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प्राचीन वैदिक सैद्धान्तिक ज्ञान – ज्ञानेश्वरार्यः

प्राचीन वैदिक सैद्धान्तिक ज्ञान

 – ज्ञानेश्वरार्यः

मौलिक ज्ञान

 

आज हिन्दू धर्म अपनी जड़ें खोता जा रहा है। हम इस परिस्थिति की सारी जिम्मेदारी शासन पर डालने को उतारु हैं। हम अपने पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई ज्ञान-राशि से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस ज्ञान-राशि के पीछे हमारे श्रेष्ठ पूर्वजों की करोड़ों वर्षों की तपस्या है। राजा उसी तरह का होता है, जिस तरह की प्रजा होती है। यदि, हम अपने राजा को श्रेष्ठ देखना चाहते हैं, तो हमें स्वयं को श्रेष्ठ यानि आर्य बनाना होगा। आर्यत्व व हिंदुत्व में भिन्नता ही यहीं है कि आर्य तो अपने आप को श्री राम व श्री कृष्ण जैसा बनाना चाहता है, परन्तु, हिन्दू अपने ऋषियों के कार्यों को न पढ़कर आर्यवंशी कहलाने में ही खुश है। हमें अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए उस ज्ञान-राशि को, जो हमारी वास्तविक पूंजी है, आत्मसात करना ही होगा। नीचे दिए विचार उस ज्ञान-राशि को आत्मसात करने का आधार हैं।

आज अनेकों मतों और सम्प्रदाओं में बंटे हमारे समाज में जीवन के कुछ मूलभूत प्रश्नों के सम्बन्ध में कुछ भ्रान्तिपूर्ण विचार घर कर गए हुए हैं। जैसे दसवीं तक के विद्यार्थियों को भूगोल, इतिहास आदि विषयों की भी मौलिक जानकारीयां दी जाती है चाहे, भविष्य में इन विषयों को चुनने की उनकी कोई योजना न हो। ठीक वैसे ही, प्रत्येक व्यक्ति को मानव – धर्म सम्बन्धित मौलिक जानकारियां होनी ही चाहिए।

धर्म का व्यावहारिक पक्ष

वास्तव में व्यावहारिक पक्ष को सिद्ध करने के लिए सैद्धांतिक पक्ष का दृढ़ होना आवश्यक है। हालाँकि यह आवश्यक नहीं कि सैद्धांतिक व्यक्ति उत्तम व्यवहार वाला भी हो। लेकिन, जिस व्यक्ति का सैद्धांतिक पक्ष दृढ़ नहीं है, उसका व्यवहार किसी विशेष परिस्थिति में व विशेष काल में तो उचित हो सकता है, परन्तु उसका व्यवहार सभी परिस्थितियों में व सभी कालों में उचित नहीं हो सकता।

सिद्धांतों को समझना व उन्हें दृढ़ करना शुष्क व कठिन काम है। इसके विपरीत, अपने व्यवहारों को बेहतर बनाना कम कठिन है व इसके परिणाम भी शीघ्र मिलते हैं। यदि, व्यवहारिक उच्चता को सिद्धांतों से जोड़ लिया जाए, तो सिद्धांतों की दृढ़ता इतनी कठिन व शुष्क प्रतीत नहीं होती। हमारा अंतिम लक्ष्य तो अपने सिद्धांतिक पक्ष को दृढ़ करना ही है, ताकि हमारे व्यवहार सभी परिस्थितियों में व सभी कालों में श्रेष्ठ हों।  

मूलभूत जानकारियां

धर्म को जानने की प्रारम्भिक प्रक्रिया के अन्तर्गत कुछ लेख

मन की प्रसन्नता को स्थायी रूप से प्राप्त करने की विधियां

मानव जीवन का उद्देश्य

जन्मदिन मनाना

सत्य को स्वीकार कर पाने में बाधाएं

प्रश्न पूछने की आदत

एकता

स्वस्थ शरीर और मन

अच्छी आदतें प्रयत्नपूर्वक ही अपनाई जातीं हैं।

ईश्वर की कृपा

आज का युवा

पठनीय पुस्तकें

उपहार

आध्यात्मिकता और आध्यात्मिक नियम

प्रार्थना के मायने

सत्य

ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग क्या हैं?

धर्म

ज्ञान

साधना

विवेक और उसमें बढ़ोतरी

सामान्य ज्ञान (बुनियादी)

वास्तविक पूजा क्या है और वास्तविक पूजा करने की विधि क्या है? देवताओं की पूजा और ईश्वर की पूजा में क्या अंतर है?

गुरु

धर्म का सैद्धांतिक पक्ष

हमारे जीवन के कुछ मूलभूत (मौलिक) प्रश्न 

1. संक्षेप में, सनातन धर्म अर्थात वैदिक धर्म क्या है?

2. हमारे जीवन का ध्येय क्या है?

3. बुद्धि का क्या महत्त्व है?

    – क्या बुद्धियों के स्तर में अन्तर होने से ईश्वर को जानने में बाधा उत्पन्न होती है?

    – तर्क क्या है?

    – किसी विषय को सही-सही जानने के लिए किन चीज़ों की आवश्यकता होती है?

    – तर्क और श्रद्धा क्या हैं व उनमें क्या सामंजस्य है?

    – तर्क अथवा विवेक के आधार कहे जाने वाले प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द प्रमाण क्या हैं?

4. जानने योग्य सबसे महत्त्वपूर्ण क्या है ?

    – इस संसार में कौन-कौन सी वस्तुओं व विषयों का ज्ञान जानने योग्य है?

5. आस्तिकता क्या है ?

    – ईश्वर को जानना क्यों आवश्यक है?

    – ईश्वर की उपासना का तरीका व उसका लाभ क्या है?

    – स्तुति, प्रार्थना, उपासना और पूजा का अर्थ क्या है?

    – ईश्वर का स्वरूप क्या है?

    – ईश्वर के मुख्य नाम कौन कौन से हैं?

    – ईश्वर के मुख्य गुण कौन कौन से हैं?

    – जड़ पदार्थों की पूजा से क्या हानि है?

