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मेरी चेतना (एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -2 मनोज पाण्डेय



 मेरी चेतना

     (एक प्राचीन प्रेम कथा) भाग -2

 

मनोज पाण्डेयजी (अनुबादक)




      इसके कुछ समय के बाद, अंधेरे पखवाड़े का अंतिम दिन आने पर और नए चंद्रमा की पूर्व संध्या पर; अपने अनुचरों के साथ राजा की बेटी आयी, राजा के नगर में जाने के बजाय उसने शहर के बाहर अपना शिविर लगाया, जो जंगल के नजदीक था जहाँ से उजड़ा हुआ मंदिर दिखाई दे रहा था, क्योंकि वहाँ पर स्वयं राजा ने अपने पत्नी को अपना निवास बनाने के लिए आज्ञा दी थी।

 

एक नये चंद्रमा के प्रकाश विस्तार

 

      अगले दिन सुबह प्रातः काल में पिछले दिन के रात्रि का प्रकाश अभी आकाश में व्याप्त हो ही रहा था, युवा राजा सूर्य के उदय से पहले ही अपनी निद्रा से जाग गया, और मंदिर के बाहर घूमते हुए आ गया। और मंदिर कि सिढ़ियों पर चलता हुआ कमल पुष्पों के झिल के पास पहुंच गया। और उसने देखा कि झिल के कमल पुष्प उसके प्रेमी के स्वागत कि तैयारी कर रहें थे, और जैसे ही उसकी दृष्टि अपने पीछे पूर्व कि तरफ पर्वतों की चोटियों पर पड़ी, जहाँ से सूर्य अपने उदय होने कि तैयारी में व्यस्त था। और उसने फिर अपनी आँखों से वृक्षों के मध्य में देखा, जिसमें अचानक उसको दिखाई दिया एक चमकता पैर उसकी तरफ आते हुए, पैर झिल के किनारे -किनारे चलते हुए धिरे-धिरे उसके पास आ रहे थे, उसकी चेतना का चेहरा अपने विलासिता पूर्ण ऐश्वर्य के साथ खिल रहा था, जैसे वह द्विज का चन्द्रमा हो और उसने गहरे नीले वस्त्रों को धारण कर रखा था। और उसने अपने हाथों में आम के पुष्पों को ले रखा था, जैसे उसने चन्द्रमा के सोलह कला को धारण किया हो। और जब राजा उसकी तरफ से मुड़ गया आश्चर्य और अप्रसन्नता पूर्ण आने वाले विनाश को विचार करके, वह राजा के पास आई। और राजा से कुछ दूरी पर खड़ी हो गई, और कहा हे राजा मेरी मालकिन आ चुकी हैं। और उन्होंने मुझको आपके पास भेजा है, आपको सुझाव देने के लिए, जैसा कि उन्होंने आपसे वादा किया है कि वह क्षमा प्रार्थी हैं, कि वह आपके पास अपने संदेशवाहक के रूप में किसी औरत को ही भेजेगी। किसी बुद्धिमान पुरुष के बजाय, क्योंकि उनको किसी पुरुष पर विश्वास या श्रद्धा नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने स्वामी के लिए इन मूल्यहीन हाथों के द्वारा इस फूल को भेजा है। यदि आपकी निद्रा मीठी बीती होगी, तो यह उनके लिये अच्छा होगा।

 

       फिर राजा ने चेतना से कहा उनके फूल और संदेश के लिए मेरा आभार अपनी मालकिन के लिए ले जाओ, और उनसे कहना कि नींद केवल उनके लिए है, जो स्वयं से प्रेम करते हैं, और संसार से किसी प्रकार के संबंध नहीं रखते हैं, लेकिन एक बीमार आदमी के लिए रात्रि पहले से तैयार एक अंधकार है। जिसमें बिना निद्रा के ही प्रातःकाल की भोर बेला को प्राप्त करता है। तब चेतना ने कहा यद्यपि यह एक धोखा देने की कला है, इससे कुछ अच्छी दूसरी वस्तु पहले बनी बनाई गई है। मैं दोनों प्रकार कि बीमारियों के इलाज के बारे में अच्छी प्रकार से जानती हूं। इस पर राजा ने उसको बड़े आश्चर्य के साथ देखा, और कहा किशोर युवती यदि तुम जानती हो, तो तुम आगे बताओ।

 

