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जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप(JWST)

  


जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप(JWST)

नासा की बहुप्रतीक्षित महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष दूरबीन “जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप(JWST)” 25 दिसंबर 2021 को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जा चुका है। इस अंतरिक्ष दूरबीन से वैज्ञानिकों को काफी उम्मीदें हैं। वर्तमान में, नासा के हबल अंतरिक्ष दूरबीन को अंतरिक्ष में स्थापित अब तक का सबसे शक्तिशाली दूरबीन माना जाता है।

इसका असली नाम अगली पीढ़ी का अंतरिक्ष दूरदर्शी (Next Generation Space Telescope (NGST)) था, जिसका सन 2002 में नासा के द्वितीय प्रशासक जेम्स एडविन वेब (1906-1992) के नाम पर दोबारा नामकरण किया गया। जेम्स एडविन वेब ने केनेडी से लेकर ज़ोंनसन प्रशासन काल (1961-68) तक नासा का नेतृत्व किया था। उनकी देखरेख में नासा ने कई महत्वपूर्ण प्रक्षेपण किए, जिसमे जेमिनी कार्यक्रम के अंतर्गत बुध के सारे प्रक्षेपण एवं प्रथम मानव युक्त अपोलो उड़ान शामिल है।

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि जेम्स वेब की तुलना हबल से की जाती है। यह माना जाता है कि यह दूरबीन हबल दूरबीन का उत्तराधिकारी है। यह आंशिक रूप से सत्य है, क्यों कि जेम्स वेब टेलीस्कोप हब्स अंतरिक्ष दूरबीन से बहुत भिन्न है। दोनों में अलग-अलग क्षमताएं हैं। हबल अंतरिक्ष दूरबीन की बात करें तो इसकी अंतरिक्ष मे स्थापना वर्ष 1990 में पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO)में हुई थी। पिछले 31 वर्षों में, हबल ने 14 लाख निरीक्षण किए हैं, जिसमें तारे के मध्य के पिंडों का अवलोकन, बृहस्पति से टकराने वाले धूमकेतुओं का निरीक्षण और उनकी खोज करना शामिल है।

हबल टेलीस्कोप एक दृश्य प्रकाशीय (ऑप्टिकल टेलीस्कोप) दूरबीन है, जिसका अर्थ है कि यह दूर के अंतरिक्ष से आने वाली उन प्रकाश की किरणों को पकड़ सकता है जिन्हे हम देख सकते है। इसके पांच मुख्य उपकरण विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में पराबैंगनी प्रकाश, दृश्य प्रकाश और निकट-अवरक्त तरंगों का पता लगा सकते हैं। यह आकाशगंगा विलय को पकड़ने, सुपरमैसिव ब्लैक होल की जांच करने और हमारे ब्रह्मांड के इतिहास को समझने में भी सहायक रहा है। जबकि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप में चार वैज्ञानिक उपकरण हैं। यह मुख्य रूप से अवरक्त(infrared) तरंगों का निरीक्षण करेगा, जिसमें यह 0.6 से 28 माइक्रोन की तरंगों को पकड़ने में सक्षम होगा। वहीं, हबल के उपकरण 0.8 से 2.5 माइक्रोन की तरंगों को पकड़ने में सक्षम हैं। जबकि विद्युतचुंबकीय वर्णक्रम मे अवरक्त (इन्फ्रारेड) तरंगों की तरंग दैर्ध्य 0.7 से 100 माइक्रोन तक होती है। हबल और वेब के मूल दर्पण में भी अंतर है। जहां वेब का मूल दर्पण 6.5 मीटर व्यास का होता है। हबल 2.4 मीटर व्यास का है। इसलिए वेब का कैमरा हबल के कैमरे से कहीं अधिक बड़ा क्षेत्र देख सकता है। वेब की सूर्य सुरक्षा वाली शील्ड भी बडी है, वह लगभग 22 मीटर लंबाई और 12 मीटर चौड़ाई की है।

अब तक की सबसे बड़ी अंतरीक्ष दूरबीन

जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन विश्व की अब तक की सबसे विशाल, सबसे शक्तिशाली और सबसे चुनौतीपूर्ण अंतरिक्ष दूरबीन है। यह इतना बड़ी है कि इसे कागज की खिलौने की तरह मोड़ कर रॉकेट में रखना पड़ रहा है जिससे वह अंतरिक्ष में भेजा जा सके।   एक बार अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद ही उसे खोला जाएगा और अंतरिक्ष के अवलोकनों के लिए तैयार किया जाएगा।

