🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1356
*ओ३म् अता॑रिष्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्योषा उ॒च्छन्ती॑ व॒युना॑ कृणोति ।*
*श्रि॒ये छन्दो॒ न स्म॑यते विभा॒ती सु॒प्रती॑का सौमन॒साया॑जीगः ॥*
ऋग्वेद 1/92/6
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
सर्व दूर हुए तम रात्रि के
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
झिलमिलाती उषा ने फैलाया प्रकाश
अनुप्राणित हुए धरती-आकाश
लोगों के मन का भय भागा
जागा हर्षोल्लास
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
सौमनस्य का उषा दे रही सन्देश
प्रेम-भावों का जागा हृदयों में उन्मेष
हटा के मन से द्वेष-कालिमा
हुआ सौहार्द प्रवेश
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
यह आध्यात्मिक ऊषा भी अवतीर्ण हुई
तामसिकता ह्रदय की विदीर्ण हुई
आत्मा मन प्राणेन्द्रियाँ सब
ज्योतिर्मयी हो गईं
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
निर्मल सात्विक विचारधारा बहने लगी
सौमनस्य की प्रेरित लहरें उठने लगीं
आनन्ददायिनी सुखद सुहानी
कैसी अद्भुत घड़ी
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
सर्व दूर हुए तम रात्रि के
उषा प्रस्फुटित हुई है देखो प्राची में
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :-- *
*राग :- वृंदावनी सारंग*
मध्यान्ह काल, ताल कहरवा ८मात्रा
*शीर्षक :- हमने तमस् को पार कर लिया है*
वैदिक भजन ९०९ वां
*तर्ज :- *
0246-846-0247
शब्दार्थ :-
प्रस्फुटित = खिला हुआ, विकसित
अनुप्राणित = प्रेरित, समर्पित
सौमनस्य = पारस्परिक सद्भाव
उन्मेष = प्रकट होना
कालिमा = कालापन, कलंक
सौहार्द = स्नेह, प्रेम, हार्दिक भाव
अवतीर्ण = उतरा हुआ, प्रादुर्भाव
जीर्ण = कमजोर, शिथिल
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*
हमने तमस् को पार कर लिया है
देखो प्राची के गगन में उषा प्रस्फुटित हुई है। चिरकाल से व्याप्त रात्रि का अन्धकार छिन्न-भिन्न हो गया है। तमोमयी निशा से हम पार हो गए हैं। झिलमिलाती हुई उषा ने सर्वत्र प्रकाश- ही-प्रकाश बिखेर दिया है। रात्रि के अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सांप रस्सी और रस्सी सांप प्रतीत हो रहे थे। लोगों का मन भयाक्रांत था कि कहीं यह अंधेरा हमें ही तो नहीं लील लेगा। पूर्व दिशा के आकाश में उषा के पदार्पण करते ही सब भय समाप्त हो गया है। अपना सौंदर्य बिखेरती हुए आच्छादित अंगों वाली किसी शालीन नारी के समान यह भासमान उषा मुस्कुरा रही है। यह सुमुखी उषा अपने कान्त रश्मिपुंज को चारों ओर बिखराती हुई मानो सबको सौमनस्य का, सौहार्द का दिव्य संदेश दे रही है। हम भी निर्मल उषा के समान अपने हृदयों को निर्मल करके पारस्परिक प्रेम भाव को बढ़ाते हुए संसार से विद्वेष की कालिमा को हटाकर ज्ञान और सौहार्द का प्रकाश फैलाएं। हम भी निर्मल उषा के समान अपने हृदयों को निर्मल करके पारस्परिक प्रेमभाव को बढ़ाते हुए संसार से विद्वेष की कालिमा को हटाकर ज्ञान और सौहार्द का प्रकाश फैलाएं।
पर उषा द्वारा प्राप्त होने वाले वैदिक संदेश की इतिश्री इस भौतिक उषा में ही नहीं हो जाती। भौतिक उषा के समान हमारे मानस में छिटकने वाली एक अध्यात्मिक उषा भी है। जब हमारे हृदय पटल पर अवतीर्ण होती है तब उसके आते ही सब तामसिक विचार भी विध्वस्त हो जाते हैं; आत्मा मन प्राण ज्ञानेंद्रिय सब प्रबल प्रकाश से उद्भासित हो उठते हैं। निर्मल सात्विक विचार धारा बहने लगती है। आध्यात्मिक स्तर का पारस्परिक सौमनस्य आप्लावित होने लगता है।
आहा, कैसी आनंददायिनी घड़ी है। हम तमस् से पार हो गए हैं, दिव्य उषा का मंजुल प्रकाश हमें प्राप्त हो रहा है। हे उषा! तुम्हारा स्वागत है।
🎧 909वां वैदिक भजन🕉️👏🏽

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