आत्मचिंतन से
ही कल्याण
सनक , सनंदन , सनातन और सनत्कुमार — ये चारों मुनि सनकादिक के नाम से विख्यात हुए । वे ब्रह्मा के
मानसपुत्र थे । परम विरक्त होने के कारण देवता भी सनकादिक का बहुत आदर करते थे ।
अत्यंत ज्ञानी होने के बावजूद वे समय- समय पर ब्रह्माजी आदि का सत्संग कर उनसे और
अधिक ज्ञान प्राप्त करने को तत्पर रहा करते थे ।
एक दिन सनकादिकों ने संशयवश अपने पिता ब्रह्माजी से प्रश्न किया, सांसारिक विषय
विपत्तियों के घर हैं । सांसारिक ऐश्वर्य और भोग -विलास मानव की अशांति व पतन के
कारण हैं । यह जानते हुए भी मानव पशु के समान उनके भोग में क्यों लिप्त रहता है? उसे सांसारिक लगाव
से मुक्त करने का क्या उपाय हो सकता है ?
ब्रह्माजी अचानक किए गए इस प्रश्न का उपयुक्त उत्तर नहीं दे पाए । उन्होंने
भगवान् विष्णु का स्मरण कर उनसे सनकादिकों की जिज्ञासा का समाधान करने की
प्रार्थना की । श्रीविष्णु ने हंस के रूप में प्रकट होकर सनकादिकों की जिज्ञासा का
विस्तार से समाधान करने के लिए कई कथाएँ सुनाई । उन्होंने बताया कि इंद्रियों के
विषयों का चिंतन व विषयों में आसक्ति कभी नहीं करनी चाहिए । शरीर क्षणभंगुर है, उसे महत्त्व न देकर
आत्मचिंतन करने में ही कल्याण है । भगवान् का चिंतन करते रहने से ही सांसारिक मोह
- ममता से बचा जा सकता है ।
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