🙏 *आज का वैदिक भजन* 🙏 1358
*भाग 2/2*
*ओ३म् नम॒ इदु॒ग्रं नम॒ आ वि॑वासे॒ नमो॑ दाधार पृथि॒वीमु॒त द्याम्।*
*नमो॑ दे॒वेभ्यो॒ नम॑ ईश एषां कृ॒तं चि॒देनो॒ नम॒सा वि॑वासे ॥८॥*
ऋग्वेद 6/51/8
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
रास्ते भी प्रायश्चित के खुल गए
है प्रचूर शक्ति इस नमन में
कितने नमितों को ईश्वर भी मिल गए
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
द्यावा पृथ्वी से लेकर मैं शिक्षा
विप्रों पर है नमन की इक्षा
उनके सद्गुण पालन की है एषा
धन्य मानूँ जो स्तुति योग्य मिल गए
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
मात-पिता देव गुरु हैं हितैषी
वे भी नमितों के रहते आपेक्षी
उनके चरणों में शीश नवाऊँ
धन्य धन्य हूँ अनुरक्त मिल गए
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
हमने यदि कोई अपराध किया है
या हृदय को दु:खा भी दिया है
क्षम्य भाव से करते शर्मिंदा
आशुतोष हृदय उनके मिल गए
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
देवजन हैं नमन के वशवर्ती
आर्द्र-भावों से उनको अपनाएँ
भूलों पर वे प्रायश्चित कराते
भाग्य से ऐसे सुधी लोग मिल गए
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
रास्ते भी प्रायश्चित के खुल गए
है प्रचूर शक्ति इस नमन में
कितने नमितों को ईश्वर भी मिल गए
झुकते-झुकते दुरित पाप धुल गए
*रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :-- *
*राग :- जोगिया*
गायन समय प्रातः काल का प्रथम प्रहर, ताल नाट्य ८ मात्रा
*शीर्षक :- नमः ने द्यावा पृथ्वी को धारा है*
*तर्ज :- *
847-0248
शब्दार्थ :-
इक्षा = इच्छा
आपेक्षी = अपेक्षा करने वाले
अनुरक्त = अनुराग युक्त प्रेमी
आशुतोष = शीघ्र पिघलने वाले
आर्द्रभाव = कोमल भाव
सुधी = बुद्धिमान
*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇*
नमः ने द्यावा पृथ्वी को धारा है
'नमः'के अंदर बहुत बड़ी शक्ति है।'नम:' में नमस्कार, झुकना किसी को बड़ा मानना किसी की शरण में जाना,अपराध स्वीकार करना, प्रायश्चित करना, किसी अवसर पर झुककर अपने आप को बचा लेना आदि अनेक अर्थ समाविष्ट हैं।
'नम:' ने ही द्यावापृथ्वी को धारण किया हुआ है। यदि भूमि सूर्य के सम्मुख नज़र ना होती, उसे महत्वपूर्ण मानकर उसके चारों ओर परिक्रमा ना करती, तो वह किसी भी आकाशीय पिंड से टकराकर कभी का अपना अस्तित्व खो चुकी होती। पृथ्वी के क्षेत्र में विद्यमान वृक्ष-वनस्पतियां नदियां,बादल आदि भी झुक कर ही अपनी सत्ता बनाए हुए हैं। जब तीव्र झंझावात आता है उस समय वृक्ष यदि अपनी शाखाओं को झुका ना लें, तो वे टूट कर एक ओरर जा गिरें। नदियों ने भी झुकने का व्रत धारण किया हुआ है। वे नीचे की ओर बहती हुई, अपने अमृत सलील से धरा को सींचती हुई समुद्र में जा मिलती है। समुद्र से जल-वाष्प बनकर जो बादल अपनी ऊर्ध्वयात्रा आरम्भ करते हैं, वे नमः का व्रत ले, जल- भार से नत हो, भूमि पर बरस जाते हैं। अनेक बार संसार के बड़े-बड़े ज्योतिषियों ने गणना करके जहां भविष्यवाणी की है कि अमुक वर्ष अमुक दिन और अमुक समय पर हमारा भूमंडल या अन्य कोई ग्रह उपग्रह हमको आकाशीय पिंड से टकराकर चूर चूर हो जाएगा। किन्तु हमने देखा कि समय आने पर वह पिंड थोड़ा सा झुक गया और विनाश टल गया। सूर्य भी यदि झुके नहीं तो दिवस रात्रि के चक्कर का प्रवर्तन ही समाप्त हो जाए।
द्यावापृथ्वी के 'नम:' से शिक्षा लेकर मैं भी नमः को अपनाता हूं। मैं भी विद्वज्जनों के प्रति झुकता हूं, उन्हें नमस्कार करता हूं, उनकी चरण-रज का स्पर्श कर अपने आप को धन्य मानता हूं। माता देवी है, उसके चरणों में लोटता हूं। पिता देव हैं उनको शीश नवाता हूं। गुरुजन देव हैं, उन्हें प्रणाम करता हूं। अतीत और वर्तमान काल के अन्य महापुरुष देव है उनकी वन्दना करता हूं। देवजन नमः के वशवर्ती हैं, 'नम:' को देखकर पसीज उठते हैं। अतः मुझसे यदि कोई अपराध हो गया है तो मैं 'नमः' को धारण कर शुद्ध हृदय से अपना अपराध उनके सम्मुख निवेदन कर देता हूं। उस अपराध के लिए क्षमा कर देते हैं। वे कहते हैं कि प्रायश्चित के आंसुओं से तुम्हारा पाप धुल गया।
आओ, हम सब 'नमः' की स्तुति करें, 'नम': को अपने अन्दर धारण करें और 'नम:' के द्वारा ही ऊंचे उठें।
🎧910Bवां वैदिक भजन🕉️👏🏽

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