मेरे मन तूने मुझे बहुत अधिक निराश किया, मैंने जो नहीं चाहा बार-बार तूने वहीं किया। मैं इस तरह से अशांत और असफल व्यक्ति के रूप में इस संसार को अलबिदा नहीं करना चाहता था। मगर ऐसा करने के लिए तू मुझे मजबुर कर रहा है। और हर तरह से मुझे निराश ही कर रहा है।
मैने स्वयं को इस संसार में कुछ अच्छा करने का इच्छा करता था। लेकिन तूने मुझे कहि का नहीं छोड़ा अब हमारें सामने बिमारियों के पहाड़ की बारिस कर रहा है। किसी तरह से स्वयं को मैंने सम्हाला हैं बड़ी मुस्किल से और तू मुझे फिर से धक्का देने लगा है।
असफलता की लंबी श्रृखला है हमारें खाते में सफलता की कोई एकाक है भी की नहीं मैं नही जानता। बहुत मजबुर औऱ लाचार कर रखा है। मैं आज यह निर्णय कर देना चाहता हुं कि आखिर तू चाहता क्या है? यह बता दे क्योंकि यह तेरे जीवन का का आखिरी समय चल रहा है। और मैं चाहत हुं कि मैं तूमसे से तो प्रसन्न नहीं हो सका तू ने हमें हर जगह पर परास्त कर दिया है। और मैं अब जान बुझ कर तुमसे परास्थ होने के लिए तैयार हो चुका हुं मुझे मरने का गम नहीं है और ना ही जीने की बहुत अधिक कामना है। मैं तो बश चाहता हूं तू एक बार पूर्ण रूप से प्रसन्न हो जा भले ही मेरी तबाही की यह अंतिम सिढ़ी हो। इसके बाद मैं इस दूनिया से सदा के लिए लुप्त हो जाउ।
एक बात तो निश्चित हैं कि इस संसार में तुम्हारा साथ देने वाला कोई नहीं है। जो भी करना है वह अपने दम पर करना है। यह तो पहली बात है दूसरी बात है कि तुम्हारी शरीर भी साथ देने के लिए परिपूर्ण रूप से तैयार नहीं है। यह उसी प्रकार से है जैसे कि समन्दर में कोई नाव होती है जिसमें छेद है। और वह सागर में डुबने वाली है इसका अहसास हर एक नाविक हो चुका है। और लग-भग सभी जानते है कि इस नाव पर अब सूरक्षित रहना मुस्किल ही नहीं असंभव है। अर्थात मरना ही है तो फिर डरना क्या? जो करना है उसको कर गुजरो मृत्यु से भी एक दो हाथ कर लो।
संसार में दरिद्रता के साथ जन्म लिए और दरिद्रता के हालत में मर जाना हैं यह मुझे स्विकार नहीं है। मैं स्वयं को अपने विरोधियों के सामने सिद्ध करना चाहता हु कि मैं हु और मुझमें दूसरो से हट कर कुछ विशेष सामर्थ है जिसके कारण मैं अपने मुकाम को हासिल करने में संसार में सफल हो चुका हु।
यह कहानी भविष्य को ध्यान में रख कर लिखी गई है, जब इस संसार के लग-भग सभी देश आपस में लड़ मर कर समाप्त हो चुके होंगे। और इसके पिछे कारण हैं कि इन सभी देशों में स्वार्थ और लोभ के साथ अत्यधिक भोग विलासिता के समानो के संग्रह के लिये आपस में युद्ध हुआ जिसमें लग-भग सभी देशों के पास जो अपने सुरक्षा के लिए परमाणु बम बनाये गये थे। उसका उपयोग किया जिसके कारण पुरी पृथ्वी लग-भग पृथ्वी का हर हिस्सा परमाणु के चपेट में आ गया। जिसमें से सिर्फ वह लोग बचें जो में जमिन के बहुत निचें बंकरों में थे। जब बंकरों का खाने पिने का सामान लग-भग समाप्त होने के कगार पर आगया, तो वह सब भी आपस में लड़ने लगे, और लोगो को अपने- अपने बंकरों से बाहर निकाल कर बचे खुचे सामान पर कब्जा करने लगे, जिसमें बहुत से लोगो के जान माल का नुकसान हुआ। फिर भी कुछ लोग बंकर से