धर्म का
परित्याग न करें
महात्मा विदुर ने धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन किया था । शास्त्रनिष्ठ होने
के कारण ही विदुर सदैव निर्भय रहते थे। वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो समय- समय पर
धृतराष्ट्र तथा दुर्योधन को चेतावनी देते रहते थे कि यदि वे न्याय के पथ पर नहीं
चले, तो सर्वनाश होगा ।
एक बार महाराज धृतराष्ट्र के प्रश्नों का उत्तर देते हुए विदुरजी ने कहा, धर्म का आचरण
सर्वोपरि महत्त्व रखता है । राजा के लिए यही उचित है कि वह धर्म से राज्य प्राप्त
करे और धर्म से ही उसकी रक्षा करे । धर्मात्मा राजा को जहाँ प्रजा की सहानुभूति
मिलती रहती है, वहीं लक्ष्मी सदैव उसके साथ रहकर राज्य को सुखी, समृद्ध व संपन्न
बनाए रखती है ।
विदुरजी ने आगे कहा, कामना, भय, लोभ अथवा अपने जीवन के लिए भी धर्म का परित्याग न करें । इसका
कारण यह है कि धर्म नित्य है, जबकि सुख - दुःख अनित्य । धर्म ही संतोष पैदा करने की प्रेरणा
देता है । इसलिए मनुष्य को सदैव संतोष धारण करना चाहिए, क्योंकि संतोष ही
सबसे बड़ा लाभ है ।
विदुरजी दुर्योधन की स्त्री संबंधी दुष्प्रवृत्ति को जानते थे, इसलिए उन्होंने
धृतराष्ट्र को उपदेश देते हुए कहा, स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी होती हैं । वे पूजनीय हैं । वे अत्यंत
भाग्यशालिनी और पुण्यशीला हैं । उनसे घर की शोभा में वृद्धि होती है । अत : वे
विशेष सम्मान व रक्षा के योग्य हैं । ।
विदुरजी द्वारा धृतराष्ट्र को दिए गए उपदेश आगे चलकर विदुर नीति के नाम से
विख्यात हुए ।
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