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रात की रानी part 2

 कमल पुष्पों का स्वाद

 

      तब पूरी रात, वह पत्तियों के बिस्तर पर अच्छी तरह से सो गया और सुबह सूरज उग आया आकाश में गुलाब के समान लालिमा लिए हुए और जब वह मंदिर से बाहर आया, तो उसने झिल के किनारे पर उसके लिए एक लाल कमल के फुल को लेकर चेतना को इंतजार करते हुए देखा और वह अपनी आंखों में एक दिखने वाले रूप में अपने मन की शांति की तरह लग रही थी और जब वह उसके पास गया, जिसने उसको देखते हुए कहा, मेरी मालकिन अपने भगवान को, इन अयोग्य हाथों के द्वार इस फूल को भेजा है। और यदि आपके रात्रि अच्छी तरह से व्यतीत हो गई हैं, तो यह उसके साथ अच्छा है।

 

       तब राजा ने कहा प्रिय चेतना वहीं अच्छी तरह से सोता है, जो अपनी शांति को वापस प्राप्त कर लेता है। और अपने पक्ष में मैंने इस रात को अच्छी तरह से सोया हूं, क्योंकि मैंने कई लोगों के लिए कई रातों से सोया नहीं था और उसने कहा यह नई शांति कहाँ से आई है? और राजा हँसा और कहा एक कुशल चिकित्सक ने कल मुझे एक नींद वाली दवा दी। तब उसने कहा, वे भाग्यशाली हैं, जिनके पास कुशल चिकित्सक हैं, क्योंकि वे कम ही हैं। तब उसने कहा जिस दवा ने मुझे नींद लायी, वह तुम्हारी आवाज़ की मधुरता और तुम्हारी दृष्टि के अमृत से जुड़ी हुई औषधि रूप में है। और मुझे आशा है कि यह इलाज मुझको प्रभावित कर सकता है, क्योंकि पहले मैंने सोचा था कि मेरा मामला बेताब और बेचैनियों वाला है। तब चेतना ने हंसना शुरू कर दिया और उसने कहा हे राजा, सावधान रहो! क्या यह एक या दो दिन पहले नहीं था कि आप पश्चिम की पूरी दौड़ के साथ चल रहे थे,अर्थात आप संसार के औरतों के खिलाफ थे और उनपर परिवर्तनशीलता का आरोप लगा रहे थे? और अब एक ही हमारी मुलाकात और एक खुराक में आप इसके लिए स्वीकार करने में सक्षम हो रहे हैं? तब राजा ने कहा तू दुर्भावनापूर्ण है, चेतना तुम अच्छी तरह से जानती है, जो सत्य नहीं हैं, वह सब केवल मेरे अतीत के प्रतिद्वन्दी थी, जिसके कारण मेरा ऐसा स्वभाव बन गया था। फिर चेतना ने कहा नहीं आप मेरे सामने पहली बार इस प्रकार से आये थे जैसे आप कोई मछुआरे हैं।

    ऐसी ही एक मछुआरा अतीत में हुआ करता था, जो किसी समय में किसी और देश में मछली पकड़ने का कार्य करता था और एक दिन उसने अपनी जाल को समन्दर में फेका, जिसकी जाल में उस दिन एक सोने की मछली फंस गई, तब उसने उस मछली को आनंदित होकर उठाने के लिए झुका, तभी मछली वापिस उसके हाथों से फिसल कर दुबारा समन्दर में कुद गई। इस कारण से वह बहुत निराश होगया और उसकी आंखों में आंसु आगये, इस लिए उसने समन्दर का त्याग कर दिया। और अपनी शरीर को भी त्यागने के लिए तैयार होगया, और वह चिल्लाया कि आह मेरा जीवन पुरा हो गया। क्योंकि मेरा जीवन स्वर्णमय मछली के शरीर के लिए हुआ था, जो अब उसके बिना बेकार हो चुका है। इसके बाद कुछ देर में उसने अपने आपको फिर से तैयार किया और वह वापिस समन्दर में गया और उसने अपनी मछली पकड़ने वाली जाल को समन्दर के पानी में दुबारा फिर से फेंका, और इस बार उसकी जाल में चांदी की मछली फंस गई, और तत्काल वह अपनी सोने की मछली को भुल गया। और बड़ी उत्सुक्ता के साथ अपने हाथों से जल्दी जल्ली जाल को उपर खिचने लगा, मछली को पकड़ने के लिए। लेकिन यह मछली भी उसके हाथ में आने से पहले ही फिसल कर पानी में पहले की तरह से कुद गई। और इस बार फिर मछुवारा स्वयं के भाग्य पर बड़ी निराशा के साथ दुःखी होगया। और अपने भाग्य को बुरा भला कह कर कोसने लगा, और इसके साथ ही उसने समन्दर किनारे को छोड़ दिया। और अपना बहुत-सा समय उन मछलियों के खोने के प्रायाश्चित में गुजारता रहा। कुछ समय के बाद वह एक बार फिर समन्दर किनारे अपनी जाल को ले कर आया, और अपनी जाल को एक बार फिर समन्दर में फेंका, जिसमें एक सामान्य-सी मछली ही फंसी जो साधाराण हाड़ मांस से बनी हुई थी। और इसको उसने अपने हाथों में पकड़ कर अपने साथ ले गया, और इसको पाकर वह पुरी तरह से खुश था, और इसको पाकर वह सोने और चांदी की मछलियों को पुरी तरह से भुल गया, जैसे वह कभी उसके जीवन में आई ही नहीं थी।

       फिर राजा ने कहा प्रिय चेतना मैं इस पर तुम पर बहुत क्रोधित हुं, जो तुमने मेरी तुलना एक बेकार से मछुआरें के साथ कि है, अगर मैं ऐसा कर सकता हुं, तब चेतना ने कहा हे राजा सावधान रहो ऐसा नहीं है कि समांतर हमेंसा बेहतर और सटीक होना चाहिए। तब राजा ने कहा कि तुम मेरी तुलना एक आग से कर सकती हो जो पुरी तरह से वुझ चुकी हैं जिसको फिर से जलाया नहीं जा सकता है, जिससे कि हर एक साधारण आदमी घृणा करता है, सामान्य इन्धन से भले ही मलय पर्वत के उपर उगने वाला चंदन का ही वृक्ष हो, जिसको एक बार जलने के बाद, दूबारा राख को फिर से जलाया नहीं जा सकता हैं। वही आज मेरी स्थिती हैं जिसका हृदय एक बार भौतिक रूप से जल चुका है। और राख में तब्दिल हो चुका हैं जिसमें से पुनः अग्नि की ज्वालाओं का भड़कना संभव नहीं हैं।

        तब चेतना ने कहा अब मेरे जाने का समय हो गया हैं। और उसने कमल पुस्प को राजा के चरणों में रख कर वहाँ से धिरे-धिरे चली गई, लेकिन कुछ दूर जाने के बाद एक बार पिछे मुड़ कर राजा को देखा और फिर जंगल के घने वृक्षों में कहीं लुप्त हो गई। और इसके बाद राजा ने निचे झुक कर अपने पैरों पर पड़े कमल पुस्पों को उठाया और कहा हे कमल मैं सच में उस आग की तरह हूँ जो बुझ चुकी हैं, और वह निश्चित रूप से मेरे लिए इंधन के रूप हैं, अथवा वस्तुतः वह कुछ औऱ भी हो सकती है। जैसे मैं उसके लिए इंधन के समान हूँ और वह आग के समान है। क्योंकि वह निश्चित रूप से मुझको एक ज्वाला कि तरह से जला सकती है, या इससे भी कुछ अधिक, अब वह जा चुकी है फिर वह कब हमारें पास आयेंगी यह कौन जानता है? इसलिए ओ लाल कमल पुस्प मैं तुमको आज पूरे दिन तक अपने साथ ही रखुंगा, क्योंकि तुम में उसका खुद के एक टुकड़े जैसा दिखते हो, जिसको उसने अपने पीछे छोड़ा है, मुझे बर्फ की एक गांठ की तरह उसकी अनुपस्थिति में दोपहर की गर्मि में ठंडा करने के लिए हो। और वह मंदिर में वापस चला गया, अपने हाथ में कमल फुलो को लेकर, भविष्य में मिलने वालें भोजन कि जिज्ञासा के साथ और अपने सारे अतीत को भूल गया।

      और मंदिर में वापिस आकर अपने पत्तों के विस्तर पर सोगया। और राजा ने उसकी याद में सारी रात अपने स्वप्नो में मधु (चेतना) को ही देखता रहा, और सुबह सूर्य उदय होने से पहले ही उठ गया। और मंदिर से बाहर आकर झील के किनारे बनी सिढ़ियों पर खड़ा हो कर चकइ चकवा के गित को सुनने लगा, जिसमें वह गा रहे थे, पी कहाँ-पि कहाँ वह दोनो प्रेमी रात्री की जुदाई के बाद सुबह फिर से मिलते हैं। इसी प्रकार से राजा भी अपनी प्रेमिका के इंतजार में खड़ा था तभी उसने झिल के किनारें के पानी में चेतना के चमकते कदमों की चमक को देखा जो उसके पास ही आ रही थी। और उसने अपने हाथों में श्री फल के वेरियों को ले रखा था और वह राजा के पास आकर राजा से कहा इसे मालकिन ने अपने भगवान के लिए इन तुच्छ हाथों से भेजा है। और कहा है कि यदि आपने अपनी रात्री को अच्छी तरह से बिताया होगा, तो यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा।

      तब राज ने कहाँ प्रिय चेतना मैं नहीं बता सकता कि मैं सारी रात सोया या केवल जागत रहा, मैं केवल इतना जानता हुं कि मैं सारी रात अपनी प्रियतमा को देखता रहा और सारी रात उसकी रस भरी बातों को सुनता रहा, मैं नहीं जानता की वह स्वप्न था या वह मेरे जीवन का यथार्थ था। तब चेतना ने राजा को बनावटी आकर्षण से देखा और कहा यह लक्षण तो बहुत ही खतरनाक है। इसके लिए आपको किसी चिकित्सक से मिलना होगा। आपकी स्थिती तो बहुत अधिक जोखिमपूर्ण और नाजुक है, ठीक उसी प्रकार से है जैसे पागल आदमी किसी पत्थर के प्रेम में आसक्त होजाता है। तब राजा ने कहा सुन्दरी मैं तुममें और पत्थर में कोई अंतर करने समर्थ नहीं हूँ। या फिर मैं पत्थर और आप के बीच कुछ भी समानता नहीं देखता हूँ। और तब चेतना ने कहा मैं आपके लिए एक पत्थर से अधिक नहीं हो सकती हुं, और तब राजा ने कहा मुझे उसकी कहानी बताओ। क्योंकि मुझे परवाह नहीं है कि यह मेरे जैसा है या नहीं: और इस बीच, मैं तुझे देखूंगा और तेरी आवाज़ सुनूंगा।