निकल कर स्वतंत्रता पूर्वक जमिन पर रहने का अभ्यास करने लगे। जिसके कारण वह सब एक भंयकर बिमारी से ग्रस्त हो गये और वह मानव मांस खाने के आदि होगये थे। पहले तो वह जो भी लोग बाहर पृथ्वी पर रहते थे। उन सब को खा कर अपनी भुख को शात करते थे। लेकिन जब पृथ्वी की सतह पर सिर्फ आदमखोर जीव ही बचें तो वह जमिन के अंदर रहने वाले समप्न्न लोगो पर भी हमला करने लगे। ऐसा करते हुए इन आदम खोरो ने इस प्रकार से एक जमिन के अंदर बंकर पर अपना कब्जा कर लिया। जिनको जमिन के अंदर बंकरो में रहने वाले लोगों ने नाम रख था आदमखोर भेड़िया समुह और इनसे स्वयं को बचाने के लिए संघर्ष रत हुए।
मैने स्वयं को इस संसार में कुछ अच्छा करने का इच्छा करता था। लेकिन तूने मुझे कहि का नहीं छोड़ा अब हमारें सामने बिमारियों के पहाड़ की बारिस कर रहा है। किसी तरह से स्वयं को मैंने सम्हाला हैं बड़ी मुस्किल से और तू मुझे फिर से धक्का देने लगा है।
असफलता की लंबी श्रृखला है हमारें खाते में सफलता की कोई एकाक है भी की नहीं मैं नही जानता। बहुत मजबुर औऱ लाचार कर रखा है। मैं आज यह निर्णय कर देना चाहता हुं कि आखिर तू चाहता क्या है? यह बता दे क्योंकि यह तेरे जीवन का का आखिरी समय चल रहा है। और मैं चाहत हुं कि मैं तूमसे से तो प्रसन्न नहीं हो सका तू ने हमें हर जगह पर परास्त कर दिया है। और मैं अब जान बुझ कर तुमसे परास्थ होने के लिए तैयार हो चुका हुं मुझे मरने का गम नहीं है और ना ही जीने की बहुत अधिक कामना है। मैं तो बश चाहता हूं तू एक बार पूर्ण रूप से प्रसन्न हो जा भले ही मेरी तबाही की यह अंतिम सिढ़ी हो। इसके बाद मैं इस दूनिया से सदा के लिए लुप्त हो जाउ।
एक बात तो निश्चित हैं कि इस संसार में तुम्हारा साथ देने वाला कोई नहीं है। जो भी करना है वह अपने दम पर करना है। यह तो पहली बात है दूसरी बात है कि तुम्हारी शरीर भी साथ देने के लिए परिपूर्ण रूप से तैयार नहीं है। यह उसी प्रकार से है जैसे कि समन्दर में कोई नाव होती है जिसमें छेद है। और वह सागर में डुबने वाली है इसका अहसास हर एक नाविक हो चुका है। और लग-भग सभी जानते है कि इस नाव पर अब सूरक्षित रहना मुस्किल ही नहीं असंभव है। अर्थात मरना ही है तो फिर डरना क्या? जो करना है उसको कर गुजरो मृत्यु से भी एक दो हाथ कर लो।
संसार में दरिद्रता के साथ जन्म लिए और दरिद्रता के हालत में मर जाना हैं यह मुझे स्विकार नहीं है। मैं स्वयं को अपने विरोधियों के सामने सिद्ध करना चाहता हु कि मैं हु और मुझमें दूसरो से हट कर कुछ विशेष सामर्थ है जिसके कारण मैं अपने मुकाम को हासिल करने में संसार में सफल हो चुका हु।
यह कहानी भविष्य को ध्यान में रख कर लिखी गई है, जब इस संसार के लग-भग सभी देश आपस में लड़ मर कर समाप्त हो चुके होंगे। और इसके पिछे कारण हैं कि इन सभी देशों में स्वार्थ और लोभ के साथ अत्यधिक भोग विलासिता के समानो के संग्रह के लिये आपस में युद्ध हुआ जिसमें लग-भग सभी देशों के पास जो अपने सुरक्षा के लिए परमाणु बम बनाये गये थे। उसका उपयोग किया जिसके कारण पुरी पृथ्वी लग-भग पृथ्वी का हर हिस्सा परमाणु के चपेट में आ गया। जिसमें से