Ad Code

सेवा का सुफल

 

सेवा का सुफल

 

कैकेय देश के राजा सहस्रचित्य परम प्रतापी तथा धर्मपरायण थे। वे प्रजा के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते थे । मूक पशु- पक्षियों में भी वे अपने इष्टदेव के दर्शन करते थे । वे सुबह का समय भगवान् के भजन और शास्त्रों के अध्ययन में बिताते थे। दोपहर से शाम तक राज - काज देखते थे और शाम होते ही वेश बदलकर प्रजा की सेवा के लिए निकल जाते थे। वे अपने हाथों से बीमारों और वृद्धों की सेवा करते थे। गौशाला पहुँचकर गाय- बैलों को हरा चारा खिलाते और बीमार गायों की खुद सेवा करते थे। सेवा के कारण उनके पुण्यों में वृद्धि होती गई । राजभवन के किसी भी व्यक्ति को यह पता नहीं लग पाता था कि राजा स्वयं प्रतिदिन सेवा और परोपकार कर पुण्य अर्जित कर रहे हैं ।

एक दिन अनजाने में हुए किसी पाप से राजा सहस्रचित्य उद्वेलित हो उठे । वे वृद्धावस्था के रोगों से भी ग्रसित थे । अचानक पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वे जंगल में चले गए । अनजाने में हुए पाप के प्रायश्चित्त के लिए उन्होंने कठोर तपस्या शुरू कर दी ।

एक दिन देवदूत ने प्रकट होकर उनसे कहा , राजन् , तुमने जीवन भर प्रजा, मरीजों, वृद्धों और गायों की सेवा की है । जो राजा अपनी प्रजा के कल्याण को भगवान् की पूजा मानता है, उसके पुण्य उसे स्वर्गलोक का अधिकारी बना देते हैं । अनजाने में हुआ पाप उसी समय भस्म हो गया, जब तुमने प्रायश्चित्त कर लिया । राजा सहस्रचित्य जीवन- मरण के बंधन से मुक्त हो गए ।

Post a Comment

0 Comments

Ad Code