इस अंतरिक्ष दूरबीन को प्रक्षेपण बाद तस्वीरें लेने के तैयार होने की पूरी प्रक्रिया में छह महीने का समय लगेगा।

एरियान राकेट मे जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन

अभियान के उद्देश्य

इस दूरबीन के वैज्ञानिक अभियान के मुख्य चार घटक है। पहला, बिग-बैंग के पश्चात ब्रह्माण्ड में बनी सबसे पहली आकाशगंगा और सबसे पहले बने तारे की खोज करना। दूसरा, आकाशगंगाओं का गठन और उनके विकास का अध्ययन करना। तीसरा, तारों का गठन और ग्रहीय प्रणालीयों को समझना तथा चौथा, जीवन की उत्पत्ति और ग्रहीय प्रणालीयों का अध्ययन करना। इन सभी कार्यों का विश्लेषण दृश्य प्रकाश की अपेक्षा अवरक्त प्रकाश में अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। यही कारण है कि JWST के उपकरण हबल टेलिस्कोप की तरह दृश्य या पराबैंगनी वर्णक्रम वाले नहीं होंगे बल्कि इसमें बड़ी मात्रा में अवरक्त प्रकाश के निरीक्षण की क्षमता होगी। इस दूरबीन की वर्तमान डिजाइन इस प्रकार बनाई गई है कि यह 0.6 (नारंगी प्रकाश) से लेकर 28 माइक्रोमीटर (लगभग 100° K (-173°C, -280°F)) की गहरी अवरक्त विकिरण) विस्तार की तरंग दैर्ध्यों का आसानी से पता लगा लेगी।

जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन का विज्ञान

विशेष अध्ययनों के लिए निर्मित पहली आकाशगंगा और पहलें तारे की खोज
वेब को ब्रह्माण्ड में सुदूर स्थित उन आकाशगंगाओं के अवलोकन और अध्ययन के लिए निर्माण किया गया है जिनका जन्म अभी हुआ है या हो रहा है। जेम्स वेब उन बाह्यग्रहों का भी गहराई से अध्ययन कर सकेगा जिनमें जीवन के संकेत मिलने की संभावना है लेकिन उनका अध्ययन वर्तमान उपकरणों से नहीं हो पा रहा है।

बिग बैंग के पश्चात जब ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई तब चहुँ ओर केवल मूलभूत कणों (स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन और स्वतन्त्र प्रोटॉन) का राज था। इसके करीब चार लाख वर्ष बाद जैसे जैसे तापमान गिरने लगा इलेक्ट्रोन और प्रोटोन ने आपसी साझेदारी से हाइड्रोजन परमाणु (एक इलेक्ट्रोन + एक प्रोटोन) बनाया। साझेदारी की यह प्रक्रिया पुनर्संयोजन(recombination) कहलाती है। जैसे ही इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन का मिलन हुआ फोटॉन अर्थात् इलेक्ट्रॉन अपनी उच्च ऊर्जा अवस्था से निम्न अवस्था अवस्था मे आए, जिसके लिए उन्होंने फ़ोटॉन उत्सर्जन किया और प्रकाश का जन्म हुआ। इस बिंदु पर ब्रह्माण्ड अपारदर्शी से पारदर्शी होने लगा। ‘पुनर्संयोजन का युग(recombination epoch)’ हमारे ब्रह्माण्डीय इतिहास का वह पूर्व बिंदु है जिसमें हम प्रकाश के किसी भी रूप के साथ पीछे जाकर देख सकते हैं। ब्रह्माण्ड की समयरेखा का सर्वोत्तम प्रमाण ब्रह्माण्ड में चहुँ ओर व्याप्त ‘ कासमिक बैकग्राउंड विकिरण ‘ है जिसे हम आज COBE और WMAP की सहायता से देखते हैं ।

