🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - २५ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - मंगलवार
🌘 तिथि -- द्वादशी ( १२:४७ तक तत्पश्चात त्रयोदशी )
🪐 नक्षत्र - - उत्तराषाढ ( १८:३१ तक तत्पश्चात श्रवण )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - फाल्गुन
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५० पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:१८ पर
🌘 चन्द्रोदय -- २९:४३ पर
🌘 चन्द्रास्त - - १५:२६ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २०१
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥 विद्वान का बल विद्या और बुद्धि है , राष्ट्र का बल सेना और एकता है , व्यापारी का बल धन और चतुराई है , सेवक का बल सेवा और कर्तव्यपरायणता है , शासन का बल राजस्व और दण्ड विधान है , सुन्दरता का बल युवावस्था है , नारी का बल शील है , पुरुष का बल पुरूषार्थ है , वीरों का बल साहस है , निर्बल का बल शासन व्यवस्था है , बच्चों का बल रोना है , दुष्टों का बल हिंसा है , मुर्खो का बल चुप रहना है , और भक्तों का बल ईशवर की कृपा है ।
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🌷 न जातु काम: कामानामुपभोगेन शाम्यति।
हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्द्वते ।।( महर्षि मनु)
🌷 यह निश्चय है कि जैसे अग्नि में इन्धन और घी डालने से बढ़ता जाता है वैसे ही कामों के उपयोग से काम शान्त कभी नही होता किन्तु बढ़ता ही जाता है । इसलिए मनुष्य को विषयासक्त कभी नही होना चाहिए ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, कृष्ण पक्षे, द्वादशयां - तिथौ, उत्तराषाढ - नक्षत्रे, मंगलवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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