    – ईश्वर क्या सब कुछ कर सकता है? ईश्वर क्या अन्याय भी कर सकता है?

    – ईश्वर के कर्म कौन-कौन से हैं?

    – ईश्वर का स्वभाव क्या है?

    – मोक्ष क्या है?

6. हमारे शरीर की सभी क्रियाएं किस सत्ता के कारण से सम्भव होती हैं?

7. क्यों जीवात्मा को विकलांग व रोगी शरीर में आना पड़ता है?

8. क्या कोई शक्ति जीवात्मा के ऊपर भी है?

9. किसी विषय की सत्यता व असत्यता का अर्थ क्या है?

10. सत्य भाषण क्या है?

    – न्याय और दया क्या हैं?

11. विज्ञान क्या प्रयोगशालाओं तक ही सीमित है? विज्ञान की क्या परिभाषा है?

      – क्या आधुनिक विज्ञान भी ईश्वर की सत्ता को मानता है?

12. वेद क्या हैं? इसके रचयिता कौन हैं?  वेदों को पढ़ने की क्या आवश्यकता है? हम क्यों माने कि वेदों का रचयिता ईश्वर ही है?

13. आर्य किन्हें कहते हैं?

      – आर्यों के क्या सिद्धान्त हैं?

      – क्या आर्य कोई भी मनुष्य बन सकता है?

14. अष्टांग योग क्या है व इसकी भिन्न-भिन्न सीढि़यां कौन-कौन सी हैं?

      – उपासना क्या है व योग में इसका क्या स्थान है?

      – ज्ञान योग, कर्मयोग व भक्तियोग क्या हैं?

15. धर्म किसे कहते हैं?

      – क्या धर्म और विज्ञान अलग-अलग हैं?

      – धार्मिकता में किन तीन चीजों का समावेश होता है?

      – अध्यात्मिकता और धार्मिकता में क्या अन्तर होता है?

      – किसी व्यक्ति को किन लक्षणों के आधार पर धार्मिक कहा जा सकता है?

      – क्या धर्म परिव

    16. कर्मफल सिद्धान्त क्या है? 

      – कर्मों का फल कौन देता है?

      – प्रायश्चित क्या है? क्या बुरे कर्मों के फल को नष्ट या कम किया जा सकता है?

      – जब कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है और उनसे कोई बच नहीं सकता तो फिर ईश्वरोपासना करने की क्या आवश्यकता है?

      – संकटकाल में संकट से बचने के लिए की ग प्रार्थना से क्या ईश्वर विशेष ज्ञान-विज्ञान देता है?

      – कर्मफल सिद्धान्त से सम्बंधित कुछ विशेष टिप्पणियां

17. यह सृष्टि कैसे बनी?

      – क्या सृष्टि का रचयिता ईश्वर ही है?

      – रचना के लिए आवश्यक कौन-कौन सी वस्तुएं होती हैं?

18. आर्ष ग्रन्थ किन्हें कहते है व वे कौन-कौन से है?

19. शिक्षा का अर्थ क्या है?

20. गीता का सार क्या है?

21. स्वतंत्रता’ किसे कहते हैं व परतन्त्रता कब उचित होती है?

22. सामाजिक मर्यादाओं को पालना हर समाज के लिए क्यों आवश्यक है?

23. संस्कृति और सभ्यता में क्या सम्बन्ध है?

      – संक्षेप में भारतीय संस्कृति से हमारा क्या अभिप्राय है?

24. क्या हमारे ग्रन्थों में प्रक्षेप हैं?

25. भाग्य क्या है व इसका हमारे जीवन में क्या योग है?

      – भविष्य को क्या जाना जा सकता है?

      – भविष्य तो अटल है फिर उसकी जानकारी से हमें क्या लाभ हो सकता हैं?

      – ज्योतिष क्या केवल भविष्य जानने के ज्ञान का नाम है?

26. धन का क्या महत्व है व इसका क्या-क्या उपयेाग है?

      – क्या अधिक धन और स्मृद्धि की इच्छा करना गलत है?

27. हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए। हमें बेईमानी, धोखा और लालच नहीं करना चाहिए, लेकिन क्यों?

28. सफलता मापने के लिए कौन सा मापदण्ड उचित है?

29. त्याग से हमारा क्या अभिप्राय है?

      – ‘त्याग’ और ‘तप’ में क्या सम्बन्ध है?

30. जब कोई व्यक्ति समयिक सामाजिक प्रवाह को रोक ही नहीं सकता तो उसी प्रवाह में बह जाने को अनुचित क्यों माना जाए?

31. सन्ध्या क्या है?

32. हवन क्या है?

      – मन्त्र पाठ क्यों किया जाता है?

33. देवता किन्हें कहते हैं?

34. क्या पौधों में वास्तव में जीवन होता है?

35. मांस व अण्डा क्यों अभक्ष्य हैं?

 

 

इन मूलभूत प्रश्नों के सम्बन्ध में अपनी गलत अवधारणायों के कारण व्यक्ति बहुत दुख पाता है और यह समझ नहीं पाता कि धार्मिकता उसे सांसारिक कार्यों को करने में कैसे मदद कर सकती है। इन प्रश्नों का सही-सही उत्तर पता होने पर हम अपने समाज को मतों और सम्प्रदायों में बंटने देने के स्थान पर उसे एकजुट कर पाएंगे। समाज को एकजुट करने का एक मात्र साधन सत्य व अभ्रान्तिपूर्ण विचार ही हैं।

आज समाज में ऐसी कोई भी सामग्री उपलब्ध नहीं जो एक जगह इन सब प्रश्नों का उत्तर दे सके। मेरी इस कृति का उद्देश्य इन मूलभूत प्रश्नों के सम्बन्ध में सत्य पर आधारित जानकारियों को एक जगह एकत्र करना है।

अब प्रश्न उठता है कि इस की क्या निश्चितता अर्थात Surety है कि दिए गए उत्तर, जो कि आज के समाज की मान्यतायों के विरुद्ध हैं, ही सही हैं। इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर में दिए गए सभी विचार एक दूसरे के पूरक अर्थात Supplement हैं, जिसे हम अपनी विश्लेषणात्मक अर्थात Analytical बुद्धि से जान सकते हैं।

