🚩‼️ओ3म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - 24 मार्च 2025 ईस्वी
दिन - - सोमवार
🌘तिथि--दशमी (29:05 तक दशहरा)
🪐 नक्षत्र - - उत्तराषाढ ( 28:27 तक माप श्रवण )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - चैत्र
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः 6:20 पर दिल्ली में
🌞सूरुष - - सायं 18:35 पर
🌘चन्द्रोदय--27:34 पर
🌘 चन्द्रास्त - - 13:07 पर
सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,125
कलयुगाब्द - - 5125
सं विक्रमावत - -2081
शक संवत - - 1946
दयानन्दबद - - 201
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🚩‼️ओ3म्‼️🚩
🔥भगवद्गीता :-
पूर्वा साय जपं तिष्ठन् नैशम् एन: व्यपोहति।
पश्चिमां तु समासिनो मलं हन्ति दिवाकृतम् (मनुस्मृति)
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(दो सांकेतिक काल हैं - प्राप्त: और कहते हैं जब दिन और रात मिलते हैं) मानव प्राप्त: काल साएह में रात के समय आए मानसिक दोषों को दूर करें।
प्रार्थना :-
किसी भी वस्तु को मूल रूप से माँगने से पहले उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए उसके अनुसार प्रयास करना आवश्यक है। विधार्थी भगवान से प्रार्थना करें कि वह उसकी परीक्षा में पास कर सके, तो विधार्थी का कर्तव्य है कि वह उसकी परीक्षा की तैयारी पूरी मेहनत से करे। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें बुद्धि तीक्ष्ण दे तो उसके लिए हमें भी ऐसा प्रयास करना चाहिए जिसमें बुद्धि तीक्ष्णता हो- खान, पान, ब्रह्मचर्य का पालन, अच्छी-अच्छी शिक्षा का अभ्यास आदि। यदि हम स्वयं प्रयास न करें और ईश्वर से माँगते रहें तो हमेशा कुछ न रहेगा। जो भगवान के समुद्री जहाज़ पर विराजमान रहते हैं, उनमें से कुछ भी प्राप्त नहीं होता क्योंकि ईश्वर का परमार्थ (मेहनत) करना आसान है। ईश्वर उसी की सहायता करता है जो आपकी सहायता करता है। जो गुड़-गुड़ खा रहा है, उसे गुड़ मिल नहीं रहा है। उसके प्रयास से उसे कभी-कभी गुड़ मिल ही जाता है।
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जब ईश्वर की आराधना करनी हो तब शुद्ध एकांत स्थान पर आसन लगा कर अंतिम स्थान पर जाकर बैठ जाएं। सभी इंद्रियों को बाहरी दुनिया से रोक कर पहले प्राणायाम करें। फिर अपने मन को हृदय, नाभि, कंठ, नासिका, भ्रकुटी (जहां तिलक या बिंदी लगाई जाती है) और नासिका आदि किसी एक स्थान पर स्थिर करके अपनी आत्मा और परमात्मा का चिंतन कर परमात्मा में मगन हो जाए। आत्मा और अंतःकरण से सब कुछ पवित्र हो जाता है और मनुष्य का एकमात्र सत्याचरण ही समाप्त हो जाता है।
अंत:करण की चार वृत्तियां हैं-मन, बुद्धि, चित्त और आत्मा अंत:करण की सुख-दुःख आदि के कारण को विचारने वाली वृत्ति का नाम मन है, इंद्रियों के द्वारा बाहरी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने वाली वृत्ति का नाम बुद्धि है, व्यापार आदि के संबंध में विचारने का नाम चित्त और सत्ता है और अपनी-अपनी कहानियों से पता चलता है कि उस वृत्ति का नाम मन है।
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🚩‼️आज का वेद मंत्र‼️🚩
🔥ओ3म् यदाकुतात् समसुस्रोद्ध्रिदो वा मनसो वा सम्भृतं चक्षुषो वा।
तदनु प्रेत सुकृतामु लोकं यत्रऽऋषयो जग्मु: प्रथमजा: पुराणा:॥ यजुर्वेद आठ-58॥
💐हे विद्वान मनुष्य, तुम सत्य और असत्य के अंतर को ज्ञान के द्वारा समझो। ज्ञान का प्रवाह आत्मा के प्रकाश से, उत्तम भावनाओं से, हृदय से, मन से, बुद्धि से, और इन्द्रियों पर नियंत्रण से होता है। तुम सत्य और उत्तम कर्म से प्रेम करने वाले बनो। तुम उस पथ पर जाओ जिस पर पवित्र पूर्वज चले गए थे।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पंचांग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्टयादिसंवत-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि-नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ3म् तत्सत् श्री ब्राह्मणो दये द्वितीये प्रहर्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टविंशतितम कलियुगे
भ कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-शन्नवतिकोति-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाष्टसहस्र- पंचरविंशत्युत्तरशतमे ( 1,6,08,53,125 ) सृष्ट्यबडे】【 एकाशीत्युतत्तर-द्विशहस्त्रतमे (2081) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतमे ( 201) दयानन्दबदे, काल -संवत्सरे, रवि - उत्तरायणे, बंसत -ऋतौ, चैत्र - मासे, कृष्ण पक्षे, दशम्यां - तिथौ, उत्तराषाढ़ा - नक्षत्रे, सोमवासरे, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भारतखंडे...प्रदेशे.... शहरे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान्।( पितामह).
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