         आपका इस तरह का व्यवहार करने का तरीका, और आपका पुरुष होना है। फिर चेतना ने कहा हां! राजा क्या आप वास्तव में अपने शरीर के बारे में सब कुछ जानते हैं, और फिर भी आपने इस अकेले पुराने मंदिर में अपने आप को कैदी बना दिया है, क्या इतनी कमजोर अपरिहार्य है, एक महिला के रूप का आकर्षण और उसकी चंचलता जिसके कारण आप उससे स्वयं को बचाना चाहते हैं। क्या  आप जानते हैं कि आपके समान एक बार एक युवा राजा था और संसार में जिसने के तरीके से बिल्कुल अनुभवहीन था, वह एक पत्नी को चाहता था जिससे वह बहुत अधिक प्रेम करता था। लेकिन वह मर गई, जिसके बाद उस युवा राजा ने सांसारिक व्यापारिक क्रिया कलाप और संसार की भोग विलास को आपकी तरह से त्याग कर दिया। और बहुत दूर एकांत जंगल में चला गया। और स्वयं के लिए जीने लगा, जैसा कि आप करते हैं, इस तरह के एक और पुराने उजड़े जंगली मंदिर में, निराशा के साथ जो अपने दिल-दिल में जल रहा था। और जब कोई भी उसके राज्य का आदमी या अधिकारी उसके राज्य के प्रति दाईत्व और जिम्मेदारियों, कर्तव्यों को समझाने में या उसके इरादे को बदलने में या उसको जंगल से वापिस महल में ले जाने के लिए, अथवा उसके वैराग्य के भाव के त्यागने के लिये तैयार नहीं कर सका।

 

 

            तब अंत में वहाँ पर उस राजा को देखने के लिए, वह मेरी तरह कोई एक युवा और बेवकूफ नौकरानी नहीं थी। बल्कि झुर्रियों वाले एक वृद्ध ऋषि, जो उसके परिवार के आध्यात्मिक गुरु थे वह आये, और जब वह राजा के पास आये, जिन्होंने वृक्ष के छाल के वस्त्रों को बहुत कलाकारी के साथ पहन रखा था। और वह उस राजा के सामने आकर खड़े हो गए, किसी प्रकार के शब्द के उच्चारण किये वगैरह। इस तरह से वह एक साथ शांत होकर खड़े रहे, अचानक वहां एक बांस के कोठी से एक उसका पत्ता जमीन पर नीचे गिरा, और वह तत्काल पिला बांस का पत्ता इधर-उधर उड़ता हुआ, झिल के शांत पानी में चला गया। औ वहाँ पानी के ऊपर तैरने लगा और तत्काल पत्ते को गिरते हुए देख कर वृद्ध आध्यात्मिक गुरु के हृदय में दुःख का सागर उमड़ आया। और वह जमीन असहाय हो कर गीर गया, और अपने कपड़ों को फाड़ने के साथ अपने बाल को पागलों कि तरह से नोचने लगा, और मिट्टी के साथ धुल को अपने दोनों हाथों से अपने सर पर फेंकने लगा। इसको देखकर राजा ने कहा पिता ऐसा क्या आपके साथ अचानक हो गया? जिससे आप इतने अधिक दुःखी और पागलों कि तरह से व्यवहार करने लगे हैं, वृद्ध ऋषि ने ओ-ओ कहा क्या तुमने ध्यान से नहीं देखा कि एक बांस के वृक्ष से पत्ता नीचे जमीन पर गिर गया है? राजा को यह सुन कर आश्चर्य हुआ, जिसके कारण उसने कहा पवित्र आत्मा निश्चित रूप से अब तुम्हारी मूर्खता आज तुम्हारे ऊपर हावी हो चुकी है। जिसके कारण ही तुम इस तरह से व्यवहार कर रहें हो। यह असाधारण दुःख मात्र एक साधारण पत्ते के लिए, जो वृक्ष से गिर गया है। फिर वृद्ध ऋषि ने उस राजा से कहा हे राजा तुम्हारे लिये यह मूर्खता है, क्या आप इस मूर्खता के लिए मुझको दोषी मानते हैं? कि मैं पत्ते के गिरने के लिए क्यों दुःखी हो रहा हूं? तो क्या आप जिसने स्वयं के सुख पूर्ण जीवन का त्याग कर दिया है, वो भी मात्र एक औरत के मृत्यु के कारण, क्या आप नहीं जानते हैं? कि यह मृत्यु हर एक वस्तु के साथ एक जैसा व्यवहार करती है। तो हमें हर किसी छोटी से छोटी वस्तु की मृत्यु पर दुःखी और अपने सुखों को त्याग कर देना चाहिए। जैसा कि मैंने किया, जिसमें आपको मेरी मूर्खता का साक्षात्कार हो रहा है।

