🙏वैदिक सन्ध्योपासना🙏
सन्ध्या शब्द का अर्थ है
भलि भाँति ध्यान किया जाये परमेश्वर का वह सन्ध्या
है।
सन्ध्या करने का समय
रात और दिन के संयोग – समय दोनों सन्ध्याओं में
परमेश्वर की स्तुती और उपासना करनी चाहिए।
प्रथम शरीर शिद्धि
अर्थात स्नान पर्यन्त कर्म करके संध्योपासना का आरंभ करें।
आरम्भ में हस्त में जल
लेके-
ओम अमृतोपस्तरणमसि
स्वाहा।।१।।
ओम अमृतापिधानमसि
स्वाहा।।२।।
ओम सत्यं यश:
श्रीर्मयि श्री: श्रयतां स्वाहा ।।३।।
विधि-इन तीन मंत्रो से
एक-एक से एक-एक आचमन करें।
ओउम् भूर्भुव: स्व: ।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
ओउम् । हे प्राण – स्वरुप,
दुःख विनाशक और और
एक चम्मच जल को लेकर
उसको मूल मध्य देश में ओष्ठ लगाकर करें कि वह जल कंठ के नीचे ह्रदय में पहुंचे, न उससे अधिक न न्यून।
उससे कंठस्थ कफ और पित्त की निवृत्ति होती है।
इन्द्रियस्पर्श मंत्र
दोनों हाथों को धो, कान, आंख, नासिका आदि का शुद्ध
जल से स्पर्श करें । सम्पूर्ण सृष्टि के ईश्वर कौन है ??
ओं वाक् वाक् । इस
मन्त्र से मुख का दक्षिण और वाम पार्श्व।
ओं प्राण: प्राण:।
इससे दक्षिण और वाम नासिका छिद्र।
ओं चक्षु: चक्षु: ।
इससे दक्षिण और वाम नेत्र।
ओं श्रोत्रं श्रोत्रम्
। इससे दक्षिण और वाम श्रोत।
ओं नाभि:। इससे नाभि।
ओं हृदयम्। इससे
ह्रदय।
ओं कण्ठ: । इससे कंठ।
ओं शिर: । इससे मस्तक
।
ओं बहुभ्यां यशोबलम् ।
इससे दोनों भुजाओं के मूल स्कन्ध और
ओं करतलकरपृष्ठे। इससे
दोनों हाथों के ऊपर तले स्पर्श करें।
विधि- पात्र में से
मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से स्पर्श करके प्रथम दक्षिण और पश्चात वाम भाग में
इन्द्रियस्पर्श करें।
मार्जन मंत्र
ओं भू: पुनातु शिरसि।
इस मंत्र से शिर पर छींटा देवे। सृष्टि की उत्पत्ति कब और कैसे ??
2. ओं भुवः पुनातु
नेत्रयो:। इस मंत्र स्व दोनों नेत्रों पर छींटा देवे।
3. ओं स्व: पुनातु
कण्ठे। इस मंत्र से कण्ठ पर छींटा देवे।
4 ओं मह: पुनातु
ह्रदये। इस मंत्र से ह्रदये पर छींटा देवे।
5. ओं जन: पुनातु
नाभ्याम् । इस मंत्र से नाभि पर छींटा देवे।
6. ओं तप: पुनातु
पादयो:। इस मंत्र से दोनों पगों पर छींटा देवे।
7. ओं सत्यं पुनातु
पुनः शिरसि। इस मंत्र से पुनः मस्तक पर छींटा देवे।
8. ओं खं ब्रह्म
पुनातु सर्वत्र। इस मंत्र से सब अंगों पर छींटा देवे।
प्राणायाम मन्त्र
ओं भू: । ओं भुवः। ओं
स्व :। ओं मह:। ओं जन:। ओं तप:। ओं सत्यम् ।
पुरोवक्त रीति से
प्राणायाम की क्रिया करते जावे ओर प्राणायाम मन्त्र का जप भी करते जावे। कम से कम
तीन ओर अधिक से अधिक 21 प्राणायाम करे
अघमर्षण मन्त्र
ओम् ऋतञ्च
सत्यञ्चाभीद्धात् तपसोध्यजायत ।
ततो रात्र्यजायत तत:
समुद्रो अर्णव: ।।१।।
2. ओं समुद्रादणवादधि
संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि
विदधद्विश्वस्य मिषतो वाशी।।२।।
3. ओं
सूर्य्याचंद्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवञ्च
पृथिवीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः ।।३।।
मनसापरिक्रमा-मन्त्र
विधि इस मन्त्र से तीन
आचमन करके निम्नलिखित मन्त्रो से सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति प्रार्थना करे ।
ओं प्राची
दिगग्निधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषव: ।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो
नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । योउस्मान द्वेष्टि यं वयं
द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्म: ।।1।।
2. ओं दक्षिणा
दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषव: ।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो
नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । योउस्मान द्वेष्टि यं वयं
द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्म: ।।२।।
3. ओं प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपति:
पृदाकू रक्षितान्नमिषव: । महात्मा विदुर श्लोक संग्रह
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो
नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । योउस्मान द्वेष्टि यं वयं
द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्म: ।।३।।
4. ओं उदीची दिक्
सोमोऽधिपति: स्वजो रक्षिताशनिरीषव: ।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो
नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । योउस्मान द्वेष्टि यं वयं
द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्म: ।।४।।
5. ओं ऊर्ध्वा
दिग्बृहस्पतिरधिपति: शि्वत्रो रक्षिता वर्षमिषव: ।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो
नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । योउस्मान द्वेष्टि यं वयं
द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्म: ।।५।।
6. ओं ध्रुवा
दिगि्वष्णुरधिपति: कल्माषग्रीवो रक्षिता विरुध इषव: ।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो
नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । योउस्मान द्वेष्टि यं वयं
द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्म: ।।६।।
उपरोक्त मन्त्रो से
परमात्मा की स्तुति, प्रार्थना करे । इस
मन्त्रो को पढ़ते जाना और अपने मन से चारों ओर बाहर भीतर परमात्मा को पूर्ण जानकार
निर्भय, नीरशंक, उत्साही, आनंदित, पुरुषार्थी ।
उपस्थान मंत्र
सम्पूर्ण अग्निहोत्र की विधि
जातवेदसे सुनवाम
सोममरातीयतो नि दहाति वेद: ।
स न: पर्षदति दुर्गाणि
विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्नि: ।।
चित्रं
देवानामुदगादनिकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने: ।
आ प्रा
द्यावापृथिवीऽअन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ।।
उदु त्यं जातवेदसं
देवं वहन्ति केतव: । आचार्य चाणक्य नीति: श्लोक संग्रह
दृशे विश्वाय सुर्यम्
।।
उद्वयं तमसस्परि स्व:
पश्यन्त उत्तरम् ।
देवं देवत्रा
सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ।।
तच्चक्षुर्देव हितं
पुरस्ताश्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं श्र्णुयाम शरद: शतं प्र
ब्रवाम शरद: शतमदिना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद: शतात् ।।
ओउम् भूर्भुव: स्व: ।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
समर्पण
हे ईश्वर दयानिधे !
भवत्कृपयाऽनेन जपोपसनादिकर्मणा धर्मार्थकाममोक्षाणां सद्य: सिद्धिर्भवेन्न: ।।
नमस्कार मन्त्र
ओं नम: शम्भवाय च
मयोभवाय च नम: शङ्कराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ।।
।। इति वैदिक संध्या
।।
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