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मेरी चेतना (एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -1

 

मेरी चेतना

     (एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -1

 

मनोज पाण्डेय

 

सूर्य कि पहली किरण का प्रकाश

 

      जो हम सब प्राणियों को संसार के सभी प्रकार के संकटों से मुक्त करने वाले त्रिकालदर्शी भगवान शिव हैं, जिनको हमारा बारंबार नमस्कार हो, जो हम सब के हृदय के अन्तर्यामी हैं और जो हमारे बारे में सब कुछ जानने वाले हैं। हमसे स्वयं अपने आप को जानने में कुछ भूल हो सकती हैं, लेकिन वह सब कुछ देखते हैं, उनसे संसार का कुछ भी नहीं छुपा हैं वह तीनों कालों को एक साथ देखने में समर्थ हैं। जिसके कारण ही दूसरे देवता भी उनसे अतिशय प्रेम करते हैं। वह अपनी आंखों कि शक्ति से सभी प्रकार के अंधकार, अज्ञान और दुष्कर्म को भस्म करने वाले हैं। जिनको कभी विषय को समझने में किसी प्रकार के भ्रम नहीं होता है। इन्हीं सब गुणों को जानकर फूलों के समान ब्रह्माण्ड सुन्दरी पार्वती हमेशा उनके प्रेम में समर्पित रहती हैं।           इन दोनों को मैं हमेशा अपने हृदय के आसन पर विराजमान करके अपने दोनों हाथों से जोड़कर उनके चरणों में बारंबार वंदन करता हूँ।

 

     कुछ समय पहले कि बात हैं, भारत के एक राज्य में एक मूर्ख किस्म का राजा था, जिसके पास दो प्रकार के संसाधन थे जिससे वह बहुत अधिक प्रेम करता था। पहली वस्तु उसके पास अपनी एक तलवार थी जिसको वह हमेशा अपने साथ ही रखता था, यहाँ तक अपने साथ अपने बिस्तर पर भी रख कर ही सोता था। इसके अतिरिक्त उसका शत्रु उससे अधिक ताकतवर था, इसके साथ उसकी स्वयं की एक अत्यधिक सुन्दर पुत्री थी, जो बहुत ही अधिक चालक थी। जैसा कि हम सब जानते हैं कि उसका शत्रु उससे बहुत अधिक ताकतवर अर्थात मजबूत था। और उसकी पुत्री उसके राज्य में बहुत अधिक चालाक औरतों में से एक थी। इसके अतिरिक्त राजा का शत्रु अभी काफी युवा था। और मूर्ख राजा की चालाक पुत्री अभी तक अविवाहित थी। अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े मूर्ख राजा चिंतन कर रहा था, कि इन दोनों का क्या किया जाये? क्योंकि उसको इन दोनों से बहुत अधिक मानसिक भय था, जो उसको रात में सोने नहीं देती थी। ऐसा ही काफी समय से चल रहा था। काफ़ी अपना दिमाग दौड़ाने के बाद राजा के दिमाग में इस समस्या का एक समाधान समझ में आया। अंत में एक रात को राजा अपने निंद से उठ कर अपने बिस्तर पर बैठ गया, और बड़े जोर से चिल्लाते हुए कहने लगा, कि आज मैं समझ गया कि मुझको क्या करना चाहिए? मैं जहर को अमृत में मिला दूंगा, अर्थात अपनी पुत्री की सुंदरता के समन्दर के जल को अपने शत्रु के क्रोध की दहकती हुई ज्वाला के ऊपर उड़ेल दूंगा, जिससे उसके अंदर जो हमारे प्रति क्रोध की अग्नि जल रहीं है, वह बुझ जायेगी। इस तरह से मेरी दोनों समस्या का समाधान हो जायेगा और मैं अपने राज्य को अपने दोनों शत्रुओं से बचा लूंगा, अर्थात एक तीर से दो निशाने लग जायेंगे, मतलब एक पंथ दो काज हो जायेगा। शत्रु मित्र बन जायेगा और चालाक पुत्री जो हमारे राज्य को हमसे छिन सकेगी है। वह भी हमारे राज्य से बाहर हमसे शक्तिशाली राजा की पत्नी बन जायेगी। इस प्रकार से हमारे राज्य की रक्षा तो होगी ही हमारे पुत्री को उसका पति भी मिल जायेगा और मैं अपनी सारी समस्यायों से मुक्ति पा जाऊंगा। और चैन कि बंसी बजाता हुआ अपने आगे की जिंदगी को व्यतीत करूंगा।