 

        फिर नश्वर औरत के शरीर के लिए दुःखी होने का आपके लिए इतना बड़ा क्या कारण हैं? यद्यपि किसी वृक्ष से पत्ते का गिरना उसी प्रकार से है जिस प्रकार से किसी मानव की मृत्यु होती है। और क्या, हे राजा, क्या यह मूर्खता नहीं है? कि सारी वस्तुओं का त्याग कर दिया जाना चाहिए, वह भी केवल एक औरत के चंचलता भरे आकर्षण और स्नेह के कारण, क्या औरत का शरीर बहुत अधिक आकर्षक और स्थिर है। बांस के पत्तों की तुलना में? जिसके लिए आप जैसा राजा जो दुःख के असीमित सागर में डुबकियां लगा रहा है। जबकि इसके बाद भी बांस का पत्ता झील के पानी में तैर रहा है।

 

       फिर चेतना ने आम के फूलों को राजा के चरणों में रख कर वहाँ से जल्दी-जल्दी जंगल में चली गई, जिसके कुछ देर बाद वह घने जंगल के वृक्षों के मध्य में जाकर लुप्त खो गई। लेकिन राजा आश्चर्यचकित होकर वहीं पर खड़ा रहा और उसके जाने के बाद उसी तरफ देख रहा था, और उसकी आँखें जैसे उसकी इच्छा के विरुद्ध प्रतिशोध कि भावना के बजाय, उनमें इस चेतना के शरीर की बनावट और उसकी सुडौलता के प्रति आभार और कृतज्ञता का भाव उमड़ने लगा था, उसका चलना और मुड़ना इस भांति से था जैसे वह कोई हंशीनी झिल के पानी में तैर रही हो। फिर वह राजा नीचे झुक कर अपने पैरों के पास पड़े उन आम के फूलों को उठाया, और उनको अपने नाक से सुंघने, लगा और उसने अपने आप से कहा आम के फूल की सुगंध बहुत मिठी है। और उस किशोरी की आवाज में एक प्रकार का संगीतमय आनंद की फुहार है। जो अपने मालकिन के लिए मुझसे विवाद कर रही थी, लेकिन फिर भी वह एक औरत है जो हमको दोषी सिद्ध कर रही थी। और उसने जो भी कहा ठीक ही कहा और जो इस प्रकार के काम वासना को आनंद का श्रोत समझते हैं उनकी इच्छा और कामना बहुत तुच्छ और ओछी हैं, उसी प्रकार से जिस प्रकार से झील के पानी में बांस के पत्ता होता है। क्या मैं महिलाओं को पुण्य की इजाजत देता हूँ, जो खुद को भी अस्वीकार करती हैं? और उसने आम के फूलों को उस झील में फेंक दिया, और रात के आने तक दिन के मध्य में उन्हीं विचारों का चिंतन करता हुआ घूमता रहा, अपने दिल में एक घबराहट को लेकर मंदिर में वापस चला गया।

 

        इस प्रकार से रात्रि आने पर वह पत्तों के बिस्तर पर बेचैनी के साथ करवटें बदलता रहा, और सुबह सूर्य उदय होने से पहले ही उठ गया। और वहाँ से सिधा झील की सिढ़ियों पर जा कर खड़ा हो गया, और देखने लगा सूर्य के उदय होने से पहले आकाश में उपस्थित तारों के प्रतिबिंब को, जो साफ- साफ झिल के पानी प्रतिबिंबित हो रहे थे। और उसने इसके अतिरिक्त देखा चेतना को झिल के किनारे से उसकी तरफ आते हुए, अपने चमकते हुए पैरो के साथ, जिसने अपने हाथों में तुरही के फूलों को ले रखा था। और वह इस प्रकार से दिख रही थी जैसे आकाश में सूर्य उदय से पहले होता है जिसके चारों तरफ एक लालिमा छाई हुई होती है। इस तरह से वह राजा के करीब आ गई, और राजा के करीब आकर खड़ी हो गई, और कहा हे राजा मेरी मालकिन ने अपने स्वामी के लिए इन मूल्यहीन हाथों से, इन तुरही के फूलों को भेजा है, अगर आपकी रात्रि अच्छी तरह से गुजरी होगी, तो यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा।

