विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र -9 (ओशो)
मृतवत लेटे रहो, क्रोध में क्षुब्ध हो कर उसमें ठहरे रहो, या पुतलियों को बना घूमाये एक टक घुरते रहो, या कुछ चुसो और चुसना बन जाओ।
"मृतवत लेटे रहो, प्रयोग करो, कि तुम एकाएक मर गए हो। शरीर को छोड़ दो, क्योंकि तुम मर गए हो। बस कल्पना करो कि मैं मृत हूं, मैं शरीर नहीं हूं। मैं सरीर को नहीं हिला सकता। आँख भी नहीं हिला सकता। मैं चीख-चिल्ला भी नहीं सकता। न ही मेरी सकता. कुछ भी नहीं कर सकता क्योंकि म मरा हजाह। और तबदेखो कैसा लगता है। लेकिन अपने को धोयामत तुम करीम को थोड़ा हिला सकते हो, नहीं हिनाजो नहीं। लेकिन मायरी आजाये, तोश्री शरीरको मृत समझो। यह सबसे अधिक उपयोग की गई विधि है। रमणमहर्षि इस विधि जानको उपलब्ध हुए थे। लेकिन यह उनके इसजनमतीविधि नही थी। इस जनम मैती अचानक सहज ही यह उन्हें घटित हो गई। जोकिनजर उन्होंने किसी पिछले जनम में इसकी सतत सपनाकी होगी। अन्यथा बजकुठी घटित नहीं होता। प्रत्येक बजका कार्य कारण संबंध रहता है।
जोजब केवल बौदह या पदह वर्ष के एक रात अचानकरमण को लगा कि मैं मरने वाला है. उनके मन में यक बात बैठ गई किमृत्युआगई है। वे अपना शरीर भी नहीं हिला सकते थे। उन लगा कि मुझे लकवा मार गया है। फिरउने अचानक घुटन महसूस हुई और बेजान गए कि उनकी हदय गति बंद होने वाली है। और वे चिल्ला भी नहीं सके, बोल भी नहीं सके कि अमरहा ।
कभी-कभी किसी दुस्वप्न में ऐसा होता है कि जब तुम न चिल्ला पाते हो और न हिल पाते हो। जागने पर भी कुछ क्षणों तक तुम कुछ नहीं कर पाते हो। यही हुआ रमण को अपनी घेताना पर तो पूरा अधिकार था। पर अपने शरीर पर बिलकुल नहीं। ये जानते थे कि गह, चेतना ई. सजगहुँ, मेकिन मैं मरने वाला है। और यह निश्चय इतना धना था कि कोई विकल्प भी नहीं था। इसलिए उन्होंने सब प्रयत्न छोड़ दिया। उन्होंने आंखे बाद कर ली और मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे।
धीरे-धीरे उनका शरीर सबत हो गया। शरीर मर गया। लेकिन एक समस्या उठ खड़ी हुई। वे जान रहे थे कि शरीर नहीं हूं। लेकिन में तो हूं, वे जान रहे थे कि मैं जीवितहूं और शरीर मर गया है। फिर वे उस स्थिति से वापस आए। सुबह में शरीर स्वास्थ था। लेकिन वही आदमी नहीं लौटा था जो मृत्यु के पूर्व था। क्योंकि उसने मृत्युको जान लिया था।
अब रमण ने एक नए लोक को देख लिया था। चेतना के एक नए आयामको जान लिया था। उन्होंने घर छोड़ दिया। उस मृत्यु के अनुभव ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। और वे इस युग के बहुत थोड़े से प्रबुद्ध पुरुषों में हुए।
और यही विधि है जो रमण को सहज घटित हुई। लेकिन तुमको यह सहज ही नहीं घटित होने वाली। लेकिन प्रयोग को तो किसी जीवन में यह सहज हो सकती है। प्रयोग करते हुए भी यह घाटित हो सकती है। और यदिनहीं घटित हुई तो भी प्रयत्न की व्यर्थ नहीं जाता है। यह प्रचलन तुम में रहेगा। तुम्हारे भीतर बीज बनकर रहेगा। कभी जब उपयुक्त समय होगा और वर्चा होगी, यह बीज अंकुरित हो जाएगा।