 

    इस प्रकार से इस नवीन विचार ने मूर्ख राजा को अंदर से बाहर तक रोमंचित कर दिया, इसलिए वह बड़े जोर-जोर से चिल्लाने लगा, जिसकी आवाज को सुनकर राजा के महल के जो उसके अंग रक्षक या महल के सुरक्षा अधिकारी थे उन्होंने ने समझा कि राजा पर कोई विपत्ति रात्रि के समय आ गई है। जिसके कारण राजा रात्रि में चिल्ला रहा हैं। इसलिए वह सब अंगरक्षक अपने हथियार और हाथों में मशाल लेकर राजा के शयन कक्ष की तरफ एक साथ दौड़े, जब वह सब राजा के शयन कक्ष में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजा अर्धनग्ना अवस्था में अपने हाथ को जोड़ कर कमरे में इधर उधर बड़ी बेचैनी के साथ एक बछड़े की तरह से घूम रहा था। जैसे वह अपने कमरे को छोड़ कर भागना चाहता हो, और मुंह से बड़-बड़ाये जा रहा था, हाँ मेरा शत्रु, हाँ मेरी पुत्री। इस लिए उन अंग रक्षक और दूसरे सुरक्षा अधिकारियों ने कहाँ कि यह मंद बुद्धि राजा अपने अंत की तरफ बढ़ रहा है। इसलिए अब यह पागल जैसा व्यवहार कर रहा है। लेकिन राजा कुछ देर में शांत हो गया और उसने अपने दरबार के सब संगीत कारों को बुलाने के लिए कहा, और जब संगीत कार आ गये, तो वह उनसे मधुर संगीत बजाने के लिए कहा, और बड़ी व्यग्रता के साथ उनके संगीत का आनंद लेते हुए, सुबह होने का इंतजार करने लगा।

 

      सुबह होने पर राज ने अपने कुछ समझदार और बुद्धिमान संदेशवाहक को अपने पास बुलाया, और उनसे कहा कि तुम मेरे शत्रु के पास मेरा संदेश लेकर जाओ, और उनसे मेरा संदेश कहो कि चलिए हम दोनों मित्र बन जाते हैं। और शांति के साथ हम दोनों संपूर्ण पृथ्वी पर राज्य करते हैं। और मैं अपनी पुत्री का विवाह भी तुम्हारे साथ कर दूंगा। और इसके बदले में मैं तुमसे कुछ भी नहीं चाहता हूं, और इसके साथ बहुत सारे उपहार तुमको हमारे द्वारा दिये जायेंगे। जिसके बारे में तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हो, जब यह सब तुम्हारे पहुंच जायेंगे, तभी तुमको इनके बारे में पता चल पायेगा। जिसके बारे में मैं बताना चाहता हूं, उपहारों की कीमत और उसके गुणों को बताना शब्दों में असंभव हैं। उसके बारे में आंखों से देख कर भी अंदाजा नहीं लगा सकते, क्योंकि उसको देख कर आंखें भी धोखा खा जाती हैं।

 

      तो इस प्रकार से राजा का संदेश लेकर संदेशवाहक राजा के शत्रु के पास गया, लेकिन राजा की पुत्री ने इस संदेश के बारे में अपने गुप्तचरों से सूचना प्राप्त कर लिया, जिसके कारण उसने राजा से छुपा कर अपने एक संदेश वाहक को भी राजा के शत्रु के पास भेजा, जिसके बारे में उसने अपने पिता से कुछ भी नहीं कहा, क्योंकि वह यह जाननी चाहती थी की उसका होने वाला पति किस स्वभाव का है। और उसके शौक किस प्रकार के हैं और उसके कार्य करने का तरीका कैसा हैं?