         तब चेतना ने कहना शुरु किया और कहाकि बहुत समय पहले कि बात है एक राजा हुआ करता था और वह अक्सर जंगल में शिकार करने के लिए जाया करता था, एक बार ऐसे ही शिकर करने के लिए जब वह जंगल में गया तो उसको एक पुरानी प्राचिन मंदिर मिली, जिस मंदिर के दिवाल पर बहुत देवियों की मुर्तियाँ पत्थर पर उकेरी गई थी, जिसके कारण राजा की निगाह मुर्तियों पर पड़ते ही वह उनके प्रेम में गिर गया, जिसके कारण कुछ भी करने के लिए तैयार हो गया। वह किसी भी सर्त पर उस मुर्ति को अपनी आँखों से दूर नहीं कर सकता था। इसलिए उसने अपने आदमियों को भेज कर उस मंदिर की दिवाल से उस मुर्ति को बिना किसी भी प्रकार के नुकसान के निकाल कर उसके पास लाने के लिए कहा। वैसा ही उसके आदमायों किया जो उनके राजा ने कहा था, इस प्रकार से राजा उस मुर्ति को मंदिर कि दिवाल से निकलवा कर अपने साथ उसको लेकर अपने महल में लो कर आया। और उस मुर्ति को अपने महल के एक कमरें में स्थापित करवा दिया, और वह राजा रात दिन उसी मुर्ति के साथ ही रहा करता था, कभी भी वह उस मुर्ति को अपनी आंखों से दूर नहीं होने देता था। वह उस मुर्ति का चुंबन लिया करता था और उसका बहुत अधिक ध्यान रखता था, और एक दिन राजा ने उस मुर्ति को बहुत अधिक झिड़की लगाई, कि मैं तुम्हारा इतना अधिक ध्यान देता हुं, और तुमको मेरी बिल्कुल कोई परवाह ही नहीं हैं। ऐसे ही वह एक रात को जब अपने महल के कमरें में अपने विस्तर पर लेटा हुआ था। उसने अपने मन में सोचा कि वह दिवाल कि सुन्दरता की देवी अचानक दिवाल से बाहर निकल गई, और वह अब पत्थर कि नहीं हैं यद्यपि वह सामान्य किस्म की हाड़ मांस और खुन से बनी हुई एक औरत है। जो गर्मजोसी और जीवन के आनंद से भरी हुई है। लेकिन जैसे वह उसके अपने बाहों में भरने के लिए आगे बढ़ा रहा था। लगभग खुद के बगल में खुशी के साथ लेकर सोने के लिए, अचानक तभी उसी समय सड़क पर एक पहरेदार चिल्लाकर-चिल्लाकर किसी को पुकरने लगा। जिससे राजा को उसके उपर बहुत अधिक क्रोध आया। जिसके कारण राजा ने पहरेदार को अपने पास बुला कर तलवार से तुरंत मार डाला। और महल के साथ शहर के हर पहरेदार को उसके काम से निस्कासित कर दिया। और उसने अपने जीवन के बाकी हिस्सों को अपने सपने में देवी के साथ अपनी बैठक का निष्कर्ष निकालने की कोशिश की लेकिन फिर भी वह कभी सफल नहीं हो सका । और जब वह जाग रहा था, तब वह सब कुछ के लिए अवमानना से भर गया था, खुद से कह रहा था, यह पूरी दुनिया पत्थर की तरह है, उस वास्तविक मूल की एक निर्जीव प्रतिलिपि जिसे मैंने उस समय, देवता के पक्ष में, मेरे सपने में पाया और निश्चित रूप से वह पागल है, जो अपने पूरे जीवन को सपने में भी एक चीज़ के लिए अपरिहार्य बनाता है। और मैं तुम से हूँ और यदि आप मेरी मालकिन को भूल जाते हैं, तो आप निश्चित रूप से उसके समान होंगे, आप अपनी कल्पना को आपके लिए निषिद्ध वस्तु पर ठीक करने की अनुमति देते हैं। हे राजा, क्या यह सच नहीं है और तुलना सटीक नहीं है?

       तब राजा ने कहा मुझे नहीं पता मैंने तुम्हारी कहानी नहीं सुनी, क्योंकि मैं तुम्हारें होंठों को देख रहा था जिन्होंने पूरी तरह से मुझ पर अपना कब्जा कर लिया था। और मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। मुझे दोबारा बताओ और मैं अपनी आंखें बंद कर लुंगा, ताकि आपकी सुंदरता हस्तक्षेप न करे, और मुझे आपके शब्दों के अर्थ को समझने से ना रोकें, और वह हँसी और कहा निश्चित रूप से मैं सही हूँ और तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हें छोड़ नहीं रही हैं। और चेतना ने राजा के पैरों पर श्री के कुछ फुलो को रखा और वह राजा के वापस देखे बिना चली गई। और जब वह पेड़ों के बीच में खो गइ। तब राजा ने निचे झुक कर अपने पैरों के पास पड़ें श्री के फुलों को उठाया और उसने कहा श्री के फुल आप अच्छी तरह से अपने नाम से जाने जाते है। क्या आपने यह अपने पूर्व जन्म में योग्यता से हासिल किया है,या फिर आपको पेड़ से गीरने और उसके हाथ में को प्राप्त करने का विशेषाधिकार मिला है। जबकि आपके भाइयों और बहनों को पेड़ पर विघटित और दुखी छोड़ दिया गया था? और वह मंदिर में वापस चला गया, उन्हें अपने हाथ में पकड़ कर, अपने होंठों की यादों से प्रेतवाधित किए हुए , जिनके रंग के समान ही वे थे, एक और सुबह इंतजार करने के लिए। उस सौंदर्य के देवी के लिए जो देवीयों की देवी  है।

       और वे श्री के फुल उसके सामने पड़े हुए थे, क्योंकि वह सारी रात पत्तियों के बिस्तर पर सो गया था और सुबह में वह सूरज उदय होने से पहले रोज की भांती उठ गया, और बाहर चला गया, और झिल के कगार पर आकर खड़ा हुआ। और जैसे ही वह उनकी सतह पर देख रहा था, उसने देखा झील के पानी पर एक तेंदुएँ की त्वचा पर जिस तरह से काले धब्दे के निशान पड़े होते हैं ठीक उसी तरह से झील की सतह पर कमल पुस्प अपनी पंखुड़ियों फैलाए हुए बिखरे थे। उनको देखने के बाद उसके दिल में एक संदेह जागृत हो गया, जब उसने चमगादड़ की छाया पानी की सतह पर देखा, जो सुबह से पहले झील के पानी के उपर अपनी आखिरी उड़ान ले रहे थे। और उसने खुद से कहा हे, वह सुंदर है, लेकिन हाँ! वह एक औरत है, क्या मैंने उसे अपने दिल में इन चमगादड़ों की तरह प्रवेश करने की अनुमति देने में अच्छा प्रदर्शन किया है। और उसने तुरंत, उसे उसकी तरफ अपने हाथों में एक शिरिशा के फूल के साथ, अपने पास आते हुए देखा और वह उसके पास आई और कहा मेरी मालकिन ने अपने भगवान को, इन अयोग्य हाथों के द्वारा, इन फूल को भेजती है। और यदि आपने मीठी निद का अपनी रात्री में आनंद लिया है, तो यह उसके साथ बहुत अच्छा हुआ है।

      तब राजा ने कुछ देर तक उसको देखा जो मुस्कुरा रही थी जैसे सूर्य उसके होठों पर बैठ कर अपनी किरणों को बिखेर रहा हो, जिसके कारण ही संसार का अंधकार मिट रहा है। और तब राजा ने कहा प्रिय चेतना वह कैसे अच्छि तरह से सो सकता है, जिसके पास संदेह और भय के आतंक की छाया हर पल छायी रहती है। जिस प्रकार से जो पौधे वृक्ष के निचे उगते हैं वह अपनी पूर्णता को कभी उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। क्योंकि उनको उस बिशाल वृक्ष की छाया विकसित होने का मौका ही नहीं देती है। क्योंकि मैं अपनी जीवन नैया को पुनः संसार के भव सागर में रखने की तैयारी कर रहा हुं, जिसके लिये मैंने पहले से ही अपनी शरीर रूपी नाव को भी तैयार कर रखी है, जो निले-निले आकाश के निचे भव सागर है, जिसकी हसंती, मुस्कुराती मुलायम और शांत लहरें है, जिसमें किसी प्रकार कि उत्तेजना भी नहीं उठ रही है और अभी मेरे साथ हैं, जैसा कि पहले मेरे साथ पहले भी हो चुका है। जब इन शांत और आरामदाय भवसागर कि लहरों नें मुझको धोखा के साथ मेरे साथ छल भी किया था। जिसको मैं अभी बिल्कुल भुल चुका हुं। और अब मुझे अपने इन छोटे-छोटे वृक्ष की छाल से बने कपड़ों से अत्यधिक प्रेम के साथ दूबारा भरोसा भी होगया है। इस पर चेतना ने राजा की आँखों में कुछ पल के लिए भाव बिभोर हो कर बड़ें आग्रह से देखा, जिसके कारण उसकी आँखों से अश्रु पात होने लगा और तब उसने कहा मृत्यु के मुख में पड़े हुए मानव के पास दो प्रकार के मस्तिस्क होते हैं। और जो साहस या विश्वास की इच्छा के लिए उद्यम नहीं कर सकता, वह कभी भी जीत नहीं रह सकता है। उसके लिये इस ब्रह्माण्ड के भव सागर रुपी खजाने में कुछ भी नहीं मिलने वाला है। क्योंकि उसकी रक्षा हमेंशा घुम-घुम कर राक्षस, शैतान और दैत्य निरंतर करते हैं, इसी में बहुमुल्य आभुषण से सुसज्जित स्वर्गिय अप्सराएँ भी रहती हैं।

       बहुत समय पहले कि बात हैं एक बहुत बड़ा व्यापारी था जिसका केवल अपना एक ही पुत्र था जो अपने व्यापार के शिल-शीलें में अपनी नाव के साथ दूर किसी दूसरें देश की यात्रा कर रहा था, जिसके कारण उसने हजारों किलोमिटर समन्दर कि लहरों पर अपनी नाव के साथ सवारी करता रहा, जब तक कि वह समन्दर के मध्य में नहीं आगया। तभी अचानक समन्दर में तुफान आगया, जिसके कारण उसके जहाज की पाल नाव से निकल कर उससे दूर जाकर गीर गई। और जहांज ने यात्रा करना बंद कर दिया और अचानक समन्दर कि हरी-हरी लहरों के मध्य में उसके सामने एक मुंगा का वृक्ष प्रकट हो गया और उस वृक्ष की एक शाखा पर उस समन्दर की देवी बैठी हुई थी। और उसके अंगो से समन्दर का झाग बुंद-बुंद करके टपक रहा था, उसकी छातियों पर जैसे मोती जड़ा हुआ हो ऐसा प्रतित हो रहा था, जो समन्दर में मलाई कि तरह से बह रहा था। और उसके लंबे बाल लहरों पर पड़े हुए थे, जो उसके स्तनो के निचें हिलकोरें ले रहे थे। और उसने व्यापारी के पुत्र को अपने पास बुलाया, और कहाँ की तुम तुरंत समन्दर में छलांग लगा कर मेरे पास आ जाओ। और मेरे साथ अपने जीवन को व्यतित करो, और मैं तुमको ऐसे आभुषणों को दुंगी जिसको कभी भी किसी व्यापरी ने नहीं देखा होगा। और मैं तुमको कुछ दिव्य अद्भूत अनुभूतियों के आनंद से अभिभूत करुंगी। जिसका अब तक कभी किसी नस्वर मनुष्य ने स्वाद भी नहीं पाया है। इस पर उस व्यापारी के डरपोक बेटे की आत्मा ने और लहरों की भयावह आतंक से किसी तरह से स्वयं को संतुलित कर लिया था । और वह समन्दर में कुदने का प्रयाश करने लगा, लेकिन वह समन्दर में कुदने के लिए, स्वयं की आत्मा के अंदर इतनी हिम्मत को नहीं पैदा कर सका, जिसके कारण कुछ ही पलों में समन्दर में उगने वालें मुगें के वृक्ष के साथ उस पर बैठनें वाली समन्दर की पुत्री भी पानी में समा गई। और उसकी आँखों से अदृश्य हो गई, और वह विस्तृत समन्दर में अकेला रह गया। जहाँ पर उसके चारों तरफ पानी और उपर आकाश के कुछ भी नहीं दिख रहा था। फिर वह अपनी यात्रा को किसी तरह से आगे जारी रखा, प्रायश्चित और इनिच्छा भावनाओं से भरे हुए हृदय के साथ, फिर वहाँ कुछ देर में समन्दर की हवावों में अचानक बदलाव आगया और वह बहुत अधिक प्रचंड होगई जिसके कारण उस डरपोक व्यापारी के पुत्र की नाव समन्दर में डुब गयी। और वह स्वयं समन्दर में ही डुब कर मर गया। जिसके कारण ही जो उसको मिलने वाला खजान था। उससे तो हाथ धोया ही, साथ में अपने जीवन हाथ से भी अपने हाथ धो लिया। जिसे वह बचा सकता था, इस प्रकार उसने अपना खजाना खो दिया और स्वयं को खतरे से बाचा लिया, लेकिन अपनी आत्मा को अपनी शरीर से अलग कर दिया। इसलिए हे राजा, यह जीवन समुद्र के लहरों की तुलना में कहिं उससे अधिक अस्थिर है, जैसा कि यह बहुत अधिक बुद्धिमानों को ही यह दिखता है। और इसमें क्या शामिल है? जो इसे खोने के बीच एक पल के लिए संतुलन के दौरान नायक के लायक बनना चाहिए। और किसी भी जीवन में केवल एक बार भाग्य जीतने के लिए मौका मिलता है। जिसको जीतना ही चाहिए और ऐसा अक्सर नहीं होता।

