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हमेशा से दुनीया ऐसी ही है, और ऐसी ही रहेगी।

 


हमेशा से दुनीया ऐसी ही है, और ऐसी ही रहेगी।

दुनीया हमेशा से ऐसी ही रही है और ऐसी ही रहेगी, यह कभी किसी के लिए नहीं बदली है, लोगों ने स्वयं को बदला है, और जो जितना जल्दी बदल गया है वह उतना ही अधिक इस दुनिया में सफल है, यह दुनीया हमेशा से लोगों के सामने रोड़ा अटकाने का ही कार्य किया है, वही कार्य आप के साथ भी कर रहीं है, इसमें नया कुछ भी नहीं है सब कुछ पुराना है, जो इसको जितना जल्दी सीख गया है, वह उतना ही जल्दी इस दुनीया की सारी समस्या से ऊभर गया है और उसने दुनीया के लिए एक नए रास्ते का आविष्कार किया है, यहीं दुनीया जो कभी रुकावटें खड़ी करती थी वह उसी रास्ते का उपयोग करती है, जो रास्ता उसने बनाया है जिसके सामने रुकावटें दुनीया ने खड़ी की थी।

रुकावटें वास्तव में दुनीया नहीं खड़ी करती है, इसमें किसी आदमी का कोई दोष नहीं है, सत्य कहा जाए तो रूकावटें प्रकृति खड़ी करती है, क्योंकि प्रकृति बहुत ही अधिक कठोर है, इस लिए इस जड़ कहते हैं यह लोहे और पत्थर से भी अधिक कठोर है और यह बहुत अधिक निर्दयी है, इसमें किसी के प्रति कोई दया या रहम नहीं है, जिस प्रकार से एक कोकुन को बन्द कर देती है प्रकृति उसको तोड़ बाहर आने उस जीव को जो संघर्ष करना पड़ता है, उसी से वह मजबूत बनता है और इस दुनीया में अपने अस्तित्व की रक्षा के साथ अपने जीवन का निर्वाह करने में सफल होता है। यदि समय से पहले किसी ने कोकुन को तोड़ कर किसी ने उसके अन्दर के जीव को बाहर निकाल देता है, तो उस जीव का पूर्ण विकास नहीं होता है।

ठीक इसी प्रकार से जिन लोगों पर दया करके उनके अपने लोग संघर्ष करने से बचा लेते हैं उनका पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। हम यहाँ समाज में प्रायः रोज अपने जीवन में आने वाली बहुत सी परेशानियों का सामना करते हैं, और यह मान लेते हैं कि यह जीवन का स्वाभाविक स्वभाव है यहां ऐसा ही होता रहा है, हमेशा से, और उनको शाश्वत मान कर उसके सामने घुटने टेक देते हैं जैसा की लोग करते हैं, वह समस्या का समाधान नहीं करते हैं, इसके स्थान पर समस्या के साथ ही अपने जीवन का निर्वाह करते रहते हैं, और ऐसा करते करते स्वयं को पुरी तरह से इस समस्या के साथ खत्म कर देते हैं, समस्या समाप्त नहीं होती है, वह स्वयं समाप्त हो जाते हैं। हमारे समाज में कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो समस्या की प्रकृति को समझ कर उसके समस्या के समाधान के लिए कार्य करते हैं, और एक ना एक दिन अपने जीवन में उस समस्या से स्वयं को मुक्त करने में सफल हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए हम यह कह सकते हैं की पहले लोगों के पास चलने के लिए साधन नहीं थे जिससे लोग बहुत अधिक समय पैदल चलने में व्यतीत करते थे और उनका सफर भी बहुत लम्बा होता था, लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए बहुत अधिक समय लेते थे, फिर उन्हीं में से किसी एक ने यह विचार किया की इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए तो उसने ऐसे जानवरों की खोज की जो मजबूत और दौड़ने में तेज था उसके उपर सवारी करना सीखा, और अपने सफर को जल्दी पुरा करने के लिए उसने घोड़े को अपना साधन बनाया, जिससे यह यातायात का साधन पहले जानवर बने जैसे घोड़ा हाथी और नाव बाद में सायकिल मोटरसायकिल कार रेल गाड़ी हवाई जहाज इत्यादि सड़क बनाया गया तो यह सब समस्या के समाधान के रुप में चीजों का आविष्कार किया गया और आगे आज भी नये नये साधन को विकसित किया जा रहा है। रोड जो ज्यादा व्यस्त हो चुकी हैं उनके स्थान पर और चौड़ी रोड बनाई जारही है, कही कहीं बाईपास सड़क और सुरंग भी बनाई जा रही है, यह समाधान ही है। प्रकृति की रूकावटों को तोड़ कर मानव अपने लिए अपने सफर को सुगम बनाने के लिए इस पर निरंतर कार्य कर रहा है।

इसी प्रकार से हमें भी अपने जीवन में नए रास्तों का सृजन करना होगा या फिर कोई नया बाईपास बनाना होगा, जिससे हमारा सफर सुगम हो जाए और हमारा जीवन सुखमय आनंदमय हो सके, इसके लिए हमें कार्य करना होगा, बीना कार्य किये तो कुछ भी होने वाला नहीं है, पहली बात जो है वह यह है, कि हमें कार्य करना होगा, दूसरी बात कार्य को निरंतर करना होगा तीसरी बात सही दिशा में करना होगा, चौथी बात हमें अपनी पिछली गल्तीयों को बार बार दोहराना नहीं चाहिए नहीं तो हमें वहीं गलती बार बार परेशान करेगी और हम आगे नहीं बढ़ पाएगे।      

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