 

 

         फिर राजा ने कहा चेतना वह कैसे अपनी रोता को बिना परेशानी के व्यतीत कर सकता है, जिसकी स्मृति को काम ने अपने तीक्ष्ण वाणों से घायल कर रखा हो, सूखी पत्तियों की तुलना में जो तुम्हारी राय में भी अधिक बेवकूफ हो? फिर चेतना ने हंसते हुए कहा हे राजा अभी मैं युवा हूं, और आपसे उम्र में छोटी हूं, क्या आप किसी औरत के क्रिया कलाप को इतने हल्के में लेते हैं। और फिर भी उनमें से सबसे कम उम्र की औरत के कहे शब्दों को याद करते हैं। और उनको बहुत अधिक महत्व देते हैं? इसको सुन कर राजा और अधिक उलझन में पड़ गया, और राजा ने कहा सेविका तुम मुझसे निश्चित ही युवा हो, और तुम में  दूसरी औरतों से बहुत अधिक कामुकता की माया से सराबोर हो, और यदि इस प्रकार से उसकी सेविका है, तो उसकी मालकिन कैसी होगी? इसको सुन कर चेतना बहुत अधिक आनंदित हो कर हंसने लगी, और उसने अपनी वाणी पर जोर देते हुए कहा हे राजा वह एक औरत है, क्या यह उनके लिए पर्याप्त नहीं है, क्या वे सभी बांस के पत्तों के समान बेवकूफ और उनके डंठल, के समान खोखले की तरह नहीं है, अर्थात वह इसके अपवाद के बिना हैं? और आपका किसी फूल कि क्यारी के अनुभव को देख कर किसी फूल के बारे निर्णय करना ठीक नहीं है। और फिर भी, खरपतवार के अपने अनुभव के अनुसार सभी फूलों का न्याय न करें। क्योंकि मैं और अन्य खरपतवार के समान हैं, फिर भी मेरी मालकिन इस शानदार तुरही-फूल की तरह है। हे राजा, क्या आप सोचते हैं कि निर्माता, जो सभी फूलों को समान रूप से फूल बना रहा है, फिर भी प्रत्येक फूल को अपनी विशिष्टता उसको अलग कर दिया, इसी प्रकार से उसने सभी महिलाओं को समान नहीं बनाया है । वास्तव में, आप एक गलत न्यायाधीश हैं। ठीक उसी प्रकार से जैसे गुलाब का फूल होता है, जो देखने में बहुत अधिक सुंदर और आकर्षक होता है जबकि दूसरे फूल कल लाये गये, साधारण आम के फूल के समान होते हैं, फिर भी सभी सुगंध से आच्छादित होते हैं।

 