सिर्फ वह लोग बचें जो में जमिन के बहुत निचें बंकरों में थे। जब बंकरों का खाने पिने का सामान लग-भग समाप्त होने के कगार पर आगया, तो वह सब भी आपस में लड़ने लगे, और लोगो को अपने- अपने बंकरों से बाहर निकाल कर बचे खुचे सामान पर कब्जा करने लगे, जिसमें बहुत से लोगो के जान माल का नुकसान हुआ। फिर भी कुछ लोग बंकर से निकल कर स्वतंत्रता पूर्वक जमिन पर रहने का अभ्यास करने लगे। जिसके कारण वह सब एक भंयकर बिमारी से ग्रस्त हो गये और वह मानव मांस खाने के आदि होगये थे। पहले तो वह जो भी लोग बाहर पृथ्वी पर रहते थे। उन सब को खा कर अपनी भुख को शात करते थे। लेकिन जब पृथ्वी की सतह पर सिर्फ आदमखोर जीव ही बचें तो वह जमिन के अंदर रहने वाले समप्न्न लोगो पर भी हमला करने लगे। ऐसा करते हुए इन आदम खोरो ने इस प्रकार से एक जमिन के अंदर बंकर पर अपना कब्जा कर लिया। जिनको जमिन के अंदर बंकरो में रहने वाले लोगों ने नाम रख था आदमखोर भेड़िया समुह और इनसे स्वयं को बचाने के लिए संघर्ष रत हुए।
और जो जमिन के अंदर बंकरों में रहते थे उनको
आदमखोर भेड़िया ग्रुप के लोग स्वादिस्ट भोजन के नाम से जानते थे। इस प्रकार से यह
संघर्ष उसी प्रकार से थे जैसे कि शेर हिरण के पिछे उसके शिकार के लिए दौड़ता है। इसी प्रकार से हिरण के समान अपनी सुरक्षा के लिए मानव पृथ्वी के अंदर ही अपने वंकर का विस्तार
कर रहें थे। और उसमें तरह तरह के संसाधनो का नव निर्माण भी करते थे। जिससे वह इन
आदमखोर भेड़िये का खुराक बनने से अपनी मानव सभ्यता को बचा सके। जिसके लिए इन्होने
जमिन के अदर ही अपने बंकरों का विस्तार करके उसमें खेती करने लगे। और अपने जरुरत की
लग-भग सभी वस्तुओं का उत्पादन जमिन के अंदर ही किया करते थे। जिनके नेता का नाम शिवा
था जिसने बंकरों में रहने वाली स्त्रियों और युवतियों से और पुरुषों से अपनी मानव
सभ्यता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी संख्या को बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान देने लगा।
और उसने जमिन के अंदर अंदर से ही एक शहर से दूसरो सहर को जोड़ने के लिए बड़ी बड़ी
सुरंगो के द्वारा एक शहर से दूसरे सहर के बचे खुचे लोगो को एक कर अपने बंकर
एकिक्रित कार्य को निरंतर विकसीत कर रहा था। शिवा जिसने बंकर में आने के बाद कई
स्त्रियों से कई बच्चों को पैदा कर चुका था जिसके बच्चे अब बड़े हो चुके थे। जिन्होने अपने -अपने लिए बंकरो को बिकसित कर लिया था और अपनी प्रजा के साथ रहते थे
इन सब का केवल एक काम था। पृथ्वी के लग-भग संपूर्ण हिस्से के बंकरो को खोज खोज कर
उनको सुरंग के रास्ते से अपने राज्य में सम्लित कर लेना। और जो लोग बंकरों में बचे
हुए मिलते है उनको अपना दाश बना लेना और उनको सैनिक प्रशिक्षण देकर अपने शत्रु
आदमखोर भेड़िया ग्रुप के समुहो से लड़ना और उनके राज्य के विस्तार को रोकना।
क्योंकि आदमखोर भेड़िया ग्रुप के लोग जिसको अपना शिकार बनाते थे उनसे अपनी आबादी
भी बढा रहे थे। क्योंकि उनके अंदर जो संक्रमड़ वाययरस था जिसके कारण वह थोड़ समय
में असाधारण शरीर को धारण कर लेते थे। और वह एक स्त्री से सैक़ड़ों का संख्या में
