🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - ११ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - मंगलवार
🌔 तिथि -- चतुर्दशी ( १८:५५ तक तत्पश्चात पूर्णिमा )
🪐 नक्षत्र - - पुष्य ( १८:३४ तक तत्पश्चात आश्लेषा )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - माघ
ऋतु - - शिशिर
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:०३ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:०८ पर
🌔 चन्द्रोदय -- १६:५९ पर
🌔 चन्द्रास्त - - ३०:५९ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥 संसार में मनुष्य का प्रथम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ती ही है। यें मानव चोला बड़ी कठिनाई से कई जन्मो के बाद मिला है। पता नही कितनी योनियों - साँप, बिच्छू, कुत्ता , सुअर , पशु- पक्षी आदि योनियों में भटककर, दुख भोगकर बड़े सौभाग्य से ये मानव जीवन मिला है। फिर भी हम इस अमूल्य मानव जीवन को विषय- वासनओं में, झूठ, छल , कपट , दुराचार , चोरी- जारी , व्यभिचार , मास, अण्डा व अनेक दूर्व्यसनों मे नष्ट कर देते है।
परमपिता परमात्मा ने हमें यें मानव जीवन इसलिए दिया है ताकि हम इसे ईश्वर -भक्ति सदाचार, शुभ परोपकारी कार्य , व योगाभ्यास के द्वारा ईश्वर प्राप्ती व मोक्ष पद को प्राप्त कर दुखो से छूटकर सुख व् आन्नद में रहे।
अगर बुरे कर्मों में ही जीवन बीता दिया तो बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। फिर अन्त समय पछताना पड़ता है। कितना दुर्भाग्य है कि मनुष्य को धन कमाने कि ज्यादा चिंता है लेकिन जो परलोक में धन साथ जायेगा अर्थात ईशवर - भक्ति व शुभ कर्मों का लेखा-जोखा उसकी कुछ भी चितां नही है।
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🌷ओ३म् अमेध्यपूर्ण कृमीजालसंकुलम्, स्वभावदुर्गन्धमशौचध्रवम। कलेवर- मूत्र- पुरीष- भाजनम्,रमन्ति मूढ़ा न रमन्ति पण्डिता:।।
💐 अर्थ:- अपवित्रता से पूर्ण, कीड़े आदि जाल से भरा हुआ, अनित्य अशुद्धि और दुर्गन्ध वाला शरीर जो मल मूत्र का आधार है, जिसमें मूर्ख ही रमण करते हैं आकर्षित होते हैं विद्वान व्यक्ति नही ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, शुक्ल पक्षे, चतुर्दश्यां
तिथौ,
पुष्य - नक्षत्रे,.मंगलवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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