मृत्यु अभिनन्दन
जैसा की हम सब जानते है कि इस पृथ्वी पर कोई भी जिसने जन्म लिया है, वह मरने क लाइसेन्स अपने साथ लेकर यहां पर आया हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किस समप्रदाय से संबंधित है, अर्थात वह गरिब है या अमिर, या फिर कमजोर है या ताकत वर हैं। मरना एक दिन सबको है ही या एक बात जो सार्वभौमिक सत्य है वह सब पर समान रूप से होती है। कुछ ऐसे होते है जो अपने शरीर का बहुत अधिक देखभाल करते है प्रारम्भ से ही वह कुछ अधिक समय तक यहां पृथ्वी पर जीवित रहते है, और कुछ ऐसे है जो ज्यादा समय तक अपने आपको यहां पृथ्वी पर रखने पर सफल नहीं होते है। क्योंकि वह अपने शरीर का अच्छी प्रकार से देखभाल नहीं कर पातें है जिसके कारण उनको यहां पृथ्वी बहुत अधिक समय तक जीने का अवसर नहां मिलता हैं।
इस तरह से इस दुनिया में दो तरह के लोग रहते है एक तो वह जो अपने शरीर के प्रति बहुत अधिक सतर्क और सावधनी पुर्वक जीवन व्यतित करते है, जिसके कारण वह अपने शरीर को हारी बिमारी से बचाने में समर्थ होते हैं। वह शरीर का रख रखाव करना जानते है और उनके पास इससे संबंधित साधन उनके पास होते हैं। कुछ ऐसे भी होतें है जो संयम पुर्वक जीवन जीतें हैं, अर्थात किसी प्रकार का व्याभिचार नहीं करते है। दूसरें वह होते हैं जो अपने शरीर के प्रती वफादार और सतर्क नहीं होते है वह इसके स्वभाव से परिचित नहीं होतें हैं, जिसके कारण वह अपनी शरीर को हारी बीमारी से लम्बे सम तक रक्षा नहीं कर पातें है जिसकें परिणाम स्वरूप जल्दी हा वह मृत्यु का ग्रास बन जातें है। वह मरना नहीं चाहतें कैसी ही शरीर क्योंना हो चाहें कितनी ही शरीर में दुर्गति हो रही हो वह हमेंशा इसके साथ रहना चाहतें हैं। क्योंकि उनको स्वाभाविक रुप सें अपने शरीर का मोह होता है। ऐशा नहीं हैं कि शरीर का मोह उसकों नहीं हैं जो अपने शरीर का बहुत अधिक ध्यान रखते हैं मोह तो इनको पहलें वालें े भी अधिक हैं।
क्योंकि यह संसार के बुद्धिजीवियों का अनुभव यहीं है कि जिसके पास जितना अधिक विषय वल्कु सुख सुविधा की वस्तुओं का संग्रह होगा वह उतना ही अधिक समपन्न होगा इस संसार में, जहां तक मेरा अनुभव हैं मैंने अनुभव किया हैं कि इस संसार की सारी व्यवस्था केवल इसलिए की गई हैं कि लोग अपनी मृत्यु से ज्यादा से ज्यादा समय तक दूर रह सके जिसके कारण ही संसार आज मानव के रहने योग्य नहीं रह गया यहां साक्षात पशुवत लगभग सभी मनुष्यों के लिए उपस्थित कि गई हैं।
मैं ऐसे एक मानव को जानता हूं जो मेरा बहुत गहरा और बहुत पुराना मित्र हैं। जिसकी पारिवारिक स्थिती ठाक ना होने के कारण उसें बचनप से ही अपने जीवन को बचाने के लिए इस दुनिया में बहुत अधिक मसक्कत करना पड़ा, वह लगभग सब क्षेत्र में पराजिती हो गया, उसका किसी ने साथ नहीं दिया, ना उसका परिजना, ना सगे संबंधी, ना ही समाज ना ही दुर का कोई रीस्तेदार वह उसके अक्खड़ पन स्वभाव के कारण लोग उससे दूर ही रहा करते थें। उसने कुछ भी नहीं पाया यहां पर उसका सब कुछ छिन गया था। इसके अतिरिक्त उसको संसार का बहुत ही दुखान्त अनुभव का सामना करने पड़ा जिसके कारण वह स्वयं भी इस संसार में रहने का जो सबसे बड़ा साधन उसकी शरीर हैं उसका भी बहुत अधिक लापरवाही पुर्वक उफयोग किया, जिसके परिणाम स्वरूप उसकी शरीर बहुत खतरनाक बीमारी से ग्रस्त हो गई, जिसकें इलाज के लिए बहुत लोगों से विनती और प्रार्थना की कुछ एक ने उसको व्याज पर रुपया दिया जिससे उसने अपना इलाज कराया लेकिन वह स्वस्थ नहीं हुआ, फिर भी उसने हीम्मत नहीं हारी वह अपने दुर्भाग्य से लड़ता रहां और उसने पैसा कमाना शुरु कर दिया उस विमार शरीर के साथ और उसने अपने शरीर का काफी समय तक इलाज कराया औऱ जितना कमाया लगभग सारा पैसा लगा दिया लेकिन वह स्वस्थ नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त उसको उस बिमारी की तरह तरह की पिड़ाओं को भी सहना पड़ां लेकिन उसने हार नहीं माना, वह जान गया इस संसार के सत्य को जो उसको आर्श्चचकित करने वाला था वह बहुत छोटा है जीवन में उतना ही आनन्द नहीं आता है जितना आनन्द हर एक पल मरने में आता हैं। इसीलिए तो समझदार लोगों नें कहा हैं की मरो ए जोगी मरो मरण हैं मिठा, आये मौत तो करु मैं स्वागत और करु मैं उसका अभिनन्दन।
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