बच्चे को उतपन्न करते थे। क्योंकि वह सिर्फ आदमी को ही अपना शिकार बनाते थे। और उनको
पकड़ के उनके मांस को खालेते थे और स्त्रियों को अपने वायरस से संक्रमित करके अपनी
रखैल बना कर रखते थे। जिस प्रकार से पृथ्वी पर कभी एड़स जैसी बीमारी यौन संबंध से
फैलती थी। उसी प्रकार से वह आदमखोर भेड़िये के समुह के लोग जब किसी औरत से शारीरिक
संबध बनाते थे। तो उस स्त्री से एक-एक करके सैकड़े बच्चे पैदा होते थे जिनके कारण
ही उनके समुह की संख्या बड़ी तीब्रता से बढ़ने लगी। उस स्त्री से जो भी लड़का
लड़की उत्पन्न होते थे। वह सब के सब असाधारण दैत्याकार होते थे। और वह सब संक्रमित
होते थे जिसके कारण उनको आदमखोर के सदस्य कभी अपना आहार नहीं बानते थे वह हमेशा
बड़ी संख्या में बंकरों का निशाना बनाते थे। इनके पास जमिन के बाहर भी रहने की
स्वतंत्रता थी जिसके कारण यह जमिन पर किसी प्रकार के साधारण मानव को कभी देख लेते
तो उसको जिंदा ही खा जातें थे। और यह सब लोग भी अपनी प्रयोग शाला बना रखा था। जिसमें यह अपने आने वाली पिढ़ी को प्रशिक्षीत करते थे। और शिकार करना सिखाते थे। इन्हेने भी अपनी फौज को तैयार कर रखा था। यह बंकरों को अपना निशाना बनाते थे। और
जमिन के अंदर कहां पर बंकर हैं उसके लिये सुरंग का प्रयोग करते थे। जब भी इन दोनो
को आपसे में जमिन के अंदर टक्कर होती थी काफी मात्रा में नर संहार होता था। इस
ग्रुप का जो नेता था उसको लोग दैत्य राज निशाचर के नाम से पुकारते थे। तो इस
प्रकार से यह कहानी इन दो समुहों के बीच में होने वाले समुहों के संघर्ष की कथा
है।
इस प्रकार से यह दो समुह थे हो गये थे और
यह दोनो एक दूसरे की जान के शत्रु बन गये थे। एक तरफ शिवा जो बंकरों का सरताजा था,
और जिसके पास हर प्रकार की समपन्नता थी। और जो अपने राज्य का विस्तार कर रहा था तो
दूसरे तरफ दैत्य राज निशाचर का समुह था जो इनके सारे संसाधनो को लुट- कर अपने
राज्य का विस्तार कर रहा था।
शिवा ने अपने सभी सैकड़ो पुत्रों और
पौत्रों को ही अपने सामराज्य का उत्तराधिकारी बनाया था जिसके कारण उसके सेना में
किसी प्रकार का कभी भी विद्रोह नहीं होता था। और लोग हमेशा अपने राजा के लिए अपना
सब कुछ दाव पर लगाने के लिए तैयार रहते थे। जिसके कारण शिव भी अपनी जनता को हमेशा
कार्य और उनके जान माल की रक्षा के लिए तत्पर्य रहता था। इसने अपने सभी जनता को
कार्य देने के लिए और उन सब को पर्याप्त में भोजन और रहने के लिए पर्याप्त अस्थान
के लिए। एक बहुत बड़े किलें का निर्वाण करा रहा था जो हर प्रकार से सुरक्षित था।
जिसमें किसी प्रकार का खतरा उत्पन्न नहीं होने वाला था। जिसके संरक्षण में संपूर्ण
मानवता सुरक्षित रह सकती थी। और यह किला जमिन के विचो-बिच था जिसको लग-भग संपूर्ण
विश्व की जो बची हुइ जनसंख्या थी जो बंकरों में रहती थी जिनके पास पर्याप्त मात्र
में रसद सामग्री के के अतिरिक्त और भी हर प्रकार की सामग्री थी। वह सब लोग उसका
सहयोग कर रहें थे। क्योंकि शिवा और उसके समुह के मंत्रियों का यह मानना था कि इसी
प्रकार से हम मानवता को दैत्य राज निशाचर के समुह से सुरक्षित रख सकते है। और आने वाले समय में हम उनका
