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हिन्दू धर्म अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है

 


हिन्दू धर्म अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है

 

    क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म वृद्ध धर्म हो चुका है, और यह इस पृथ्वी से समाप्त होने वाला है, ऐसा क्यों है, की हिन्दू धर्म जो दुनिया का सबसे पुराना धर्म है, उसकी आबादी घट रही है, और इस धर्म के लिए कोई भी एक देश आज तक निश्चित नहीं किया गया है, इस पृथ्वी पर, इसके विपरीत जब हम दूसरे धर्मों पर दृष्टि डालते हैं, तो हमें पता चलता है, कि इस्लाम और ईसाई आदि सबसे नए धर्म हैं, उनके बहुत से देश पृथ्वी पर उपस्थित हैं। और उनकी आबादी भी हिन्दू से बहुत अधिक है।

     भारतीय धर्म पर यदि दृष्टि डालते हैं, तो हमें यह ज्ञात होता है कि यह दुनिया का सबसे पुराना लगभग वृद्ध धर्म है, इसके नाम पर पुरी दुनिया में सबसे अधिक मंदिर और शिला लेख पाए जाते हैं, और सबसे पुरानी किताब ऋग्वेद भी हिन्दू धर्म की ही है। यह धर्म अब वृद्ध हो चुका है, और मरने वाला है, जिस प्रकार से मानव जब वृद्ध होता है, तो उसका अंत ही होता है, मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूं इसके पीछे कुछ मजबूत कारण हैं, पहला कारण है, कि यह तरह - तरह के मत मतांतर में बट चुके हैं, और इनको अपने धर्म के प्रति बहुत अधिक श्रद्धा नहीं है, जिसके कारण ही विश्व भर के आता ताई समय - समय पर भारत भूमि पर आकर इसको अपने चंगुल में फंसा कर इसका दोहन किया, और यहां की मूल जाती का भरपूर शोषण किया। यह स्वयं को हिन्दू तथा कथित कहने वालों की जो भीड़ है, कभी वह इस विषय पर विचार नहीं करते हैं, कि ऐसा क्यों हुआ, आज भी इस विषय पर कोई बहुत अधिक विचार करने वाला नहीं है, यद्यपि दूसरे धर्म के लोग अपनी आबादी को बढ़ाने के लिए और अपने धर्म को फैलाने के लिए उसका निरंतर प्रचार बड़ी श्रद्धा और तन मन से कर रहें हैं। जबकि जो स्वयं को हिन्दू कहते हैं वह स्वयं के धर्म पर स्वयं श्रद्धा नहीं करते हैं, और स्वयं ही अपने धर्म के विपरीत कार्य करते हैं, स्वयं को धोखा और अज्ञान के आवरण में छीपने वाली कोई जाती आज इस पृथ्वी पर रहती है, तो वह हिन्दू है। जैसा की हम सब जानते हैं कि विज्ञान का यह नियम है, की जिसका मात्रा ज्यादा होगी वह अपने से कम मात्रा वाले पदार्थ को अपने अंदर मिला कर उसके अस्तित्व को समाप्त कर देता है। उदाहरण के लिए जिस प्रकार से गंगा स्वयं को गंगा सागर में जाकर समाप्त कर देती है। यह विलय और विलायक का सिद्धांत है। इस सिद्धांत  के आधार पर हम कह सकते हैं, कि हिन्दू की संख्या को जिस प्रकार से समाप्त किया जा रहा है, एक सडयंत्र के द्वारा वह दिन दूर ज्यादा दूर नहीं है जब यह धर्म अपने स्वयं की अंतिम सांसे गिन रहा होगा। और समाप्त हो जाएगा, यदि समय रहते इस पार काम नहीं किया गया।

