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हिंदी में महिला सशक्तिकरण पर निबंध

 





हिंदी में महिला सशक्तिकरण पर निबंध

Essay on Women Empowerment in Hindi

इस लेख में हम महिला सशक्तिकरण का अर्थ, भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता, महिला सशक्तिकरण के लाभ पर चर्चा करेंगे।"

 

महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम ‘सशक्तिकरण’से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस योग्यता से है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके।

 

महिला सशक्तिकरण’ के इस लेख में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं, जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।

 

आशा करते हैं कि यह लेख आपको समाज में महिलाओं की स्थिति और अधिकारों से अवगत करवाने में सक्षम होगा और महिला सशक्तिकरण के विषय में आपकी जानकारी को और अधिक विस्तृत करेगा।

 

संकेत बिंदु (Content)

प्रस्तावना

महिला सशक्तिकरण का अर्थ

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका

संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम

महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका

महिला सशक्तिकरण के लाभ

उपसंहार

 प्रस्तावना (introduction)

आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि – ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है।

लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती हैं।

 

राष्ट्र के विकास में महिलाओं का महत्त्व और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिये मातृ दिवस, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आदि जैसे कई सारे कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की जरुरत है।

भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे – दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।

 

अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है। जहाँ महिलाएँ अपने परिवार के साथ ही बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। भारत में अनपढ़ो की संख्या में महिलाएँ सबसे अव्वल है।

नारी सशक्तिकरण का असली अर्थ तब समझ में आयेगा जब भारत में उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी और उन्हें इस काबिल बनाया जाएगा कि वो हर क्षेत्र में स्वतंत्र होकर फैसले कर सकें।

 

महिला सशक्तिकरण का अर्थ – Meaning of women empowerment

 

स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है।

दूसरे शब्दों में – महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। यह वह तरीका है, जिसके द्वारा महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकंक्षाओं को पूरा कर सके।

आसान शब्दों में महिला सशक्तिकरण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाओं में उस शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है।

 

 

 

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता –The need for women empowerment in India

 

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। प्राचीन काल के अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान घटने लगा था।

(i) आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है।

(ii) शिक्षा के मामले में भी भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं। भारत में पुरुषों की शिक्षा दर 81.3 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की शिक्षा दर मात्र 60.6 प्रतिशत ही है।

(iii) भारत के शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के अपेक्षा अधिक रोजगारशील है, आकड़ो के अनुसार भारत के शहरों में साफ्टवेयर इंडस्ट्री में लगभग 30 प्रतिशत महिलाएँ कार्य करती है, वही ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 90 फीसदी महिलाएँ मुख्यतः कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में दैनिक मजदूरी करती है।

(iv) भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का एक और मुख्य कारण भुगतान में असमानता भी है। एक अध्ययन में सामने आया है कि समान अनुभव और योग्यता के बावजूद भी भारत में महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा 20 प्रतिशत कम भुगतान दिया जाता है।

 

(v) हमारा देश काफी तेजी और उत्साह के साथ आगे बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसे हम तभी बरकरार रख सकते है, जब हम लैंगिग असमानता को दूर कर पाए और महिलाओं के लिए भी पुरुषों के तरह समान शिक्षा, तरक्की और भुगतान सुनिश्चित कर सके।

(vi) भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की है मतलब, पूरे देश के विकास के लिए इस आधी आबादी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किए हमारा देश विकसित हो पायेगा।

(vii) महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है।

(viii) भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियों को पूजने की परंपरा है लेकिन आज केवल यह एक ढोंग मात्र रह गया है।

(ix) पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया।

(x) पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किए गए हैं। हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है।

(xi) आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है।

(xii) महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ (hurdles in implementation of women empowerment in India)

भारतीय समाज एक ऐसा समाज है, जिसमें कई तरह के रिवाज, मान्यताएँ और परम्पराएँ शामिल हैं। इनमें से कुछ पुरानी मान्यताएँ और परम्पराएँ ऐसी भी हैं जो भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए बाधा सिद्ध होती हैं। उन्हीं बाधाओं में से कुछ निम्नलिखित हैं –

 

(i) पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है।

(ii) पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के वातावरण में रहने के कारण महिलाएँ खुद को पुरुषों से कम समझने लगती हैं और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती हैं।

(iii) कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

(iv) समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए समस्याएँ उत्पन्न होती है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़नों में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।

(v) भारत में अभी भी कार्यस्थलों में महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैसले लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कम ही माना जाता है।

(vi) भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादा दयनीय है, खासतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है।

(vii) समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के तरह समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है।

(viii) महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएँ भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएँ है। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़कियाँ शिक्षा के मामले में लड़कों के बराबर हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं।

(ix) भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है। काफी सारी ग्रामीण लड़कियाँ जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती हैं।

(x) हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गए प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती हैं।

(xi) भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं।

(xii) कामकाजी महिलाएँ भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नही करती है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रुप से कही भी आ जा सकें।

(xiii) कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात, भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है। हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब तक नही पूरे होंगे, जब तक हम कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को मिटा नहीं पाएँगे।

 

 भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका – Role of the government in implementation of women empowerment in India

भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएँ चलाई जाती हैं। इनमें से कई सारी योजनाएँ रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसी चीजों से सम्बंधित होती हैं। इन योजनाओं का गठन भारतीय महिलाओं के परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएँ मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना (मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं।

महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाएँ इस आशा के साथ चलाई जा रही है कि एक दिन भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की ही तरह प्रत्येक अवसर का लाभ प्राप्त होगा-

 

 

1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना –

 

यह योजना कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिक्षा को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। इसके अंतर्गत लड़कियों के बेहतरी के लिए योजना बनाकर और उन्हें आर्थिक सहायता देकर उनके परिवार में फैली भ्रांति लड़की एक बोझ है की सोच को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

 

2) महिला हेल्पलाइन योजना –

 

इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को 24 घंटे इमरजेंसी सहायता सेवा प्रदान की जाती है, महिलाएँ अपने विरुद्ध होने वाली किसी तरह की भी हिंसा या अपराध की शिकायत इस योजना के तहत निर्धारित नंबर पर कर सकती हैं। इस योजना के तरत पूरे देश भर में 181 नंबर को डायल करके महिलाएँ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं।

 

3) उज्जवला योजना –

 

यह योजना महिलाओं को तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए शुरू की गई है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत उनके पुनर्वास और कल्याण के लिए भी कार्य किया जाता है।

 

 

4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप) –

 

स्टेप योजना के अंतर्गत महिलाओं के कौशल को निखारने का कार्य किया जाता है ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके या फिर वह स्वंय का रोजगार शुरु कर सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत कई सारे क्षेत्रों के कार्य जैसे कि कृषि, बागवानी, हथकरघा, सिलाई और मछली पालन आदि के विषयों में महिलाओं को शिक्षित किया जाता है।

 

5) महिला शक्ति केंद्र –

 

यह योजना समुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत छात्रों और पेशेवर व्यक्तियों जैसे सामुदायिक स्वयंसेवक ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते है।

 

 

6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण –

 

2009 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचायती राज संस्थानों में 50 फीसदी महिला आरक्षण की घोषणा की, सरकार के इस कार्य के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामाजिक स्तर को सुधारने का प्रयास किया गया। जिसके द्वारा बिहार, झारखंड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के साथ ही दूसरे अन्य प्रदेशों में भी भारी मात्रा में महिलाएँ ग्राम पंचायत अध्यक्ष चुनी गई।

 

संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम (Laws made by the Parliament favouring women empowerment)

कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा भी कुछ अधिनियम पास किए गए हैं। वे अधिनियम निम्नलिखित हैं –

(i) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956

(ii) दहेज रोक अधिनियम 1961

(iii) एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976

(iv) मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987

(v) लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994

(vi) बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006

(vii) कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013

 

 

महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका – (Role of women in the nation’s progress)

बदलते समय के साथ आधुनिक युग की नारी पढ़-लिख कर स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेती हैं। अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है। महिलाएँ हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। इसी वजह से राष्ट्र के विकास के महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

 

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। ऐसी ही एक मिसाल बनी सहारनपुर की अतिया साबरी। अतिया पहली ऐसी मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया।

 

तेजाब पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली वर्षा जवलगेकर के भी कदम रोकने की नाकाम कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ा। हमारे देश में ऐसे कई उदहारण है जो महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन रही है।

 

आज देश में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। आज देश की महिलाएँ जागरूक हो चुकी हैं। आज की महिला ने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार की ही जिम्मदारी को बेहतर निभा सकती है।

 

आज की महिला पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर बड़े से बड़े कार्य क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। फिर चाहे काम मजदूरी का हो या अंतरिक्ष में जाने का। महिलाएँ अपनी योग्यता हर क्षेत्र में साबित कर रही हैं।

 

 

महिला सशक्तिकरण के लाभ – Advantages of women empowerment

महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण के बिना वह सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती। बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती। स्त्री सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर आधिकार पा सके।

महिला सशक्तिकरण के कारण महिलाओं की जिंदगी में बहुत से बदलाव हुए।

(i) महिलाओं ने हर कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है।

(ii) महिलाएँ अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद कर रही हैं।

(iii) महिलाएँ अपने हक के लिए लड़ने लगी हैं और धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं।

(iv) पुरुष भी अब महिलाओं को समझने लगे हैं, उनके हक भी उन्हें दे रहें हैं।

(v) पुरुष अब महिलाओं के फैसलों की इज्जत करने लगे हैं। कहा भी जाता है कि – हक माँगने से नही मिलता छीनना पड़ता है और औरतों ने अपने हक अपनी काबिलियत से और एक जुट होकर मर्दों से हासिल कर लिए हैं।

 

महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है। क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण महिलाओं को सिर्फ गुजारे-भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती, बल्कि उन्हें अपने अंदर नारी चेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का माहौल भी तैयारी करती है।

 

उपसंहार (conclusion)

 

जिस तरह से भारत आज दुनिया के सबसे तेज आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो समाज की पितृसत्तामक और पुरुष युक्त व्यवस्था है। यह बहुत आवश्यक है कि हम महिलाओं के विरुद्ध अपनी पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाए।

 

 

भले ही आज के समाज में कई भारतीय महिलाएँ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, वकील आदि बन चुकी हो, लेकिन फिर भी काफी सारी महिलाओं को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्य और सामाजिक आजादी में अभी भी और सहयोग की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण का यह कार्य काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति उसके महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर ही निर्भर करती है।

 

महिला सशक्तिकरण महिलाओं को वह मजबूती प्रदान करता है, जो उन्हें उनके हक के लिए लड़ने में मदद करता है। हम सभी को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए, उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है। महिलाएँ अब हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है। किसी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी, तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पाएगी।” वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है। लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है।

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