     फिर चेतना ने राजा के कदमों पर श्रीशा के फुलों को रख कर वहाँ से घुम कर राजा से दूर चला गई, धिरे-धिरे वह चल कर जंगलो के मध्य में वह कहि खोगई। और राजा ने फिर अपने कदमों पर पड़ें श्रीशों के फुलों को अपने हाथों से उपर उठा लिया। और कहा ओ श्रीशा के फुलों तुम उसके समान सुंदर हो, क्योंकि तू दुःख को हरने वाला है। अब क्या करु मैंने अपनी प्यारी चेतना को अपने अयोग्य संदेह से धोखा देकर नाराज किया है? लेकिन आह! वह एक महिला है। महेश्वर ने उन्हें महिलाओं की श्रेणी से बाहर क्यों नहीं उठाया और उसको महिलाओं की एक प्रजाति में रखा कि मुझे याद नहीं होगा जब मैं उसकी अपूर्णताओं को देखता हूँ। जो उसके सभी कामवासनाओं से अविभाज्य हैं। और वह अपने हाथ में फूल को लेकर, मंदिर से वापस चला गया, खुद से नाराज हो गया और पहले के समान और अधिक चेतना के प्यार में खो गया था।

     और वह सारी रात पत्तियों के बिस्तर पर अपने संदेहों के लिए पश्चाताप करता रहा, और इसी में पुरी रात बित गई सुबह में वह सूरज के उदय होने से पहले ही फिर उठ गया। और मंदिर से बाहर निकल आया, और पूर्वी आकाश जो एक दुधिया पत्थर की तरह से अपनी रंग को बदल रहा था। क्योंकि रात सुबह से पहले चली गई थी, लेकिन अभी तक चेतना नहीं आयी थी। और दिन धिर-धिरे बढ़ने लगा, जिसके कारण राजा उसके ना आने के दुःख के कारण से पिला पड़ने लगा था। और अपने आप से कहा क्या इसका मतलब हैं कि वह मुझको एक दिन और अपने साथ अकेला रहने के लिए छोड दिया है। और अंत में राजा ने देखा जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में अपनी आभा के सामराज्य को फैला चुका था। तब चेतना को धिरे-धिरे अपनी तरफ आते हुए, जिसने अपने हाथों में बैगनी कदम के फुलों को ले रखा था, जिसकी आँखों से ऐसा लग रहा था। जैसे वह स्त्री के रूप में अमृत के मिलाप के लिये राजा के पास आइ हो, जब वह राजा के पास आई तो उसने कहा मेरी मालकिन नेअपने भगवान के लिए इन अयोग्य हाथों के द्वारा आपके लिए इन कदम के फुलों को भेजा हैं, यदि आपको रात्री में अच्छि निद आयी हो तो यह उनके लिए बहुत अच्छि बात होगी।

      तब राजा ने चेतना से कहा उसको कैसे रात्री में अच्छि निद आ सकती है? जो इन्तजार कर रहा हो अपने अफराध को क्षमा करने के लिए और अपने पाप को स्विकारने के लिए? तब चेतना ने कहा आप क्या कह रहें हैं? राजा ने कहा मैंने अपनी वृक्ष की छाल को बहुत समय पहले संसार समन्दर के मध्य में बहने के लिए छोड़ दिया है, अभी मैं कुछ भी नहीं चाहता लेकिन मेरी हार्दिक आंतरिक इच्छा हैं कि मैं उस औरत को बचाना चाहता हूँ जो समन्दर में उगे मुंगे के वृक्ष पर बैठा करती है, मुझे उसको बचाने के लिए समन्दर में कुद कर उसको बचाने के लिए आज्ञा चाहिये। फिर चेतना ने अपनी मुस्कुराहट के साथ खिल-खिला कर हंसती हुए, अपनी नाचती आँखों से देखा और कहा हे राजा ऐसी सेविकाए बहुत दूर्लभ होती हैं। उनमें भी बहुत अधिक दुर्लभ होती हैं वह जो मुंगें के वृक्ष पर बढ़ती हैं। अर्थात बहुमुल्य ऐश्वर्यों के मध्य पलती हैं। और मुझको बहुत अधिक भय लग रहा हैं कि आपने अपनी छोटी-सी नाव को समन्दर में क्या छोड़ दिया है। और आपको मेरी तरह की, मेरी जैसी सांसारिक साधारण-सी मेरी मालकिन औरत से संतुष्ट होना पड़ेगा, राजा ने कहा तुम अपनी मालकिन के बारें में कुछ भी मत बोलो। क्योंकि मैं तुम्हारी मालकिन के बारें में कुछ भी नहीं सुनना चाहता हुं, तब चेतना ने कहाँ आपको ऐशा नहीं करना चाहिये, यद्यपि आपकों उनके बारें में और अधिक जिज्ञासा करना चाहिए। और आपको जानना चाहिए कि उनको क्या अच्छा और क्या बुरा लगता है। क्योंकि वह मुझसे बहुत अधिक सुंदर और वुद्धिमान है। और वह मुझसे अधिक लंबी हैं। फिर राजा ने कहाँ क्या वह तुम्हारी विद्वता से भी अधिक विद्वान हैं, तब चेतना ने कहा हाँ वह मुझसे अधिक विद्वान हैं। हलांकि वह कविता बहुत अच्छि लिखती और बहुत सुनंदर गाती भी हैं। तब राजा ने कहा मैं ऐसी औरत से प्रेम नहीं करता हुं जो बहुत अधिक पंडित हो। फिर चेतना ने कहा वह इन्द्र महल में रहने वाली अप्सरा के समान गाती और नचती हैं, तब राजा ने कहा मैं उसके पैरों के लिए उसके नृत्य को ध्यान से नहीं देख सकता हुं, ना ही उसके संगित के कारण मैं उसको पंसद कर सकता हूँ। क्योंकि वह मेरे सामने आने से स्वयं को बचाती है। और वह मेरे सामने आकर मुझसे बात करने से स्वयं को रोकती है। उससे कहि अधिक और मधुर भाषी जो मुझसे बात करती है जिसके बोलने से मेरे हृदय में मेरे काने से अमृत रस मेरी आत्मा में टपकता है। जैसा कि जब राजा बोल रहा था ठीक उसी समय चेतना के हाथों में फुलों की तरफ आकर्षित हो कर एक मधुमक्खी उड़ती हुई फुलों की पंखुड़ियों में आकर समा गई। जिसको तत्काल देखते हुए चेतना ने बड़ी जल्दी से अपने हाथों से फुल की पंखुड़ियों को बंद कर दिया। और कहा हे राजा मैंने उस उड़ती हुई मधुमक्खी को यहाँ पर कैदी बना लिया है, उसके पागलपन के लिए उसको दोषी ठहराने के लिए. सुनो और मुझे बताओ कि क्या आप धोखा दे सकते हैं। बिना धोखे के, जो मीठा, असली मधुमक्खी, या मेरी आवाज़ है जिसे आप अपने हृदय में पसंद करते हैं? और राजा ने अपना कान फूल के करीब रखा और मधुमक्खियों को अंदर सुना और उसने कहा, मैं नहीं बता सकता और उसने अपनी आंखें उसके चेहरे पर तय की और कहा, अब बोलो कि मैं उसके और आपके बीच न्याय कर सकता हूँ। तब वह हँसी और मधुमक्खी उड़ जाने के लिए फुलो कि पंखुड़ियो को खोल दिया। जिससे मधुमक्खि फुल से बाहर निकल कर उड़ गई। तब राजा ने कहा हाँ! मधुमक्खी पागल है, मैं नहीं। क्योंकि वह इच्छा करती हैं हाथों में के घेरें में रखे फुलों के अंदर बने जेल से मुक्त होने की, वह फुल किसका हैं? यह मुझको दो फिर मैं फिर उनकी तुलना करुगा, लेकिन उसने कहा नहीं यह फुल उसका हो सकता है, क्योंकि यह मेरी मालिकन का उफहार है, लेकिन यह मेरा हाथ यह मेरा स्वयं का है और अब मैं उसको पुनः वापिस कर देती हुं और जैसे ही उसने बोलना शुरु किया वह मधुमक्खि पुनः आगई और उसके सर के चारो तरफ भिन-भिनाने लगी। जिसके कारण वह भय और उसके आतंक से चिल्लाने लगी। और कहा हे राजा यह मधुमक्खि के रूप में खलनाइका है जो मुझको डंक मारना चाहती है। तब राजा ने कहा निसंदेह वह अपने बिना अपराध के कैद होने का प्रतिशोध लेने के लिए आयी है, उसके लिए दण्ड की सजा देने के लिए डंक मारना चाहती है, फिर व्यथित और उससे परेशान होकर लग-भग भागते हुए राजा की बांहों में घुंस गई। यह चिल्लाते हुए राजा मुझको इससे बचाओ, उसने कहा हे राजा, उसे बचा लो जो शरण के लिए आपके पास आता है और उसकी प्रसन्नता में राजा ने कहा हे मधुमक्खियों के राजा, मेरे पास आओ और जिस पक्ष में तू ने मुझे किया है, वैसे ही मैं तेरे लिये दिन में कमल पुस्पों के कप में शहद के साथ सेवा करूंगा। यद्यपि इस बीच मधुमक्खी दूर उड़ गई और मधु (चेतना) ने भ्रम से वापिस आना शुरू किया। और कहा हे राजा, मेरी मालकिन बहुत बहादुर है। और वह मधुमक्खी से नहीं डरती है। तब राजा ने जोर देकर कहा, वह सभी महिलाओं जो मधुमक्खियों से डरते नहीं हैं! ज़रूरी नहीं हैं कि मैं उनसे प्रेम करता हूँ, लेकिन, हां मधुमक्खी और फुलों का खिलना, निश्चित रूप से इस मधुमक्खी का बहाना है अगर उसने फूलों के लिए अपने होंठों को ग़लत समझा।

      तब उसने कहा हे राजा, इस अनौपचारिक मधुमक्खी ने मुझे अपनी आंखों में अपमानित किया है। और मुझे एक लड़की को अपने स्वयं के स्वरुप को भूलने का कारण बना दिया है। और अब यह समय है कि मैं चली जाऊ और उसने राजा के चरणों में फूलों को रख दिया, और वह राजा को पीछे देखे बिना भाग गयी, और पेड़ों के मध्य में गायब हो गयी। लेकिन राजा ने मुस्कुरा कर खिलते हुए फूल को उठा लिया। और उसने कहा हे महिमामय फूल, मैं तुम्हें हमेशा के लिए संरक्षित रखूंगा, यहाँ तक कि आप को फेंकने के बाद भी, क्योंकि आप इस अतुलनीय मधुमक्खियों के हमले के अवसर का विशाल हिस्सा बनाते हैं, जिसने मेरी प्रिय चेतना को उसकी सावधानी बरतने और मेरी बाहों में शरण लेने का नेतृत्व किया। हे सौंदर्य, तू कमजोर है, क्योंकि तू कमजोर है! बाहर, सभी राजाओं की बेटियां जो मधुमक्खियों से नहीं डरते हैं! और वह मंदिर वापस गया, कदंब के फूल का चुंबन किया और प्रसन्नता से नशे में मदमस्त था।

मृत्युलोक में अमरता का स्वाद

 