   जैसा की जब भारत में मुगल आताताई आए तो उन्होंने अपने अत्याचार और तलवार के दम पर इस हिन्दू धर्म के लोगों और भारत को अपने पैरों से रौंदते हुए, यहां पर अपने कब्जा कर लिया, और यहां की प्राचीन इमारतों और कीलों पर कब्जा कर लिया, और उसको अपने इस्लामी ढंग से परिवर्तित करके उसको अपने नाम करके उस पर अपना स्वयं का कब्जा हमेशा के लिए बना लिया, इसके बाद अंग्रेज आए, और उन्होंने अपने बंदूक की सहायता से और अत्याचार के दम पर इस भारत पर और यहां के हिन्दुओं को अपने पैरो तले रौंदा और यहां पर जम कर लुट पाट किया, यह मुसलमानों के भी गुरु थे, अर्थात उनसे भी अधिक निर्दयी, इन्होंने अपनी निर्दयता सभी सीमा को विस्तारित किया, और अंत में इन्होंने इस भारत भूमि के दो टुकड़े कर के एक को पाकिस्तान बना दिया, और जहां पर केवल इस्लाम को मानने वाले ही रहते हैं, वहां पर हिन्दुओं के से आज भी भंयकर अत्याचार और शोषण होता है क्योंकि उनकी संख्या बहुत कम है।

     इससे पहले अंग्रेजों ने अपनी नींव को मजबूत करने के लिए भारतीय शिक्षा पद्धति को बदल दिया, क्योंकि जब यहां भारत में आये थे मुसलमानों के अत्याचार के बावजूद भारत के लगभग 780000 हजार गांव में गुरुकुल थे, अर्थात हर गांव में एक गुरुकुल था, जहां पर स्वतंत्र रूप से शिक्षा को दिया जाता था, उसको शक्ति से साथ बंद करा दिया गया और उनकी मान्यता को रद्द कर दिया, इसके स्थान लार्ड मैकाले, की शिक्षा को लागू किया, और वहीं शिक्षा आज भी भारत में दी जा रही है जो हिन्दुओं को उनकी जड़ से उखाड़ने वाली है, और उनको हिन्दू धर्म का शत्रु बनाने वाली है, आज उसी का परिणाम है की अपने हिन्दू कहने वाले लोगों को ही पता नहीं है, की हिन्दू आखिर कौन है इसका प्रारंभ कहा के कैसे हुआ और इसके मूल आधार स्तंभ क्या हैं। भारत के में जिसके रहने वाली जानता जिसको हम सब हिन्दू कहते हैं, यह वैदिक धर्म को मानने वाली है, और इसके हिन्दी नाम भी मुगलों और अंग्रेजों ने ही दिया है, जिसका मतलब चोर डकैत और काफिर होता है, ऐसा इस्लाम की उर्दू भाषा के शब्द कोश में आता है, जब मुसलमानों को अलग देश बना कर दे दिया गया, तो वह खुश नहीं हुए, यहां भारत में भी रहें और आज वह हिन्दुओं से खुश नहीं हैं, मंदिर मस्जिद का विवाद निरंतर चल रहा हैं और आये दिन दंगे हो रहें हैं, कभी दिल्ली में तो कभी वंगलौर में तो कभी अयोध्या में और काशी में कश्मीर से तो पुरी तरह से हिन्दू का नरसंहार करके वहां से बाहर निकाल दिया गया।

   यह मुसलमान बहुत खतरनाक और जंगली प्रजाती के लोग हैं, यह पहले तो जबरदस्ती हमारे देश में घुस आए, और यहां पर अपना निवास बना लिया और अब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपना पाखंड का रोना रो रहे हैं।