सामना कर पायेंगे और उनका सर्वनाश भी कर सकते हैं। क्योंकि इनके समुह की जो सबसे
बड़ी कमजोरी थी वह यह थी कि यह जिस बंकर पर विशेष ध्यान देते थे वहां पर आदमखोर
भेड़िया दैत्य राज निचाशर समुह हमला नहीं करता था। वह हमेशा छोटे-छोटे दूर दराज के
अकेले बंकरों पर ही हमला करता था और उनको अपने कब्जें में करके उस बंकर में से सभी
युवा पुरुषों का आहार करते थे और औरतो को आपना रखैल बना कर उससे अपनी आबादी बढ़ाते
थे। और खाने पिने के लिए वह सब अपनी लैब में कुछ विशेष प्रकार के जानवरो का उत्पादन
करते थे। जैसे कि पहले लोग मुर्गी फार्म और भेड़ बकरी सुवर को पालते थे। इसी प्रकार वह सब अपने लैब में इस प्रकार के जानवरो का
उत्पादन करते औऱ अपनी भुख को शांत करते थे। यह सब ज्यादा विलाशी नहीं थे यह सब अपनी
आबादी को बढ़ाने में अधिक रुची लेते थे और यह चाहते ते कि संपूर्ण पृथ्वी पर इनका
ही समराज्य और मिठा रस नामक साधारण मानव का संपूर्ण सफाया कर दिया जाये। क्योंकि
इन सब का मानना था कि वह सब अशभ्य और असंस्कृत है।
जिसके
कारण यह सब अपनी संसकृती और सभ्यता के बिस्तार के लिए प्रयाश रत थे जिसके कारण
इनकी आपस में भीड़न्त होती थी इनके अपने लड़ने के लिए हथीयार इनकी भीम काय शरीर थी।
जबकि शिवा समुह के लोगो के पास हथियार के रूप में सभ आग्नेय अस्त्र थे जिसके
आक्रमण से यह तत्काल राख में बदल जातें थे।
यह संघर्ष इन दोनो के मध्य में कइ वर्षों तक
चलता रहा और किसी प्रकार का नतिजा नहीं निकल पाया, क्योंकि जितने लोग मरते थे उससे
अधिक लोग पैदा हो जाया करते थे। इसलिए लोग मरने वालों को बहुत जल्दी भुल जाते थे
और जिसने जन्म लिया है उस पर अधिक ध्यान देते थे। जो दैत्य राज निशाचर वह अपनी आबादी
को बहुत तेजी से बढाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। जिसके कारण इसके समह को होने
वाले नुकसान से वह बिल्कुल चिंतीत नहीं था। जब कि दूसरी तरफ शिवा समुह के जो लोग
बंकरों को एकक्रित करने कार्य कर रहें ते उनकी आबादी उतनी तेजी से नहीं बढ़ती जो
मानव उनकी पहुंच से दूर होते थे जिनके बंकर तक अभी तक शिवा समुह के लोग अपनी समुह
को नहीं पहुचा पायें है। वह लोग सब बड़ी तेजी से लुप्त हो रहे थे। यह इनके लिए बड़ी
चिंता का विषय था। यदि इस प्रकार से आदमखोर दैत्य राज की आबादी बढ़ती रही तो फिर
इनके शिवा समुह के लोगो के लिए बहुत बड़ा संकट भविष्य में आ सकता है। जिसको ध्यान
में रख कर जब इनका नया किला जमिन के अंदर जब बन कर तैयार हो गया, और जिसका नाम
जीवन रक्षा रखा गया था। लेकिन अब उसमें विद्यमान वैज्ञानिकों को संदेह नजर आरहा था। जिसके लए उन सबने गुप्त रुप से एक ऐसे रुप की क्लोनिंग तैयार करने की बात की जो
दैत्या कार हो और आकाश मार्ग में भ्रमण करके आदमखोर को खाकर उनकी संख्या को इस
प्रकार से बढ़ने से रोक सके जिससे समान्य मानव का रहना संभव होसके जिसके लिए शिवा
ने ङरी झडी दिखा दिया और वैज्ञानिकों ने अपने लैब में गुप्त रूप से ऐसे प्राणी की
क्लोनिंग की तैयारी करने लगे हैं। जिससे आने वालें कुछ समय उनके पास ऐशा जीवन होगा
जो आकास मार्ग से भ्रमण करते हुए किसी चिल के समान दैत्या कार आदमखोर समुह की