     और इस तरह से सारी रात राज कदम के फुलों के साथ अपने पत्तों के विस्तर आराम से सोया और सुबह में सूर्य के उदय होने से पहले ही अपने विस्तर पर उठ कर खड़ा हुआ, औक मंदिर से बाहर से आकर झिल में ले जाने वाली सिढ़ि के उपर खड़े हो कर झील पर उड़ने वाले जुगनुओं को बड़े ध्यान से देखने लगा, क्योंकि जुगनु जल्दी-जल्दी अपने दिपक को छिपाने के लिए और महाने सूर्य के उदय होनें के बाद शर्मिंदगी का आबाष होगा उससे बचने के लिए वह सब बड़े वयग्रता के साथ प्रयाश रत थे और चभी राजा कि दृष्टि उसके सामने से वाली चेतना पर पड़ि, जो अपने हाथ में अमरनाथ के फुलों को लेकर उसके के पास ही आरही थी और वह दिन के साहस की यादों पर उदासीनता के साथ कठोरता के सार के अवतार की तरह लग रही थी और वह राजा के पास आई और कहा हे राजा, मेरी मालकिन ने अपने भगवान को, इन अयोग्य हाथों के द्वारी, इस फूल को भेजा है और यदि आपकी नींद रात्री में आनंदायक और शांतिपूर्ण रही है, तो यह उसके साथ अच्छा है।

      तब राजा ने कहा प्रिय, वह अच्छी तरह से सोता है, जो आपूर्तिकर्ता से सहायता रोकने के साथ खुद को अपमानित नहीं किया करता है। तब उसने अपनी आंखों से जमिन पर देखने लगी, और राजा ने उसे स्नेह से देखा और उसने कहा प्रिय चेतना, शर्मिंदा मत हो, क्योंकि तुम्हारा मामला कुछ अधिक खतरनाक है। इसके अलावा, मैंने अपने संकट में तुम्हारा कोई फायदा नहीं उठाया। लेकिन फिर भी, क्या मैं मधुमक्खी की खोज कर सकता हुं, मैं उसे अमृत के साथ नशे में डालूंगा, जब तक कि वह उड़ नहीं सके। तब उसने कहा और क्या, अगर उसने मुझे काट लिया तो? तब राजा ने कहा चेतना वह खलनायक तुम्हें काटे उससे पहले, मैं उसे अच्छी तरह से साथ बांध लुंगा। और एक हाथी के सामने उसे तुमसे दूर फेंक दुंगा। तब वह हँसी और कहा बेचारी गरीब मधुमक्खी ! सजा उसके अपराध से अधिक हो गई होगी। लेकिन उसके लिए पर्याप्त है ! मुझे अपनी मालकिन के गुणों के रूप में आपको प्रबुद्ध करना जारी रखना चाहिए। तब राजा ने जल्दी से कहा हे तू पीड़ित है, क्या तू कभी मुझे अपनी मालकिन की याद दिलाना बंद नहीं करोगी? हे जैसा कि मैं एक राजा नहीं हुं, राजनीति के कारण रानी को सहन करने के लिए तैयार नहीं हूँ, जो मैं नहीं चाहता ! या तुम अपनी मालकिन क्यों नहीं हो और वह नौकरानी है? जैसा कि है, मैं निराशा के अलावा कुछ भी नहीं देखता हूँ। तब उसने कहा हे राजा, यह निराशा बेकार है और (वुद्धि में श्रेष्ठ) गणेश के पक्ष में और उनके स्वयं के दृढ़ संकल्प के मुकाबले में इनके मुकाबले भी ज़्यादा बाधाएँ बढ़ी हैं। अपने संकल्प के द्वारा विश्वामित्र ने बहुत पहले ब्राह्मण नहीं बन गए थे? तब राजा ने एक प्राकर के शोक से कहा, हे मेरी प्रिय चेतना, मैं दुःख में हूँ और मुझे सांत्वना देने के बजाय, आप मुझे पुरानी किंवदंतियों के साथ तुलना करती हैं जो इस बिंदु पर नहीं है। और उसने कहा हे राजा, कुछ बाधाएँ और कठिनाइयाँ हैं जिन पर आपको विजय प्राप्त करनी है। जिसमें कुछ बांधायें और कठिनाई धुंधली हैं, जो किसी सामर्थ वान की छाया मात्र से ही समाप्त हो जाती हैं। जो दिखाई देती हैं कि वह बहुत बड़ू कठिनाई के रूप में हैं वास्तव में वह होती नहीं हैं। वह मात्र हमारें मन के द्वारा व्यर्थ में उत्पन्न कियें गये सबसे बड़े भ्रमों से एक माया से अधिक नहीं हैं।

     बहुत समय पहले कि बात है एक बार जब पुर्णिमा की रात्री थी और उस रात्री के समय में चन्द्रमा निचे जंगली झिल में खिले कमल पुस्पों को प्रेम से निहार रहा था। उस झील के पानी में गुलाबी कमल पुस्पों के मध्य में एक शुद्ध सफेद कमल पुस्प भी था, जो झील के पानी के निचे पड़े काले किचड़ में खिल रहा था। लेकिन ठीक उसी दिन दो नर हाथी उस झील के पास आये, और वह झील के पानी में आपस में लड़ने लगें। और उन्होंने अपने सुड़ से लग-भग सभी तरफ प्रहार किया, जिसके कारण उनके शरीर से निकलने वाली खुन कि धारा झिल के पानी में चारों तरफ फैल गयी, जिसके कारण झील के पानी में उपस्थित सारें कमल पुस्पों पर खुन के  छीटें आच्छादित होगये, जिसके कारण कमल पुस्पों का पंखुड़िया लाल होगई। इस तरह से चन्द्रमा ने आकाश से झील के पानी में विद्यमान खुनी लाल कमल पुस्पों को देख कर दुःखी मन से आह भरते हुए कहा इनमें कोई भी मेरे काम की तृप्ति के लिए उपयोगी नहीं हैं। इसलिए वह दुःखी मन से अपने आपको व्यथित करने लगा, और हर एक रात्री के बाद वह पहले और छोटा और छोटा होने लगा, औऱ अंत में वह स्वयं को लेकर आकाश में पूर्णतः अदृश्य हो गया। जैसे कि वह कभी आकाश में था ही नहीं। लेकिन फिर भी वह अदृश्य रूप में भी विद्यमान था, तभी अचानक आकाश में बादलों का झुंड छा गया और झमा-झमा कर मुसलाधार वारिष होने लगी। जिसके कारण जंगल के झील में खिले कमल पुस्पों के उपर लगें हुए खुन को पुरी तरह से धो दिया और जब कुछ एक दिनो के बाद जब वह पुःन आकाश में अवतरित हुआ तो उसने देखा उसी तालाब में सभी कमल पुष्पों में उसका सबसे प्रिय शुद्ध कमल पुस्प दिखा जिसके कारण वह उसक प्रेम में आहंलादित होगया। और उसकी आँखों में प्रेम के आँसु बहने लगा।

     तब राजा ने कहा हे प्रिये, जैसा कि मैं वह चाँद था और तू मेरे लिये शुद्ध कमल के समान थी, तब मेरी रात प्रसन्नता के क्षण की तरह गुजरती थी, और वह मुझ यातना नहीं देती थी, जैसा कि वे करते हैं, अलग होने के घंटों के साथ कालिमा मेरे हृदय के आइने पर छा जाती है। जिससे मुझे कुछ नजर नहीं दिखता जिससे मैं यह निर्णय करने में असमर्थ होता हूं मेरा कमल पुस्प कौन सा है? इस पर चेतना ने राजा के पैरों पर अमरता के फुलों को रख कर वहा चली गई। और जंगली वृक्षों में गायब होने से पहले उसने राजा को एक बार अवश्य देखा और फिर अदृश्य हो गयी। और राजा ने निचे अपने पैरों के पास पड़े अमरनाथ के फूलों उठाया, और उसने कहा अमरनाथ, खुशी से मैं तुम्हें अपने साथ रखुंगा, क्योंकि उन पागल हाथियों ने जो उस कमल पुस्पों के साथ किया था, मेरे खून से, यह लाभ उठा सकते हो, फिर भी मैं भी तुम्हारा रंग लाल रंग नहीं कर सकता हूँ और वह मंदिर में वापस चला गया, अपने हाथों में अमरता के पुस्पों को लेकर, दिल में उदास, अपने प्यार और अपने सम्मान के संघर्ष के विद्ध्वनंश को देखते हुए।

      तब पूरी रात, वह पत्तियों के बिस्तर पर ऐसे ही पड़ा रहा और सुबह में वह सूरज के उदय से पहले उठ गया। और बाहर चला गया और झील के सामने आकर खड़ा हुआ। और तोतों को पेड़ की साखों पर चिल्लाते हुए देखा, सुबह के रंग के साथ टिप-टिप करते हुए अपने चोंच के साथ, तब तक उसने देखा कि चेतना को अपनी तरफ आते हुए, अपने चमकते पैरों के साथ, उसने अपने हाथों में अशोक फूलों को लिए हुए और वह अपनी आंखों में एक स्त्री के रूप में प्यार के महान अवतार के अमृत झरने की तरह लग रही थी। और वह राजा के पास आई और कहा, मेरी मालकिन ने अपने भगवान को, इन अयोग्य हाथों से, इन फूलों से भेजा है। और यदि आपकी रात्री अच्छी और मीठे होती हैं, तो यह उसके साथ अच्छा होता है।

     फिर राजा ने कहा प्रिय चेतना वह कैसे अच्छि तरह से सो सकता है? जिसकी सारी रात्री सुबह होने कि लालशा में गुजर जाती हैं, क्योंकि वह अपने प्रियतमा से मिलने के लिए लालाईत रहता है। जो प्रातःकाल की बेला में ही उसके लिए प्रकट होती है। आह! यह प्रातःकाल हमेशा क्यों नहीं रहती हैं? इसको देखने के लिए कि किस प्रकार से झिल के कमल पुस्प सूर्य की रौशनी को पाकर सुनहरें रंग में बदल जातें हैं। और स्वयं परमेश्वर के रूप में उपस्थित इन सब के रचैयता, महेश्वर भी अपनी सर्वज्ञता से सूर्य को उसकी किरणों के साथ समय से पहले उपस्थि नहीं करते है। नहीं तो पुर्वी पहाड़ों के मध्य में, निकलने वाले सूर्य का प्रकाश जिससे यह कमल पुस्प हमेंशा सुनहरें रंग के होते हैं। और तुम भी प्रातःकाल के ना खत्म होने के कारण हमेंसा हमारें पास ही उपस्थित रहती। तब चेतना ने कहा हे राजा सूर्य कुरुपता और अंधकार का नाश करने के लिए आता है। जो दिखने में  विशाल और असंभव से लगते हैं उसके जाने से ही यह प्रकाश संभव होता है।

