अनूठी औषधि
एक सद्गृहस्थ सेठ तीर्थयात्रा के लिए रवाना हुए । उनके अत्यंत करीबी मित्र
ने उनसे कहा, भैया , तुम्हें जगह जगह संत- महात्मा मिलेंगे । जो
संत स्वयं शांत व संतुष्ट दिखाई दें , उनसे मेरे लिए शांति और प्रसन्नता ले आना, चाहे उसकी जो भी कीमत चुकानी पड़े । सेठ जिस
तीर्थ में पहुँचते, वहाँ देखते
कि ज्यादातर साधु स्वयं अशांत हैं । वे तीर्थयात्रियों से अपेक्षा करते कि कुछ-न
-कुछ उन्हें भेंट किया जाए । ऐसे संत लोगों से कहा करते कि तीर्थ में किया गया दान
हजारों गुना पुण्यदायक होता है ।
__ तीर्थयात्रा के अंतिम चरण में सेठ को गंगा तट पर शांत मुद्रा
में बैठे एक संत दिखाई दिए । उनके चेहरे पर मस्ती का भाव था । वे भगवान् की
प्रार्थना कर रहे थे। सेठ ने उन्हें प्रणाम करने के बाद कहा, महाराज, मेरे एक मित्र ने कहा था कि किन्हीं पहुँचेहुए संत से शांति व
प्रसन्नता प्रदान करने वाली औषधि लेते आना । मुझे केवल आप ही ऐसे संत मिले हैं , जिन्हें देखकर भरोसा हुआ है कि आप वह औषधि दे
सकते हैं । संत कुटिया में गए और अंदर से लाकर एक कागज की पुडिया सेठ को थमा दी और
बोले, इसे खोलना नहीं और
बंद पुडिया मित्र को दे देना ।
घर लौटकर सेठ ने पुडिया मित्र को थमा दी । कुछ ही दिनों में उसने अनुभव किया
कि मित्र के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन आ गया है । तब सेठ ने पुडिया की औषधि के
बारे में मित्र से पूछा । मित्र ने वह पुडिया सेठ को थमा दी । उसमें लिखा था , संतोष और विवेक सुख- शांति का एकमात्र साधन
हैं ।
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