 

    इस तरह से संदेशवाहक गये काफी दिन बीत गये और राजा के पास किसी प्रकार की सूचना अपने शत्रु राजा की तरफ से नहीं आई, जिसके कारण राजा काफी की अप्रसन्नता और असहनीय निराश अवस्था में अपने जीवन को व्यतीत कर रहा था। लेकिन अंत में एक दिन जैसा कि अकसर अपनी पुत्री के साथ राजा अपने दरबार में बैठा करता था, उसी प्रकार से आज भी बैठा हुआ था। तभी उसके पास एक उसका दरबान आया, और उसने उसके चरणों में झुक कर कहा कि वह संदेशवाहक वापिस आ चुका है। और राजा का क्या आदेश है? और राजा ने तत्काल कहा कि वह संदेशवाहक हमारे लिए औषधि के समान है, इसलिए संदेशवाहक को लेकर आया जाये और तुरंत उसको दरबार में हाजिर किया जाये। इस प्रकार से बिना किसी देरी किये उस संदेशवाहक को तुरंत राजा के सामने पेश किया गया, जैसा कि वह अभी तत्काल अपने सफर से आया था उसके कपड़े धुल- धुसरीत थे उसको देखने से ही लग रहा था, कि वह किसी लंबी यात्रा कर के आ रहा है। क्योंकि वह काफी थका हारा हुआ दिखाई दे रहा था। जो राजा के सामने आकर खड़ा था और राजा ने उसको अपनी क्रोध से भरी हुई लाल-लाल आंखों से देखते हुए, कहा कि तुम अपने राजा के लिए कौन-सा संदेश लेकर आये हो? इतने अधिक समय में जिसके इंतजार में मेरे काले बाल पहले मटमैले हुए फिर सफेद हो गये हैं?

 

       संदेशवाहक ने अपने हाथ को जोड़ कर कहा हे राजा आप क्रोध को त्याग दीजिए, मुझ निर्दोष पर इस प्रकार का आप का क्रोध करना ठीक नहीं है। मेरी तरफ से इसमें किसी प्रकार की कोई देर नहीं कि गई मैं किसी भी यात्री से तीव्र गति से गया, बारिश, गर्मी और सर्दी कि परवाह किया बगैर, आपके होने वाले दामाद की पहली पत्नी के पास और यह सारी देरी आपके होने वाले दामाद के पागलपन और उसकी प्रसन्नता के कारण ही कारण हुई है।

 

      क्योंकि कुछ समय पहले ऐसा हुआ कि वह अपनी सेना के साथ युद्ध से वापिस आने के बाद, अपने आदमियों को चकमा देने के लिए और शांति पूर्वक अकेला कुछ समय बिताने के लिए, वह अपने महल के गुप्त कक्ष में चला गया। जहाँ पर उससे कोई भी नहीं मिल सकता था सिवाय उसकी पत्नी के, क्योंकि सिर्फ उसकी पत्नी के कोई भी दूसरा उस राज्य के अधिकारियों और वहाँ के किसी आदमियों से वह बात नहीं करता था। क्योंकि वह राजा वहाँ के महल में औरतों के बीच में स्वयं औरतों के कपड़ें पहन कर रहता था। जब इसके बारे में और दूसरी महल की औरतों को पता चला, तो महल के अंदर इस प्रकार के मायावी राजा को देखने पर एक प्रकार का भूचाल आगया, और सभी औरतें भयभीत होगई, क्योंकि राजा की गुप्त जानकारी वहाँ होने कि उसकी पत्नी के द्वारा ही किसी तरह से दूसरी औरतों को लग गयी थी, जिसके कारण राजा भी अपनी पत्नी पर बहुत अधिक क्रोधित हुआ, लेकिन उसने अपनी पत्नी की हत्या ना करके यद्यपि उस महल को ही त्याग कर दिया। और अपने राज्य के ऐश्वर्य, के साथ भोग विलास सभी प्रकार की वस्तुओं का त्याग उसी प्रकार से कर दिया, जिस प्रकार से सांप अपने शरीर से अपने पुरानी चम़डी को छोड़ता है।