   हिन्दू वास्तव में वैदिक आर्य हैं, इनका संबंध वेद से हैं, और वेद दुनिया की सबसे प्राचीन किताब या दस्तावेज हैं, इनमें ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान विद्यमान है, भारतीय मंदिर जो हजारों साल पुरानी हैं, वहां पर जो जो प्राचीन मूर्तियां उकेरी गई हैं, वह सब एक प्रकार से ज्ञान विज्ञान और ब्रह्मज्ञान को दस्तवेजीकरण का कार्य किया गया था पहले की मंदिर में कोई मूर्ति पूजा का कार्य नहीं होता था वह एक प्रकार का राजा का सभागार होता था, जिस प्रकार से आज संसद भवन होता है, अंग्रेज मुसलमानों से भी खतरनाक सिद्ध हुए इन्होंने जिस शिक्षा पद्धति को भारतीय शिक्षा पद्धति को समाप्त करके लागू किया वह आज अपने चरमोत्कर्ष पर है विद्यमान हैं, आज स्वयं को तथाकथित हिन्दू कहने वाले लोग हिन्दू की भयानक रूप से हत्या शोषण और उनकी संपत्ति को जबरदस्ती लूट रहें हैं, आज जिसकी कल्पना लार्ड मैंकाले ने की थी वह सत्य हो चुका है, आज स्वयं को हिन्दू और भारतीय कहने वाले ही अंग्रेजों की संतानें उत्पन्न हो चुकी है, और वह जो थोड़े वास्तविक हिन्दू बचे हैं उनको समाप्त करने के लिए लगे हैं, इस प्रकार से पहला तो खतरा इस्लाम हैं वह इतना अधिक बड़ा खतरा नहीं हैं, इसका समाधान आसानी से निकाला जा सकता है, इनको दमन करके लेकिन जो अंग्रेज हैं उन्होंने तो हमारी हिन्दू जाती को ही संक्रमित कर दिया है, उन्होंने अपनी दोगली नस्ल को तैयार कर दिया है वह सभी काले अंग्रेज हैं, आज सबसे अधिक खतरा हिन्दुओं को अपने हिन्दुओं से है जो तथाकथित काले अंग्रेज हैं।

  इस प्रकार से अब तीन प्रकार की शक्ति से अकेले हिन्दू जो सच्चे हैं उनको अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ना होगा, पहला, जो बाहरी मुसलमान हैं, जो अपनी आबादी को बढ़ा रहें हैं, इनको नियंत्रित करना होगा, इनको मस्जिद और मंदिर की राजनीति से ऊपर उठाना होगा, दूसरा भारतीय शिक्षा पद्धति को फिर से लागू करना होगा, अपनी संतानों को उसके प्रती श्रद्धावान बनाना होगा, तीसरी बात जो दोगली तीसरे शत्रु हैं, जिन्होंने छद्म भेस हिन्दू का आवरण पहन रखा है तथाकथित काले अंग्रेजों से स्वयं को बचाना होगा, यह सबसे खतरनाक हैं इनको नियंत्रित करने के लिए इनको बहिष्कृत करना होगा इनका तिरस्कार अनादर करना होगा, इनके सामने स्वयं का समर्पण नहीं करना होगा और इनकी संपत्ति को जब्त करके इनको साधारण जीवन को जीने के लिए प्रेरित करना होगा। क्योंकि इनका अधिकार धन पर सबसे अधिक तथाकथित यह सब व्यापारी वर्ग हैं, इनको नियंत्रित करने के लिए, भारत सरकार को इनको नियंत्रित करना होगा, दूसरी बात इनका अधिकार भारतीय राजनीति पर भी बहुत अधिक है, यह जो मुख्य कारण हैं इनके निवारण के बिना हिन्दू का बचना कठिन ही नहीं मैं असंभव समझता हूं, क्योंकि पहले तो वृद्ध हो चुका हैं, हिन्दू धर्म दूसरी बात इसके अंदर बीमारी भी लग चुकी है किसी दीमक की तरह से जो तथाकथित काले अंग्रेज हैं।

