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विठोबा ही मेरे राम हैं

 

विठोबा ही मेरे राम हैं

 

समर्थ गुरु संत रामदास भगवान् श्रीराम के परम उपासक थे। महाराष्ट्र में जगह - जगह उन्होंने श्रीराम तथा हनुमान मंदिर स्थापित कराए । वे कहा करते थे, यदि हनुमानजी को प्रसन्न करना है, तो उनके समान महावीर, बलशाली बनो । अखाड़ों में जाकर व्यायाम करो और शरीर को पुष्ट करो । भगवान् श्रीराम का काज पूरा करने के लिए सदैव तत्पर रहो । स्वामी रामदास ने ही छत्रपति शिवाजी को श्रीराम की तरह न्याय और धर्म की रक्षा के लिए सतत् संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी ।

स्वामी रामदास एक बार महाराष्ट्र के प्रमुख तीर्थ पंढरपुर पहुंचे। वहाँ भगवान् श्रीकृष्ण की प्रतिमा है, जिन्हें विठोबा या विट्ठल कृष्ण के नाम से पुकारा जाता है । स्वामी रामदास भगवान् श्रीराम के उपासक थे। उन्होंने पंढरपुर की तुलना अयोध्या से और विठोबा की तुलना श्रीराम से करते हुए कहा, काय केली अयोध्यापुरी , ये थे वसविली पंढरी, काय केली सरयू गंगा, येथे अणिली चंद्रभागा । यानी यहाँ पंढरपुर में मेघवर्ण के साँवले विठोबा कृष्ण मेरे राम हैं और रखुबाई ( रुक्मिणी) ही मेरे लिए सीता माता हैं । अयोध्या जाकर और सरयू नहाकर क्या करूँगा । यहीं पंढरपुर में रहूँगा और चंद्रभागा नदी में स्नान करूँगा। उन्होंने लिखा, यहाँ के ग्वाल - बाल ही मेरे राम के वानर हैं । इन्हीं में अपने हनुमानजी के दर्शन करूँगा। । उल्लेखनीय है कि शंकराचार्य, संत ज्ञानेश्वर , संत तुकाराम, संत नामदेव आदि संतों ने भी कभी श्रीराम और श्रीकृष्ण में भेदभाव नहीं किया ।


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