 

       और वहाँ से भयानक खतरनाक जंगल के एक उजड़ें भगवान शिव के मंदिर में चला गया, और मंदिर के अंदर जाकर उसने अपने आप को बंद कर लिया। वह मंदिर उसके राजधानी से बाहर एक बीहड़ जंगल में स्थित है, जहाँ पर एक पवित्र और निर्मल कमल पुष्पों से आच्छादित झील भी विद्यमान है। और वह वहाँ पर वह एक साधु की तरह से रहता है, अपने सभी आदमियों से किसी प्रकार का कोई संपर्क या वार्तालाप नहीं करता है। इस तरह से उसके राज्य को चलाने वाला उसका मंत्री, गुप्त रूप से किसी विशेष कार्य के लिये, कभी कभार राज्य के कार्य के लिए विचार विमर्श करने के लिए वहाँ जंगल में राजा के पास जाता है। और इस प्रकार से मुझको बहुत अधिक समय लग गया, वहाँ राजा से मिलने का प्रबंध करने में कि मैं वहाँ पर उनसे मिलने के लिए आया हूं, और मेरे पास उनके लिए आपका प्रस्ताव है।

 

 

     और अंत में राजा को जब मेरा वहाँ होने के बारे में पता चला, और उसने जाना की मैं उसके लिए आपका गुप्त विशेष प्रस्ताव लेकर उसके राज्य में आया हूँ, अपने मुख्य प्रधान मंत्री के द्वारा। तब वह अपने राजा की आज्ञा पाकर एक दिन सुबह मुझे अपने साथ लेकर उस उजड़े शिव मंदिर के पास जंगल में ले गये, और जैसा कि मैं वहाँ पर उस मंदिर और कमल के तालाब पास खड़ा होकर राजा का इंतजार कर रहा था, अचानक मैंने देखा झील के सारें कमल पुष्प एक-एक कर के बारी-बारी से सूर्य के प्रकाश कि किरणों को पाकर खिल रहे थे। और तत्काल इसी समय युवा राजा मंदिर के सामने प्रकट हुआ, और वह उन सिढ़ियों के ऊपर खड़ा हो गया जो कमल पुस्पों से आच्छादित झिल के अंदर प्रवेश कर रही थी।

 