ब्रह्माण्ड में एक और बड़ा परिवर्तन तारों के निर्माण के बाद हुआ। सिद्धांत अनुमान लगाते हैं कि प्रथम सुपरनोवा विस्फोट के पहले कुछ ही लाख वर्ष तक दहकने वाले प्रथम तारे (सबसे पहले बने तारे) सूर्य से 30 से 300 गुना बड़े थे और उनकी चमक सूर्य से लाखो गुना अधिक थी। इन तारों का उर्जायुक्त पराबैंगनी प्रकाश हाइड्रोजन परमाणु को इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन में विभाजित करने में सक्षम था। सुदूर क्वासर के वर्णक्रम के अध्ययन से लगता है कि इस समय ब्रह्मांड की आयु संभवतः एक अरब वर्ष होगी। यह ‘ पुनः आयनीकरण युग ‘ कहलाता है। यह वह युग था जब अधिकांश हाइड्रोजन प्रथम पीढ़ी के तारों से उत्सर्जित उच्च ऊर्जा वाले विकिरण से नष्ट हो गई। पुनः आयनीकरण हमारे ब्रह्माण्डीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। इसका अध्ययन कर हम प्रथम पीढ़ी के तारों की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु वैज्ञानिक यह नहीं जानते कि वास्तव में प्रथम तारे का निर्माण कब हुआ और पुनः आयनीकरण की प्रक्रिया कब शुरू हुई। ब्रह्माण्डीय इतिहास में प्रथम तारे का उद्भव ‘ अंध युग(Dark Age) ‘ के अंत की एक निशानी है। इस अवधि को प्रकाश के पृथक स्रोत की अनुपस्थिति के रूप में पहचाना जाता है।

ब्रह्मांड के जन्म के इन प्रथम सूत्रों को समझना आवश्यक है क्योंकि इसने बाद में बनने वाले आकाशगंगा जैसे विशाल निकायों के गठन को प्रभावित किया है। प्रकाश के प्रथम स्रोत की भूमिका उस बीज के सामान है जिसने बाद में विशाल निकायों का निर्माण किया। हो सकता है प्रथम तारों ने सुपरनोवा जैसे विस्फोट से ध्वस्त होकर ब्लेक होल बनायें हो और यह ब्लेक होल तारों और गैसों को निगलकर ‘ छोटी क्वासर ‘बनाई हो जिसने निरंतर वृद्धि कर विशाल ब्लेक होल का निर्माण किया हो जो आज की आकाशगंगा के केंद्र में पाया गया है। ब्रह्माण्ड की संरचना की गठन की गुत्थी सुलझाने के लिए वेब कई महत्वपूर्ण सवालों का पता करने में हमारी मदद करेगा। जैसे कि पुनः आयनीकरण कब और कैसे हुआ ? वें कौन से स्रोत है जो पुनः आयनीकरण के कारण बने ? प्रथम आकाशगंगा कौनसी है ?

आकाशगंगाओं का गठन और उनके विकास का अध्ययन
वेब अंतरिक्ष दूरबीन की क्रांतिकारी तकनीक खगोलीय इतिहास के हर दौर का अध्ययन कर सकेगी और इसके साथ उसका उपयोग हमारे अपने सौरमंडल के ग्रहों का अध्ययन करने के लिए भी किया जा सकेगा। इसके अवरक्त सेंसर से से विज्ञान के विविध श्रेणी के प्रश्नों का उत्तर खोजने में सहायता करेगा जिसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के प्रश्न भी शामिल हैं।

आकाशगंगाएं, ब्रह्माण्ड रूपी इमारत की साक्षात ईंटे है। सिद्धांत और निरीक्षण भी हमें आकाशगंगाओं की बनावट की शानदार रूपरेखा देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि छोटे निकाय(खगोलीय संरचना) पहले बने तथा उनके परस्पर मिलन से बड़े निकायों का निर्माण हुआ। यह प्रक्रिया आज भी (हमारी अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी के साथ उसके छोटी उपग्रह आकाशगंगाओ के विलय के रूप में देख सकते है। भविष्य मे ऐसी एक घटना मंदाकिनी की ओर भविष्य की संभावित टक्कर के लिए बढ़ती देवयानी (एंड्रोमेडा) आकाशगंगा के रूप में और उससे बनाने वाली एक महाकाय आकाशगंगा के रूप मे देखी जा सकती है।

जेम्स वेब से बिग बैंग के एक अरब वर्ष बाद बनी आकाशगंगाओं का अवलोकन समय रेखा में पीछे की ओर जाकर किया जाएगा हालांकि तब की आकाशगंगाएं आज की आकाशगंगाओं की अपेक्षा छोटी और ज्यादा अनियमित थी जबकि उनमे से कुछ का स्वरूप वर्त्तमान आकाशगंगाओं से काफी मिलता जुलता है। इस दिशा में अब तक बहुत कार्य हुए हैं बावजूद कई प्रश्नों का उत्तर अभी भी अज्ञात है। हम नहीं जानते कि वास्तव में आकाशगंगाओं का निर्माण कैसे हुआ ? उनके आकार को कौन नियंत्रित करता है ? उनके भीतर तारों का निर्माण कैसे होता है ? रासायनिक तत्वों कि उत्पत्ति कैसे हुई और केंद्रीय ब्लेक होल के संपूर्ण आकाशगंगा पर प्रभाव के बावजूद इन तत्वों का आकाशगंगाओं के माध्यम से पुनः वितरण किस प्रकार हुआ ? छोटे और बड़े निकायों के टक्कर के फलस्वरूप एकीकरण जैसी विस्फोटक घटनाओं का ब्रह्मांड पर प्रभाव क्या होता है ?