बढ़ती पर रोक लगायेगा।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि आदमखोर दैत्य राज
निशाचर समुह के लोग एक साथ सैकड़ों दैत्याकार प्राणियों को पैदा करने में सफलता हाशिल कर चुके हैं जितने समय में शिवा समुह मैं सौ लोगो को पैदा
किया जाता है उतने समय में ही कई लाख लोग को पैदा आदमखोर दैत्य राज निशाचर पैदा कर
लेता था। जो बहुत बड़ा सर दर्द बन चुका था शिवा के लिए और उसके आदमीयों के
जिसमें अधिकतर उसके रीस्तेदार थे। और सबके साथ उसका खुन का रीस्ता था जिसके कारण वह
कभी नहीं चाहता था कि उसकी परिवार इस प्रकार से बहुत जल्दी ही समाप्त हो जाये। और
यदि ऐसा हुआ तो उसका सारा स्वप्न मानव के अस्तित्व को बचाने का खत्म हो जायेगा
जिसके वह कभी अपने स्वप्न में भी नही सोच सकता था।
करीब दश साल में शिवा के वैज्ञानिको ने एक
ऐसे जीवन को बनाने में सफलता हासिल कर ली जो दैत्या करा था और हजारों टन मांस को
खाने की क्षमता रखता था।जिसनें अपने जन्म के मात्र कुछ एक महिने में शिवा के राज्य
में उफलब्ध सभी प्रकार की रसद सामग्री का दस प्रतिसत खा कर खत्म कर दिया। जिससे
वैज्ञानिक को भरोशा हो गया की यह अभी नवजात हैं। और इतना आहार कर रहा और जब यह
पूर्ण विकसित हो गया तो यह तो हम सब को मात्र कुछ एक महिनो में खा जायेगा। और इसकी
भुख को शांत करने के लिए हम सब को अपनी संपूर्ण मानवता का बली चढ़ानी होगी । जब इस
बात की जानकारी शिवा को हुई तो उसने कहा इसको किसी तरह से हमारें किला के बंकर से
बाहर पृथ्वी के वायु मडल में छोड़ दिया जाये। और यह अपना आहार तलास कर के उससे अपनी
भुख को शांत करे। जिसके लिए वैज्ञानिकों ने उसको कुछ दवा के माध्यम से कुछ समय के
लिए बेहोश किया। और रात्री के समय में अपने बंकर के दरवाजे को एक समन्दर के अंदर से
खोल दिया और वायु से भरे गुंबारें के साथ कर के छोड़ दिया। जिससे वह कुछ हि समय में
समन्दर की सतह पर आगया। और जब वह होश में आया तो वह वाहां से अपनी उड़ान को भरा और
अपने पास में दिखने वालें द्विप पर पहुंचने के लिए उड़ने लगा। उसकी आँख की दृश्टि
बहुत अधिक थी जिससे वह कई सौ किलोमिटर पर उपस्थित किसी भी जीव को देख कर उसको खाने
के लिए उस पर झपट्टा मार कर उसे अपना आहार बना सकता था।
सबसे पहले जिस द्विप पर वह पहुंचा वह एशिया
महाद्विप से थोड़ी दूरी पर स्थित एक छोटा सा था जहां पर एक छोटा सा समुह आदमखोर का
रहता था। जिसमें कुछ सौ आदमखोर निशाचार ही रहते थे । और जब उन्हेने देखा कि आकाश
में आचानक बादल जैसे छाने लगा और पृथ्वी पर अंधेरा सा होने लगा। उनको इसका अंदाज
भी नहीं था कि वह स्वादिष्ट भोजन के राजा शिवा ने उनकी खात्मा के लिए भेजा हुआ है। दैत्या कार बादलों के समान पक्षी है राज गीध है। जिसने आकाश से ही इनको देख लिया
था क्योंकि वह भुखा था और उसने कुछ ही समय में ही उनके द्विप पर आक्रमण कर दिया और
उन सभी आदमखोर दैत्य राज निशाचर के सौकड़ो आदमी को खाकर अपनी भुख को शांत कर लिया। और समन्दर की सतह से उपर एक पर्वत की चोटी पर आराम करके के लिए चला गया। कुछ एक