    उन्होंने अपने शरीर पर लाल वृक्ष की छाल को वस्त्र की तरह से पहन रखा था। और वह ऐसा दिख रहा था मानो वह कोई बहुमूल्य रत्न से जड़ित मणि हो, जो सूर्य के प्रकाश में और अधिक प्रज्वलित हो रहा था। इस आश्चर्यमय दृश्य को देख कर मैं कुछ देर के लिए अपनी चेतना से शून्य हो गया। वह ऐसा प्रतीत हो रहे थे, जैसे राजाओं का भी राजा हो, और उन्होंने मुझसे कहा बहुत गंभीर भाव से कि तुम अपने मालिक के पास वापिस जाओ, और उनसे कहो कि जो मेरे और उनके साम्राज्य के कल्याण के लिए उन्होंने हमारे पास प्रस्ताव भेजा है। वह मुझे स्वीकार है और इस प्रकार से हमारे और उनके मध्य में शांति पूर्ण मित्रता होनी चाहिए, और हमारी मित्रता को मजबूती प्रदान करने के लिए उपहार में जो अपनी पुत्री को हमें देने का वादा किया है, वह उसी प्रकार से कार्य करेगी जैसे सिंमेंट दीवाल कि इटों को जोड़ कर उनको उन्हें शक्तिशाली बनाती है। उनकी पुत्री को मैं शाही महल में एक रानी की तरह से रखूंगा और उसके लिए हर प्रकार के भोग विलास के संसाधन को उपलब्ध करा दूंगा। लेकिन मैं उसको अपनी पत्नी की तरह से नहीं रखूंगा। इसके बाद हम दोनों अपने हृदय की अग्नि को लेकर अपने-अपने स्थान पर अपने जीवन को व्यतीत करेंगे। और इस प्रकार से समझेंगे जैसे हमारा कोई नहीं है या फिर हम एक दूसरे के लिए जीवित नहीं हैं। लेकिन जब संदेशवाहक अपने राजा को शिव मंदिर में रहने वाले राजा की कहानी को सुना रहा था, तभी उस राजा ने अपने सेवक को बच में ही चिल्ला कर रोकते हुए क्रोध में कहा क्या! उसने इस प्रकार के उत्तर मेरे लिए भेजा है। उसने मेरे प्रस्ताव को ठुकरा दिया और मेरा और मेरी पुत्री का अपमान किया है। ऐसा कहने कि उसकी हिम्मत कैसे हुई? राजा के पास ही उसकी बेटी भी बैठी हुई थी।

 

        उसने भी सब कुछ सुना और वह इसको सुन कर हंसते हुए कहा- मेरे प्रिय पिता यह आप क्या कह रहें हैं? आपके बाल सफेद हो गये और आप अब तक संसार के किसी औरत को और ना ही पुरुष को समझने में समर्थ हो सके हैं। और इसके अतिरिक्त ना राजनीति को समझते हैं ना ही आप मुझको समझ पायें हैं। फिर राजा ने कहाँ मेरी पुत्री तुम्हारे इन शब्दों का क्या मतलब है? और तुमने क्या समझा मनुष्य कि नीतियों के बारे में, अथवा तुमने औरतों को कैसे समझ लिया? जबकि तुम स्वयं अभी २१ साल कि ही है। फिर राज कि पुत्री ने राजा से कहा जहाँ तक इस मामले कि बात है इसमें सब कुछ अच्छा ही हो रहा है, जैसा कि यह होना चाहिए और आपको बिल्कुल वैसा ही करना चाहिए जैसा कि उस राजा ने कहा है और फिर भी आप मेरे पति के प्रस्ताव को खारिज करके, अपने क्षेत्र में सभी फायदों को अपने से दूर करने के लिए तैयार हैं, फिर राजा ने अपनी पुत्री से कहा कि यह किस प्रकार से ठीक है। और किस प्रकार से यह बुरा नहीं हैं, इसके बारे में मुझे समझाओ, और फिर मुझको इस विषय में क्या करना चाहिए? और ऐसा पति तुमको कैसे प्राप्त करेगा, जो आपको अपनी पत्नी के रूप में नहीं मानने का प्रस्ताव करता है? और यह बेतुकापन क्या है जो तुम बोल रही हो?

 