         जैसा कि बहुत पहले, उसने किया, जो सूर्य के निरंतर चलने वालें चक्र को प्रतिष्ठित करता था। बहुत समय पहले कि बात है। एक बहुत बड़ा जुआरी था, जिसने अपना सब कुछ जुए के खेल में हार गया था। और इसी प्रकार से घुमक्ड़ों की तरह से संसार में विचरण करता रहा। और इसी प्रकार से संयोग बस घुमते-घुमते वह एक अप्सरा के पास पहुंचा। जो उस समय गहरी निद्रा में सो रही थी, लेकिन वह जुवारी जैसे ही दौड़ते हुए उसके पास पहुंचा। वह अप्सरा अपनी निद्रा से जागृत होगई। और हवा में उछल कर वहाँ से तत्काल आकाश में गायब हो गयी, लेकिन उस जुआरी ने उसे उसके पैरों से पकड़ा लिया था। जिसके कारण उस अप्सरा ने उस जुआरी के हाथ में अपने सुनहरे चप्पल को छोड़ दिया था। इसके बाद वह अप्सरा घुम कर आई, और फिर उसने जुआरी को बहुत प्रकार से बहलाया और फुसलाया और कहाँ कि यह मेरा सुनहरा चप्पपल मुझको वापिस दे दो, अन्यथा इनके बिना मैं राजा इन्द्र के महल में नृत्य अच्छी तरह से नहीं कर सकती हुं। और जिसके कारण मैं राजा इन्द्र के महल में नाचने में असफल हो सकती हुं। फिर उस जुआरी ने कहा कि मैं इस सुनहरें चप्पल को तुमके वापिस कर दूंगा लेकिन इसके बदले में तुमको मुझे भी अपने साथ राजा इन्द्र के सभा में ले चलना होगा। क्योंकि मैं स्वर्ग में जाना चाहता हुं और वहाँ होने वाले अप्सरा के नृत्य को देखना चाहता हुं। इस प्रकार से जब अप्सरा को कोई मार्ग नहीं दिखाई दिया, तो वह उल जुवारी को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार होगई। और उसने उस जुआरी को अपने कानों में लगें फुलों में जुवारी को सूक्ष्म रूप से छुपा लिया और इस तरह से वह जुआरी को स्वर्ग में लेकर गई। जहाँ पर उस जुआरी ने की सारी अप्सराओं को अपने शरीर पर स्वर्णमय वस्त्रों को धारण करके कमल पुस्पों के समान सुसज्जित जमिन पर नृत्य करते हुए देखा। जिसके चारों तरफ उनके साथ हवा भी नृत्य कर रही थी। जिसके कारण उस चोर के हृदय में उन स्वर्णमय वस्त्रों के प्रति लोभ जागृत हो गया। जिसके कारण उसने धिरे से फुंस-फुंसा कर उस अप्सरा के कानों में कहा कि यह स्वर्णमय वस्त्र कहाँ से प्राप्त हुए हैं?, जिसके उत्तर में अप्सरा ने कहा कि यह हमें स्वयं सूर्य ने अपने पुराने प्रकाश कि किरणों से बुन कर दिया है। जो पश्चिमी पर्वतों के मध्य में अस्त होता है। और वहां पर इन सब किरणों को परियों के द्वारा पिरों कर सोने में बदल दिया जाता है। जो उन सब के शिर में स्थित बाल के समान है।, जिसको वह सब बाद में पहाड़ों के मध्य में छुपे रूप से स्थित एक झील है जिसके पानी का रंग जामुनी है। वहां पर वह सब उस बाल को जाकर उसमें धो देती हैं। जहाँ पर हमेंशा प्रातः कालिन की बेला ही रहती है। जहाँ पर कभी ना रात होती है। और नाही दिन होता है, ना ही दोपहर ही होती है। और कभी भी शाम भी नहीं होती है। लेकिन जब जुआरी ने यह सब सुना तो उसकी कुरुप आत्मा में एक भयानक और खतरनाक लोभ जागृत होगया। जिसके कारण वह उसके कान में से ही बार-बार चिल्लाने लगा कि की यह सोने को वुनने वाली है। जब उस जुआरी की आवाज को राजा इन्द्र ने सुना तो कहाँ यह कौन गुस्ताख है? जो हमारें स्वर्ग में इस तरह का व्यर्थ में शोर कर के हमारें मनोरंजन में विध्न डालने का प्रयास कर रहा है। इसको सुनते ही अप्सरा ने तत्काल अपने कानों में लगे फुल को निचे फेंक दिया, जिसकी तलास चारों तरफ किया जारहा था। और अंत में उसको अप्सरा के द्वारा फेंके गये फुलों के मध्य में छुपा पाया गया। उसमें स्थित जुआरी को फुल से बाहर निकला गया। और राजा इन्द्र ने उस अप्सरा को जिसका नाम मालती था। उससे कहा कि इस दुष्ट को तत्काल हमारें स्वर्ग से बाहर निकाल दो, जिसके साथ निर्दय अप्सरा ने जिसने उसे अपने कान में छुपा कर स्वर्ग में घुसने की हिम्मत की थी। मालती ने उसे वहाँ से बाहर फेंक दिया। लेकिन वह जुआरी, आकाश में जाने वाला नहीं था, जिसके कारण वह पृथ्वी पर गिर गया और उसने अपने शरीर को कई टुकड़ों में तोड़ दिया।

      तो इस तरह से राजा, सावधान रहें! ऐसा न हो कि असंभव होकर आप अपने स्वर्ग को पूरी तरह से खो दें। और उसने राजा के पैरों पर अशोक के फूलों को रख दिया, और वहाँ से जाने लगी। तब राजा ने कहा हाँ! प्रिय चेतना, क्या तुम कुछ और लंबे समय तक मेरे साथ नहीं रह सकती हो? और उसने कहा नहीं, तब राजा ने कहा कि तुम फिर क्या दिन में दो बार या तीन बार नहीं आ सकती हो, मुझसे मिलने के लिए? इतना बड़ा दिन तुम्हारें बिना नहीं गुजरता है। यदि तुम मेरे साथ दिन में कुछ अधिक समय तक रहोगी, तो मुझे मुझे बहुत अच्छा लगेगा। यद्यपि तुम यहाँ पर मेरे साथ कुछ एक पल के लिए ही रहती हो, और हर दो दिनों के बीच एक रात होती है। तब उसने कहा हे राजा, यह असंभव नहीं है जहाँ मेरी मालकिन है।

      मुझे भी ऐसा होना चाहिए, और अब मेरे पास करने के लिए कर्तव्य हैं। और इसके साथ वह जंगल में पेड़ों के मध्य से काफी दूर चली गई, जब तक की वह जंगल में गायब नहीं हो गई। तब तक राजा में उसके कंधे को पिछे से देखता रहा । इसके बाद राजा ने अपने पैरों पर पड़े फूलों उठाया, और उसने कहा अशोक, तू मुझे उकसाने वाले चिट्ठी की तरह बिल्कुल यातना देता है। जिसने तुम्हें बताया है। क्योंकि तुम्हारी सुंदरता ऐसी है कि मैं तुम्हें दूर फेंकने के लिए सहन नहीं कर सकता हुं, और फिर भी तुम मुझे अपनी मालकिन के प्रति मेरी ज़िम्मेदारी याद दिलाना बंद नहीं करोगे। और वह मंदिर में वापस चला गया, उसके हाथ में अशोक के फुल थे और मधु (चेतना) की छवि उसके दिल में थी। उस प्रकार के मर्द की तरह से, जिनके हृदय पर एक जोर दार आँखों से वार किसी औरत ने, और वह चकना चुर हो जाता हैं।

     और इस प्रकार से वह पत्तियों के बिस्तर पर लेटते हुए, सारी रात पड़ा रहता है, और सुबह में, वह सूरज के उदय होने से पहले उठ गया। और मंदिर से बाहर आकर उदास झिल कि सिढियों पर खड़ा हुआ। झिल के किनारे पर एक बगुले की तरह ध्यान में चला गया और उसके विल्कुल पता ही नहीं चला कि उसके पास चेतना कब और कैसे आई? और उसने अपने सामने उसे अपने हाथों में लाल पलाश को फूलों के साथ अपने पास खड़े हुए पाया। तब उसने कहा हे राजा, मेरी मालकिन ने अपने भगवान के लिए, इन अयोग्य हाथों के द्वारा इन फूलों को भेजा है। और यदि आपको रात्री में अच्छी नींद आई, तो यह उनके लिए अच्छा है।

      तब राजा ने कहा प्रिय, नींद, एक ईर्ष्यापूर्ण प्रतिद्वंद्वी की तरह, मुझे हमारे साथ लगातार हर दौरे पर अपराध किया करती है। और मेरे पास नहीं आती है, और उसने कहा, एक मुस्कुराहट के साथ हे राजा, उसे नाराज न होने दें, जल्द ही मेरी यात्रा समाप्त हो जाएगी। तब राजा ने एक आह के साथ कहा! ऐसा मत कहो क्योंकि तुम ने मेरे दिल में बहुत गुप्त स्थान बना लिया है। क्योंकि तुमको मुझे इस घृणास्पद विवाह को अपनी मालकिन के साथ लंबे समय से बांधना नहीं चाहिए, क्योंकि वह अब और इंतजार रखने के लिए विनम्र नहीं होगी और फिर, हाँ! मेरे और तुम्हारें मध्य में कौन-सा सम्बंध बनोगा? जब तुम्हारी यात्रा समाप्त हो जाएगी। और यदि तुम्हारी मालकिन को मुझ पर संदेह हो गया। तो वह तुमको मार डालेगी। तब चेतना ने कहा नहीं, ऐसा नहीं है, क्योंकि मेरी मालकिन हम दोनों के लिए, और मेरे लिए अच्छी तरह से शुभकामनाएँ देती है। और मुझे डर है कि अब तक आप उसे नहीं जानते हैं। तो यह पूरी तरह से आपके बाहर हो सकता है। और आप मेरी मालकिन को प्राप्त करने के बाद इस अयोग्य चिट्ठी लाने वाले को पुरी तरह से भूल जायेंगे। तब राजा ने कहा सूर्य मेरे लिए गवाह बनो, कि मैं ऐसा नहीं करूँगा। इसके बजाय मैं उसे उसके पिता के पास वापस भेजूंगा? उसके पिता को वह करने दो जो वह करना चाहता है। उसे अपना राज्य ले जाने दो और इस राज्य को भी अपने राज्य में जोड़ लेने दो, इससे मुझे कोई परवाह नहीं है। वह मुझे केवल इस जंगल के साथ और इस झील के साथ अकेला छोड़ दे। जिससे सुबह में अपने पास आने वाले आगंतुक के स्वागत के लिए मैं यहाँ पर उपस्थित रह सकुं। इस पर चेतना ने राजा को मुस्कान के साथ देखा, और कहा हे राजा, ये निष्क्रिय शब्द हैं। और मुझे अच्छी तरह से पता है कि आप उसे वापस कभी नहीं भेजना होगा। तब राजा ने कहा चेतना मैं ऐसा अवश्य करूँगा। तब उसने कहा नहीं, वह उसे धोखा दे रही थी। और अपने खुद के शब्द के रुख को बदल दिया। जो धोखे का आधार है, लेकिन निष्ठा अच्छी है। इसके अलावा, वह आपके हाथों में एक मोहरे कि तरह से है। जिसे आप जब चाहें अपने पास रख सकते हैं या फिर उसको अपने से दूर रख हो सकते है।

      क्या आपको पता है? कि एक बार एक बहुत बड़ा पुराना व्यापारी था, जिसके पास एक बहुत बड़ा मोती था जो बड़ि मुस्किल से किसी के हाथ में आता था। जो समन्दर के झाग के समान चमकिली था। जिसको समन्दर के अन्दर के एक गुफें में से बड़ी मुस्किल से चाँदनी रात में स्वाती नक्षत्र के समय में, इसके खोल से इसको निकाल कर एकत्रित किया गया था। जो किसी बड़ें गेद के समान था। जिसके कारण इस मोती की प्रसिद्धि उस राज्य में चारों तरफ सर्वव्याप्त था। फिर वह व्यापारी एक यात्रा पर जाने वाला था। इसिलए वह अपने भाई व्यापारी के पास गया, और उस व्यापारी को वह मोती देते हुए, उससे कहा इसको अपने पास बहुत अच्छि तरह से सुरक्षित रखना। जब तक मैं अपनी यात्रा से वापिस नहीं आ जाता, और इस प्रकार से मैं बिना किसी भय के निर्विध्न रूप से बिना चिंता के अपनी यात्रा को कर सकता हूँ और मैं अपनी यात्रा से आने के बाद अपना मोती तुमसे वापस ले लुंगा। और इस प्रकार से वह व्यापारी अपनी यात्रा पर चला गया। यद्यपि दूसरे व्यापारी ने उस मोती को जमिन के अंदर गाड़ दिया। और फिर उसके बाद उस राज्य का राजा उस व्यापारी के पास आया। और उस व्यापारी से कहा कि वह मोती मुझको दे दो। जिसको तुमनें अपने पास सुरक्षित रखा है। और इसके बदले में मैं तुमको बहुत अधिक धन दुंगा। अंयथा मैं जबरजस्ती अपने ताकत के दम पर तुमसे छिन लुंगा। फिर व्यापारी ने कहा एक हफ्ते का इंतजार करने के लिए, और इसके बदले में आप क्या चाहते हैं, क्योंकि मुझे इसे देखना अच्छा लगता है? राजा ने कहा इसके लिए, मैं तुमसे एक करोड़ रुपये लुंगा और तब मैं एक सप्ताह तक इंतजार करूंगा। तो व्यापारी ने उन्हें एक करोड़ दिया। और अपने पास इस प्रकार से उस मोती को सुरक्षित रखा, लेकिन एक सप्ताह के बितने के बाद राजा फिर से आया। और कहा मुझे अब मोती दे दो, और व्यापारी ने उस मोती को देखने के लिए एक करोड़ देकर, एक और सप्ताह के देरी के लिए खरीद लिया। और इस प्रकार से उस व्यापारी ने कुछ समय बाद अपनी सारी संपत्ति समाप्त कर दी। जिससे वह व्यापारी भिखारी बन गया । तब राजा ने कहा मुझे अब मोती दे दो। फिर व्यापारी ने कहा मेरी एक पुत्री है, जो बहुत सुन्दर है। और आपकी सभी रानियों में सबसे अधिक सुंदर है, इसको आप अपने साथ ले जाइये। और मुझको एक सप्ताह और इस मोती को रखने के लिए समय दिजीयें। राजा ने वैसा ही किया जैसा कि व्यापारी ने कहा था। जब एक सप्ताह बित गया। तो वह राजा फिर व्यापारी के पास आया, और व्यापारी से कहा कि मुझे वह मोती दे दो। तब व्यापारी ने कहा आप मेरी जान को ले लीजिये, और एक सप्ताह के समाप्त होने पर आप मुझको फांसी पर चढ़ा देना। जिससे यह मोती आपका स्वयमेंव प्राप्त हो जायेगा। राजा फिर व्यापारी की बात को मान लिया और कहा ठीक है। और वहाँ से चला गया।

