संयम से स्वास्थ्य
भगवान् बुद्ध श्रावस्ती के निकट एक गाँव में ठहरे हुए थे। अनेक व्यक्ति उनके
सत्संग के लिए आते रहते थे । एक दिन एक धनी व्यक्ति उनके दर्शन के लिए पहुँचा ।
भारी- भरकम बेडौल शरीर के कारण उससे अच्छी तरह चला भी नहीं जा रहा था । वह झुककर
उन्हें प्रणाम भी नहीं कर पाया । उसने खड़े- खड़े विनम्रता से कहा, भगवन्, मेरा शरीर अनेक व्याधियों का अड्डा बन चुका है । रात को न नींद
आ पाती है और न दिन में चैन से बैठ पाता हूँ । मुझे रोगमुक्ति का साधन बताने की
अनुकंपा करें ।
भगवान् बुद्ध ने कहा , प्रचुर भोजन करने से उत्पन्न आलस्य व निद्रा , भोग व अनंत इच्छाओं की कामना, शारीरिक श्रम का अभाव ये सब रोग पनपने के कारण हैं । जीभ पर
नियंत्रण रखने, संयमपूर्ण
सादा सात्त्विक भोजन करने , शारीरिक श्रम करने, सत्कर्मों में रत रहने और अपनी इच्छाएँ सीमित करने से ये रोग स्वतः विदा
होने लगते हैं । असीमित इच्छाएँ और अपेक्षाएँ शरीर को घुन की तरह जर्जर बना डालती
हैं , इसलिए सबसे पहले
उन्हें त्यागो ।
सेठ ने उनके वचनों का पालन करने का संकल्प लिया और लौट गया । एक महीने में
ही वह स्वस्थ हो गया । उसने बुद्ध के पास जाकर कहा, शरीर का रोग तो आपकी कृपा से दूर हो गया । अब चित्त का प्रबोधन
कैसे हो । बुद्ध ने कहा, अच्छा सोचो, अच्छा करो
और अच्छे लोगों का संग करो । विचारों का संयम चित्त को शांति और संतोष देगा । सेठ
बुद्ध के बताए मार्गों पर चलने लगा, फिर जल्दी ही उसे लाभ नजर आने लगा ।
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