     तब उसकी बेटी उठकर उसके सामने खड़ी हो गयी, और उसने अपने हाथों को जोड़ कर एक साथ ताली को बजाती रही, कि जब तक की उसकी चुड़ीयां भी नहीं बजने लगी, और इसके साथ उसने अपने पैरे को जमीन पर पटकना प्रारंभ कर दिया, जिसके कारण उसकी एड़ीयां जख्मी हो गई, और उसमें से खून निकलने लगे और उसके पैरे के लाल-लाल निशान जमीन के फर्श पर पड़ने लगे, और उसका मुंह इस प्रकार से मुड़ने लगा, जैसे वह काम से पीड़ित हो गई हो। और उसके शब्द तीर के समान घृड़ित वार करने के लिए व्याकुल हो रहे थे, और उसने चिल्लाते हुए कहा क्या आप उसकी नीति को समझते हैं, यद्यपि आपका चिंतन अपने व्यक्तिगत फायदे के लिये है। उस तरफ ध्यान नहीं रहे है, जिससे सामूहिक रूप से जन कल्याण होने वाला है, क्या आप नहीं जानते है, जैसा कि संदेशवाहक ने कहा कि वह आदमी मेरा होने वाला पति है, और वह मनुष्य के मध्य में हाथी के समान है। और वह मेरे लिए बहुमूल्य हैं, क्या आप औरत को समझते हैं, शायद आप नहीं जानते हैं, जिसने औरत के संबंध से मिलने वाले अमृत का स्वाद एक बार लिया है, वह उसको बार-बार प्राप्त करने के लिए व्याकुल रहता है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो अपने संपूर्ण जीवन को यूं ही व्यतीत कर देते हैं बिना औरत के संबंध से होने वाले मधुर मिठास का स्वाद लिए ही, यद्यपि देवताओं और राक्षस भी औरत के रास्ते को रोकने के लिए खड़े नहीं हो पाते हैं। और क्या आप मुझको समझते हैं, शायद नहीं जानते हैं, यह निश्चित है, कि वह मेरा पति होगा और मैं उसको अपना पति बना लुंगी। चाहे कुछ भी हो जाये, किसी भी शर्त पर वह मेरा ही हो कर रहेगा, जिस प्रकार से बिन को बजाने वाला सपेरा अपनी धुन पर सांप को नचाता है। उसी प्रकार से मैं अपने इशारे पर अपने पति को नचाऊंगी। मैं उसको अपने चालाकी भरे मीठे वचनों से रिझाते हुये, उसके सामने नाचती रहूंगी, जब तक की वह मुझ पर प्रसन्न हो कर मेरी इच्छा के अनुकूल नहीं हो जायेगा। मेरे छल और स्त्रैण प्रपंच से वह किसी भी प्रकार से नहीं बच सकता है।

 

       राजा ने तब अपनी पुत्री के यह विश्वास भरे पांडित्य वचनों को सुन कर कहा मेरी पुत्री बिना संदेह के निश्चित ही तुम पांडित्य की कला से परिपूर्ण हो चुकी हो। और इस सुन्दर मस्तिष्क में बहुत से अद्भुत दिव्य और बहुमूल्य वैज्ञानिक विचार से भरे हैं। मुझे यह जान कर आश्चर्य हो रहा है कि इतनी छोटे-सी उम्र में तुमने यह सब कैसे प्राप्त कर लिया? यह सब सिवाय परमेश्वर के कौन तुमको बता सकता हैं? तुम्हारे समान कोई नहीं है, और पति के मामले में उसको अपने चापलूसी से बस में करने की व्यवस्था के बारे में तुम्हारा अद्भुत ज्ञान है, यद्यपि अभी भाषा के साथ उसकी तुकबंदी और व्याकरण को तुम सिख रही हो। यह सब सुनने के बाद राजा की पुत्री हंस पड़ी और कहा कि ओ मेरे प्रिय पिता क्या आप नहीं जताने हैं, कि वास्तव में सभी प्रकार की कला हमें हमारे पिता से मिलती है, आप स्वयं विचार कर सकते हैं कि औरतों को उनके व्यापार कला का ज्ञान उनको उनके उम्र के साथ जीवन के अनुभव से मिलता है। जिसमें से कुछ औरतें उसको अपने जीवन में धारण करती हैं, दूसरी औरतें उसका परित्याग कर देती हैं, जिस प्रकार से सृष्टि का रचेता मकड़ी को उसका जाल बनाना सिखाता है, जिस प्रकार से मधुमक्खियों को मधु बनाना सिखा देता है, जैसे कमल के फूलों को खिलना सिखा देता है। इसी प्रकार से वह हाथी को उसके अनुकूल बुद्धि भी देता है, इस प्रकार से वह औरत को कैसे छोड़ सकता है? उनके उम्र के साथ उपयुक्त स्वभाव को देने से, अर्थात औरतों को उनके उम्र के साथ स्वभाव में भी परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार से वह सभी समस्याओं के भार को अपने कंधे पर उठाने में समर्थ हो जाती हैं, उसी प्रकार से आप भी मुझ मेरी समस्या का भार को मेरे कंधे पर डाल दीजिये जिसके वहन के लिए मैं बिल्कुल तैयार हो चुकी हूं। इसलिए इस कारण की सफलता के लिए और मेरे पति और मेरे स्वयं के लिए, आप संदेशवाहक भेज दीजिये, और उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लीजिये, और मुझको भी संदेश के साथ ही उनके पास भेज दीजिये, जितना जल्दी से जल्दी हो सके। और इस संबंध में मैं स्वयं अपने एक संदेशवाहक आदमी के मुंह से अपनी तरफ से संदेश भेज दूंगी।