  वृद्ध कहने का मतलब है, की आज जो कहने को स्वयं को हिन्दू कहते हैं, और वह युवा हैं उनको अपने धर्म की गहराई के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं हैं, आज हिन्दू धर्म मंदिर के चक्कर में ऐसा उलझ गया है, जिससे निकालने के लिए हमारे पास कोई बुजुर्ग नहीं हैं, क्योंकि सारे बुजुर्ग भी इसी अज्ञान के शिकार हो चुके हैं, उनको स्वयं ही ज्ञान नहीं हैं, तो वह अपने संतान को क्या शिक्षा देंगे, यदि आप कहे की वह जानते हैं तो मैं पुछना चाहता हूं की वह वृद्ध कहां हैं जो वानप्रस्थ और सन्यास ग्रहण कर लेते थे 50 साल के बाद, क्योंकि जो हमारी आश्रम व्यवस्था थी उसको पुरी तरह से नष्ट कर दिया गया है। आज लोग घर में ही पैदा होते हैं, और घर में ही मर जाते हैं, और घर में क्या होता है आप सब अच्छी तरह से जानते हैं, वहां पर शारीरिक सुख का व्यापार होता हैं काम सुख की तृप्ति के लिए आदमी निरंतर उद्योग रत है, हम विश्व गुरु घरों में रह कर नहीं बने थे, हम विश्व गुरु ऋषि महर्षि त्यागी तपस्वी और ब्रह्मचारी जो जंगल में एकांत में रहते थे, उनके ज्ञान विज्ञान और ब्रह्मज्ञान की  शक्ति से बने थे, इसके पीछे उनकी त्याग तपस्या और वैराग्य था। इस परंपरा को पुनः स्थापित करने के लिए लोगों का स्वयं आगे आना होगा।  और लोगों को स्वतंत्रता धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो व्यभिचारीपन करने का अधिकार दिया गया है, इसको एक सीमित दायरे में प्रतिबंधित करना होगा। जहां सवाल संपूर्ण हिन्दू जाती की रक्षा का विषय हैं, और यह बहुत गंभीर विषय इससे अधिक गंभीर विषय कोई अधिक हो सकता है, मैंने नहीं समझ सकता है, आज के राज नैतिक नेता जो स्वयं को बहुत अधिक राष्ट्र वादी समझते हैं, उनको समझ में नहीं आया की उनको साथ भी राजनीति किया जा रहा है, बड़ी भीड़ या संपूर्ण हिन्दू जाती के मन को उसके आवश्यक कार्यों से हटाने के लिए ही इस राम मंदिर के विवाद को पैदा अंग्रेजों की सरकार ने किया था, और इसकी जाल में स्वयं हिन्दू के बड़े हितैषी भाजपाई पुरी तरह से फंस चुके हैं।  हमें हमारे वैज्ञानिक विषयों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा, हमारा भारतीय वैदिक धर्म जिसका मूल वेद हैं, वह पूर्णतः वैज्ञानिक ग्रंथ हैं, आज केवल एक यहीं रास्ता हिन्दू जाती के पास बचता है, जिस मार्ग पर चल कर ही स्वयं की रक्षा करने में यह जाती समर्थ हो सकती है। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं है। आज जो भाष्य उपलब्ध किया गया है, वह सब गलत हैं, और उसको ही आज प्रचारित किया जा रहा है, जिसमें सबसे आगे आर्य समाज महर्षि स्वामी दयानंद के अनुयाई लगे हैं, वह यह सिद्ध करना चाहते हैं, कि जिस प्रकार से कुरान मुहम्मद साहिब के इर्द गिर्द घूमती हैं, उसी प्रकार से ईसाई बाइबील के इर्द गिर्द ही घूमते हैं, ऐसा वेदों को साथ भी हो रहा है, वह आर्यसमाजी की अपनी थाती बन चुका है, और दयानंद का एक तरफ अधिकार चल रहा है, पहले तो उनको जहर देकर मार दिया गया बाद उनके नाम का डंका बजाया जा रहा है। इस तरह से ना यह आर्यसमाजी ही वेदों को परिभाषित करने में पूर्णतः समर्थ हैं ना ही पौराणिक ही क्योंकि वेदों का ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान का मूलाधार अदृश्य