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मानव समाज के साथ व्यवहार करने वाला




 🚩‼️ओ3म्‼️🚩

🕉️🙏नमस्ते जी

दिनांक - 29 अप्रैल 2025 ईस्वी

दिन - - मंगलवार 

   🌒 दिनांक-- द्वितीया ( 17:41 तक चतुर्थ तृतीया )

🪐 नक्षत्र - - कृत्तिका (18:47 तक इंच रोहिणी )

पक्ष - - शुक्ल 

मास - - वैशाख 

ऋतु - -ग्रीष्म 

सूर्य - - उत्तरायण 

🌞सूर्योदय - - प्रातः 5:42 दिल्ली में 

🌞सूरुष - - सायं 18:55 पर 

🌒चन्द्रोदय--6:29 पर 

🌒 चन्द्रास्त - - 21:03 पर 

 सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,126

कलयुगाब्द - - 5126

सं विक्रमावत - -2082

शक संवत - - 1947

दयानन्दबद - - 201

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 🚩‼️ओ3म्‼️🚩

  🔥मानव समाज के साथ व्यवहार करने वाला 

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  आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले व्यक्ति को चार प्रकार के अनुयायियों के साथ इन चार प्रकारों का व्यवहार करना चाहिए। जिससे मन आकर्षक रहता है और सबसे प्यारा मन शीघ्र एकाग्र हो जाता है। मन के एकाग्र से ध्यान लगाया जाता है। ध्यान पर समाधिस्थ रहने से समाधि की अवस्था प्राप्त होती है।

  समाज में जो मनुष्य सुख और सुख के शिक्षक से स्नातक है, उसके साथ मित्रता का व्यवहार करना चाहिए। मित्रता का व्यवहार करने से मन आकर्षित होता है तथा सुख साधन मनुष्य का प्रति द्वेष नहीं होता। यदि उसके साथ मित्रता का व्यवहार न हो तो तृष्णा - द्वेष हो सकता है, क्योंकि मन में हलचल पैदा हो जाएगी जिससे मन एकाग्र नहीं होगा। इसलिए सुखी मनुष्य के साथ मित्रता का व्यवहार करना चाहिए।

  अन्य प्रकार के दु:खी और साधन में प्रयोग के साथ चिकित्सा का व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करने से परोपकार की भावना पैदा होती है। दु:खी मनुष्य के दु:खों को दूर करने से और सुख सलाह से आनंद की भावना होती है और परोपकार करने से मन निर्मल हो जाता है।

  इसके विपरीत जब मनुष्य दु:खियों की सहायता नहीं करता है तो उसका मन कठोर और घृणा से भरा होता है, ऐसा मन एकाग्र की स्थिति में नहीं आता है। इसलिए दु:खियों पर दया की भावना रखनी चाहिए।

  तीसरे प्रकार के विद्वान, धार्मिक, महात्मा उपदेश के साथ हर्ष की भावना रूपी व्यवहार करना चाहिए यानी उन्हें देखकर हर्ष महसूस करना चाहिए। यदि महान चित्रों के साथ हर्ष का व्यवहार न किया जाए तो उनका द्वेष हो सकता है और द्वेष से दु:ख उत्पन्न होता है तथा दु:ख से अप्रसन्नता उत्पन्न होगी जिससे मन एकाग्र नहीं हो सकता। इसलिए महात्माओं और तपस्वियों के साथ आनंद और हर्ष की भावना उत्पन्न होनी चाहिए।

  चौथे प्रकार के अत्याचारी, अधर्मी संप्रदाय के साथ अदृश्य का व्यवहार करना चाहिए। उनका प्रति न राग करना चाहिए और न द्वेष करना चाहिए अर्थात उनके साथ न मित्रता का व्यवहार करना चाहिए और न शत्रुता का व्यवहार करना चाहिए।

मूल रूप से सुखी मनुष्य में मित्रता की भावना करने से, दु:खी प्रार्थना में दया की भावना करने से, धार्मिक मनुष्य में मित्रता की भावना करने से और पापियों में दृष्टि की भावना करने से चित्त के राग, द्वेष, घृणा, ईष्या और क्रोध आदि मेलों का नाश चित्त शुद्ध-निर्मल हो जाता है। मानव समाज में इस प्रकार से निवास करते हुए आध्यात्मिक प्रगति में सफलता मिलती है।

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 🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🚩🕉️

🔥ओ3म् इयं ते यज्ञिया तनूरपो मुञ्चामि न प्रजाम्। अह्होमुचः स्वाहाकृताः पृथिवीमाविषात् पृथिव्या संभाव्य।। (यजुर्वेद 4\13 

       💐 अर्थ :- उपदेश दिया जाना चाहिए कि विद्या से नशे का मेल और सेवन कर रोगग्रस्त शरीर तथा आत्मा की रक्षा करके सुखी होना चाहिए।

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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पंचांग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏

(सृष्टयादिसंवत-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि-नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮

ओ3म् तत्सत् श्री ब्राह्मणो दये द्वितीये प्रहर्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टविंशतितम कलियुगे

कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-शन्नवतिकोति-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाष्टसहस्र- षड्विंशत्य्युत्तरशतमे ( 1,6,08,53,126 ) सृष्ट्यबडे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विशहस्त्रतमे (2082) वैक्रमब्दे 】 【 मदद्विशतीतमे ( 201) दयानन्दबदे, काल-संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे, ग्रीष्म-ऋतौ, वैशाख-मासे, शुक्ल-पक्षे, द्वितीयायां तिथौ, कृत्तिका-नक्षत्रसे, मंगलवासरे, शिव-मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भारतखंडे...प्रदेशे.... प्रदेशे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान्।( पितामह)... (पिता)।

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