दैत्य राज निशाचर के आदमी अपनी जान बचाने में सफलता प्राप्त कर लि थी जो उसकी नजर
से बच गये थे जमिन के अंदर बंकर में जो थे जब उनको पता चला की सारे आदमखोर निशाचर
के आदमी पक्षी राज गीध के द्वारा खाये जा चुके है। तो वह तुरंत भाग कर दैत्य राज
निशाचर के पास वायु मार्ग से गया और उनको बताय की हमारें उपर एक दैत्याकर पक्षी
ने हमला कर कर दिया है और उसने हमारें सभी शैनिको को मार कर खालिया है। अभी उसने
नास्ता किया है हमें उससे सावधान रहना चाहियें अंयथा वह हमारें और दूसरे आदमखोर
आदमी को भी खा सकता है। जिसके लिए दैत्यराज निशाचर ने फरमान जारी किया की सभी
आदमखोर निशाचर बड़ी सावधानी के साथ जमिन के उपर भ्रमण करे और उसको मार कर जल्दी से
जल्दी खा कर खत्म करें। लेकिन जब उसने स्वये आकाश मार्ग से दुर्बिन की सहायता से
तो उसकी आँखे खुली की खुली रह गई। वह किसी पर्वत के समान था।
उसको
मारने किसी के लिए आसान कार्य नहीं था इस लिए उसने उसको पकड़े के लिए एक बड़ा जाल
को डाला लेकिन यह क्या जाल में आने से पहले उसने अपने आकार को और पहले से दश गुना
अधिक बड़ा लिया जिसके सामने वह सब स्वयं मच्छार के समान दिख रहें थे। और जब उसने अपनी
आखं खोली और अपने सामने निशाचर कि सेना को खड़े देखा तो उन सब पर वह अपने बज्र के
समान पैने पंजे से मार मार कर घायल करने लगा और अपनी चोच से उठा कर उठा कर अपने
मुह में भरने लगा। यह सब देख कर दैत्यराज के शरीर से पसिने छुटने लगे, और वह अपनी सेना
को पिछे हटने के लिए कहा और स्वयं अपने जमिने के अंदर बंकर में चला गया। और आपात
काल सभा बुलाया की इस विशाल काय पक्षी के साथ क्या किया जायें, जिसमें से कुछ वुद्धिमान
आदमखोर निशाचर थे। उन्होंने दैत्यराज को बताया कि यह अवश्य उनके शत्रुओं की चाल है
वह हमारी आबादी को खत्म करने के लिए इस पर्वताकार पक्षी को भेजा है। तब दैत्य राज
आदमखोर निशाचर ने अपने हाथ को अपन सिंहासन पर जोर से पटकते हुए कहा कि यह मांसा
हारी पक्षी है। और यह अपनी भुख शांत करने के लिए हमारे आदमी को खारहा है। इसको हम
रोक सकते है जब इसको परयाप्त मात्र में इसको खाने के लिए देकर, इसको हम अपना दास
बना सकते है। जिसके के लिए निशाचर के मंत्रियों ने कहां महाराज आप बिल्कुल ठीक कह
रहें हैं। यह अंजाना पक्षी है इसको यदी खिला कर पाला जा सका तो वह हमारे लिए बहुत
बड़ा हथियार बन सकता है। और यह हमारें आकाश मार्ग को सुरुक्षित कर सकता है। और इस
प्रकार से पर्वताकार पक्षी के लिए विशेष प्रकार से हजारो टन मांस पैदा करने के लिए
एक जानवरों का उत्पादन बढ़ा दिया गया। और उसके लिए भोजन उपलब्ध कराया जाने लगा।
जिसके कारण पक्षी राज उसी द्विप पर अपना निवास बना लिया, और वह रक्षक का कार्य करने
लगा। और धिरे धिरे वह दास बन गया आदमखोर दैत्यराज निशाचर का।
जब यह सुचना शिवा को पता चला तो उनको बहुत
बड़ी निराशा हुई, क्योंकि उनके इतने लंबे समय के बाद विकसीत इस पक्षी को अपना गुलाम
बना लिया गया। जो उनके लिए शुभ समाचार नहीं था अब वह भी उनके शत्रु के साथ मिल
चुका है। और इस प्रकार से उसके शत्रु की ताकत में बढ़ोत्तरी हो चुकी है।
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