आज हमारे देश में ब्रह्मकुमारी, राधास्वामी, गायत्री परिवार, स्वामी नारायण, आर्ट ऑफ़ लिविंग आदि के नाम से प्रसिद्धि पा रहे सम्प्रदाय इस देश की पुरानी ज्ञान-राशि की चर्चा न करके अपनी स्वतंत्र सत्ता सिद्ध करने में लगे हुए हैं और यह बात हमारी सनातन संस्कृति के लिए अत्यंत घातक है।

प्र१न १– हमारे देश का प्राचीन और प्रथम नाम क्या थाॽ


उत्तर-हमारे देश का प्राचीन और प्रथम नाम आर्यावर्त्त था।


प्र१न २– हम भारतवासियों का प्राचीन नाम क्या थाॽ


उत्तर-हम भारतवासियों का प्राचीन नाम आर्य था।


प्र१न ३– हम भारतीयों का प्राचीनतम धर्म कौन सा हैॽ


उत्तर-हम भारतीयों का प्राचीनतम धर्म वैदिक धर्म  है।


प्र१न ४– हम वैदिक धर्मियों की धार्मिक पुस्तक कौन सी हैॽ


उत्तर-हम वैदिक धर्मियों की धार्मिक पुस्तक वेद है।


प्र१न ५– वेद कितने हैंॽ


उत्तर-चार-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।


प्र१न ६– वेद कितने पुराने हैंॽ


उत्तर-वेद १,९६,0८,५३,१0८ वर्ष Ž पुराने हैं।


    Ž पुस्तक के संस्करण के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न ७– चारों वेदों में कितने मन्त्र हैंॽ


उत्तर-चारों वेदों में २0३७९ मन्त्र है। ऋग्वेद में १0५५२, यजुर्वेद में १९७५, सामवेद में १८७५ और अथर्ववेद में ५९७७ मन्त्र हैं।


प्र१न ८– वेद की भाषा कौन सी हैॽ


उत्तर-वेद की भाषा वैदिक संस्कृत है।


प्र१न ९– वेदों में क्या विषय हैॽ


उत्तर-वेदों में मनुष्यों के लिए आवश्यक समस्त ज्ञान-विज्ञान है। संक्षेप में वेदों का विषय ईश्वर, जीव, प्रकृति का विज्ञान अथवा ज्ञान-कर्म-उपासना है।


प्र१न१0– वेदों का ज्ञान मनुष्यों को कैसे मिलाॽ


उत्तर-वेदों का ज्ञान ईश्वर ने सृष्टि के आदि में  चार ऋषियों को प्रदान किया। जिनका नाम अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा था।


प्र१न ११– अनादि वस्तुएँ कितनी हैंॽ


उत्तर-अनादि वस्तुएँ तीन हैं- ईश्वर, जीव और प्रकृति।


प्र१न १२– वेद पुस्तक रूप में कब बनेॽ


उत्तर-ऐसी संभावना है कि सृष्टि के प्रारंभ में कुछ काल के बाद वेद पुस्तक रूप में बने।


प्र१न १३– अनादि किसे कहते हैंॽ


उत्तर-जिस वस्तु की उत्पत्ति न हो, उसे अनादि कहते हैं।


प्र१न १४– ईश्वर के मुख्य कर्म कौन-कौन से हैंॽ


उत्तर-ईश्वर के मुख्य कर्म ५ हैं-१ संसार को बनाना, २ संसार का पालन करना, ३ संसार का विनाश करना, ४ वेदों का ज्ञान देना और ५ अच्छे-बुरे कर्मों का फल देना।


प्र१न १५– ईश्वर का मनुष्यों के साथ क्या सम्बन्ध हैॽ


उत्तर-ईश्वर का मनुष्यों के साथ पिता-पुत्र, माता-पुत्र, गुरु-शिष्य, राजा—प्रजा, साध्य-साधक, उपास्य-उपासक, व्याप्य-व्यापक आदि अनेक सम्बन्ध हैं।


प्र१न १६– वेद में ईश्वर का क्या स्वरूप बतलाया गया हैॽ


उत्तर-वेदों में ईश्वर को सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, निराकार, न्यायकारी, कर्मफलदाता आदि गुणों वाला बताया गया है।


प्र१न १७– यह संसार कब बना ॽ


उत्तर-संसार १,९६,0८,५३,१0८ Ž वर्ष पूर्व बना।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न १८– यह संसार कितने वर्ष तक और चलता रहेगाॽ


उत्तर-यह संसार २,३५,९९,४६,८९२ Ž वर्ष तक ओर चलेगा।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न १९– रामायण का काल कितना पुराना हैॽ


उत्तर-रामायण का काल लगभग १0 लाख वर्ष पुराना है।


प्र१न २0– महाभारत का काल कितना पुराना हैॽ


उत्तर-महाभारत का काल लगभग ५२00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २१– पारसी मत कितना पुराना हैॽ


उत्तर-पारसी मत लगभग ४,५00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २२– यहूदी मत कितना पुराना हैॽ


उत्तर-यहूदी मत लगभग ४000 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २३– जैनबौद्ध मत का काल कितना पुराना हैॽ


उत्तर-जैनबौद्ध मत का काल लगभग २५00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २४– शंकराचार्य का काल कितना पुराना हैॽ


उत्तर-शंकराचार्य का काल लगभग २३00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २५– हिन्दु-पुराण मत का काल कितना पुराना हैॽ


उत्तर-हिन्दु-पुराण मत का काल लगभग २२00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


 प्र१न २६– ईसाई मत कितना पुराना हैॽ


उत्तर-ईसाई मत लगभग २000 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २७– इस्लाम मत कितना पुराना हैॽ


उत्तर-इस्लाम मत लगभग १४00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २८– सिक्ख मत कितना पुराना हैॽ


उत्तर-सिक्ख मत लगभग ५00 Ž वर्ष पुराना है।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न २९– ब्रह्मकुमारी, राधास्वामी, गायत्री परिवार, स्वामी नारायण, आनन्द मार्ग इत्यादि मत-पथ-सम्प्रदाय कितने वर्ष पुराने हैंॽ