     इस तरह से राजा ने अपनी मूर्खता को स्वीकार कर के, वही किया जैसा कि उसकी पुत्री ने उससे कहा था। क्योंकि उसका अपने पुत्री के प्रति अगाध स्नेह भी था, जिसके कारण उसकी बातों को अस्वीकार करने का साहस उसमें नहीं था। इसलिए उसने अपने पुत्री के अनुसार एक संदेशवाहक को अपने दामाद के पास भेजने के लिए तैयार हो गया। कि मैंने आपके प्रस्तावित शर्त को स्वीकार कर लिया है, और इसके साथ मैं अपनी पुत्री को भी भेज रहा हूं, जिसके रूप में एक नया चांद आपके महल में उदित होने वाला है, और मैं ऐसी आशा करता हूँ कि इसके साथ आप के जीवन में अच्छे सौभाग्य का उदय होगा। जिससे आपके स्वभाव में परिवर्तन आ जायेगा। और जब संदेशवाहक लगभग जाने वाला था तभी राजा कि पुत्री ने उससे कहा कि तुम इन शब्दों को मेरी तरफ से मेरे पति से सावधानी के साथ कहना कि आप उन्हें जोड़ दें, या एक को हटा दें, आपकी स्त्री दासी आपको नए चंद्रमा के साथ मिल रही है। और उसने अपने सभी स्वामी के आदेशों को ध्यान में रखा है। और उसके आने का समय वह मध्यस्थ के मुंह से समझ लेगी, परन्तु उसकी आँख उसकी उपस्थिति या उसके कान से उसकी वार्ता से नाराज नहीं होगी, जब तक कि वह स्वयं उसे अपने ही काम के लिए न बुलायेगा।

 

     इस तरह से संदेशवाहक अपने साथ राजा के संदेश को लेकर उसके दामाद के पास गया, और जब उस युवा राजा को अपने होने वाले श्वसुर का यह संदेश मिला, और उसके साथ भविष्य के होने वाली अपनी रानी का संदेश भी, तो उसने विचार किया की उसके शब्द बहुत अधिक मधुर और मोहित करने वाले हैं। और जिनसे अत्यधिक बुद्धिमत्ता की खुशबु भी आ रही है, और कानों के लिये वह श्रृगार रस के समान थी। राजा ने अपने मन में विचार किया  फिर भी वह एक औरत है, ध्यान रखना पड़ेगा कि उसकी छाया भी हमारे इर्द- गीर्द ना पड़ने पाये। इसलिए वह राजा स्वयं को उसी उजड़े शिव मंदिर में पहले के समान रहता रहा, जिसमें वह अपने जीवन को नष्ट कर देना चाहता था। क्योंकि वह ऐसी आशा करता था कि उसकी आने वाली रानी उसके लिए ज्वलंत अग्निकुण्ड के समान होगी जिसमें वह उसको भस्म करने का सामर्थ्य रखती है।


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