चेतना है, जिस प्रकार से सूर्य की किरणें हैं उसी प्रकार से सूर्य के समान आत्मा हैं और उससे निकलने वाली किरण ही वेद हैं, हमारी शिक्षा पद्धति आज हमारे शरीर को ध्यान में रख कर बनाई गई है, जैसा की तथाकथित अंग्रेज भौतिक शरीर को ही ज्यादा महत्व देते हैं, और वह भौतिक सुख को ही परम सुख मानते हैं। और इसके लिए ही वह निरंतर विश्व युद्ध के विस्तार को बढ़ावा देते हैं। यह शिक्षा पद्धति हमारे भारतीय जनमानस के लिए उपयुक्त नहीं हैं जिसके कारण ही यह हिन्दू जाती आज सबसे बड़ी ढोंगी और पाखंडी, के रूप में जानी जाती है, जो तथाकथित स्वयं को वैज्ञानिक कहते हैं वह सभी आत्मा की सत्या को नहीं स्वीकारते हैं, जो भारत में रहते हैं वह सभी काले अंग्रेजों की संतान हैं, इनसे हमें बहुत अधिक सावधान रहना होगा। जिस प्रकार से जब शत्रु हमारे घर में खतरनाक विषैला सांप रहना शुरु कर दे, तो हमारा वहां रहना खतरे से खाली नहीं है, उससे बचने के दो उपाय हैं पहले उपाय है की हम उस घर को छोड़ दे, जिससे जीव हत्या का पाप नहीं लगेगा, लेकिन जब हमारे पास रहने का स्थान नहीं होगा, तो हमें उस सांप को मारना होगा, क्योंकि आपद काले मर्यादा नास्ति, सारी मर्यादा का पालन सामान्य काल में किया जाता हैं, जब आपतकाल हो तो मर्यादा को तोड़ना ही आवश्यक हो जाता है। हिन्दू जाती पर आज ऐसा ही आपत्ति का समय आ चुका है, और यह मेरा स्वयं का अनुभव है, हो सकता हैं, कि मैं किन्हीं बिंदु पर गलत हूं, लेकिन सर्वथा गलत नहीं हैं, क्योंकि मैं कोई सामान्य आदमी नहीं हूं, मैं स्वयं को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं, और मैंने अनुभव किया है, इस भारत भूमि पर रहने वाली हिन्दू जाती को, क्योंकि मैं स्वयं ही एक हिन्दू हूं मुझे ऐसा नहीं ही कहना चाहिए की मेरा अंत होने वाला है, और मैं वृद्ध हो रहा हूं, क्योंकि मैं स्वयं ही भारत हूं।  मेरे बचने का रास्ता है, अर्थात इस भारत की आत्मा को बचाने के लिए हमें बहुत तेजी से कार्य करना होगा, और सारे पुराने मार्ग हैं, उनको छोड़ कर एक नए मार्ग को बनाना होगा जो बीच में मुगलों और अंग्रेजों के द्वारा हमारे ज्ञान विज्ञान और ब्रह्मज्ञान में मिलावट किया गया है, उसको निकाल कर अलग करना होगा, मैंने तो स्वयं के जीवन से अलग कर दिया है, यह बात अलग है, की मैं भौतिक रूप से मैं उतना मजबूत नहीं हूं, लेकिन मैं आत्मिक रूप से हिमालय के समान सूर्य जैसा प्रकाश वान हूं। क्योंकि एक दुनिया को मैं जानता हूं जो अज्ञान से ग्रस्त और एक दूसरे के शोषण पर आश्रित हैं, यद्यपि मैं स्वयं किसी का शोषण नहीं करता हूं और ना ही मैं इसके पक्ष में किसी प्रकार से हूं।   

   मैं ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान के पक्ष में हूं, और इसका विस्तार करना चाहता हूं क्योंकि इसी एक मार्ग से हम स्वयं को अपने आने वाली समस्या और वर्तमान की समस्या का समाधान करने में समर्थ हो सकते हैं, और हमें अपनी अतीत की गलती और हमारे साथ  धोखा और विश्वासघात किया गया हैं, वैसा भविष्य में ना हो इसके लिए हमें सावधान और सचेत रहना होगा।                    

          मनोज पाण्डेय

अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान

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