अहिंसा-संयम
से ही कल्याण
भगवान् महावीर उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान थे। उनके सत्संग और
दर्शन के लिए आए अनेक राजा बैठे हुए थे। साधारण परिवारों के श्रद्धालुजन भी उनका
दिव्य उपदेश सुनने के लिए लालायित थे । भगवान् महावीर ने कहा, पृथ्वी प्रेम का मंदिर है । इसे हिंसा, राग, द्वेष जैसे दुर्गुणों से अपवित्र नहीं करना चाहिए । अपनी
कामनाओं पर नियंत्रण रखो । यह जान लो कि कामनाओं का कभी अंत नहीं होता । एक जन्म
में तमाम कामनाओं की पूर्ति असंभव है । अतः कामनाओं पर नियंत्रण अति आवश्यक है ।
कुछ क्षण रुककर महावीर ने पुनः कहा , यदि सच्चा सुख और शांति चाहते हो , तो निर्बलों और असहायों की सेवा-सहायता किया
करो, इससे बढ़कर श्रेष्ठ
कर्म दूसरा नहीं है । प्राणी मात्र का दुःख देखकर दु: खी होने वाला ही सच्चा मानव
है । हिंसक कर्म व कूटवाणी से सुख की जगह दुःख व अशांति बढ़ती है । प्रेम व अहिंसा
से ही संसार को वश में किया जा सकता है । उदार और प्रेमी बनो । प्रेम हमारे जीवन
का ध्येय बनना चाहिए ।
भगवान् महावीर ने कहा , अहिंसा, अपरिग्रह और
संयम - इन तीन व्रतों को अपनाने से ही राजा से लेकर रंक तक का कल्याण होगा ।
अपरिग्रह , सुख - साधन , संपत्ति और वैभव को मर्यादित करने का सशक्त
साधन है । सारे जगत के वैभवों से भी मनुष्य की तृप्ति नहीं हो सकती, यह जान लो । सभी महावीर के अमृत तुल्य उपदेश
सुनकर गदगद थे ।
अनेक लोगों ने उसी समय उनके उपदेशों का पालन करने का संकल्प ले लिया ।
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