       जैसा की एक लाली नाम की स्त्री थी जिसका पति एक बार लंबी विदेश यात्रा पर गया और कभी अपनी यात्रा से वापिस नहीं आया। इसके बाद साल के साल गुजरते गए, और वह कभी नहीं आया। और इन सालों के बीच हर एक दिन में लाली अपने पड़ोसियों और युवाओं के तानो को सुन-सुन कर बहुत अधिक दुःखी होती रही, जो उसकी सुंदरता को देख कर उसकी तरफ आकर्षित होते थे। जिस प्रकार से मधुमक्खियाँ फूलों की खूशबु और उसके सौन्दर्य को देख कर आकर्षित होती हैं। जितना ही अधिक वह उन लोगों को अपने से दूर करने का प्रयास करती उतना ही अधिक वह सब उसके करीब आने के लिये उत्सुक होते थे। इस प्रकार से ऐसे लोगों के आचरण से वह बहुत अधिक दुःखी हो कर एक रात्रि को उसने एक दीपक लिया, और उसमें उसको तेल से भर दिया, और उस दीपक को अपने साथ लेकर गंगा नदी के किनारे चली गई। और उसने अपने आप से कहा कि मैं इस दीपक को जला कर गंगा नदी की धारा में बहा दूंगी, जब यह दीपक गंगा नदी के पानी में बुझ कर डुब जायेगा, तो मैं इस नदी में डुब कर अपने जीवन का अंत कर लुंगी, और यदि यह दीपक नदीं के पानी में बिना बुझे तैरता ही रहा, तो मैं नदीं में डुब कर अपनी आत्महत्या नहीं करूंगी। यद्यपि अपने पति के यात्रा से आने का इंतजार करूंगी। फिर उसने ऐसा ही किया अर्थात दीपक को जला कर नदी की धारा में बहा दिया, और अब उस रात को अचानक बहुत बड़ा और खतरनाक तूफान आ गया, जिससे गंगा नदी की लहरें समंदर के समान उठने लगी, फिर भी इसका ध्यान दिये बगैर, वह नदी के पानी के ऊपर अपने दीपक को जलते हुए देखती रही, क्योंकि ईश्वर पर उसकी श्रद्धा बहुत अधिक मजबूत थी। उस समय आकाश में अनगिनत तारें चमक रहें थे, जो उस औरत के इस छुद्र कृत्य को देख कर अनादर भाव से हंसते हुए आपस में कह रहें थे, कि देखो इस बेचारे छोटे से दुःखी दीपक को नश्वर संसार के छोटी-सी नदी में, जिसको बहा कर यह औरत दीपक को तारा समझती है। कि यह कभी बुझेगा ही नहीं और ठीक इसी समय आकाश मार्ग से भ्रमण करते हुए त्रीकालदर्शि भगवान शिव ने नीचे लाली को एक छोटे से दीपक को जला कर गंगा नदी के धारा में बहाते हुए देखा, उन्होंने तत्काल अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करके भंयकर तूफान को बिल्कुल शांत कर दिया, जिसके कारण गंगा नदी की लहरें बिल्कुल शांत हो कर अपने निद्रा अवस्था में चली गयी, और उनके ऊपर फूल कि तरह से खिलता छोटा दीपक जलता रहा, जिसकी ज्वाला बिना किसी अस्थिरता के बहता रहा, शांत पानी के अंदर उसका प्रतिबिंब किसी दूसरे आकाश के तारों के मध्य में झिलमिला रहा था। इस प्रकार से जैसे वह उपर्युक्त उन तारों की नकल में मुसकुरा रहा हो। फिर दयालु भगवान ने कहा आकाश से क्या आप नीचे अपने सभी सितारों के साथ आकाश को देखते हैं? और आकाश ने उत्तर दिया हां लेकिन वह आकाश अपने सितारों के साथ एक भ्रम है। और महेश्वर शिव इस पर हँसे और उन्होंने कहा तू मूर्खता पूर्ण आकाश है, जानता है कि तू अपने सभी सितारों के साथ स्वयं को अकेला समझता है और नीचे कोई दूसरा भ्रम रुपी आकाश नहीं है। सभी की एकमात्र वास्तविकता थोड़ी हल्की है, जो जिस प्रकार से गंगा में दीपक तैरता है, ऊपर की अनंतता और नीचे के बीच बनाई गई है। इसके लिए एक वफादार पत्नी की अच्छी गुणवत्ता के साथ यह उसकी श्रद्धा का प्रतीक है।

 

       इस प्रकार से दीपक गंगा नदी के पानी में तैरते हुए जल रहा था, जब तक कि वह लाली के आंखों से ओझल नहीं हो गया। और इसके बाद उस औरत ने अपने पति को भगवान को अपने पक्ष में कर फिर से दुबारा प्राप्त कर लिया।

 

         फिर चेतना ने राजा को लगातार ध्यान से देखते हुए, उन फूलों को राजा के चरणों में रख कर वहाँ से दूर चली गई, और राजा उसके जाने के बाद भी उसको देखता रहा, जैसे ही वह गई राजा खड़ें- खड़ें उसके ध्यान में चला गया, उसके बहुत समय जाने के बाद तक वहीं ध्यानस्थ बना रहा। और फिर वह नीचे झक कर अपने पैरों के पास पड़े हुए तुरही के फूलों को उठाया। और उसने स्वयं से कहा लाली वास्तव में बहुत सुंदर गुलाब के फूल की तरह है। ठीक इसी प्रकार से जैसे यह विचित्र सेविका है, निश्चित ही इसके जबान पर सरस्वती देवी का वास हैं, लेकिन फिर भी क्या वह? एक औरत नहीं है। यह उसी प्रकार से हैं जिस प्रकार से कोई प्राणी अपने दाँतों में जहर को रखता है, और अपने होंठों पर मधु को रखता है। और वह फूलों को दूर झील में फेंक कर अपने होंठों को बंद कर लेता है, इसके बाद वह उदास हृदय के साथ वापिस अपने मंदिर में चला जाता है। दिन भर किसी तरह से शोक पूर्ण हो कर बिताता है और रात्रि के आने का इंतजार करता है।

