यह घोर
अधर्म है
कश्मीर नरेश मेघवाहन न्यायप्रिय और धर्मपरायण शासक थे। उन्होंने घोषणा की थी
कि कोई भी व्यक्ति अपनी दबंगता के बल पर यदि किसी को सताएगा , तो उसे कड़ा दंड दिया जाएगा । वह स्वयं साधारण
वेश में घूम- घूमकर प्रजा के दुःख- दर्द का पता लगाते तथा उनकी समस्याओं का हल
करके चैन की नींद सोते थे ।
एक दिन राजा मेघवाहन वनवासियों के इलाके से गुजर रहे थे कि उन्हें एक बच्चे
के रोने की आवाज सुनाई दी । वह कह रहा था, मेरे प्राण बचाओ।
राजा आवाज की दिशा में चल पड़े। कुछ दूर पहुँचकर उन्होंने देखा कि एक क्रूर
अंधविश्वासी व्यक्ति ने बालक को पेड़ से बाँध रखा है । वह तंत्र -मंत्र का पाखंड
करने के बाद उसकी हत्या करना चाहता था । बालक पास रखी तलवार देखकर जान बचाने की
गुहार लगा रहा था ।
राजा मेघवाहन ने यह घोर पापपूर्ण दृश्य देखकर कड़कती आवाज में कहा , अरे पापी , छोड़ इस मासूम बच्चे को । किसी निरीह -बालक के प्राण लेना घोर
अधर्म है ।
उस व्यक्ति ने कहा , मेरा एकमात्र पुत्र असाध्य रोग से ग्रस्त है । किसी तांत्रिक के बताने पर
मैं उसके प्राण बचाने के लिए इस बालक की बलि लेना चाहता हूँ । । राजा बोले , यदि तू अपने बच्चे को बचाने के लिए इसके प्राण
लेना चाहता है, तो इसके
बदले मेरे प्राण ले ले । अचानक राजा को उस व्यक्ति की जगह एक देवपुत्र खड़ा दिखाई
दिया । उसने कहा , राजन्, मैं तो आपकी परीक्षा ले रहा था । वास्तव में
आप दयालु और न्यायप्रिय हैं ।
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