बाह्यग्रहों , जीवन की उत्पत्ति और ग्रहीय प्रणालीयों का गहराई से अध्ययन
वेब को विशेष रूप से अवरक्त किरणों के लिए ही बनाया गया है। इसकी संवेदनशीलता और विश्लेषण क्षमता अभूतपूर्व है। यह ब्रह्माण्ड में निकट के पिंडों के अध्ययन के लिए भी एक शक्तिशाली उपकरण साबित होगा। अभी तक खोजे गए बाह्यग्रहों(Exoplanet) का अध्ययन करने में भी वैज्ञानिकों को परेशानी हो रही थी। वेब इन समस्याओं का हल करने में सक्षम होगा।

तारे सदीयों से खगोलविज्ञान का एक उत्कृष्ट विषय रहे है। विस्तृत अवलोकन और कंप्यूटर सिमुलेसन से हाल के दिनों में हम तारों को बेहतर समझने लगे हैं। अब से 100 वर्ष पहले हम नहीं जानते थे कि तारों को ऊर्जा नाभकीय संलयन से मिलती है और 50 वर्ष पहले हम यह नहीं जानते थे कि तारे लगातार निर्मित और मृत होते रहते हैं। हमें आज भी इसका विस्तृत ज्ञान नहीं है कि गैस और धूल के बादलों से तारे कैसे बनते हैं, अधिकाँश तारे समूह में क्यों बनते हैं, उनमें से ग्रहों का निर्माण कैसे होता है। हमें इसका भी विस्तृत ज्ञान नहीं है कि कैसे वें धातुओं को विकसित और मुक्त कर नई पीढ़ी के तारों और ग्रहों के पुनर्निर्माण के लिए वापस अंतरीक्ष में जाते हैं। कई मामलों में यह पुराने तारे नयें तारों की निर्माण प्रक्रिया में बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं। अवलोकन बताते हैं कि अधिकाँश तारों का निर्माण द्वि-तारा प्रणाली में होता है और उनमें से कईयों के ग्रह भी होते हैं। हालांकि बड़ी संख्या में खोजे गए विशाल ग्रहों की कक्षाएँ उनके तारों के काफी करीब पायी गई, यह एक आश्चर्य की बात थी। हम यह जानते हैं कि सूर्य से थोड़े बड़े और ठण्डे तारों के आसपास ग्रहों का पाया जाना सामान्य बात है।

पृथ्वी की उत्पत्ति और जीवन को आधार देने की इसकी क्षमताओं को जानना संपूर्ण खगोलविज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। यह JWST विज्ञान अभियान का एक केंद्र बिंदु है और पृथ्वी पर जीवन के मूल को जानने के लिए छोटे पिंडों के गठन को समझना जरुरी है कि कैसे उन्होंने आपसी मेल से बड़े पिंड बनाएं, उन्होंने अपनी वर्तमान कक्षाएं कैसे प्राप्त की, कैसे बड़े पिंड एक प्रणाली (जैसे कि हमारी सौर प्रणाली या सौर मंडल) के भीतर अन्य पिंडों को प्रभावित करते हैं।

इसके अतिरिक्त छोटे और बड़े पिंडों के उन रासायनिक और भौतिक इतिहास के बारे में जानना आवश्यक जिसने पृथ्वी बनाई और जीवन के लिए आवश्यक पूर्ववर्ती रसायनों को वितरित किया। सौरमंडल के बाहरी हिस्से में स्थित ठन्डे पिंड और धूल पूर्व सौर प्रणाली की परिस्थितियों के प्रमाण है जिनकी सीधी तुलना अन्य तारों के इर्दगिर्द नजर आने वाले ठन्डे पिंडों और धूल से कर सकते हैं।

