🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी🙏
दिनांक - - ०७ जनवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - मंगलवार
🌓 तिथि -- अष्टमी ( १६:२६ तक तत्पश्चात नवमी )
🪐 नक्षत्र - - रेवती ( १७:५० तक तत्पश्चात अश्विनी )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - पौष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:१५ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:४० पर
🌓 चन्द्रोदय -- १२:०५ पर
🌓चन्द्रास्त २५:२३ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥प्रश्न :- सृष्टि में पशु-पक्षी पहले पैदा होते हैं '। या मनुष्य ?
उत्तर :- सृष्टि का यह नियम है कि पहले भोग्य पदार्थ और फिर भोक्ता उत्पन्न होता है। सृष्टि में पहले वन - वनस्पतियाँ- फल -फूल अन्नादि भोग्य पदार्थ उत्पन्न होते है, फिर पशु- पक्षी उत्पन्न होते है। जब ये सब उत्पन्न हो जाते है तो अन्त में मनुष्य का अस्तित्व इस धरती पर होता है। यह कोई नयी बात नहीं । वेदों में इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य हमेशा अन्त में ही उत्पन्न होता है -
तस्माद्यज्ञात्सवर्हुत:सम्भृतं पृष्दाज्यम्।
पशुंस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ।। ( यजुर्वेद ३१\६ )
' क्योंकि वनस्पति - ओषधि और पशु - पक्षी -हाथी -घोड़े इत्यादि पशु , गौ माता आदि मनुष्य के लिए बड़े उपयोगी है, अत: मनुष्य से पहले ये सब उत्पन्न हो चुके होते हैं और अन्त में ही मनुष्योत्पत्ति होती हैं। '
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🚩‼️ आज का वेद मंत्र ‼️🚩
🌷ओ३म् उद्यानं ते पुरुष नावयानं जीवातुं ते दक्षतातिं कृणोमि।
आ हि रोहेमममृतं सुखं रथमथ जिविर्विदथमा वदासि।( अथर्ववेद ८|१|६ )
💐अर्थ :- हे जीव ! तेरा उत्थान ही उत्थान हो ; पतन कभी न हो, तेरा जीवन बल से युक्त रहे, इस शरीररुपी अमृतयुक्त सुखकारी रथ पर चढ कर धर्म अर्थ काम व मोक्ष के लिये पुरुषार्थ कर । इस शरीर के जीर्ण होने पर अर्थात बुढ़ापे में भी इसी प्रकार पुरुषार्थ व ज्ञान का प्रचार प्रसार करता रहें ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, शुक्ल पक्षे, अष्टमयां
तिथौ,
रेवती नक्षत्रे, मंगलवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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