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ईश्वर प्राप्ति के कई साधन होते हैं,

 🚩‼️ओ3म्‼️🚩


🕉️🙏नमस्ते जी

दिनांक - 28 मार्च 2025 ईस्वी

दिन - - शुक्रवार 

   🌘तिथि--चतुर्दशी (19:55 तक की खरीदारी)

🪐 नक्षत्र - - पूर्वाभाद्रपद ( 22:09 तक का उत्तराभाद्रपद )

पक्ष - - कृष्ण 

मास - - चैत्र 

ऋतु - - बसंत 

सूर्य - - उत्तरायण 

🌞सूर्योदय - - प्रातः 6:16 दिल्ली में 

🌞सूरुष - - सायं 18:37 पर 

🌘 चन्द्रोदय -- 30:09 पर 

🌘 चन्द्रास्त - - 17:32 पर 

 सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,125

कलयुगाब्द - - 5125

सं विक्रमावत - -2081

शक संवत - - 1946

दयानन्दबद - - 201



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 🚩‼️ओ3म्‼️🚩

   🔥ईश्वर प्राप्ति के कई साधन होते हैं, लेकिन सभी साधकों का अंतिम ध्यान है और ध्यान से समाधि ही होगी। किसी भी आध्यात्मिक साधन का बार-बार प्रयोग करने से व्यक्तिगत आगे बढ़ जाता है और साधन का प्रयोग न करने से व्यक्तिगत प्रगति में खुद ही संस्थागत बन जाता है।

  हम संसार में अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का फल भोगने और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने या दुःखों से मुक्ति पाने के लिए आये हैं। इंसान जो बोता है वही काटता है। यदि टेल्स बोया है तो टेल्स ही उत्पन्न होता है। यदि कर्म शुभ हैं तो फल भी शुभ होगा और अशुभ कर्मों का फल अशुभ ही होगा। मनुष्य का शरीर अनेक ज्ञान व विज्ञान का समावेश परमात्मा ने बनाया है। मनुष्य अपने व अन्य प्राणियों के शरीर की रचना नहीं कर सकता। 

   जो विद्वान सत्य आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त होते हैं वे ईश्वर व जीवात्मा के दर्शन, स्वरूप तथा भिन्न गुण, कर्म तथा स्वभाव को जानते हैं। जो भौतिक विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है या अल्पशिक्षित होता है वह स्वाध्याय के बिना, उपदेशों के श्रवण वा सत्संग के ईश्वर और जीवात्मा को यथार्थ रूप में नहीं जानता। मत-मतान्तरों के ग्रन्थ अविद्या से युक्त होने के कारण उन्हें ईश्वर का सत्य ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। इस कारण से उनके ईश्वर और जीवात्मा के सत्य ज्ञान से बहस होती है और परिणामस्वरूप ईश्वर का ज्ञान न होने के कारण ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हो सकता है। 

  ईश्वर की प्राप्ति के लिए मनुष्य को वैदिक साहित्य का अध्ययन करना होता है जिसमें वेद व इसके भाष्य सहित उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, तथा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ग्रंथों का सर्वोपरि स्थान है। इन ग्रन्थों के अध्ययन से ईश्वर को जाना जाता है और योग साधना से मनुष्य को ध्यान-समाधि प्राप्त होती है जिससे ईश्वर का ज्ञान प्राप्त होता है, प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है। आर्य समाज के अन्य नियमों में ऋषि दयानन्द ने ईश्वर के सत्यस्वरूप सहित उनके गुण, कर्म व स्वभावों का वर्णन किया है। इस नियम को कंठ वा स्मरण कर इस चिंतन से मनुष्य ईश्वर के सत्यस्वरूप को जाना जाता है। 

   ईश्वर का मुख्य व निज नाम ओ3म् है। ओ3म् के जप तथा गायत्री मन्त्र के अर्थ जिसमें जप से भी मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर अपने जीवन को दुःखों से मुक्ति एवं सुखों से युक्त कर सकते हैं। मनुष्य का जन्म ईश्वर व जीवात्मा को जानकर ईश्वर की पूजा करने से दुःखों का निवारण तथा सुखों की प्राप्ति होती है। हमारे वैदिक ऋषियों ने ईश्वर के स्वरूप और पूजा-अर्चना के लिए कई सिद्धांतों और ग्रंथों की रचना की है। ईश्वर और आत्मा को सम्मिलित करते हुए ईश्वर के कर्म-फल निर्धारण को जान लेने से मनुष्य के दुःखों का कारण बनता है और अशुभ कर्मों का त्याग कर दुःखों से मुक्त हो जाता है और शुभ कर्मों को मिलाकर उनसे मिलने वाले सुखों की प्राप्ति होती है - जन्मान्तरों में सुखों की प्राप्ति होती है। 

  आध्यात्मिक पथ पर कभी सफलता तो कभी असफलता का दौर बना रहता है। वाद्ययंत्र का प्रयोग करने से सफलता और अनुचित ढंग से प्रयोग करने से विफलता होती है।

  ध्यान रहे कि जब कभी भी असफलता मिलती है तो व्यक्ति निराश ना हो जाता है क्योंकि आशावादी बनने से अधिक नुकसान होता है, आशावादी व्यक्ति कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है। जब भी भूल हो जाए तो उसका प्रायश्चित(पश्चाताप) करके यानी कोई पेनल्टी डेक से फिर उस कार्य को खरीदें। व्यवसाय करने का लाभ यह है कि व्यवसाय करने का व्यवसाय समाप्त हो जाता है और व्यक्ति सावधान हो जाता है।

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🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🚩🕉️

  🌷ओ3म् शि॒वो भू॒त्व मह्य॑मग्ने॒ऽअथो॑ सीद् शिववस्त्वम्। शिवाः कृत्वा दिशाः सर्वः॒ स्वं योनि॑मि॒हास॑दः॥17॥

   💐भावार्थ - राजा को अपने धर्मात्मा होके पेज के उपदेशों से धार्मिक कर और न्याय की गद्दी पर बैठ कर धार्मिक न्याय करना चाहिए॥17॥

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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पंचांग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏

(सृष्टयादिसंवत-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि-नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮

ओ3म् तत्सत् श्री ब्राह्मणो दये द्वितीये प्रहर्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टविंशतितम कलियुगे

भ कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-शन्नवतिकोति-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाष्टसहस्र- पंचरविंशत्युत्तरशतमे ( 1,6,08,53,125 ) सृष्ट्यबडे】【 एकाशीत्युतत्तर-द्विशहस्त्रतमे (2081) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतमे ( 201) दयानन्दबदे, काल -संवत्सरे, रवि - उत्तरायणे, बंसत -ऋतौ, चैत्र - मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां - तिथौ, पूर्वाभाद्रपद - नक्षत्रे, शुक्रवार, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भारतखंडे...प्रदेशे.... राज्ये...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान्।( पितामह).

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