       इसके ठीक तीन दिन बितने के बाद ही वह व्यापारी अपनी यात्रा से वापिस आगया। वास्तव में जिसका वह मोती था। अर्थात जो मोती का असली मालिक था। और वह अपने व्यापारी भाई के पास गया। अपने मोती को मांगने के लिए और उस मोती को दूसरे व्यापारी ने उसके मालिक अर्थात अपने भाई को देते हुए, कहा कि तुम विल्कुल सही समय पर अपनी यात्रा से वापिस आगये हो। यह रहा तुम्हारा सुरुक्षित मोती और अभी तक सब कुछ ठीक है।

      और फिर वह व्यापारी राजा के पासा गया। और उससे कहा कि मोती का असली मालिक अपनी यात्रा से वापिस आ चुका है। और मैंने उसका मोती उसको दे दिया। जिसनें मेरे पास मोती को सुरुक्षित रखने के लिए दिया था। और जैसा कि मैंने अपने आपको आपके पास बेच दिया है। इसलिए मैं आपके पास आगया हूँ। तब राजा ने कहा क्या तू मोती है? जिसके लिए मैं इंतजार कर रहा हूँ। व्यापारी ने कहा अब तुम मेरी बेटी से शादी करोगे, और अपने आप को शुद्ध करोगे, जैसा कि मैंने उसके सामान को लिया था और उसको शुद्ध रूप से वापिस दिया है। क्योंकि वह तेरे हाथों में जमा थी और मेरा साम्राज्य और मेरे सारे मामलों की तुलना में और अधिक होगा उसको उसी रूप में तुमको वापिस करना होगा। जैसा करने में तुम असमर्थ हो।

      फिर चेतना ने राजा के कदमों में फुलों को रख कर वहाँ से दुर चली गई। लेकिन राजा वही पर खड़ें हो कर उसको जाते हुए देखता रहा। तब तक जब तक कि वह उकी आँखों से ओझल नहीं हो गई। और फिर वह निचे झुक अपने कदमों पर पड़ें फुलों को उपर उठा लिया। और कहा ओ लाल पलास के फुल इस समय तुम मेरे हाथों में सुरक्षित हो, और मैं कैसे उसके बगैर रह सकता हूँ? या उसके सामने अपने सम्मान को कैसे बनाए रख सकता हुं? क्योंकि वे असंगत हैं? और वह अपने हाथ में फूल के साथ मंदिर में वापस चला गया, दुविधा से बचने का कोई रास्ता खोजने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह सब व्यर्थ सिद्ध हो रहा था।

 

 

 

दो आत्माओं का प्रेम मिलन

 

     इस प्रकार से वह राजा अपनी सारी रात को बिना निद के जागता रहता है, अपने पत्तियों के बिस्तर पर करवटे बदलते हुए। इसी प्रकार से उसने अपनी सारी रात्री को व्यतित कर देता है। और प्रातःकालिन भोर में जैसा कि वह रोज सुबह में ही उठ जाता है, आज भी उसी प्रकार से अपने विस्तर को छोड़ कर, वह सूरज के उदय से पहले उठकर मंदिर से बाहर चला आया। और तब वह झील में तैरती मछलीयों को देखने लगा। वह मछलियाँ पानी से अपने चांदी के समान सिर उठाकर कमल के डंठल को पकड़ने के लिए प्रयाश कर रही थी। तभी उसने देखा कि चेतना अपने हाथों में शमी के पीले फूलों को लेकर उसके सामने आ रही थी। किसी वृक्ष पर वेल कि तरह से बलखाते हुए, जिसके देख कर  ऐसा प्रतित हो रहा था कि जैसे वह सर्प के समान लहरा कर उसके पास आ रही हो। जब वह राजा के पास आगई, तो उसने रोज की भांती राजा से कहा मेरी मालकिन ने अपने भगवान के लिए मेरे इन अयोग्य हाथों के द्वारा इस शमी के फुलो को भेजा है। और कहा है कि आपकी रात्री जब अच्छी तरह से गुजरी होगी, तो यह उनके लिये बहुत अच्छा होगा।

        तब राजा ने कहा प्रिय चेतना उसे किस तरह से अच्छी निंद आसकती है। जिसको पहले से पता है कि वह मरने वाला है? इस पर चेतना ने कहा हे राजा आपका जीवन बहुत अच्छा और सुन्दर है। निश्चित रूप से जैसे चन्द्रमा पुनः नविन उदय होता है, उसी प्रकार से यह आपके जीवन का सबसे बहुमूल्य अध्याय कि तरह से है। जब इस प्रकार का जीवन आपके पास पहले था, जिसकी कोई किमत आपके नजरों में नहीं थी। लेकिन आज उसी जीवन की किमत आपकी नजरों में अनमोल हो चुकी है। इस पर राज ने कहा हाँ, क्योंकि मेंने इससे पहले तुम्हारें चेहरें को नहीं देखा था। इसी के कारण हमारे साथ ऐसा हुआ था। और इस पर चेतना मुस्कुराते हुए राजा से कहा हे राजा लेकिन क्या मैं एक औरत नहीं हुं? और आपकी आँखों में क्या वह सब औऱत नहीं थी जिसको आपने मुझसे पहले देखा था? तब राजा ने कहा तुम उन सबसे भिन्न किस्म की औरत हो। मैं उनके उपर विल्कुल ध्यान नहीं देता था, निश्चित रूप से मैं उन सबको पूर्ण रूप से औरत नहीं मानता था। वह सब मेरी नजर में औरत के रूप में लिए केवल एक प्रकार का झासा और भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं थी। परमेंश्वर ने इन औरतो कि दो प्रजाति बनाइ है। एक औरत जिनकी संख्या अधिक मात्र में है, वह साधारणतः औरते हैं और संसार के हर एक पुरुष को मिलती है। और दूसरी प्रकार कि औरतें उन सब से अलग होती हैं, जो तुम्हारी तरह से होती जिनकी संख्या इस संसार में बहुत कम है। और किसी पुरुष को ऐसी औरतो का मिलना बहत अधिक दूर्लभ है। और वह जिस शरारत भरी अपनी आँखों से मुझको देखती है।

       तब चेतना ने कहा और किस श्रेणी मैं आपने मेरी मालिकीन को रख सकती हुं? इस पर राजा बहुत अधिक व्यग्र होते हुए कहा कि तुम उसको इससे बाहार ही रखो, वह सफेद मार्बल के कठोर पत्थर के समान है। चेतना क्या तुम मुझको उसको कुछ समय के लिए भुलने की आज्ञा नहीं दे सकती हो। क्या मैं तुमको उसके स्थान पर अच्छी तरह से कुछ समय के लिए याद कर सकता हुं? तब चेतना ने कहा हे राजा यह आपके लिए अच्छी बात नहीं है। आप मेरी मालिकीन को कैसे भुल सकते हैं? जो आपकी याद में हमेशा रहती हैं, और वह आपसे विवाह की इच्छा रखती हैं, जिसमें ही आपको और उनको दोनो को आनंद मिलने की संभावना है। इन शब्दों पर राजा उसी प्रकार से विगड़ गया जैसा कि कोई श्रेष्ठ नस्ल का घोड़ा किसी चाबुक की मार से विगड़ता है। और उसने कहा चेतना तुम इस प्रकार से मेरी प्रातः कालिन की शुबह में जो अमृत के समान है, उसमें जहर मत मिला कर दूषित मत करो। इसके बारें मैं अच्छी प्रकार से जानात हु, कि तुम्हारी मालिकीन के प्रति मेरा व्यवहारा एक सज्जन पुरुष की तरह से नहीं है। और अब तक इस मामले में जहाँ तक मैं समझता हुं कि चतुम मुझकों इसके लिए अपराधी या दोषी नहीं समझोगी। और जैसा कि तुम्हारी मालिकन का स्वभाव है, यहीं उसके लिए अच्छा होगा, कि वह मरे से अधिक से अधिक दुर पर ही रहे। जैसे कि मैं हूँ ही नहीं । इस पर चेतना ने राजा से कहा क्या मेरी मालिकीन ने जिनको प्राप्त किया है वह आपसे अलग कोई और को अपने जीवन में धारण करने के लिए नहीं चुन सकती है? और अब तक जो उनकी क्षमता से बाहर है अगर वह कर सकती हैं। तो क्या उनको ऐसा करना चाहिए। यह उसी प्रकार से होगा जैसे मैंने स्वयं अपने पुनर्जन्म के मुल कर्म फलों को भोगने से मना कर दिया हो। राजा ने आह भरते हुए कहा जो भी हो मैं नहीं जानता, उसने मुझको क्यों चुना? वह मेरे जीवन को निश्चित रूप से नष्ट कर सकती है। इतना मैं अवश्य जानता हूँ। फिर चेतना ने राजा से कहा इसका मतलब यह तो नहीं कि यह भाग्य और कर्म का सिद्धांत केवल देवताओं के लिए निश्चित हैं। और रानी की जिम्मेदारिया किसी सामान्य औरत से अधिक नहीं हैं। औऱ इस राजा ने एक बार फिर आह भर कहा यह कौन-सा मामला ले कर तुम मुझको उलजाने का प्रायास कर रहीं हो। जिसमें मैं विल्कुल ही रुची नहीं लेता हुं। क्या तुम नहीं जानती हो कि तुम्हारी मालिकीन बहुत कोठर हृदय वाली है। और उसकी आवाज बहुत अधिक बेरहम के साथ वेरुखी से भरी है। और उसके शब्द भी बहुत अधिक कड़वे के साथ वेसुरे हैं। कल मैं अपनी जीम्मेदारियों का और अपने कर्तव्यों का वहन करने के लिए तुम्हारी मालिकीन के पास जाउंगा। और अपने सुझाव कर्ता के साथ अपने ज्योतिषियों से सम्पर्क करुंगा। और उनसे एक तारिक तय करने के लिए करहुगां, जिस दिन मैं अपने विवाह उत्सव को समपन्न कर सकु, लेकिन आज तुम मुझे पूर्ण रूप से उसको देखने और सुनने दो जिसके लिए मेरा हृदय लालाइत है। और आज शाम तक तुम मेरे साथ यहीं पर रहो, जिससे मैं अपनी विखरी हुई शक्ति को संयमित करके कल के लिए पूर्ण रूप से स्वयं को तैयार कर सकु।

      फिर चेतना ने राजा की आँखों में कुछ पल के लिए बड़े ध्यान और विनम्रता के साथ देखा और कहा कि हे राजा जो हम सब के भाग्य को बनाने वाला है। या हम सब की रचना करने वाला है उसने हम सब के ललाट पर जो एक बार लिख दिया है। उसको किसी आदमी के द्वारा मिटाना असंभव है। और इस पृथ्वी पर ऐसा कोई नहीं है। जो उसको बदलने का सामर्थ रखता है।

       बहुत समय पहले की बात है एक राजा था और उसकी बहुत-सी रानियाँ थी जिसमें से उसकी सबसे प्रिय एक रानी ती जिसका नाम श्री था, जो अपने नाम के विल्कुल अनुकुल नहीं थी।