उत्तर-देश में सैंकड़ों की संख्या में प्रचलित वर्तमान सम्प्रदाय १00-१५0 Ž वर्ष पूर्व के आसपास के काल के ही हैं।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न ३0– ईश्वर को मूर्ति रूप में बनाकर पूजना कब से आरम्भ हुआॽ


उत्तर-ईश्वर को मूर्ति रूप में बनाकर पूजना लगभग २५00 Ž वर्ष पूर्व से आरम्भ हुआ। इससे पूर्व लोग निराकर ईश्वर की ही उपासना करते थे।


    Ž पुस्तक के लिखे जाने के वर्ष के अनुसार इस समय में बदलाव आपेक्षित है।


प्र१न ३१– वेदों में धर्म के लक्षण क्या हैंॽ


उत्तर-धैर्य रखना, क्षमा करना, मन पर नियन्त्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि बढ़ाना, ज्ञान-विज्ञान प्राप्त करना, सत्य बोलना, क्रोध न करना।


प्र१न ३२– पृथ्वी पर सबसे पूर्व मनुष्य कहाँ उत्पन्न हुएॽ


उत्तर-पृथ्वी पर सबसे पूर्व मनुष्य तिब्बत में उत्पन्न हुए।


प्र१न ३३– आर्य किसे कहते हैंॽ


उत्तर-उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव वाले मनुष्य का नाम आर्य होता है।


प्र१न ३४– क्या आर्य लोग भारतवर्ष में बाहर से आये थेॽ


उत्तर-आर्य लोग भारतवर्ष में बाहर से नहीं आये थे।


प्र१न ३५– इतिहास में ऐसा पढ़ाते हैं कि आर्य बाहर से आये थेॽ


उत्तर-इतिहास में गलत पढ़ाया जा रहा है, आर्य लोग भारत के ही मूलनिवासी थे।


प्र१न ३६– चक्रवर्ती सम्राट किसे कहते हैंॽ


उत्तर-सम्पूर्ण पृथ्वी के राजा को चक्रवर्ती सम्राट कहते हैं।


प्र१न ३७– चक्रवर्ती सम्राट कब हुए थेॽ


उत्तर-सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर महाभारत पर्यन्त इस पृथ्वी पर चक्रवर्ती राजा ही होते रहे हैं।


प्र१न ३८– अन्तिम चक्रवर्ती राजा कौन थेॽ


उत्तर-युधिष्ठिर भारतवर्ष के अन्तिम चक्रवर्ती राजा थे।


प्र१न ३९– पृथ्वी पर वैदिक साम्राज्य कब तक रहाॽ


उत्तर-पृथ्वी पर वैदिक साम्राज्य सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर महाभारत काल पर्यन्त अर्थात् लगभग १,९६,0८,४८,000 वर्ष तक रहा।


प्र१न ४0– वैदिक काल में विश्व के लोग किस ईश्वर को मानते थेॽ


उत्तर-वैदिक काल में विश्व के लोग केवल एक निराकार ईश्वर को मानते थे।


प्र१न ४१– वैदिक साम्राज्य के काल में विश्व शासन की भाषा कौन सी थीॽ


उत्तर-वैदिक साम्राज्य के काल में विश्व शासन की भाषा संस्कृत थी।


प्र१न ४२– वैदिक काल में शिक्षा प्रणाली कौन सी थीॽ


उत्तर-वैदिक काल में शिक्षा प्रणाली गुरुकुलीय थी।


प्र१न ४३– वैदिक धर्म में व्यक्तिगत जीवन को कितने भागों में बाँटा गया हैॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में व्यक्तिगत जीवन को चार भागों में बाँटा गया है। जिन्हें चार आश्रम कहते हैं।


प्र१न ४४– चार आश्रमों के नाम क्या-क्या हैॽ


उत्तर-चार आश्रमों के नाम निम्न हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम।


प्र१न ४५– वैदिक धर्म में कर्म के आधार पर मानव समाज को कितने भागों में बाँटा गया है और उनके नाम क्या हैंॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में कर्म के आधार पर मानव समाज को चार भागों में बाँटा गया है जिन्हें चार वर्ण कहते हैं। जिनके नाम हैं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।


प्र१न ४६– क्या वैदिक धर्म में ईश्वर का अवतार लेना बताया गया हैॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में ईश्वर का अवतार लेना नहीं बताया गया है। क्योंकि सर्वव्यापक, निराकार ईश्वर का अवतार लेना संभव नहीं है।


प्र१न ४७– वैदिक-धर्मी के लिए कौन से कार्य करने अनिवार्य हैॽ


उत्तर-वैदिक-धर्मी के लिए पंचमहायज्ञ करने अनिवार्य है।


प्र१न ४८– पंचमहायज्ञों के नाम कौन-कौन से हैॽ


उत्तर-पंचमहायज्ञों के नाम हैं – ब्रह्मयज्ञ (ईश्वर का ध्यान करना, वेद को पढ़ना), देवयज्ञ (हवन करना), पितृ–यज्ञ (माता-पिता, बड़े व्यक्तियों की सेवा करना), अतिथियज्ञ (विद्वान, सन्यासी, समाजसेवी व्यक्तियों का सत्कार करना), बलिवैश्वदेवयज्ञ (पशु-पक्षी आदि की सेवा करना)।


प्र१न ४९– वैदिक धर्म में जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए और कौन से विधि-विधान बताए गए हैंॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए १६ संस्कारों का करना अनिवार्य बतलाया गया है।


प्र१न ५0– १६ संस्कारों के नाम क्या हैंॽ


उत्तर-१६ संस्कारों के नाम निम्न हैं-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, निष्क्रमणम्, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन, वेदारम्भ, समावर्तन, विवाह, वानप्रस्थ, सन्यास और अन्त्येष्टि।


