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राजा का प्रायश्चित्त

 

राजा का प्रायश्चित्त

इक्ष्वाकु वंश के राजा त्रिवृष्ण प्रजा के हित का सदैव ध्यान रखते थे। उन्होंने अपने पुत्र अरुण को धर्मशास्त्रों के अध्ययन के साथ- साथ युद्ध कौशल में भी पारंगत बनाया । राजकुमार अरुण की राजपुरोहित के पुत्र वृशजान से मित्रता थी । वृशजान अत्यंत विद्वान् और विभिन्न विद्याओं के ज्ञाता थे। अरुण की वीरता और वृशजान के पांडित्य की दूर - दूर तक ख्याति फैलने लगी ।

राजा ने अरुण को राजसत्ता सौंप दी । अरुण ने कुछ ही समय में आदर्श और शक्तिशाली शासक के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली । पुरोहित पुत्र वृशजान ने घोर तप करके अग्निदेव का वरदान प्राप्त कर लिया ।

एक बार राजा दिग्विजय पर निकले । उनका रथ वृशजान चला रहे थे। अचानक रथ के पहिये के नीचे आकर एक ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु हो गई । इस हत्या का दोषी कौन है इस पर दोनों में विवाद हो गया । वृशजान ने शास्त्रों का उद्धरण देकर कहा, ऐसी दुर्घटना के लिए दोषी वाहन का मालिक होता है ।

राजा अहंकार में आकर अपने को निर्दोष बताते रहे । यह देखकर वृशजान ने राज्य छोड़ दिया । राजा के रोकने पर भी वे चले गए ।निर्दोष बालक की मृत्यु के शाप और अग्निदेव के प्रकोप से यज्ञादि सत्कर्म बंद हो गए । राज्य में अशांति फैलने लगी ।

राजा तुरंत वृशजान की शरण में पहुँचे। उन्होंने क्षमा माँगी तथा कहा, ब्राह्मण - पुत्र की अनजाने में हुई हत्या का दोष मैं स्वीकार करता हूँ और प्रायश्चित्त के रूप में प्राण तक देने को तैयार हूँ । अग्निदेव ने राजा को क्षमा कर दिया ।


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