       लेकिन फिर भी वह एक छोटी-सी सज्जन औरत थी, वह कभी भी अपने बारें में कुछ भी नहीं सोचती थी, जिसको राजा अपने आत्मा के अन्तःकरण की गहराइयों और दिल से चाहता था। जिसके कारण ही उसने अपने संपूर्ण सामराज्य की बागडोर उसके हाथ में दे दिया था। और अपने जीवन को भी उसके लिए समर्पित कर रखा था। इसके साथ संपूर्ण संसार के धनऐश्वर्य के साथ वह तीनो लोक की संपत्ती को उसके सर के एक बाल की रक्षा के लिए खर्च करने लिए तैयार था।

        तभी एक दिन ऐसा हुआ कि उस राजा की राजधानी में एक अपराधी ने एक बहुत घृणित अपराध का कार्य किया, जिसके लिए राजा ने तत्काल उसको सजा के रूप में तत्काल मृत्यु दण्ड का आदेश दे दिया, और ऐसा ही किया गया। फिर इसके कुछ समय के बाद राज पुरोहित राजा के पास आया, और राजा से कहा कि हे राजा जिस आदमी को आपने मृत्यु दण्ड की सजा दिया है। वह एक ब्राह्मण था जिसके कारण से इस राज्य के देवता आप पर और आपके राज्य पर अत्यधिक क्रोधित हो चुके है। और इसके बदले में जब तक आप बली चढ़ाकर अपने आपराध के लिए प्रायश्चित नहीं करेगें, (इसका मतलब हैं जब भारत में ब्राह्मणओं के भयंकरतम अपराध करने पर भी, राजा यदि दण्ड देता था, तो राजा को उसके लिए ब्राह्मणों ने राजा को प्रायश्चित करने का नियम बनाया था) तब तक इस राज्य के देवता शांत नहीं होगें और उनकी आज्ञा का उलंघन करने पर आप पर और आप के राज्य पर बहुत बड़ा संकट आयेगा। और आपका सब कुछ उनके श्राप से कारण से नष्ट हो जायेगा। जिससे राजा काफी परेशान हो गया, और पुरोहित से कहा किसकी बली देनी पड़ेगी। तब पुरोहित ने कहा जिस रानी को आप सबसे अधिक प्रेम करते हैं, जिसको सुन कर राजा और अधिक दुःखी हुआ और उसके हृदय में भय का आंतक छा गया। क्योंकि सबसे अधिक प्रेम तो वह अपनी रानी श्री से करता था। लेकिन इस बात को पुरोहित से उसने छुपा लिया, और कहा कि आह मैं तो सबसे अधिक प्रेम अपनी रानी प्रियदर्शनी से करता हु। वही मेरी रानियों में सबसे अधिक सुंदर हैं, तो पुरोहित ने कहा कि ठीक हैं फिर कल शुबह उनकी ही बली चढ़ायी जायेगी। अर्थात बली के रीवाज को समपन्न किया जायेगा। और वह सारे पुरोहित वहाँ से चले गये, और अगले दिन शुबह राज्य के सभी लोगों की बड़ी भीड़ एक सभा को रूप में, बली की प्रक्रिया के पूरे होने वाले पत्थर के पास एक बड़े मैदान में एकत्रित हो गई। और राजा भी वहाँ अपने सिहांसन पर विराजमान हुआ और फिर वहाँ पर जिस रानी का बली को चढ़ाना था उसको लबादें से ढक कर लाया गया। और फिर उसकी बली की रस्म को पुरा करने के लिए, अपने हाथ में एक तेज धार कटार ले कर अक पुरोहित जल्लाद उसके पास खड़ा हुआ, और फिर उस पुरोहित ने उस रानी के उपर पड़े लबादें को हटाया। जिसकी वजह से वहाँ उपस्थित सभी लोगों के साथ स्वयं राजा ने भी देखा कि वह प्रियदर्शनि नहीं यद्यपि वह तो राजा की सबसे सुंदर और सबसे अधिक प्रिय रानी श्री थी।

        जिसको देखने के बाद राजा को बहुत अधिक घोर यातना अर्थात कष्ट का अनुभव हुआ। जिसके कारण वह जैसे अपने सिंहासन के साथ बंध गया हो, उसको ऐसा प्रतित हुआ। और उसके आँखों के सामने से संपूर्ण संसार जैसे कुछ समय के लिए अदृश्य हो गया हो। और उसने अपने हाथों को जोड़ लिया वह नहीं जानता था कि वह क्या कर रहा है। जिसके साथ वह बहुत तेजी के साथ रोने और हाथी के समान चिग्घाड़न लगा। आह नहीं, नहीं, श्री नहीं, नहीं श्री, लेकिन पुरोहित ने राजा की कोई बात नहीं सुनी उसने उसके गले पर अपनी कटार को चला दिया, उसके कपड़ों को पकड़ कर जिसके कारण वह निचे गिर गई और कुछ पलो में ही पुरोहित ने उसकी शरीर पर बार-बार वार अपनी कटार से करने लगा। जिसके कारण राजा से यह देखा नहीं गया और तत्काल राजा अपनी पत्नी श्री के शरीर की रक्षा के लिए एक बांघ के समान उसके उपर कुद कर उसको अपने शरीर से ढक लिया, जिसके कारण पुरोहितों की कटार राजा के हृदय में धंस गई।

       और फिर श्री ने अपनी आँखें खोल कर देखा राजा के शरीर के निचे से, अपने चारों तरफ कुछ देर के लिए वहाँ पर भारी एकत्रित भीड़ को, और वह राजा के शर को अपने गोद में लेकर जमिन पर बैठ गई। और इसके कुछ पलो के बाद वह राजा के उपर गीर गई, जिसके साथ वह राजा की आत्मा के साथ अपनी आत्मा को एक कर के किसी दूसरे लोक के लिए प्रयाण किया, अर्थात दोनो प्रेम भरें आलिंगन के साथ मृत्यु को गले लगा लिया। और उस लोग में पुनः प्रवेश किया जहां पर कभी कोई मरता नहीं है।

       इतना कह कर चेतना ने अपना कहना बंद कर दिया, और राजा के चरणों में फुलों को रख दिया। और वहाँ से जाने के लिए घुम गई, लेकिन राजा ने अपनी उत्तेजना के साथ अपने सर को जोर से झकझोर दिया। और वह अपनी लड़खड़ाती हुई आवाज में अर्थात हकलाते हुए कहा क्या! क्या तुम इतनी जल्दी चली जाओगी, लगभग पहुंचने से पहले? हे मुझे तुम एक और कहानी सुनाओ, जिससे कि मैं तुम्हारी आवाज़ सुन सकु। या, यदि तुम चाहो तुम कुछ भी मत कहो वस जहाँ तुम हो केवल वही खड़ी रहो, जिससे मैं तुमको एक कला कृति की तरह से दखता रहुं। और मैं सिर्फ़ तुम्हारी तरफ देखना चाहता हूँ। जिससे अपनी नींद में मैं तुम्हारी मुस्कुराहट के साथ तुम्हारीं गहरी नीली आंखों का रंग के साथ मेरी आत्मा में गहरा उतर जाएगा। और ऐसा नहीं हुआ तो मैं वहाँ कभी भी स्थिर नहीं रहुंगा। जब तुम चली जाओगी, तो मुझे निराशा से दूर रखने के लिए अपनी आत्मा को किसी और दूसरें रंग से रंगना होगा। तब वह एक बार फिर राजा की तरफ घम कर अचानक वह राजा के करीब आ गई। और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया। और उसने कहा हे राजा, अब मुझे जाना होगा। क्योंकि यह समय मेरे यहां से जाने का है। लेकिन रुको यह हो सकता है कि मेरी मालकिन मुझे दोबारा वापस भेज देगी, क्योंकि कल के लिए व्यवस्था करने के मामले हैं। और वह राजा के लिए एक बार फिर मुस्कुरा दी और जंगल में पेड़ों के माध्यम से जल्दी से चली गई। जबकि राजा वहाँ स्थिरता के साथ खड़ा था। और जब वह चली गई, तो उसे देखा और फिर वह निचे झुक कर अपने पैरों पर पड़ें शमी के फूलों को उठा लिया। और उसने कहा शमी, तुम मेरे जैसे, अपने दिल में आग लगाओ और तुम अस्वस्थ के लिए क्या हो, वह ज़रूर कुछ तुमसे अधिक स्वस्थ करने में समर्थ है, जिसने तुम्हें मेरे चरणों में रखा है। तुम्हारी तरह मेरे लिए ज़रूरी थी, लेकिन उसके हाथ के स्पर्श के बाद मेरे हृदय में एक ज्वला-सी जल उठी है और यहाँ मैं झील के किनारे पर उसका इंतजार करूंगा और यदि वह नहीं आती है, तो मैं एक और सुबह देखने के लिए नहीं रहूंगा।

        और वह झील के किनारे इंतजार कर रहा था, कभी उठ रहा था और कभी अत्यधिक अधीरता कारण बैठा जाता था। और उस जगह पर अपनी आंखें तय कर रहा था जहाँ पर चेतना जंगल के पेड़ों के मध्य में गायब हो गई थी। और इस बीच घंटों एक दूसरे का पीछा किया, और आकाश में सूर्य उच्च और उच्च गुलाब के खरें फुलों की तरह से खिलने लगा। और उसकी गर्मी तब तक बढ़ी, जब तक कमल के फुल उस गर्मि के कारण सूर्य के प्रकाश में नीचे बहने वाली झील पर चांदी की तरह चमकने नहीं लगे। और मछली गर्मि के कारण पानी में सोने के लिए चली गई थी। और सभी पक्षि पेड़ पर अपने घोसलों में सोने लगे थे। और मधुमक्खियों ने फुलों पर हमला कर-कर के थक गई थी। और फूलों के रस को पिने के लिए उसमें अपना सरांय बना लिया था। और सारा जंगल जैसे कि इस समय एक कब्र में स्वयं को दफना लिया था। और पत्तियाँ बागों में घूमना भूल गईं थी और-और तभी इस मायुशी के आलम में राजा ने अपनी तरफ आती हुई चेतना को एक बार फिर कुछ दूरी पर देखा। जहाँ से वह चली गई थी, वहीं से वह आ रही थी। और वह दीवार पर एक तस्वीर की तरह एक पल के लिए खड़ा था। जबकि राजा ने उसे एक उत्साह में देखा, अपने दिल की धड़कन को चुप्पी में प्रसन्नता के गीत को सुनते हुए। फिर, थोड़ी देर बाद, उसने जादू को तोड़ दिया और चले गए और वह बहुत धीरे-धीरे उसके पास आई और उसके सामने आकर खड़ी हो गई थी। लेकिन उसने अपने हाथ में इस समय कुछ भी नहीं लिया। और उसने कहा हे राजा, मेरी मालकिन कमल की इच्छा रखती है और मुझे उसे अपने भगवान से लाने के लिए भेजा है।

       और राजा ने उसे देखा, क्योंकि वह उसके सामने खड़ी थी, उसकी आंखें जमीन पर स्थिर थी। और उसकी लंबी घुमांवदार भौहें उसके गाल पर छाया की तरह झूठ बोल रही थीं और उसका दिल उसके मुंह में उठ आया। और वह चुप हो गया और उसने बात करने की कोशिश की, लेकिन उसके होंठों पर शब्द आने से पहले ही मर गए. तो वे दो जंगल में खड़े थे, जो स्थिरता से घिरे थे और अंत में, राजा ने बात की और उसने कहा प्रिय चेतना, एक बात है जो मैं आपसे पूछूंगा लेकिन मुझे डर है। तब उसने कहा राजा डरता है क्या? और उसने उसे एक पल के लिए एक मुस्कान के साथ देखा जो उसके होंठ पर होने से लगभग गायब हो गये थे। और उसने अपनी आंखें निचे चमिन पर गिरा दी। तब राजा ने कहा चेतना, क्या तुम मुझे बता सकती हों, क्या मैं तुमसे प्यार करता हूँ, या नहीं?

       और जैसे ही राजा ने उसे देखा उसके चेहरे पर रंगत आई, और पुनः चली गई और अंत में उसने धिरे से कहा, वह चिकित्सक कैसे निर्णय ले सकता है, जो इस प्रेम के लक्षणों को नहीं जानता है?