JWST द्वारा ग्रहीय प्रणालियाँ और जीवन की उत्पत्ति विषय के अध्ययन का लक्ष्य ग्रहीय प्रणालियों (हमारी सौर प्रणाली सहित) के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का निर्धारण करना और उन प्रणालियों में जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक क्षमता की जांच करना है। JWST इन निरीक्षित ग्रह प्रणालीयो की अवरक्त और निकटअवरक्त तस्वीरें तथा स्पेक्ट्रोमिकी उपलब्ध कराएगा। JWST में सौर प्रणाली के बाह्य पिंडों केनिरीक्षण करने की भी क्षमता है जिससे हम बाहरी ग्रहों, धूमकेतुओं और कुइपर बेल्ट की वस्तुओं का अध्ययन कर सकेंगे।

इस अंतरिक्ष दूरबीन से यह भी पता चल सकेगा कि क्या किसी बाह्यग्रह की सतह पर द्रव जल हो सकता है या नहीं और क्या वहां जीवन के अन्य संकेत हैं या नहीं। इस तरह से ग्रह के गुणों की पृथ्वी से तुलना कर बताया जा सकता है कि वह कितना जीवन योग्य ग्रह है। इस दूरबीन मे वह ट्रांसमिशन स्पैक्ट्रोस्कोपी तकनीक  का उपयोग कर यह वेधशाला ग्रहों का वायुमंडल के रासायनिक संरचना का अध्ययन करने में सहायक होगी।

जेम्स वेब दूरबीन , हबल दूरबीन की का एक बड़ी सहायक दूरबीन साबित होगी। जिन तरह की किरणों का अध्ययन हबल के द्वारा संभव नहीं है, जैसे अवरक्त किरण , जेम्स वेब उनके अध्ययन मे सक्षम है। खगोलविज्ञान के बहुत से शोधकार्य अधूरे पड़े हैं जिन्हें अतिरिक्त जानकारी की जरूरत है, उन अध्ययनों के शोधकर्ताओं को वेब टेलीस्कोप का इंतजार है।

जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन के उपकरण

नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ (NIRSpec)
नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ वेब दूरबीन के चार उपकरणों में से एक है। यह एक बहु-वर्णक्रम वाला स्पेक्ट्रोग्राफ है जो एक साथ 100 से अधिक खगोलीय वस्तुओं का अवलोकन करने में सक्षम है। यह निम्न, मध्यम और उच्च-रेजोल्युसन स्पेक्ट्रोस्कोपिय अवलोकन द्वारा वेब दूरबीन के चार मुख्य विज्ञान उद्देश्यों को आधार प्रदान करेगा। नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ यूरोपीय उद्योग द्वारा ईएसए के विनिर्देशों के लिए निर्मित हुआ है तथा इएसटीइसी, नीदरलैंड में ईएसए जेडब्ल्युएसटी परियोजना द्वारा प्रबंधित है।

मिड इन्फ्रारेड उपकरण (MIRI)
मिड इन्फ्रारेड उपकरण वेब दूरबीन के चार उपकरणों में से एक है। यह उपकरण मध्यम और निम्न-रेजोल्युसन स्पेक्ट्रोस्कोपी की सीधी तस्वीरें तथा कोरोनाग्राफिक तस्वीरें उपलब्ध कराएगा। इसके द्वारा वेब दूरबीन के सभी प्राथमिक विज्ञान उद्देश्यों में महत्वपूर्ण योगदान की उम्मीद है। मिड इन्फ्रारेड उपकरण यूरोप और अमरीका के बीच एक साझेदारी के रूप में विकसित किया गया था – इनमें मुख्य भागीदार राष्ट्रीय वित्त पोषित यूरोपीय संस्थान (मीरी यूरोपीय कंसोर्टियम) का एक संघ, जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला (जेपीएल), ईएसए तथा नासा का गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (जीएसएफसी) है।

फाइन गाइडेंस सेंसर और नियर इन्फ्रारेड इमेजर और स्लिटलेस स्पेक्ट्रोग्राफ – FGS/NIRISS (Fine Guidance Sensor and Near Infrared Imager and Slitless Spectrograph):

परियोजना वैज्ञानिक जॉन हचिंग्स (हर्जबर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, नेशनल रिसर्च काउंसिल (कनाडा)) के तहत कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के नेतृत्व में FGS/NIRISS (फाइन गाइडेंस सेंसर और नियर इन्फ्रारेड इमेजर और स्लिटलेस स्पेक्ट्रोग्राफ) का निर्माण निरीक्षणों के दौरान उपकरणों को निरीक्षण किये जा रहे पिंड की ओर स्थिर रखने के लिए किया गया है।