सब सहजताकी यही कहानी है। किसी कान में बीज बो दिया गया था। लेकिन ठीक समय नहीं आया था। और वी नहीं हुई थी। किसी दूसरे जनम और जीवन में समय तैयार होता है. तुम अधिक प्रौढ अधिक अनुमती होते हो। और संसार में उतने ही निराश होते हो.तब किसी विशेष स्थिति में वर्षा होती है और बाजार निकलता है।
मृतवत लेटे रहो। मोध में सुध होकर उसमें हरे रहो
निश्यय ही जब तुम मर रहे हो तो वह कोई सुख का क्षण नहीं होगा। यह आनंदपूर्ण नहीं हो सकता। जब तुम देखते हो कि तुम मर हो। भय पकडेगा। मन मेमोप उठेगा, या विषाद, उदासी, शोक, संताप, उनी पकड़ सकता है। व्यक्ति-व्यक्ति में
सूर कहता है- क्रोध में सुध होकर उसमे व्हरे रहो, स्थित रहो।'
अगर तुमको क्रोध धेरै तो उसमें ही स्थित रहो। अगर उदासी धेरे तो उसने भी भय, चिंता, कुछ भी हो, उसमें ही मारे रहो, रहो.जोसीमन में हो, उसे वैसा हीरहने दो,क्योंकि शरीर तो मर चुका है।
यह बारनामुत सुंदर है। अगर तुम कुछ मिनट के लिए सीवहर गए तो पाओगे कि सब कुछ बदल गया। लेकिन हम दिलने जमते हैं। यदि मन में कोई आवेग उठता है तो शरीर हिलने लगता है। उदासी आती है, तो भी शरीर हिलता है। इसे आवेग इसीलिए कहते है कि यह शरीर में वेग पैदा करता है। मृतवत महसूस करो और आवेगों को शरीर हिनाने इजाजत मतदो। ये सोयहां रहे और तुमी यहां रहो। स्थिर, मृतवता कुछ भी हो, पर हनयान नही हो. गति नहीं हो। बस बारे रहो।
'या पुलानियों को घुमाएं बिना एकटक घूरते रहो।
यह-या पुलजियों को घुमाएं बिना एकटक घूरते रहो। मेहर बाबा की विधि यौ। वर्षी वे अपने कमरे की छत से पूरते रहे, निरंतर ताकते रहे। व वह जमीन पर मृतवत पड़े रहे और पुतलियों को, आंओं को हिलाए बिना उत को एक टक देखते रहे। पेसा वे लगातार घंटो बिना कुछ किए घूरते रहते थे। टकटकी लगाकर देखते रहते थे।
आंखों से घूरना अच्छा है। क्योंकि उससे तुम फिर तीसरी आँख मैं स्थित हो जाते हो। और एक बार तुम तीसरी आँख मै थिर हो गए तो चाहने पर भी तुम पुतलिर्या को नहीं घूमा सकते हो। वे भी घिर हो जाती है अपन।
मेहर बाबा इसी घूरने के जरिए उपलब्ध हो गए। और तुम कहते हो कि इन छोटे-छोटे अध्यासी से क्या होगा। लेकिन मेहर बाबा जगातार तीन वर्षों तक बिना कुछ किए छत को घरते रहे थे। तुम सिर्फ तीन मिनट के लिए ऐसी टकटकी लगाओ और तुमको लगेगा कि तीन वर्ष गुजर गये। तीन मिनट भी बहुत लम्ब समय मालूम होगा। तुम्हें लगेगा की समय हर गया है।
और घड़ी बंद हो गई है। लेकिन मेहर बाबा घूरते रहे. घूरते रह, धीरे-धीरे विचार मिट गए। और गति बंद हो गई। मेहर बाबा मार चेतना रह गए। मात्र पुरना बन गए। टकटकी बन गए। और तब वे आजीवन मौन रह गए। टकटकी के द्वारा वे अपने भीतर इतने शांत हो गए कि उनके लिए फिर शबद रचना असंभव हो गई।
मेहर बाबा अमेरिका में थे। वहां एक आदमी था जो दूसरों के विचार को, मन को पटना जानता था। और वासना मै वह आमी दुर्लभ था-मन के पाठक के रूप में। वह तुम्हारे सामने बैठता, आँख बंद कर लेता और कुछ ही क्षणी मेबह तुम्हारे साथ ऐसा लयब हो जाता कि तुम जो भी मन में सोचते, वह उसे लिख डालता था। हजारों बार उसकी परीक्षा ली गई। और वह सदा सही साबित हुआ। तो कोई उसे मेहर बाबा के पास ले गया। यह बैठा और विफल रहा। और यह उसकी जिंदगी की पहली विफलता थी। और एकही। और फिर हम यह भी कसे कई कि यह उसकी विफलता हुई।
