्पत्ति

अभिज्ञानशाकुन्तल संक्षिप्त कथावस्तु

महाकविकालिदासप्रणीतम्‌  - अभिज्ञानशाकुन्तलम्‌ `- भूमिका

वैराग्य संदीपनी गोस्वामितुलसीदासकृत हिंदी

अग्नि सुक्तम् - अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्

PART-2- BRAHM KOWLEDGE

BRAHMA-KNOWLEDGE-PART-1

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK

Chapter XV-XVI-XVII-XVIII-XIX-XX-XXI-XII

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter XIII-XIV

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter XI-XII

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter IX-X

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter VII-VIII

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter V-VI

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter III-IV

S’rimad Devî Bhâgavatam THE FIRST BOOK Chapter I-II

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP -16,17,18

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. XV.

VISHNU PURANA. - BOOK III.  CHAP. XIV.

VISHNU PURANA. - BOOK III.  CHAP. XIII.

VISHNU PURANA. - BOOK III.  CHAP. XII.

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VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. X

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. IX

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. VIII

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. VII.

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. VI

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. V

VISHNU PURANA. - BOOK III. CHAP. IV

VISHNU PURANA. - BOOK III.- CHAP. III

VISHNU PURANA. - BOOK III.- CHAP. II.

VISHNU PURAN BOOK III.CHP-1

Self – Suggestion- Chapter 8

Self-Suggestion Chapter 7

Self-Suggestion- Chapter 6

चंद्रकांता (उपन्यास) पहला अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

खूनी औरत का सात खून (उपन्यास) : किशोरी लाल गोस्वामी

ब्राह्मण की बेटी : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (बांग्ला उपन्यास)

Self – Suggestion -Chapter 5

Self - Suggestion - Chapter 4

Self-Suggestion -- Chapter 3

SELF SUGGESTION Chapter 2

SELF-SUGGESTION AND THE NEW HUNA THEORY OF MESMERISM AND HYPNOSIS – chapter-1, BY- MAX FREEDOM LONG

VISHNU PURAN - BOOK II.

VISHNU PURAN-BOOK I - CHAPTER 11-22

VISHNU PURANA. - BOOK I. CHAP. 1. to 10

Synopsis of the Vishnu Purana

Introduction of All Puranas

CHARACTER-BUILDING.

SELF-DE-HYPNOTISATION.

THE ROLE OF PRAYER. = THOUGHT: CREATIVE AND EXHAUSTIVE. MEDITATION EXERCISE.  

HIGHER REASON AND JUDGMENT= CONQUEST OF FEAR.

THE GREAT EGOIST--BALI

QUEEN CHUNDALAI, THE GREAT YOGIN

CREATION OF THE UNIVERSE

THE WAY TO BLESSED LIBERATION

MUDRAS MOVE THE KUNDALINI

LOCATION OF KUNDALINI

SAMADHI YOGA

THE POWER OF DHARANA, DHIYANA, AND SAMYAMA YOGA.

THE POWER OF THE PRANAYAMA YOGA.

INTRODUCTION

KUNDALINI, THE MOTHER OF THE UNIVERSE.

TO THE KUNDALINI—THE MOTHER OF THE UNIVERSE.

Yoga Vashist part-1 -or- Heaven Found   by   Rishi Singh Gherwal   

Shakti and Shâkta -by Arthur Avalon (Sir John Woodroffe),

Mahanirvana Tantra- All- Chapter  -1 Questions relating to the Liberation of Beings

Mahanirvana Tantra

Tantra of the Great Liberation

Translated by Arthur Avalon

(Sir John Woodroffe)

Introduction and Preface

CONCLUSION.

THE VAMPIRE'S ELEVENTH STORY.

THE VAMPIRE'S TENTH STORY.

THE VAMPIRE'S NINTH STORY.

THE VAMPIRE'S EIGHTH STORY.

THE VAMPIRE'S SEVENTH STORY.

THE VAMPIRE'S SIXTH STORY.

THE VAMPIRE'S FIFTH STORY.

THE VAMPIRE'S FOURTH STORY.

THE VAMPIRE'S THIRD STORY.

THE VAMPIRE'S SECOND STORY.

THE VAMPIRE'S FIRST STORY.

श्वेतकेतु और उद्दालक, उपनिषद की कहानी, छान्द्योग्यापनिषद, GVB THE UNIVERSITY OF VEDA

यजुर्वेद मंत्रा हिन्दी व्याख्या सहित, प्रथम अध्याय 1-10, GVB THE UIVERSITY OF VEDA

उषस्ति की कठिनाई, उपनिषद की कहानी, आपदकालेमर्यादानास्ति, _4 -GVB the uiversity of veda

वैराग्यशतकम्, योगी भर्तृहरिकृत, संस्कृत काव्य, हिन्दी व्याख्या, भाग-1, gvb the university of Veda

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