प्र१न ५१– वैदिक धर्मियों का अभिवादन शब्द कौन सा हैॽ


उत्तर-वैदिक धर्मियों का अभिवादन शब्द ‘नमस्ते’ है।


प्र१न ५२– क्या वैदिक धर्म में त्रुटि, भूल, दोष, पाप के लिए ईश्वर की ओर से क्षमा का विधान हैॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में त्रुटि, भूल, दोष, पाप के लिए ईश्वर की ओर से क्षमा का विधान नहीं है।


प्र१न ५३– शास्त्र कितने हैं और उनके नाम क्या हैंॽ


उत्तर-शास्त्र ६ हैं और उनके नाम निम्न हैं-योगदर्शन, सांख्यदर्शन, वैशेषिकदर्शन, न्यायदर्शन, वेदान्तदर्शन, और मीमांसादर्शन।


प्र१न ५४– वेदों के अंग कितने हैं और उनके नाम क्या हैंॽ


उत्तर-वेदों के अंग ६ हैं और उनके नाम निम्न हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष।


प्र१न ५५– वेदों के आधार पर ऋषियों द्वारा बनाया गया सामाजिक विधि-विधान तथा आचार संहिता का प्रसिद्ध, प्राचीन और महत्त्वपूर्ण धार्मिक ग्रन्थ कौन सा हैंॽ


उत्तर-वेदों के आधार पर ऋषियों द्वारा बनाया गया सामाजिक विधि-विधान तथा आचार संहिता का प्रसिद्ध, प्राचीन और महत्त्वपूर्ण धार्मिक ग्रन्थ ‘मनुस्मृति’ है।


प्र१न ५६– क्या वैदिक धर्म में छुआछूत, जातिभेद, जादूटोना, डोराधागा, ताबीज, शकुन, फलित-ज्योतिष, जन्मकुण्डली, हस्तरेखा, नवग्रह पूजा, नदी स्नान, बलिप्रथा, सतीप्रथा, मांसाहार, मद्यपान, बहुविवाह, भूत-प्रेत, मृतकों के नाम पिण्डदान, भविष्यवाणी आदि का विधान हैॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में छुआछूत, जातिभेद, जादूटोना, डोराधागा, ताबीज, शकुन, फलित-ज्योतिष, जन्मकुण्डली, हस्तरेखा, नवग्रह पूजा, नदी स्नान, बलिप्रथा, सतीप्रथा, मांसाहार, मद्यपान, बहुविवाह, भूत-प्रेत, मृतकों के नाम पिण्डदान, भविष्यवाणी आदि का विधान नहीं है।


प्र१न ५७– वैदिक धर्म में मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य/ उद्देश्य/प्रयोजन क्या बताया गया हैॽ


उत्तर-वैदिक धर्म में मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य/ उद्देश्य/प्रयोजन समस्त दुःखों से छूटना और पूर्ण आन्नद को प्राप्त करना बताया गया है।


प्र१न ५८– सभी दुखों से छूटना कैसे संभव हैॽ


उत्तर-आध्यात्मिक अज्ञान के नष्ट हो जाने पर सभी दुखों से छूटना संभव है।


प्र१न ५९– आध्यात्मिक अज्ञान कैसे नष्ट होता हैॽ


उत्तर-आध्यात्मिक अज्ञान ईश्वर द्वारा आध्यात्मिक शु़द्ध ज्ञान देने पर नष्ट होता है।


प्र१न ६0– ईश्वर आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान कब देता हैॽ


उत्तर-ईश्वर आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान मन की समाधि अवस्था में देता है।


प्र१न ६१– समाधि की अवस्था कैसे प्राप्त होती हैॽ


उत्तर-समाधि की अवस्था अष्टांग योग की विधि से मन, इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण करने पर प्राप्त होती है।


प्र१न ६२– मन, इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण कैसे होता हैॽ


उत्तर-मन, इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण आत्मा का साक्षात्कार करने पर होता है।


प्र१न ६३– आत्मा का साक्षात्कार कब होता हैॽ


उत्तर-आत्मा का साक्षात्कार आत्मा से सम्बन्धित विज्ञान को पढ़कर, विचारकर, निर्णय लेकर, दृढ़ निश्चय करके तपस्या और पुरुषार्थ पूर्वक कार्यों के करने से होता है।


प्र१न ६४– ईश्वर का ध्यान करने से क्या लाभ होता हैॽ


उत्तर-ईश्वर का ध्यान करने से मन पर अधिकार होता है, इन्द्रियों पर नियन्त्रण होता है, एकाग्रता बढ़ती है, स्मृतिशक्ति तेज होती है, बुद्धि सही और शीघ्र निर्णय लेने वाली बनती है, बुरे संस्कार नष्ट होते हैं, अच्छे संस्कार उभरते हैं, आत्मिक बल बढ़ता है, धैर्य, सहनशक्ति, क्षमा, दया, निष्कामता की वृद्धि होती है और विशेष आनन्द, शान्ति, निर्भीकता की प्राप्ति होती है।


प्र१न ६५– मनुष्य दुखी क्यों होता हैॽ


उत्तर-मनुष्य राग, द्वेष और मोह अर्थात् अज्ञान के कारण दुखी होता हैं।


प्र१न ६६– वैराग्य का अर्थ क्या हैॽ


उत्तर-वैराग्य का अर्थ है राग-द्वेष से रहित, एषणाओं से रहित, लौकिक सुख लेने की इच्छा से रहित होकर निष्काम भावना से कर्तव्य कर्मों को करना।


प्र१न ६७– आध्यात्मिकता शब्द का क्या अर्थ हैॽ


उत्तर-आध्यात्मिकता शब्द का अर्थ है आत्मा, परमात्मा, मन, बुद्धि, मोक्ष, बन्ध, पुनर्जन्म, कर्म और उनका फल, संस्कार, समाधि इत्यादि विषयों का ज्ञान-विज्ञान प्राप्त करना और तदनुसार आचरण करना।