म आदमी पुरता का पूरा रहा, और तब उसे पसीना आने लगा। लेकिन एक शबद उसके हाथ नहीं लगा। हाथ मैकलम निए बैठा रहा और फिर बोला-किसी किसमका आदमी है। यह मैं नहीं पढ़ पाता है क्योंकि पढ़ने के लिए कुछ है ही नहीं। यह आदमी से बिलकुल खाली है। मुझे यह भी बाद नहीं रहता की यहां कोई बैठा है। आँख बंद करने के बाद मुझे बार-बार ऑखोजम देखना पड़ता है कि बदम्यक्ति यहां है कि नहीं। या यहां से हट गया है। मेरे लिए एकाव होना भी कठिन हो गया है। क्योंकि ज्यों ही ऑबबंद करता हूं कि मुझे लगता है कि धोखा दिया जा रहा है। यह व्यक्ति यहां से हट जाता है। मेरे सामने कोई भी नहीं है। और जब ऑबयोलताहतो उसको सामने ही पाता हूं। यह तो कुछ भी नहीं सोच रहा है।
उस टकटकी ने, सतत टकटकी ने मेहरबाबा के मन को पूरी तरह विसर्जित कर दिया था।
चूसना, पोषण अच्छा है। लेकिन तुमको बह कठिन मालूम पड़ेगा। क्योंकि हम इसे बिलकुल भूल गए है। यह कहना भी ठीक नहीं है कि बिलकुल भून मारा है। क्योंकि उसका विकल्प तो निकालते ही रहते है। मां के सतन की जगह सिगरेट ले लेती है। और तुम उसे चूमते रहते हो। यह सतना ही है. मां का सतान, मां का युगुका और गर्म धुआं निकलता है. यह मां का दूध।
करने जन्नते है। यह बिलकुल भूल गए है और विकल्प से ही काम बन जाएगा। इसलिए अगर तुम सिगरेट पीते हो तो धुमपान ही बन जाजो। सिगरेट को भूल जाओ, पीने वाले को भूल जाओ और धूमपान ही बने रहो।
एक विषय है जिसे तुम चुमते हो. एक विषयी है जो यसता है। और उनके बीच युसने की, पोषण की प्रक्रिया है। तुम पोषण बन जाती प्रक्रिया बन जाती। इसे प्रयोग करो। यहने कई चीजों से प्रयोग करना होगा और तब तुम जानोगे कि तुम्हारे लिए क्या बीज सही है।
तुम पानी पी रहे हो। ठंडा पानी भीतरजा रहा है। तुम पानी बन जाओ। पानी न पीओ। पानी को भूल जाओ। अपने को भूल जाओ, अपनी प्यासको मी, और मारपानी बन जाओ। प्रक्रिया में ठंडक है.स्पर्श है. प्रवेश है. और पानी है-ही सब बने रहो।
क्यों नहीं क्या होगा? यदि तुम चोषण बन जाओ तो क्या होगा?
यदि तुम घोषण बन जाओ तो तुम निर्दोष हो जाओगे ठीक वैसे जैसे प्रथम दिन जन्मा हुआ शिशु होता है। क्योकि वह प्रथम प्रक्रिया है। एक तरह से आप पीछे की और याद करेंगे। लेकिन उसकी ललक, लालसा भी तो है। आदमी का पूरा अस्तित्व उसस्तन पान के लिए लापता है। उसके लिए वह कई प्रयोग करता है. लेकिन कुछ भी काम नहीं आता। क्योकि वह बिंदुही खो गया है। जब तक तुम चूसना नहीं बन जाते, तब तक कुछ औकाम नहीं आएगा। इसलिए इसे प्रयोग में लाओ।
एक आदमी को मैने यह विधि दी थी। उसने कई विधियां प्रयोग की थी। तब वह मेरे पास आया। उससे मैंने कहा, यदि मैं समूचे संसार से केवल एक चीज ही तुम्ही गुनने को दूं तो तुम क्या युनोगे: और मैने तुरंत उसे यह भी कहा कि आँख बंद करो और इस पर तुम कुछ भी सोचे बिना मुझे बताओ। वह डरने लगा, झिझकने लगा। तो मेने कहा, नारी औरन झिझाको। मुझे स्पष्ट बताओ। उसने कहा, यह तो बेहटा मालूम पड़ता है। लेकिन मेरे सामने एक स्तन उभर रहा है। और यह कहकरम अपराध भाव अनुभव करने लगा। तो मैने कहा, मत अपराध माय अनुभव करो। सलन में गलत क्या है? सर्वाधिक सुंदर चीजों में सतन एक है.फिर अपराधभाव क्यों?
