सत्यकामः
- सत्य का जिज्ञासु
Chandogya
Upanishad, 4.4 – 4.8
एक दिन
एक किशोर बालक हरिद्रुमत गौतम मुनि के आश्रम में आया और बोला, “मैं आप के संरक्षण में विद्याध्ययन
करना चाहता हूँ। कृपया मुझे एक ब्रह्मचारी के रूप में स्वीकार कीजिये।”
मुनि ने
पूछा, “बालक, तुम्हारा गोत्र क्या है?”
बालक ने
उत्तर दिया, “मुनिवर, मैं नहीं जानता कि मेरा गोत्र क्या
है। मैंने अपनी मां से अपना गोत्र पूछा। उसने कहा, ‘मैं भी नहीं जानती कि तुम्हारा गोत्र क्या है। मैं युवावस्था
में बहुतों की परिचर्या में थी। तभी तुम्हारा जन्म हुआ। मैं निश्चित रूप से यह
नहीं कह सकती कि तुम किस वंश-परम्परा के हो। फिर भी, मैं जाबाला हूँ और तुम सत्यकाम हो।’ इसलिए मुनिवर, सत्यकाम जाबाला के रूप में मुझे
स्वीकार कीजिये।”
यह सुनकर
ऋषि हरिद्रुमत गौतम स्मितहास किये और बोले, “केवल ब्राह्मण ही ऐसा वचन बोल सकता है। प्रिय बालक, यज्ञ के लिए समिधा ले आओ। मैं
तुम्हें ब्रह्मचर्य की दीक्षा दूंगा, क्योंकि तुम सत्य से विचलित नहीं हुए।”
इस
प्रकार सत्यकाम जाबाला ब्रह्मचारी के रूप में दीक्षित हो गया।
कुछ
दिनों के पश्चात् ऋषि हरिद्रुमत गौतम ने 400 दुबली और दुर्बल गायों को एकत्रित किया और सत्यकाम से कहा, “प्रिय बालक, इन गायों को वन में ले जाओ और
चराओ।”
सत्यकाम
ने गायों को हांकते हुए विनम्र भाव से नतमस्तक होकर कहा, “मान्यवर, मैं तभी लौटकर आऊंगा जब ये गायें एक
सहस्र हो जायेंगी।”
सत्यकाम
वन में रहते हुए गायों की देखभाल करता रहा। अनेक वर्ष बीत गये। गायों की संख्या एक
सहस्र हो गई। एक दिन संध्या के समय पर सत्यकाम के निकट एक वृषभ आया और बोला, “प्रिय बालक, हम लोग अब एक सहस्र हो गये हैं। अब
हमें गुरु गृह ले चलो।” वृषभ ने यह भी कहा, “मैं तुम्हें ब्रह्म का एक चौथाई ज्ञान प्रदान करूंगा। वह
प्रकाशवान है। जो व्यक्ति प्रकाशवान रूप में ब्रह्म पर ध्यान करता है वह इस संसार
में प्रकाशवान बन जाता है।” वृषभ इतना कहने के पश्चात पुनः बोला कि तदनन्तर
अग्निदेव तुम्हें ज्ञान देंगे।
प्रातःकाल
सत्यकाम गायों के साथ गुरु के आश्रम की ओर चल पडा।
सन्ध्या
काल में एक स्थान पर गायों को एकत्रित कर उसने अग्नि को प्रज्वलित किया तथा अग्नि
में समिधा डाली और उसके सामने पूर्वाभिमुख होकर बैठ गया। तब अग्निदेव बोले, “प्रिय बालक, मैं तुम्हें ब्रह्म का एक चौथाई
ज्ञान दूंगा। वह अनन्तवान है। जो उसे इस रूप में जानता है और अनन्त रूप में उसका
ध्यान करता है, वह इस
संसार में अनन्त बन जाता है। तब अग्निदेव ने उससे पुनः कहा कि एक हंस उसे ब्रह्म
का तीसरा चौथाई ज्ञान देगा।
दूसरे
दिन सत्यकाम प्रातःकाल गायों को गुरु के आश्रम की ओर ले जाने लगा। सन्ध्या समय पर
जब गायें एकत्रित हो गईं तब सत्यकाम ने अग्नि प्रज्वलित की, उसमें समिधा डाली, तथा अग्नि के निकट पूर्वाभिमुख होकर
बैठ गया। अकस्मात एक हंस उडता हुआ वहाँ आया और बोला, “सत्यकाम, मैं तुम्हें ब्रह्म का तीसरा चौथाई ज्ञान की दूंगा। उसे ज्योतिष्मान कहा
जाता है। जो उसे इस रूप में जानता है और उस पर ज्योतिष्मान के रूप में ध्यान करता
है, वह संसार में
ज्योतिष्मान बन जाता है।” तब हंस ने यह कहा कि एक जल कुक्कुट उसे ब्रह्म का अन्तिम
चौथाई ज्ञान देगा।
दूसरे
दिन प्रातःकाल सत्यकाम पुनः अपनी गायों को गुरु के आश्रम की ओर हांकने लगा।
सन्ध्या होने पर उसने गायों को एकत्रित किया, अग्नि प्रज्वलित की, उसमें समिधा डाली और पूर्वाभिमुख होकर वहाँ बैठ गया। तब वहाँ
एक जल कुक्कुट आया और बोला, “सत्यकाम, मैं
तुम्हें ब्रह्म का अन्तिम चौथाई ज्ञान दूंगा। वह आयतनवान सर्वाधार है। जो इसे इस
प्रकार जानता है और उस पर आयतनवान के रूप में ध्यान करता है वह संसार में तत् बन
जाता है।” जब सत्यकाम एक सहस्र गायों के साथ गुरु के आश्रम में पहुंचा तब गुरु ने
सत्यकाम से पूछा, “प्रिय
बालक, तुम्हारा
मुखमण्डल ब्रह्मज्ञान से प्रदीप्त हो रहा है। किसने तुम्हें यह ज्ञान दिया ?”
सत्यकाम
ने उन्हें चार गुरुओं के बारे में बताया और कहा, “मान्यवर, मैं आप से अनुरोध करता हूँ कि आप स्वयं इसका प्रतिपादन कर मुझे समझायें, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अपने गुरु
से साक्षात प्राप्त ज्ञान पूर्ण होता है।”
तब ऋषि
हरिद्रुमत गौतम ने उसे उसी ज्ञान को विस्तार से समझाया। इस प्रकार सत्यकाम ने अपने
गुरु से पूर्ण ब्रह्म ज्ञान प्राप्त किया और वह स्वयं भी एक महान गुरु बन गया।
(छान्दोग्य उपनिषद्, 4.4-4.8)
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