🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - ०२ मार्च २०२५ ईस्वी
दिन - - रविवार
🌒 तिथि -- तृतीया ( २१:०१ तक तत्पश्चात चतुर्थी )
🪐 नक्षत्र - - उत्तराभाद्रपद ( ८:५९ तक तत्पश्चात रेवती [ ३०:३९ से अश्विनी ]
पक्ष - - शुक्ल
मास - - फाल्गुन
ऋतु - - बसंत
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:४५ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:२२ पर
🌒 चन्द्रोदय -- ८:५ पर
🌒 चन्द्रास्त - - २१:०३ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २०१
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🚩|| ओ३म् ||🚩
🔥बसंत ऋतु चर्चा!
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बसंत ऋतु एक सुहानी और मनमोहक ऋतु होती है। इस ऋतु के सुहाने पन का अनुभव हमें वातावरण और जलवायु से खुदबखुद होता है क्योंकि इन दिनों वायु बड़ी सुहानी और सुगन्धित हो जाती है जिसमें आम के बोर (मंजरी) की सुगंध व्याप्त होती है। वृक्षों पर कोयल के कूकने की मीठी आवाज़ सुनाई देती है, मौसम न ज्यादा उष्ण होता है, न ज्यादा शीतल होता है। सब दिशाओं में नयी कोंपलों और फूलों से लदे वृक्ष शोभायमान रहते हैं। इन सभी कारणों से बसंत "ऋतु "को ऋतुराज भी कहा जाता है।
बसंत ऋतु दरअसल शीतकाल और ग्रीष्मकाल का 'सन्धिकाल' होती है जैसे किशोरावस्था बचपन और जवानी का सन्धि काल होती है, प्रौढ़ावस्था जवानी और बुढ़ापे का सन्धिकाल होती है और शाम का वक़्त दिन तथा रात का सन्धिकाल होता है। इसलिए शाम के वक़्त को हम ' सन्ध्या काल भी कहते है।
शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु का सन्धि समय होने से बसंत ऋतु में थोड़ा - थोड़ा असर दोनों ऋतुओं का होता है। प्रकृति ने यह व्यवस्था इसलिए की है ताकि प्राणी जगत शीत काल को छोड़ने और ग्रीष्म काल में प्रवेश करने का अभ्यस्त हो जाए।ऐसा ही अन्य सन्धि कालों में भी होता है। जैसे बच्चा एक दम से जवान नही होता, जवान एक दम से बूढ़ा नहीं होता और दिन एक दम से रात में परिवर्तित नहीं होता उसी तरह शीत काल भी एक दम से खत्म होकर ग्रीष्म काल एक दम से शुरू नही होता। लिहाज़ा बसंत ऋतु सन्तुलन बनाने की ऋतु है क्योंकि अब ऋतु परिवर्तन के कारण हमारे आहार-विहार में भी धीरे-धीरे परिवर्तन करना जरूरी हो जाता है ताकि हम आने वाली ग्रीष्म ऋतु के साथ समायोजन कर सके।
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🔥बसंत - ऋतु की हवन सामग्री
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छरीलावा २ भाग, पत्रज २ भाग, मुनक्का ५ भाग, लज्जावती एक भाग, शीतल चीनी २ भाग, कचूर २.५ भाग, देवदारू ५ भाग, गिलोय ५ भाग, अगर २ भाग, तगर २ भाग, केसर १ का ६ वां भाग, इन्द्रजौ २ भाग, गुग्गुल ५ भाग, चन्दन (श्वेत, लाल, पीला) ६ भाग, जावित्री १ का ३ वां भाग, जायफल २ भाग, धूप ५ भाग, पुष्कर मूल ५ भाग, कमल-गट्टा २ भाग, मजीठ ३ भाग, बनकचूर २ भाग, दालचीनी २ भाग, गूलर की छाल सूखी ५ भाग, तेज बल (छाल और जड़) २ भाग, शंख पुष्पी १ भाग, चिरायता २ भाग, खस २ भाग, गोखरू २ भाग, खांड या बूरा १५ भाग, गो घृत १० भाग।
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🕉🙏 आज का वेद मंत्र 🕉🙏
🌷ओ३म् स न: पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव।सचस्वा न: स्वस्तये । (ऋग्वेद १|१|९ )
💐 अर्थ:- हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर! जैसे पुत्र के लिए पिता वैसे आप हमारे लिए उत्तम् ज्ञान और सुख देने वाले हैं ।आप हम लोगों को कल्याण के लिए सदा युक्त करें ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधीकद्विशततमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , बंसत -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, शुक्ल पक्षे, तृतीयायां - तिथौ, उत्तराभाद्रपद नक्षत्रे, रविवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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