लेकिन उस आदमी ने कहा, यह चीज तो मेरे लिए यस्तता बन गई है। इसलिए अपनी विधि बताने के पहले आप कृपा कर यक बताएं कि मैं का विवर्या के क्तानी में इतना उत्सुक हूं जब भी मैं किसी स्त्री को देखता हूं, पहले उसका स्तन ही मुझे दिखाई देता है। शेष शरीर उतने महत्व का नह रहता।
और यह बात केवल उसके साथ ही जागूनहीं है। प्रत्येक के साथ, प्रातः प्रत्येक के साथ जागू है। और यह बिलकुल स्वाभाविक है। क्योकिमां का हनन की जमत के साथ आदमी का पहला परिचय बनता है। यह बुनियादी है। जगत के साथ पहना संपर्क मां के समानता है। यही कारण है कि सलान में इतना आकर्षण है. सलान इतना सुंदर लगता है। उसमें एक युबकीय शक्ति
इसलिए मैंने उस व्यक्ति से कहा कि जब मैं तुमको विधि,गा और यही विधि यी जो मैंने उसे दी: किसी चीजको युसी और चुसनामजाओ मेनबताया कि आबदकानो और अपनी मां का सतनबाद सोया और कोई सतन जो तुम्हें पंसद हो, कल्पना की और ऐसे चूसना शुरू करो कि यह असली स्तन है। शुरू करो।
"या पुतलियों को घुमाएं बिना एकटक घूरते रहो। या कुछ युसों और यूसना बन जाओ
यहां जरा सा रूपांतरण है। कुछ भी काम दे देगा। लुम मर गए, यह काफी है।
मोध में सुध होकर उसमेहोरहो।
केका यह अंशी एक विधि बन सकता है। तुम सोध में हो, लेटे रहो और मोध में स्थित रहो। पडे रहो। इससे हटो नहीं, कुछ को नही. शिथर पड़े रहो।
कृष्णामूर्ति इसी की चर्चा किए चने जा रहे थे। उनकी पूरी विधि इस एक चीज पर निर्भर है: मोध से सुध होकर उसमे बारे रहोयदि तुम मुबहोले मुख होओ और कुदरहो। उससे हिलो नहीं हटो नहीं। और अगर तुम वैसे मार सको तो झोप याला जाता है। और तुम दूसरे आदमी बन जाते हो। और एक बार तुम मोध को उससे आंदोलित हुए बिना देख लो तो तुम उसके मानिक हो गए।
"या पुलानियों को घुमाएं बिना एकटक घूरते रहो। या कुछ युसो और यूसना बन जाओr
यह अंतिम विधि शारीरिक है। और प्रयोग में सुगाम है। क्योंकि यूसना पहला काम है, जो कि कोई बस्या करता है। यूसना जीवन का पहला कृतय है। बच्चा जब पैदा होता है, तब वह पहले रोता है। तुमने यह जानने की कोशिश नहीं की होगी कि बच्या क्यों रोता है। सच में वह रोता नहीं है। वह रोता हुआ मालूम होता है। वह सिर्फ हवा का पी रहा है। घूर रहा है। अगर वह नहीं रोए तो मिनटों के भीतर मरजाए। क्योंकि रोना हवा लेने का पहला प्रयत्न है। जब वह पेट में था, बच्या स्वास नहीं लेता है। बिना स्वास लिए बह जीता था। वह वहीं प्रक्रिया कर रहा था। जो भूमिगत समाधि लेने पर योगी जन करते है। वह बिना श्वास लिए प्राण को ग्रहण कर रहा था-मां से शुद्ध प्राण ही ग्रहण कर रहा था।
यही कारण है कि मां और बच्चे के बीच जो प्रेम है. वह और प्रेम से सर्वथा भिनन होता है। क्योंकि शुद्धतम प्राण दोनों को जोड़ता है। अब ऐसा फिर कभी नहीं होगा। उनके बीच एक सूक्षम प्राणमय संबंध था। मां बस्य को प्राण देती थी। बख्या श्वास तकनही लेता था।