प्र१न ६८– मनुष्य के मन में अशान्ति, भय, चिन्ता क्यों उत्पन्न होते हैंॽ


उत्तर-मनुष्य के मन में अशान्ति, भय, चिन्ता पाप कर्म करने से उत्पन्न होते है।


प्र१न ६९– पाप किसे कहते हैॽ


उत्तर-अधर्माचरण को पाप कहते हैं।


प्र१न ७0– अधर्माचरण किसे कहते हैंॽ


उत्तर-ईश्वर की आज्ञाओं, शास्त्रों के विधि-विधानों, महापुरुषों के निर्देषों तथा अपनी पवित्र आत्मा में उत्पन्न होने वाले विचारों के विपरीत व्यवहार करने का नाम अधर्माचरण है।


प्र१न ७१– धर्म की सामान्य परिभाषा क्या हैॽ


उत्तर-धर्म की सामान्य परिभाषा यह है कि जो व्यवहार अपने को अच्छा लगे वह दूसरों के प्रति करें और जो व्यवहार अपने को अच्छा न लगे वह दूसरों के प्रति न करें ।


प्र१न ७२– वैदिक धर्म में कर्मफल सिद्धान्त क्या हैॽ


उत्तर-जो मनुष्य शरीर, मन, इन्द्रियों से जितने भी अच्छे-बुरे कर्म करता है, उसे उन सबका फल सुख-दुख के रूप में अवश्य ही मिलता है।


प्र१न ७३– क्या वेदों के अनुसार बुरे कर्मों के फल माफ हो सकते हैंॽ


उत्तर-वेदों के अनुसार बुरे कर्मों के फल किसी प्रकार से भी माफ नहीं हो सकते हैं।


प्र१न ७४– तो फिर दान-पुण्य, जप-तप, सेवा-परोपकार आदि का क्या लाभ होता हैॽ


उत्तर-दान-पुण्य, जप-तप, सेवा-परोपकार आदि का अलग से अच्छा फल मिलता है, इससे बुरे कर्मों के फल न कम होते हैं, न माफ होते हैं।


प्र१न ७५– जब कर्मों का फल मिलना ही है, तो ईश्वर की उपासना करने से क्या लाभ हैॽ


उत्तर-ईश्वर की उपासना करने से बुद्धि पवित्र होती है और आनन्द की प्राप्ति होती है, आत्मिक बल मिलता है, मन में उत्तम विचार उत्पन्न होते हैं, परिणामस्वरूप मनुष्य भविष्य में बुरे कर्म नहीं करता है अथवा कम करता है।


प्र१न ७६– क्या हमारा भविष्य निश्चित है और इसको कोई जानकर बता सकता हैॽ


उत्तर-हमारा भविष्य निश्चित नहीं है और इसको कोई भी जानकर बता नहीं सकता है।


प्र१न ७७– तो फिर ज्योतिषी लोगों का भविष्य की बातों का बताना सत्य नहीं हैॽ


उत्तर-हाँ, ज्योतिषी लोगों का भविष्य की बातों का बताना सत्य नहीं है ।


प्र१न ७८– किसी विशेष परिस्थिति में झूठ बोलना लाभकारी और उचित होता हैॽ


उत्तर-किसी भी परिस्थिति में झूठ बोलना न लाभकारी है और न उचित होता है।


प्र१न ७९– क्या ईश्वर अपनी इच्छा से किसी मनुष्य को बिना कर्म किए सुख-दुख रुपी फल देता हैॽ


उत्तर-ईश्वर अपनी इच्छा से किसी मनुष्य को बिना कर्म किए सुख-दुख रुपी फल नहीं देता है।


प्र१न ८0– क्या अज्ञान व मिथ्याज्ञान के कारण किए गए बुरे कर्मों का फल भी मिलता हैॽ


उत्तर-जी हाँ, अज्ञान व मिथ्याज्ञान के कारण किए गए बुरे कर्मों का फल भी अवश्य मिलता है। हमारा कर्तव्य है कि अज्ञान को दूर करें।


प्र१न ८१– कौन सा कार्य अच्छा है, इसका पता कैसे लग सकता हैॽ


उत्तर-किसी कार्य के करने से पहले, करते समय और करने के बाद मन में आनन्द, उत्साह, प्रसन्नता, शान्ति, सन्तोष उत्पन्न होता हो, साथ ही जिससे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्र की किसी प्रकार की हानि न हो, ऐसे कार्य को अच्छा मानना चाहिए।


प्र१न ८२– कौन सा कार्य बुरा है इसका पता कैसे लग सकता हैॽ


उत्तर– किसी कार्य के करने से पहले, करते समय और करने के बाद मन में भय, शंका, लज्जा उत्पन्न होती हो, साथ ही जिससे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्र की कोई हानि होती हो, ऐसे कार्य को बुरा मानना चाहिए।


प्र१न ८३– मन के ऊपर नियन्त्रण कैसे होता हैॽ


उत्तर– मन के ऊपर नियन्त्रण आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान का प्रयोग करने से होता है।


प्र१न ८४– आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान कैसे उत्पन्न किया जाता हैॽ


उत्तर– यह विचार करके कि मैं एक चेतन तत्त्व हूँ और मन, इन्द्रियाँ और शरीर का स्वामी हूँ, शरीर, मन, इन्द्रियाँ जड़ हैं, मेरी इच्छा और प्रयत्न के बिना शरीर, मन, इन्द्रियाँ अपने आप कोई भी काम नहीं कर सकते हैं। मैं अपनी इच्छा से जिस काम को करना चाहूँगा, वह करूँगा, जिस काम को नहीं करना चाहूँगा, वह नहीं करूँगा। मैं जिस विचार को उठाना चाहूँगा, वह उठाऊँगा और जिस विचार को उठाना नहीं चाहूँगा, वह नहीं उठाऊँगा। ऐसा दृढ़ निश्चय करके मन, वाणी ओर शरीर से सावधानी और सतर्कता पूर्वक व्यवहार करने से आध्यात्मिक शुद्ध ज्ञान बढ़ता रहता है।