 

        फिर रात्रि आने पर किसी तरह से अपने पत्तों के बिस्तर पर रात बिताने के लिए किसी प्रकार से करवटें बदल-बदल कर रात को बीता देता है, और सूर्य उदय होने से पहले ही वह उठ गया और मंदिर से बाहर झिल की सिढ़ियों पर जा कर खड़ा हो गया, नीले आकाश में तभी उसकी दृष्टि नवजात सूर्य की सुनहरी किरणों ने पर पड़ी जिसने राजा का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया। और वह इस प्रकार से खड़े होकर सूर्य की सुनहरी किरणों को निहार रहा था कि तभी उसने पुनः चेतना को अपनी तरफ आते हुए देखा, अपने चमकते हुए पैरों के साथ, जिसने अपने हाथों में चमेली के खिले हुए फूलों को ले रखा था। और राजा ने जैसे ही उसकी तरफ देखा राजा प्रसन्नता से खिल उठा अपनी इच्छा के विपरीत, उसकी चाल-ढाल से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह एक युवा औरत का एक अवतार हो। जब वह राजा के पास आकर उसने राजा को हंसते हुए देखा और कहा हे राजा मेरी मालकिन ने इसको अपने स्वामी के लिए भेजा है, इन मूल्यहीन हाथों के द्वारा, इन फूलों को, अगर पिछली रात्रि में अच्छी तरह से सोये होगे, तो यह उनके लिए बहुत अच्छा होगा।

 

       फिर राजा अपने ऊपर हंसा और वह स्वयं पर बहुत अधिक क्रोधित हुआ, कि उसने ऐसा क्यों किया? और उसने चेतना से कहा वह कैसे अपने जीवन में आनंद प्राप्त कर सकता है? जो स्वयं अपनी इच्छा के विपरीत हो चुका हो, वह इस तरह के काम वासना से निपटने के लिए अपनी इच्छा के मुकाबले मजबूर कैसे हो सकता है? चाहे वे अच्छे या बुरे हों, किसी भी तरह से, वे अपनी मन की शांति को नष्ट कर देता है।

 