लेकिन जब वह जनम लेता है. तब वह मां के गर्भ से उठाकर एक बिलकुल अनजानी दुनिया में फैक दिया जाता है। अब उसे प्राण या ऊर्जा उस आसानी से उपलब्ध नहीं होगी। उसे स्वयं ही श्वास लेनी होगी। उसकी पहनी चौख यूसने का पहला प्रयत्न है। उसके बाद वह मां के सलान से दूध यूसता है। ये बुनियादी कृतय है जो तुम करते हो। बाकी सब काम बाद में आते है। जीवन के बेबुनियादी कृत्य है, और प्रयास कृत्य उसका अभ्यास भी किया जा सकता है।
यह सूर कहता है: "या कुछ चुलो और चूसना बन जाओ
किसी भी चीज को मुझे हवा को ही युखो, लेकिन तबयाको भूलजाज और यूसना ही बन जाओ। इसका अर्थक्या हुआ? तुम कुछ यूस होइसमे तुम यूसने वाले हो, योषण नहीं। तुम योषण के पीछे खडे हो। यह कहता है कि पीठ मत बड़े रहो. कृलय में भी सम्मिलित हो जाजो और योषण बने जाओ।
किसी भी चीज से तुम प्रयोग कर सकते हो, अगर तुम दौड़ रहे हो तो दौछना ही बन जाओ और दौड़ने वाले न रहो। दौडना बन जाओ। दौडबन जाओ और दौडने वाले को भूल जाओ। अनुशाको कि भीतर कोई दौडने वाला नहीं है। मार दौडने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया तुम हो-मारता जमा प्राध्या। भीतर काइनाही है। भीतर सब शात है। और कवाल यह प्रक्रिया है।
उसने चूसना शुरू किया। तीन दिन के अंदर बह इतनी तेजी से, पागलपन के साथ यूसने लगा और वह इसके साथ इतना मंच मुग्ध हो गया कि उसने एक दिन आकर मुझसे कहा, यह तो समस्या बन गई है। सात दिन में यूसता ही रहा है। और यह इतना सुंदर है और इसमें ऐसी गहरी शांति पैदा होती है और तीन महीने के अंदर उसका घोषण एक मौन मुद्रा बन गया। तुम होठों से समझनाहीं सकते कि वह कुछ कर रहा है। लेकिन अंदर से यूसना जारी था। सारा समय वह यूसता रहता। यह
तीन महीने बाद उसके मुझसे कहा, "कुछ अनूठा मेरे साथ घटित हो रहा है। निरंतर कुछ मोठी दस सिर से मेरी जीभ पर बरसता है। और यह इतना मीठा और शक्तिदायक है। कि मुझे किसी और भोजन की जरूरत नहीं रही। भूख समाप्त हो गई है। और भोजन मात्र औपचारित हो गया। परिवार में समस्या न बने, इसलिए मैं दूध लेता है। लेकिन कुछ मुझे मिल रहा है जो बहुत मीठा है। बहुत जीवनदायी है।"
मैने उसे यह विधि जारी रखने को कहा।
तीन महीने और। और वह एक दिननाचता हुआ, पागल सा मेरे पास आया। और बोला, यूसना तो चला गया, लेकिन अब मैं दूसरा ही आदमी हो गया है। अब मैं बही नहीं रहा है। जो पहले था। मरे लिए कोई दवार खुल गया है। कुछ टूट गया है। और कोई आकांक्षा शेष नहीं रही। अब मैं कुछ भी नहीं चाहता हूंन परमात्मा। न मोक्ष, अब जो है, जैसा है, ठीक है। मैं उसे स्वीकारता हूं और आनंदित हूं।"
इसे प्रयोग में लाजी। किसी चीज को घुमो और यूसना बन जाओ। यह बहुतों के लिए उपयोगी होगा। क्योकि यह इतना आधारभूत है।
औसी
विज्ञान औरव तंब
(जंक-सार-भाग-1)
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