प्र१न ८५– कार्यों में सफलता के क्या उपाय हैंॽ


उत्तर– कार्यों में सफलता के निम्न उपाय हैं-१ कार्य को करने की मन में तीव्र इच्छा २ कार्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधनों का संग्रह ३ कार्य को सरलता से, शीघ्रता से और सुन्दर रूप में करने की यथार्थ विधि को जानना ४ कार्य के पूरा होने तक पूर्ण पुरुषार्थ करते रहना ५ कार्य करते हुए मार्ग में आने वाले बाधा, कष्ट, अभाव, विरोध, प्रतिकूलताओं आदि को प्रसन्नता पूर्वक सहन करना, हताश-निराश, खिन्न न होना ६ ईश्वर से कार्य की सफलता के लिए ज्ञान, बल, साहस, उत्साह, पराक्रम आदि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करना।


प्र१न ८६– किसी पुस्तक के ईश्वरीय होने में क्या प्रमाण हैॽ


उत्तर– किसी पुस्तक के ईश्वरीय होने में निम्न प्रमाण हैं-१ जो सृष्टि के आदि में बनी हो २ जिसमें विज्ञान विरुद्ध बातें न हों ३ जिसमें मनुष्यों का इतिहास न हो ४ जिसमें परस्पर विरोध न हो ५ जिसमें अन्धविश्वास, पाखण्ड, अज्ञानयुक्त, अप्रमाणिक बातों का वर्णन न हों ६ जिसमें मनुष्य के सर्वोत्कृष्ट उन्नति हेतु सब प्रकार के विषयों का वर्णन किया गया हो ७ जिसमें सृष्टि के प्रत्यक्ष नियमों के विरुद्ध सिद्धान्तों का वर्णन न हो ८ जिस प्रकार के गुण-कर्म-स्वभाव वाला ईश्वर है अथवा उसको होना चाहिए वैसे ही गुणों का वर्णन पुस्तक में किया हो ९ जिसमें पक्षपात रहित समान रूप से सब मनुष्यों के लिए विधि-विधान, नियम-अनुशासन का विधान किया गया हो १0 जो किसी देश-विदेश के मनुष्यों, जाति, मत, पंथ, सम्प्रदाय के लिए न होकर सार्वजनिक, सार्वभौमिक, सार्वकालिक हो ११ जो किसी मनुष्यकृत भाषा में न हो।


प्र१न ८७– मनुष्य जीवन की असफलता का लक्षण क्या हैॽ


उत्तर– जिस मनुष्य के जीवन में सुख, शान्ति, सन्तोष, तृप्ति, निर्भीकता, स्वतन्त्रता नहीं होती है, वह जीवन असफल होता है, चाहे उसके पास में कितना ही धन, सम्पत्ति, रूप, बल, विद्या, प्रतिष्ठा, सम्मान, यश, कीर्ति क्यों न हो।


प्र१न ८८– मनुष्य जीवन की सफलता का लक्षण क्या हैॽ


उत्तर– जिस मनुष्य के जीवन में सुख, शान्ति, सन्तोष, तृप्ति, निर्भीकता, स्वतन्त्रता होती है, वह जीवन सफल होता है, चाहे उसके पास में धन, सम्पत्ति, रूप, बल, विद्या, प्रतिष्ठा, सम्मान, यश, कीर्ति थोड़ी क्यों न हो या न भी क्यों न हो।


प्र१न ८९– यज्ञ शब्द का अर्थ क्या हैॽ


उत्तर– यज्ञ शब्द का अर्थ है दान, त्याग, श्रेष्ठ कार्यों को पूर्ण पुरुषार्थ के साथ निष्काम भावना से करना। अग्निहोत्र भी यज्ञ शब्द से ग्रहण होता है ।


प्र१न ९0– किस प्रकार का जीवन चलाने से मनुष्य को अधिकतम सुख की प्राप्ति हो सकती हैॽ


उत्तर– निम्न प्रकार का जीवन चलाने से मनुष्य को अधिकतम सुख की प्राप्ति हो सकती है-आदर्श दिनचर्या, शीघ्र जागरण, भ्रमण, व्यायाम, स्नान, यज्ञ, ईश्वर का ध्यान, उत्तम पुस्तकों का स्वाध्याय, सत्य का पालन, राग-द्वेष रहित व्यवहार, दूसरों के धन और अधिकारों को ग्रहण न करने की इच्छा, परोपकार, समाज-राष्ट्र की उन्नति हेतु संगठन, त्याग, सेवा, बलिदान की भावना, मन में उत्तम कार्यों को करने और बुरे कार्यों को न करने का दृढ़ संकल्प, सात्विक भोजन, मधुर व्यवहार, आत्मनिरीक्षण, महापुरुषों, विद्वानों का सत्संग, संयम, त्याग, तपस्या आदि गुण-कर्म-स्वभाव को धारण करने से जीवन में अधिकतम सुख की प्राप्ति हो सकती है।


प्र१न ९१– राष्ट्र/विश्व की उन्नति के क्या वैदिक उपाय हैंॽ


उत्तर– राष्ट्र/विश्व की उन्नति के वैदिक उपाय निम्न हैं- सम्पूर्ण विश्व के लोग जब एक ईश्वर को मानेंगे, उनकी भाषा एक होगी, धर्म एक होगा, संविधान एक होगा, शिक्षा एक होगी, आचार-विचार एक होंगे, न्याय और राजनीति एक प्रकार की होगी, हानि और लाभ एक समान होगा, तभी सम्पूर्ण राष्ट्र और विश्व की उन्नति हो सकती है।


प्र१न ९२– सम्पूर्ण राष्ट्र और विश्व में एकता कैसे स्थापित हो सकती हैॽ


उत्तर– सम्पूर्ण राष्ट्र और विश्व में एकता तभी स्थापित हो सकती है जब १ सभी मनुष्यों का लक्ष्य एक हो २ उस लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग एक हो ३ उस लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन एक हों तथा ४ उस मार्ग पर चलने की विधि/सिद्धान्त एक हों। और इसका उपाय ईश्वरीय ज्ञान केवल वेद ही है।


प्र१न ९३– जीवन को शीघ्रता से और सरलता से बिना भौतिक साधनों के उन्नत करने का क्या आध्यात्मिक उपाय हैॽ