मुख्य दर्पण

जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope – JWST) की आंखें यानी सुनहरे दर्पण की चौड़ाई करीब 21.32 फीट है। ये दर्पण परावर्तक दूरबीन के जैसे हैं और उसे 18 षटकोण टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया हैं। ये षटकोण बेरिलियम (Beryllium) धातु से बने हैं। हर षटकोण के ऊपर 48.2 ग्राम सोने की परत लगाई गई है। ये सारे षटकोण एकसाथ मुड़कर इसे लॉन्च करने वाले रॉकेट के कैप्सूल में फिट हो जाएंगे। इस दर्पण को एयरोस्पेस कंपनी नॉर्थरोप ग्रुमेन ने बनाया है।

जेम्स वेब टेलिस्कोप के विज्ञान लक्ष्यों में से एक है समय धारा में पीछें की ओर जाकर उस समय को देखना जब आकाशगंगाएं युवावस्था में थी। वेब यह कार्य सुदूर की उन आकाशगंगाओं के निरीक्षण से करेगा जो हमसे १३ अरब प्रकाशवर्ष दूर है। सूदूर स्थित ऐसी बेजान वस्तुओं को देखने के लिए वेब को एक बड़े दर्पण की जरुरत पडेगी। दर्पण का क्षेत्रफल जितना अधिक होगा वह उतना ही अधिक प्रकाश इकट्ठा कर सकेगा और निरीक्षित वस्तु उतनी ही अधिक बारीकी से देखी जा सकेगी। यदि हबल टेलिस्कोप के 2 .4 मीटर दर्पण का आकार बढ़ाकर वेब की आवश्यकताओं के अनुकूल बना दिया जाए तो इतने बड़े और वजनी दर्पण को बनाना और उसको अंतरिक्ष में स्थापित करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। इससे पहले अंतरिक्ष में इतना बड़ा दर्पण कभी नहीं ले जाया गया है। इस समस्या के हल के लिए वेब दल ने एक नया रास्ता खोजा। उन्होंने एक ऐसा दर्पण बनाने का निश्चय किया जो वजन में हल्का हो और बहुत मजबूत भी हो। आखिरकार उन्होंने दर्पण को बेरिलियम धातु से बनाने का निर्णय लिया।

बेरिलियम एक हल्की धातु है (परमाणु चिन्ह Be) और यह अपने वजन के हिसाब से बहुत मजबूत होती है। इसमे ऐसे अनेक गुण है जो वेब के मुख्य दर्पण की आवश्यकताओं को पूरा करता है। बेरिलियम विभिन्न तापमानों में भी अपने आकार को स्थिर बनाएं रखने में सक्षम है। साथ ही यह विद्युत् और ताप का अच्छा सुचालक है और इसमे चुम्बकीय गुण भी नहीं पाया जाता है।

इतने बड़े दर्पण को प्रक्षेपण यान के अंदर रखना भी अपने आप में एक समस्या है। इतना बड़ा दर्पण यान में समा नहीं सकता और प्रकाशिकी इसके आकार को छोटा करने की इजाजत नहीं देता | इस समस्या के हल के लिए वेब दल ने दर्पण को ऐसे कई खण्डों में बनाने का निर्णय लिया जिसे समेटकर आकार इतना छोटा किया जा सके की यह यान में आसानी से समा जाए | वेब दूरदर्शी को उसकी कक्षा में स्थापित करने के बाद दर्पण को खोल दिया जाएगा जिससे यह अपना पूर्व आकार प्राप्त कर लेगा।

प्रक्षेपण और कक्षा

JWST को एरियन-5 ईसीए (Ariane 5 ECA) रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। यह धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर अंतरिक्ष में स्थापित होगा। अंतरिक्ष में अगर यह सुरक्षित रहा और अगर इसे किसी उल्कापिंड या सौर तूफान ने नुकसान न पहुंचाया यह दूरबीन 5 से 10 वर्ष कार्य करेगी।   

हबल टेलीस्कोप के विपरीत, जेडब्लूएसटी सूर्य की परिक्रमा करेगा। हबल टेलीस्कोप पृथ्वी की परिक्रमा करता है, जबकि, जेडब्लूएसटी पृथ्वी से करीब 15 लाख किमी की दूरी से सूर्य की परिक्रमा करेगा और दूसरे लैग्रेंज बिंदु (L2) के पास स्थित होगा। जेडब्लूएसटी का सावधानीपूर्वक चुना गया स्थान यह सुनिश्चित करता है कि, दूरबीन हमेशा सूर्य से दूर हो, जो ब्रह्मांड के अति-संवेदनशील निरीक्षण को पूरा करने के लिए आवश्यक है। हालांकि, इसका मतलब यह भी है कि हबल के विपरीत जेडब्लूएसटी को अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है, लिहाजा इसका प्रक्षेपण और तैनाती सबसे चुनौतीपूर्ण अंतरिक्ष मिशनों में से एक है और इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।

