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लोभ व्याधि है

 

लोभ व्याधि है

वनवास के दौरान यक्ष ने युधिष्ठिर से अनेक प्रश्न किए । उनसे एक प्रश्न किया गया कि किन-किन सद्गुणों के कारण मनुष्य क्या - क्या फल प्राप्त करता है और मानव का पतन किन-किन अवगुणों के कारण होता है ?

___ युधिष्ठिर ने बताया, वेद का अभ्यास करने से मनुष्य श्रोत्रिय होता है , जबकि तपस्या से वह महत्ता प्राप्त करता है । जिसने मन पर नियंत्रण कर लिया, वह कभी दुःखी नहीं होता । सद्पुरुषों की मित्रता स्थायी होती है । अहंकार का त्याग करनेवाला सबका प्रिय होता है । जिसने क्रोध व लोभ को त्याग दिया , वह हमेशा सुखी रहता है । कामना को छोड़ने वाला और संतोष धारण करनेवाला कभी आर्थिक दृष्टि से दरिद्र नहीं हो सकता । कुछ क्षण रुककर उन्होंने आगे कहा , स्वधर्म पालन का नाम तप है । सबको सुखी देखने की इच्छा करुणा है । क्रोध मनुष्य का बैरी है और लोभ असीम व्याधि । जो जीव मात्र के हित की कामना करता है , वह साधु है । जो निर्दयी है, वह असाधु ( दुर्जन ) है । स्वधर्म में डटे रहना ही स्थिरता है । मन के मैल का त्याग करना ही सच्चा स्नान है ।

युधिष्ठिर ने यक्ष के असंख्य प्रश्नों का उत्तर देकर उसे संतुष्ट कर दिया । धर्मराज युधिष्ठिर स्वयं सभी सद्गुणों का पालन करते थे । ऐसे अनेक प्रसंग आए, जब वे धर्म के आदेशों पर अटल रहे । अनेक कठिनाइयाँ सहन करने के बाद भी उन्होंने धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा ।


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