उत्तर- जीवन को शीघ्रता से और सरलता से बिना भौतिक साधनों के उन्नत करने का आध्यात्मिक उपाय है आत्मनिरीक्षण। रात्रि के समय में सोने से पूर्व अथवा कभी भी मनुष्य को चाहिए कि शान्त, एकान्त स्थान में बैठकर एकाग्रता से अपने जीवन के क्रिया व्यवहारों का सूक्ष्मता से परीक्षण करे और यह जानने का प्रयास करे कि मेरे जीवन में क्या बुराईयाँ हैं, कौन से दोष हैं, कितनी त्रुटियाँ हैं, मैं कौन सी भूले करता हूँ तथा किन कार्यों को करना था, जो नहीं किया, किन कार्यों को कर लिया, जो नहीं करना था, किन कार्यों में कम समय लगाना था, जिनमें अधिक समय लगा दिया। किन कार्यों में अधिक समय लगाना था, जिनमें कम समय लगाया। कौन से कार्य मुख्य थे, जिनको गौण माना, कौन से कार्य गौण थे, जिनको मुख्य माना इत्यादि कमियों को जानकर और उन्हें जीवन की उन्नति में बाधक मानकर उनको पूर्ण रूप से दूर करने की प्रतिज्ञा करें और मन में दृढ़ संकल्प करें कि मैं इन दोषों को भविष्य में पुनः नहीं होने दूँगा। साथ ही दिनभर व्यवहार करते समय मन, वाणी और शरीर से सतर्क और सावधान रहें। ईश्वर से भी प्रतिदिन जीवन को उन्नत बनाने में आत्मिक बल, ज्ञान-विज्ञान, धैर्य, सहिष्णुता आदि गुणों की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करता रहें, इन उपायों के करने से सामान्य मनुष्य का जीवन भी सरलता शीघ्रता से श्रेष्ठ बन सकता हैं।


प्र१न ९४– क्या पुनर्जन्म होता है इसमें क्या प्रमाण हैॽ


उत्तर– पुनर्जन्म होता है इसमें निम्न प्रमाण है-१ जन्मते ही मनुष्य-पशु आदि के बच्चे दूध पीते हैं। २ चार-छः मास का शिशु माँ की गोद में आँखें बंद किए हुए अथवा सोते हुए का कभी प्रसन्न होना, कभी भयभीत होना। ३ संसार में ऊँची-नीची योनियाँ ४ बाल्यावस्था में बौद्धिक स्तर का भेद देखकर यह अनुमान होता है कि जीवात्मा का पुनः जन्म होता है।


प्र१न ९५– समाज में लोगों के साथ व्यवहार कैसे करना चाहिएॽ


उत्तर– समाज में चार प्रकार के व्यक्ति होते हैं-उनके साथ चार प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। १ जो व्यक्ति धनादि के द्वारा सुखी और समृद्ध है उनके साथ मित्रता रखनी चाहिए। २ जो व्यक्ति धनादि से रहित, निर्धन, दुखी हैं उनके ऊपर दया करके उनका यथाशक्ति सहयोग करना चाहिए। ३ जो व्यक्ति त्यागी, तपस्वी, सेवाभावी हैं उनको देखकरके मन में प्रसन्न होना चाहिए और उनका आदर-सत्कार करना चाहिए। ४ जो व्यक्ति दुष्ट है उनके साथ उपेक्षा करनी चाहिए। अर्थात् न उनसे बैर रखें न प्रेम करें।


प्र१न ९६– मरने के बाद कितने काल में मनुष्य नया जन्म ले लेता हैॽ


उत्तर-तत्काल-थोड़े से काल में ही नया जन्म ले लेता है।


प्र१न ९७– मरने के बाद मनुष्य को कौन सा जन्म मिलता हैॽ


उत्तर-मरने के बाद आधे से अधिक बुरे कर्म हो तो पशु -पक्षी कीट पतंग आदि का जन्म मिलता है।


प्र१न ९८– क्या मनुष्य की आयु निश्चित हैॽ


उत्तर-मनुष्य की आयु निश्चित नहीं है। आयु को घटाया-बढ़ाया जा सकता है।


प्र१न ९९– आयु को बढ़ाने के क्या उपाय हैंॽ


उत्तर– आयु को बढ़ाने के निम्न उपाय हैं-सात्त्विक भोजन, नियमित दिनचर्या, ब्रह्मचर्य का पालन, पूर्ण निद्रा, व्यायाम, अच्छी पुस्तकों को पढ़ना, सत्संग, विद्वान और श्रेष्ठ मनुष्यों के साथ मित्रता, ईश्वर पर श्रद्धा और विश्वास, सतर्कता, सावधानी, शान्ति, प्रसन्नता, धैर्य, दया, क्षमा आदि का प्रयोग। इन उपायों से मनुष्य अपनी आयु को बढ़ा सकता है।


प्र१न १00– मनुष्य अल्पआयु में/जल्दी/अकाल क्यों मर जाता हैॽ


उत्तर– तामसिक भोजन, अनियमित दिनचर्या, असंयम, व्यभिचार, अधिक जागना, स्वाध्याय-सत्संग न करना, बुरे व्यक्तियों के साथ मित्रता, नास्तिकता, असावधानी, क्रूरता, अशान्ति, चिन्ता, शोक, भय, रोग आदि से मनुष्य की शारीरिक व मानसिक शक्तियाँ कम हो जाती हैं और वह अल्पआयु में-अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।


प्र१न १0१– मनुष्य का सामाजिक-राष्ट्रीय कर्तव्य क्या हैॽ


उत्तर– मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत और पारिवारिक उन्नति के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के लोगों में विद्यमान अज्ञान, अन्याय और अभाव को दूर करने का तन-मन-धन से पूर्ण प्रयास करते रहना चाहिए, क्योंकि समाज-राष्ट्र के सभी व्यक्तियों के उन्नत हुए बिना कोई भी व्यक्ति या परिवार पूर्णरुपेण सुख, शान्ति, सुरक्षा निश्चिन्तता, निर्भीकता आदि को प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए समाज, राष्ट्र की उन्नति के लिए भी संगठित होकर के, संस्था बनाकर सार्वजनिक कल्याण के कार्यों को भी त्याग, तपस्या के साथ करना चाहिए।


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