Ad Code

ईश्वर तेरी महिमा

🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷

दिनांक  - ०१ अक्तूबर २०२४ ईस्वी

दिन  - -  मंगलवार 

  🌖 तिथि --  चतुर्दशी ( २१:३९ तक तत्पश्चात अमावस्या )

🪐 नक्षत्र - - पूर्वाफाल्गुन ( ९:१६ तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुन )
 
पक्ष  - -  कृष्ण 
मास  - -  आश्विन 
ऋतु  - - शरद 
सूर्य  - -  दक्षिणायन 

🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:१४ पर  दिल्ली में 
🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:०७ पर 
 🌖चन्द्रोदय  -- २९:४० पर 
  🌖 चन्द्रास्त  - - १७:२८ पर

 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द  - - ५१२५
विक्रम संवत्  - -२०८१
शक संवत्  - - १९४६
दयानंदाब्द  - - २००

🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩

🔥 ईश्वर तेरी महिमा 
      ===========
   मनुष्य मात्र को यह जान लेना चाहिए कि ईश्वर न तो प्रयोग ( Experiment ) करता है और न ही संशोधन ( Modification ) करता है ।सब जीव प्रयोग करके सीखते हैं और उन्नति करते हैं।आज जिस प्रकार के भवन है, ४० वर्ष पूर्व ऐसे भवन नही होते थे, न ही ऐसे अस्त्र -शस्त्र ,वस्त्र,विमान, जलयान व कला थी।मनुष्य प्रयोग कर -करके अपनी कृतियों का विकास करता रहता है ।

   मनुष्य अपनी कृतियों के विकास के लिए प्रत्येक कार्य में संशोधन करता रहता है ।परिवर्तनशील जगत् में मनुष्य के बनाए कड़े व कठोर नियमों में भी परिवर्तन होता रहता है । प्रन्तु प्रभु ने मनुष्य की,गाय की, कुत्ते की,घोड़े की, हाथी की,तोते की,आकृति में, जल, वायु व अग्नि के नियमों में लेशमात्र भी संशोधन नही किया।

  इसलिए कि प्रभु सर्वज्ञ है, पूर्ण है, सर्वव्यापक है । वह सर्वव्यापक है तभी तो सर्वज्ञ है,  वह सर्वज्ञ है तभी तो पूर्ण है । इतना जान लेने से जगत् में बहुत सा भ्रम दूर हो जायेगा ।

   परमात्मा के बनाए संविधान ( वेद ज्ञान) में भी अभी तक किसी परिवर्तन कि आवश्यकता नही पड़ी, हमारे देश के संविधान को ही लेलो १९५० से अब तक हजारों परिवर्तन हो चुके । 

  ईश्वर के नियम अटल है यह कौन नही जानता ? विज्ञान भी सृष्टि नियमों की अटलता को मानकर ही चलता है ।जब ईश्वर के सब नियम अटल व निर्दोष है तो सृष्टि में आत्मोन्नति, सुख शान्ति को प्राप्त करने के नियम भी अटल ही मानने पडेंगे । प्रभु अपने नियम निरस्त करके नये नियम घड़ता रहता है, यह सोच एक भ्रान्ति है ।यह अन्धविश्वास है ।यह भी एक ज्ञान घोटाला है ।

🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀

   🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩

 🌷 ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्वां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीवथा मा गृध: कस्य स्विद्वनम् ।। ( यजुर्वेद ) 

🌷 अर्थ -: इस गतिशील संसार में जो कुछ भी है ईशवर उस सब में बसा हुआ है । इसलिए वह हमें सब ओर से देखता है ।यह जानकर तथा उससे डर कर दुसरों के पदार्थों को अन्याय से लेने की कभी इच्छा मत कर ।अन्याय के त्याग और न्यासचरण रूप धर्म से आनन्द को भोग ।

    🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀

 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
==============

 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏

(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮

ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , शरद -ऋतौ, आश्विन - मासे, कृष्ण पक्षे , चतुर्दश्यां
 तिथौ, पूर्वाफाल्गुन 
 नक्षत्रे, मंगलवासरे
 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे

🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁

Post a Comment

0 Comments

Ad Code