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उद्यमशील समर्पण श्रद्धा पुरूषार्थ करो*

 


*🚩‼️ओ3म्‼️🚩*

*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*

दिनांक - - 11 अप्रैल 2025 ईस्वी

दिन - - शुक्रवार 

   🌔तिथि--चतुर्दशी (27:21 तक पूर्णिमा)

🪐 नक्षत्र - - उत्तराफाल्गुन (पंद्रह:दस लाख लाख)

पक्ष - - शुक्ल 

मास - - चैत्र 

ऋतु - - बसंत 

सूर्य - - उत्तरायण 

🌞 सूर्योदय - - सुबह 6:00 बजे दिल्ली में 

🌞सूरुष - - सायं 18:45 पर 

🌔 चन्द्रोदय -- 17:26 पर 

🌔 चन्द्रास्त - - 28:26 पर 

 सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,126

कलयुगाब्द - - 5126

सं विक्रमावत - -2082

शक संवत - - 1947

दयानन्दबद - - 201

🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀

 *🚩‼️ओ3म् ‼️🚩*

*🔥उद्यमशील समर्पण श्रद्धा पुरूषार्थ करो* 

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     ईश्वर ने मनुष्य को परिश्रम के लिए, पुरुषार्थ के लिए, कर्म को बनाया है ताकि धर्म मार्ग पर चलते हुए तप कर सके। यही मानव जीवन का ध्येय है। जो भी कर्म मनुष्य अपने लिए श्रम करता है उसे ही करना चाहिए, टैप भी करना चाहिए। लगन, निष्ठा, एकाग्रता ही तप है। इसी से कर्म सफल होता है। हम अच्छे कर्म कर सकते हैं या बेल, श्रम और टैप के बिना, पुरूषार्थ के बिना कुछ भी नहीं कर सकते।

    दिन में चौबीस घंटे होते हैं। गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं। गायत्री मंत्र का देवता है जो हमें प्रेरणा देता है कि सूर्य के समान युवा बनों। सदैव अपने कर्म पथ पर अविचल बढ़ते रहो। कैसा भी दोस्त, कितना भी बड़ा भाई, पर हम रुके नहीं।

      लेकिन आज भी इंसान के रग-रग में समाता जा रहा है। वह बिना कुछ सीखे यहां ही सब कुछ पा लेना चाहता है। उनका शिलालेख विखंडित हो रहा है। उसका विचार है कि ईश्वर की जो भक्ति होगी वही होगी इसलिए कर्तव्यपालन का श्रम करने की लम्बी भूखा बैठना या देवी देवताओं की मनौती ही ठीक है। वह यह भूल गया है कि रूढ़िवादी का जन्मदाता वह स्वयं है। अपने भाग्य का निर्माण भी वह स्वयं ही करती है। श्रम से बचने के लिए वह कई कंपनियों की खोज कर रहा है और असफलता को भाग्य के मत्थे के रूप में वह संतोष करना चाहता है। उसके हिस्से का एकमात्र प्रारूप ही आता है। पुरुषार्थ करने से विपरीत भी हमारे अनुकूल होते चले जाते हैं। भगवान भी पुरुषार्थी की सहायता करता है और असफलता में भी सफलता प्राप्त करता है।

     अलस्य पुरूषार्थ का प्रबल शत्रु है। अलस्य सारे दुर्गुणों का मूल है। यह मनुष्य के विकास में बहुत बड़ा विधान है और जीवन मूल्य को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। अल्फ़ी व्यक्ति कार्य में तलमटोल करता है जो शनैः शनैःसे बेकार बना देता है। उसे सर्वत्र फ्रेम हाथ ही दिखता है। विनाशकारी मनुष्य का विवेक भी नष्ट हो जाता है और वह स्कॉटलैंड से स्कॉटलैंड का साहसिक कार्य भी नहीं करता है। जो भी क्षमता पहले से मौजूद है वह भी मंद और कुंड है। वह कुछ करना तो चाहता है पर अलस्या वश कुछ कर नहीं पाता। विचार को कार्यरूप में परिणत करने का उत्साह ही नहीं जागता। जो अलस्या मूल्यवान समय नष्ट नहीं करते, समय का सदुपयोग करते हैं, सफलता उनका चरणबद्घ होती है। जो अपना कल्याण चाहते हैं, कीर्ति चाहते हैं, होलिका के भयंकर दोष को अपने जीवन से मूल रूप से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए और उद्यमशील और मितभाषी बनकर श्रद्धा परक पुरुष

 रहना चाहिए। इसी से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है 

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 *🚩‼️आज का वेद मंत्र‼️🚩*

*🔥ओ3म् यदाकुतात् समसुस्रोद्ध्रिदो वा मनसो वा सम्भृतं चक्षुषो वा।*

*तदनु प्रेत सुकृतमु लोकं यत्रऽऋषयो जग्मु: प्रथमजा: पुराण:॥ यजुर्वेद 18-58॥*

💐हे विद्वान मनुष्य, तुम सत्य और असत्य के अंतर को ज्ञान के द्वारा समझो। ज्ञान का प्रवाह आत्मा के प्रकाश से, उत्तम भावनाओं से, हृदय से, मन से, बुद्धि से, और इन्द्रियों पर नियंत्रण से होता है। तुम सत्य और उत्तम कर्म से प्रेम करने वाले बनो। तुम उस पथ पर जाओ जिस पर पवित्र पूर्वज चले गए थे।

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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पंचांग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏

(सृष्टयादिसंवत-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि-नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮

ओ3म् तत्सत् श्री ब्राह्मणो दये द्वितीये प्रहर्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टविंशतितम कलियुगे

कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-शन्नवतिकोति-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाष्टसहस्र- षड्विंशत्य्युत्तरशतमे ( 1,6,08,53,126 ) सृष्ट्यबडे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विशहस्त्रतमे (2082) वैक्रमब्दे 】 【 मदद्विशतीतमे ( 201) दयानन्दबदे, काल -संवत्सरे, रवि - उत्तरायणे, बसंत -ऋतौ, चैत्र - मासे, शुक्ल - पक्षे, चतुर्दश्यां तिथौ, उत्तराफाल्गुन - नक्षत्रे, शुक्रवासरे, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भारतखंडे...प्रदेशे.... राज्ये...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान्।( पितामह)... (पिता)।

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