माँ की सेवा
का फल
हजरत मूसा हर पल खुदा की याद में डूबे रहते थे। उन्हें खुदा के नूर की
अनुभूतिहर क्षण होती रहती थी । एक दिन इबादत के समय उन्होंने खुदा से पूछा , परवरदिगार , क्या आप जन्नत में
मेरे पास जगह लेने वाले का नाम बताएँगे ?
खुदा ने कहा, मूसा, तेरा पड़ोसी जन्नत में भी तेरा पड़ोसी रहेगा । मूसा यह सुनकर हतप्रभ रह गए ।
उनका पड़ोसी मैले - कुचैले कपड़े पहने पेड़ के नीचे बैठा जूते तैयार करता था ।
मूसा ने कभी उसे मसजिद जाते या नमाज पढ़ते नहीं देखा था । उन्होंने सोचा कि जब
खुदा यह कह रहे हैं , तो उसमें कुछ खास बात तो होगी ही । वे उससे मिलने उसकी झोंपड़ी
में जा पहुँचे। जूते गाँठने वाला व्यक्ति अपना सामान समेटकर झोंपड़ी में घुस ही
रहा था ।
उसने हजरत मूसा को देखा, तो अभिवादन कर विनम्र होकर बोला, आप मेरे गरीबखाने पर पधारे , मैं आपका
शुक्रगुजार हूँ । आप कुछ देर बैठिए । मैं अभी आपकी खिदमत में हाजिर होता हूँ ।
इतना कहकर वह झोंपड़ी में घुस गया । जब बहुत देर हो गई , तो उन्होंने झाँककर
देखा कि वह व्यक्ति बिस्तर पर पड़ी जर्जर शरीर वाली वृद्धा माँ को रूई के फाहे से
दूध पिला रहा है । दूध पीते - पीते माँ को झपकी आने लगी, तब उसने माँ के
पाँव दबाने शुरू कर दिए । हजरत मूसा यह दृश्य देखते ही समझ गए कि खुदा उससे माँ की
अनूठी सेवा के कारण खुश हैं ।
हजरत दरवाजा खोलकर अंदर पहुँच गए । वृद्धा माँ के पैरों में सिर रखकर बोले, माँ , तेरी सेवा ने तेरे
बेटे को जन्नत का हकदार बना दिया है ।
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