JWST की कक्षा अंडाकार होगी और इसकी त्रिज्या अर्ध-स्थायी द्वितीय लाग्रांज बिंदु L2 के आसपास आठ लाख किलोमीटर (५ लाख मील) होगी। पृथ्वी -सूर्य L2 बिंदु (जहां से वेब टेलिस्कोप अपनी कक्षा में परिक्रमा करेगा) की पृथ्वी से दूरी पंद्रह लाख किलोमीटर (9 ,30 ,000 मील) है। यह दूरी पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच कि दूरी से चार गुना अधिक है।

जेम्स वेब टेलिस्कोप की कक्षा

वें वस्तुएँ जो पृथ्वी की कक्षा से बाहर स्थित होती है साधारणतया सूर्य का एक चक्कर लगाने में एक वर्ष से ज्यादा समय लेती है। हालांकि L2 बिंदु पर गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव (विशेषकर सूर्य का और पृथ्वी का अतिरिक्त खिंचाव) संतुलित होता है। इसका अर्थ यह है कि JWST और पृथ्वी, सूर्य कि परिक्रमा साथ-साथ करेंगे। सूर्य और पृथ्वी का संयुक्त गुरुत्वाकर्षण बल अंतरिक्ष यान को इस बिंदु पर थाम कर रखेगा। सैद्धांतिक रूप से अंतरिक्ष यान को L2 से होकर गुजरने वाली कक्षा में परिक्रमा करने के लिए किसी अतिरिक्त धक्के कि जरुरत नहीं होगी, यह स्वतः ही पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य की परिक्रमा करता रहेगा।

प्रस्तुत आरेख में सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के पांच लांग्रांजीयन बिन्दुओं दिखाया गया है, JWST L2 पर स्थित होगा, जहां से पृथ्वी और सूर्य हमेंसा इसके पीछे की ओर होंगे

प्रक्षेपण यानि टेलीस्कोप के लॉन्च होने के ठीक 30 मिनट बाद, जेडब्लूएसटी एरियन रॉकेट से अलग हो जाएगा और अपने सौर पैनलों को तैनात करेगा, जो इसे एल-2 की तरफ अपनी यात्रा जारी रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेंगे। जैसे-जैसे जेडब्लूएसटी अपने पथ के साथ आगे बढ़ता रहेगा, दूरबीन को सौर ऊर्जा से सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक विशाल सौर शील्ड की तैनाती शुरू होती रहेगी। प्रक्षेपण के एक हफ्ते बाद, सौर शील्ड पूरी तरह से एक टेनिस कोर्ट के आकार में पूरी तरह से खुल जाएंगी। प्रक्षेपण के लगभग दो हफ्ते बाद, 6.5-मीटर व्यास का प्राथमिक दर्पण, जिसे शुरू में एरियन प्रक्षेपण यान के अंदर फिट करने के लिए मोड़ा गया था, वो निकलकर बाहर आ जाएगा और खुल जाएगा।

अंत में, प्रक्षेपण के लगभग 30 दिनों के बाद, लगभग पूरी तरह से खुलकर तैयार जेडब्लूएसटी एल-2 तक पहुंच जाएगा, और अंतिम कक्षीय सुधार किया जाएगा । एक बार स्थिति में आने के बाद, विज्ञान के उपकरणों पर आरंभ करने और परीक्षण का काम शुरू हो जाएगा और फिर ये दूरबीन अपना कार्य आरंभ करेगी। हालांकि, पहला चित्र भेजने में इस दूरबीन को 6 महीने का समय लग सकता है।

जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन के प्रक्षेपण होने के बाद पूरे एक वर्ष तक विश्व भर के 40 देशों के वैज्ञानिक इसके कार्य पर नजर रखेंगे।

प्रकाशिकी(आप्टिक्स)

JWST हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी (HST) का सच्चा उत्तराधिकारी इस मायने में है कि यह अपेक्षाकृत अधिक से अधिक तारों को देखने में सक्षम है। तुलना करने के लिए हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी से ली गई केरीना निहारिका की दो छवियों को लेते हैं (निचे चित्र)। दोनों एक ही खगोलीय निकाय के चित्र है। उपरी चित्र दृश्य प्रकाश में लिया गया है जबकि निचला चित्र अवरक्त प्रकाश में लिया गया है। दोनों चित्रों को ध्यान से देखने पर स्पष्ट है कि अवरक्त प्रकाश में लिए गए चित्र में अधिक तारों को देखा जा सकता है जबकि उसी स्थान की दृश्य प्रकाश में लिए गए चित्र में अपेक्षाकृत कम तारे नजर आते हैं।

हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी से ली गई केरीना निहारिका की दो छवियाँ . दृश्य प्रकाश में ली गई छवि (ऊपर) अवरक्त प्रकाश में ली गई छवि (निचे)

दृश्य वर्णक्रम की नजरें गैस और धूल के पार ठीक से नहीं देख सकती, जिससे छवियाँ धुंधली मिलती है जबकि अवरक्त वर्णक्रम में आसानी से पार देखा जा सकता है। लगभग सभी प्रकार की गैसें और धूल दृश्य प्रकाश में ली गई छवियों को धुंधला कर दृश्य को पूर्ण रूप से गायब कर देती है। इसके विपरीत अवरक्त प्रकाश में गैस और धूल के पीछे स्थित तारों की स्पष्ट छवि मिलती है। अवरक्त खगोलिकी, अंतरिक्ष के धूसर क्षेत्रों (जैसे कि आण्विक बादल) को भेद सकती है, ग्रहों का पता लगा सकती है और यहाँ तक कि ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों की उच्च लाल-विचलन वस्तुओं को भी देख सकती है।

हमारे नजदीक स्थित तारों (जैसे की सूर्य) की अपेक्षा दूर स्थित अधिकतर तारे नवीन या कम उम्र के है तथा उनका जन्म समय काल में बिगबैंग के काफी करीब हुआ है। चूँकि ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा है और इन तारों का प्रकाश हम तक अभी पहुँच रहा है और इन कम उम्र के तारों से हम तक पहुँचने वाला प्रकाश, वर्णक्रम में अत्यधिक लाल-विचलन प्रदर्शित करता है और यही कारण है कि इन्हें अवरक्त प्रकाश में आसानी से देखा जा सकता है। यह निरीक्षण एक तरह से हमे बिग बैंग के तुरंत बाद जन्म लिए इन तारों को और उनमे चलाने वाली प्रक्रियाओ को समझने मे मदद करेगा। अवरक्त प्रकाश का उपयोग सक्रिय आकाशगंगाओं के कोर का अवलोकन करने कि लिए भी होता है जो कि प्रायः गैस और धूल से आच्छादित होता है।

निर्माण

जेम्स वेब स्पेस दूरबीन अभियान की लागत 10 अरब डॉलर्स है, यानी लगभग 73,616 करोड़ रुपए। इसे बनाने में मुख्य तौर नासा, यूरोपियन स्पेस एजेंसी और कनाडाई स्पेस एजेंसी ने काम किया है।

संक्षिप्त मुख्य जानकारी

सामान्य जानकारी
अभियान सहयोगीनासा, ईएसए एवं सीएसए के महत्वपूर्ण योगदान के साथ
मुख्य निर्माण सहयोगीनॉरथ्रोप ग्रुमान
बाल एयरोस्पेस
प्रक्षेपण दिनांक25 दिसंबर 2021
प्रक्षेपण स्थलगुआना स्पेस सेंटर ELA-3
कोरु, फ्रेंच गुआना
प्रक्षेपण वाहनएरियन 5 (योजनाबद्ध)
मिशन समयावधि5 वर्ष (रचना)
10 वर्ष (लक्ष्य)
द्रव्यमान6,200 कि॰ग्राम (220,000 औंस)
परिक्रमण काल1-वर्ष
स्थापन स्थलपृथ्वी से 15 लाख किमी दूर्
(पृथ्वी-सूर्य द्वितिय लग्रांज बिंदु वृहत कक्षा)
दूरदर्शी प्रकारKorsch (Three-mirror anastigmat)
तरंगदैर्ध्य0.6 (नारंगी) से 28.5 µm (माइक्रॉन) (मिड-इंफ्रारेड)
व्यास6.5 मी॰ (21 फीट)
संग्रहीत क्षेत्र25 मी2 (270 वर्ग फुट)
फोकल लंबाई131.4 मी॰ (431 फीट)
उपकरण
NIRCAMNear IR Camera
NIRSPECNear IR Spectrograph
MIRIMid IR Instrument
NIRISSNear Infrared Imager and Slitless Spectrograph
FGSFine Guidance Sensor
WEBSITENASA United States
ESA b Europe
CSA/ASC Canada
CNES France

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