अध्ययन का महत्त्व
मुनि भारद्वाज के पुत्र यवक्रीत की इच्छा थी कि वह वेदों के विद्वान् के रूप
में ख्याति अर्जित करे , किंतु उसे न तो धर्मशास्त्रों के अध्ययन में रुचि थी और न वह किसी गुरुकुल
में ज्ञान प्राप्त करना चाहता था । यवक्रीत घोर तपस्या से प्राप्त वरदान के जरिये
अपनी यह इच्छा साकार करना चाहता था । आखिरकार उसकी तपस्या से प्रभावित होकर इंद्र
देवता प्रकट हुए । उन्होंने पूछा, वत्स! तुम क्या चाहते हो ? उसने उत्तर दिया , मैं वेद शास्त्रों का विद्वान् होना चाहता हूँ , किंतु अध्ययन में समय बरबाद नहीं करना चाहता ।
इंद्र ने कहा , तप की जगह किसी गुरुकुल में अध्ययन करके ही वेदज्ञ बनना संभव है । पर
यवक्रीत तैयार नहीं हुआ और पुनः कठोर तप करने लगा । एक दिन यवक्रीत गंगा स्नान के
लिए पहुँचा । तट पर उसने देखा कि एक वृद्ध चुपचाप मुट्ठीमें रेत भर - भरकर गंगाजी
में डाल रहा है । यवक्रीत ने पूछा, बाबा , रेत गंगा में क्यों डाल रहे हो ? वृद्ध का जवाब था, लोगों को गंगा पार करने में कष्ट होता है । मैं रेत का पुल
बनाना चाहता हूँ । यवक्रीत उसकी मूर्खता पर हँसकर बोला, परिश्रम और युक्ति के बिना भी कहीं पुल बनता
है ? केवल रेत डालने से
पुल कैसे बनेगा?
तभी यवक्रीत ने देखा कि वृद्ध की जगह इंद्र देवता खड़े हैं । उन्होंने कहा , तुम भी तो बिना अध्ययन के वेदज्ञ बनना चाहते
हो । क्या वेद- शास्त्रों के अध्ययन व परिश्रम के बगैर तुम्हारी इच्छा पूरी होगी? यवक्रीत की आँखें खुल गई । उसने तप छोड़कर
अध्ययन किया और वेदज्ञ बन गया ।
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