        तब राजा अपने स्थान से उठ कर खड़ा हो गया। और उसके करीब जाकर खड़ा हो गया, और उसने अपने दोनों हाथ को उसके पीछे रखे और उन्हें एक साथ चुस्त कर दिया। और उस अपने प्रति झुका लिया, और कहा इसलिए मैं तुमसे पूछता हूँ, क्योंकि मैं नहीं कह सकता कि मैं तुम्हारे साथ प्यार करता हूँ। या नहीं। एक बार पहले, मैंने सोचा कि मैं प्यार में था, लेकिन तब मुझे लगा जैसे मैं अब करता हूँ, और यदि फिर, मैं प्यार में था, मैं अब नहीं हूँ; और यदि अब, मैं नहीं था, तो और हो सकता है, तुम मुझे बता सकती हो। क्योंकि तुम बहुत चालाक हो, जैसा कि मैं नहीं हूँ। क्योंकि जब मैं तुम्हें देखता हूँ, अँधेरा मेरी आंखों पर फैलता है। और आग मेरे हृदय में के माध्यम से मेरे नश-नश में उछलने लगती है और दौड़ती है। और तुम्हारी आवाज़ का जादू मुझे बेहोश कर देती है। और वह मुझे बर्फ के स्पर्श की तरह ठंड में जलन जैसी महशुस होती है। और एक कवच मेरे अंगों पर लौ की तरह चलता है। और मेरे कानों में एक प्रकार निर्जन शोर उछालता है। और मुझे नहीं पता कि मैं क्या करता हूँ। और आँसू मेरी आंखों में आ जाते हैं, और फिर भी मैं खुशी के लिए हँसना चाहता हूँ। और अगर मैं बात करने की कोशिश करता हूँ, तो मेरी आवाज थरथराती है, जैसा कि अब करता है और मेरे गले में एक संघर्ष और बाधा आती है। और मैं सांस लेने की कोशिश करता हूँ। और नहीं कर सकता और दर्द मेरे दिल को बहुत अधिक दबा देता है। और मुझे क्या लगता है, कि अब मैं कुछ नहीं बता सकता, लेकिन यह मुझे पता है कि जब तुम मेरे साथ हो, यह मेरे लिए जीवन के समान है। और जब तुम मुझे छोड़ कर चली जाती हो वह मेरे लिए तो वह मृत्यु के समान है।

       लेकिन चेतना शांती के साथ वहाँ पर खड़ी रही, जिसके साथ उसके निचे के होठ कांप रहे थे। और आसुं लग-भग उसकी आखों से बह कर उसके गालों पर आगये थे। और उसके स्तन गहरी शांस लेने की वजह सो उपर और निचे हो रहें थे। और अंत में उसने अपनी आँखों को उपर उठाया और अपनी आँखों के आसुंओं के मध्य में से मुस्कुराई और कहाँ हे राजा यह और अच्छा होगा कि मैं यहाँ से इस समय चली जाऊँ, क्योंकि यह आपके कहे गयें शब्द मुझसे अधिक मेरी मालिकिन के लिए ज़्यादा उपयुक्त हैं।

       और फिर राजा ने एक गहरी शांस ली, और उसके सामने खड़ा रहा और वह इधर उधर देखने लगा, फिर वह हसंने लगा और कहा तूने मुझे निराशा के लिए प्रेरित किया है। और इसके लिए को मुझे परवाह नहीं है। देख लो! कि मैं एक आदमी और एक मजबूत आदमी हूँ और तुम एक छोटी-सी महिला हो। इसलिए तुम नहीं जाओगी, क्योंकि तुमने मेरी ज़िन्दगी को मुझसे छिन लिया है।

        और अचानक, राजा ने उसे अपनी बाहों में कैद कर के कस लिया, और जैसे ही उसने ऐसा किया, वह चिल्लायी और उसकी बांहों से निकलने के लिए वह छटपटाने के साथ कश म-कश करने लगी। उस समय वह आधी भयभीत और आधी खुंश भी थी, उसने कहा आर्यपुत्र, मुझे जाने दो। क्या आपने अनुमान नहीं लगाया कि मैं आपकी रानी हूँ?

         इसको सुनते ही राज उसको छोड़ कर एक दम हवा में छलांग लगाते हुए उससे दूर जा कर खड़ा हो गया। जैसे किसी तलवार ने उसके हृदय को विदिर्ण कर दिया हो। और वह आश्चर्य चकित हो कर खड़ा रहा और चेतना उसको देख रही थी। और लग-भग अपनी इच्छा के विपरित उसने मुसकुराना शुरु कर दिया। और उसके सामने खड़ा हो कर अद्भूत आनंद के साथ उसको घुरता रहा। और उसने जोर से हंसते हुए आश्चर्यचकित होकर और फिर शर्मिंदगी के साथ और अंत में खुशी से उसके सामने देखी। और उसने कहा हंसो खुब हंसो, क्योंकि तुम्हारी हंसी मेरे कान के लिए संगीत है। और मुझे इसका कोई परवाह नहीं है, जब तक तुम मेरे साथ हो। लेकिन हे तुम भ्रमित हो, यह क्या है? क्या तुम नहीं थी जिसने मुझे रानी को धोखा देने के लिये मना किया है? और फिर भी तुमने मेरे साथ यह सब प्रेंमालाप किया है?

        और तुरन्त, मधु (चेतना) ने हँसना बंद कर दिया और आँसू उसकी आँखों से ढलते हुए उसके गालो पर गिर गए और उसने अपने पति को एक मुस्कुराहट के साथ देखा और अचानक वह उसके पास आई। और उसे हाथ से पकड़ कर अपने साथ ले गयी, और उसने उसे वहाँ से दूर ले गई, और वह उसके चरणों में बैठ गयी, और कहा तुम वहाँ बैठो उचें स्थान पर बैठो और मैं तुम्हें बताऊंगी। तब वह दाहिने ओर राजा के बगल में घुटने टेक कर बैठ गई, और अपना दाहिना हाथ उसके चारों ओर रख दिया और अपना बायाँ अपने आप में ले लिया। और उसने कहा मूर्खतापूर्ण और क्या तुम सोचते हो, क्योंकि कोई प्रकाश के रूप में हल्का था कि अन्य सभी महिलाएँ समान थीं? और क्या आपको यह भी लगता था कि तुम्हारी ज़िन्दगी किसी महिला के अमृत के बिना पारित किया जा सकता है? अब सुनो और मैं तुम्हें बताऊंगा, जो तुम नहीं जानते हो। क्योंकि जब मेरे पिता ने मुझे तुम्हें चढ़ाने के लिए भेजा था, तो मैंने भी अपने दूत को भेजा, जिसने मुझे आपके बारें में मुझको सब कुछ बताया था। और मैंने तुम्हें कभी देखा है इससे पहले कि मैं तुमसे प्यार करती थी और मैंने दृढ़ संकल्प किया कि यह आपके साथ समान होना चाहिए। और मैंने आपको लंबे समय अपने आप से दुर रखने का प्रयास किया, यह नहीं जानकर कि मैं कौन थी? और एक दिन मैं कमज़ोर थी और वह दिन था जब मैं तुम्हारे पास नहीं आया थी। और मैंने इसे तुम्हारे लिए रोने में पारित किया और दूर रहने के लिए मैं जितना कर सकता थी उससे कहीं अधिक किया था। और अब, मैं तुम्हें दिखाऊंगी कि जिसको आप कभी नहीं जानते, आपके जीवन की मिठास। जब तू प्रसन्न होता है, तो मैं तेरे सारे आनन्द को दोगुना करूंगी; और जब तू उदास होता है, तो मैं तेरे दु: ख को रोकूंगी और उसे हटा दूंगी और आनन्द से गहराई से तेरा आनन्द होगा। और जब तुम अच्छी तरह से हो, मैं तुम्हारी आत्मा को मनोरंजन और विविधता से भर दूंगी। और जब तुम बीमार होगे, तो मैं तुम्हारी देखभाल करूंगी। और यदि तुम थके हुए होगें, तो तुम मेरी छाती पर सो जाओगे और यह तुम्हारा तकिया होगा। और रात और दिन मेरी आत्मा तुम्हारे साथ रहेगी और तुम्हारे चारों ओर मेरी बाहों के साथ रहेगी। और जब तुम मुझे नहीं चाहते हो, तो मैं अनुपस्थित हूँ; और जब तुम मुझे दोबारा चाहो, मैं वहाँ रहूंगी और यदि मैं तेरे साम्हने मर जाऊँ, तो यह ठीक है और तू मुझे याद करगो, परन्तु यदि तू मुझे पीछे छोड़ देते हो, तो मैं अग्नि के माध्यम से आपका पीछा करूंगी। क्योंकि मैं तुम्हारे बिना नहीं रहूंगी, एक दिन के लिए भी नहीं। एक सपने की तरह और चांदनी की तरह और एक छाया एक तालाब की सतह पर जैसे रहता है। मेरे लिए कुछ भी नहीं गायब होना चाहिए, जब मुझे पदार्थ और उसकी वास्तविकता का ज्ञान दिया गया है। मैं क्या हूँ, यद्यपि इन दो आत्माओं कि एक प्रति और एक जीव की गूंज जो आप है? मेरा कर्तव्य और धर्म, आपको ध्रुव मान कर मडराना और आपकी अरुंधती, तुम्हारी रती और आपकी राधा, तुम्हारी चक्की और तेरे क्षेत्र भुमी, आपकी शक्ति और आपकी जुड़वां हूँ? मुझे केवल अपने प्यार के पहाड़ के साथ और दूधिया के महासागर की तरह मत रखना। मैं आपको अपना सब कुछ समर्पण कर दूंगी, और आपको दिखाऊंगी कि एक वफादार पत्नी के सौंदर्य से जो मक्खन है। और जो युवाओं की शराब है और खुशी का पेय है, और नमक हंसी, लहरों में जो झांग हैं और समुद्र में जो से पैदा हुआ है। और मैं तुझ पर एक अमृत और एक कपूर और कमल के एक मीठे आनंद की वर्षा करुगी। और आपको अपने जीवन का सार और स्वाद को दिखाऊंगी। और तुम्हारे पास वह मेरे बिना होगा, यह खाली था और बिना किसी अर्थ के एक शब्द और एक चंद्रमा के बिना रात।

      और फिर राजा ने उसका सिर अपने हाथों में रख लिया और उसने उसकी आंखों में देखा, और पता किया की उसके शब्द सच्चाई के काबील जबाब थे। और अचानक, एक हिंसक प्रयास के साथ, उसने उसे  खुद से दूर कर दिया और खड़ा हुआ, अपनी खुशी के जुनून के लिए, उसके दिल से अधिक सहन हो सकता था और फिर एक पल में वह उसके पास लौट आया। और उसने कहा, प्रिय, आप कुछ भूल गई हैं। और उसने कहा क्या? तब उसने कहा क्या तुम झील से अपनी मालकिन के लिए कमल नहीं ले जाओगी?

       तब चेतना खुशी से हँसने लगी, और उसने कहा हे राजा, तूने ठीक कहा है और वे एक साथ हो गए और झील की तरफ चले गए। और जैसे ही वे गए, राजा ने उसे देखा और थरथराया और उसने खुद से कहा फिर भी उसने मुझे चूमा नहीं है। और यह अभी भी आना बाकी है। फिर वे झील के पास पहुंचे और उन्होंने उसके किनारे पर एक बढ़ते हुए कमल पाया। और राजा ने कहा तू इसे फेंक देगी, और मैं तेरे हाथों से इसको पकड़ुंगा, ऐसा न हो कि तू पानी में गिर जाए और वह उसे अपनी बाहों में ले लिया। और वे झील में झुक गए और चेतना ने कमल के लिए अपने हाथ को आगे बढ़ाया। तब राजा ने उसके कान में फुसफुसाया देखो, मैंने तुम्हें पानी के पास लाया हुं।  एक के बजाय आपके दो चेहरे हो सकते हैं। अब, मैं किसको चुंबन दूंगा और जो मुझे चूमता है, चेतना या रानी है?

 

 mkpandey

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