       फिर चेतना हंसने लगी और उसने राजा को हंसते हुए अपने छोटी-छोटी सूक्ष्म आँखों को मटकाते हुए देखा, और उसने राजा से कहा हे राजा ज्ञान को विकसित करने की जो कला है, उसके लिए केवल एक रास्ता है कि जो बुद्धिमान लोग उनके साथ एकात्म स्थापित किया जाये। और उनसे इसको सिखा जाये। क्योंकि मैं अपने कामुक वासना की प्राकृतिक चतुरता से पूरी तरह से रहित नहीं हूँ, हालांकि मैं अभी केवल 21 वर्ष की हूँ, और अब मैं समझ सकती हूं कि आपका और हमारा विचार एक जैसा हैं, जिस प्रकार से बुनकर अपने कपड़े को बुनता है, और उसी प्रकार से हम सब अपने जीवन को विचारों से बुनते हैं, जिस प्रकार से हमारा विचार होता है उसी प्रकार से हमारा स्वयं का निर्वाण होता है। आज से आपका विचार हमारे प्रति कुछ स्वीकारात्मक और उदार हैं। जो हमारे लिए बहुत अच्छा और शुभ है और यह केवल एक हमारे लिए अच्छाई कि संभावना है, और मुझे आश्चर्य है, कि अचानक आप में आये परिवर्तन के पीछे जो कारण है, जिसकी वजह से आपके हृदय में मेरे प्रति इस प्रकार की उदारता पूर्ण विचार उत्पन्न हुए हैं। और इस प्रकार से उसको सुनने के बाद राजा बहुत अधिक अप्रसन्न और चिंतित था। क्योंकि उसने दृढ़ संकल्प किया था कि वह कभी भी वह उसके साथ बात-चित करने में रुची नहीं लेगा, लेकिन इसमें राजा के दृढ़ संकल्प ने अभी तक किसी प्रकार से उसकी सहायता नहीं कि थी। और राजा ने कहा जो ऐसा नहीं हुआ है, उसका कोई कारण नहीं है और मेरी राय आज के दिन बस थी और मैं भी हूँ। लेकिन चेतना ने राजा को देख कर मुसकुराई और उसने कहा नहीं, यह ऐसा नहीं है बाहरी सारे संकेत ईमानदारी पूर्ण हैं। मैं उनको आपके चेहरे पर देख कर पढ़ सकती हूं। क्योंकि वहाँ हृदय में मेरे नाम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस प्रकार से राजा चेतना के प्रेम के जाल में फंस गया, और फिर राजा ने कहा वह कौन-सा नाम है? तब चेतना ने कहा मैं मधु नाम से जानी जाती हूं। और राजा ने कहा तुम्हारा नाम बहुत सुन्दर है, तब उसने कहा ऐसा तुम कैसे कह सकते हो? क्या आप जानते हैं कि मैं कैसी हूँ? क्या आप अंदर से अपने बाहर के बारे में न्याय करेंगे? क्या आप अखरोट के किसी भयंकर और कठोर खोल को देख कर उसके अंदर के स्वादिष्ट सामग्री का अनुमान लगा सकते हैं? तब राजा मुसकुराया और उसने कहा सेविका का यह मेरा मुसकुराना पर्याप्त नहीं है, उसी प्रकार से बाहरी अखरोट की कठोरता और उसकी आन्तरिक सुन्दरता के मध्य में कोई समानता नहीं है। फिर चेतना ने अपने हाथों से ताली को बजाया और उसने कहा हे राजा क्या आप विवेकाधिकार कभी नहीं सीखेंगे? क्या आप जल्द ही सब कुछ भूल गए हैं? क्या आप अनुभव से नहीं जानते कि बाहर से एक वस्तु इतनी अधिक प्यारी न हो, इसमें एक कड़वा रस भी हो सकता है? क्या आप मेरे बारे में बाहर से अनुमान लगा सकते हैं, मेरे भीतर के गुण क्या हैं? और फिर भी पता है कि अगर मेरी मालकिन मेरी सभी अन्य नौकरानियों से बेहतर मुझे  प्यार करती है, तो यह मेरे पति के लिए नहीं है, बल्कि यह मेरे आंतरिक अस्तित्व के लिए है। क्योंकि मैंने एक चालाक गुरु से ज्ञान सीखा और जो मैं आपको सिखा सकती हूं, आप उसे जानना चाहते थे और मैं इन कहानियों को बता सकती हूँ जो आपके अपनी सारी परेशानी पर हंसते हैं और आपको उस देश में ले जाते हैं, जिस के बारे में आपने कभी सपना भी नहीं देखा है। जहाँ पेड़ कभी खिलते हैं और नशे की लत से मधुमक्खी के झुंड से होने वाले शोर के साथ गुंजती हैं। जिससे उनकी छाया में दिन के सूरज का कभी जलता हुआ नहीं प्रतीत होता है। और रात तक, चांदनी कपूर के समान जलते हुए चंद्रमा की किरणों में अमृत के साथ जम जाती है। जहाँ नीले झील में चांदी के समान सफेद हंस की पंक्तियों से भरे हुई हैं। और जहाँ, रात्रि गहरे नीले रंग की चादर को ओढ़ कर आकाश के चरण रूप पहाड़ों में बारिश के गरज के साथ मोर की तरह आनंदित होकर नृत्य करती हैं। जहाँ पर आकाशीय बिजली बिना किसी को नुकसान पहुंचायें ही चमकती है, इस बिजली के प्रकाश में औरतें अंधकार में छुप कर अपने प्रेमियों से मिलने के लिए जाती हैं। और इन्द्रधनुष हमेशा के लिए आकाश में लटका हुआ, जैसे कोई चमकीला दुधिया मड़ी चमक रहा हो, पर्दे के समान गहरे नीले आकाश बादलों के मध्य में से मुसकुराते हुए सब कुछ बिना शब्द के देखता है, जहाँ पर चांद के प्रकाश में संगमरमर से सुसज्जित महलों की छतो पर हंसते और मुसकुराते हुए युवा प्रेमियों के जोड़े आपस में आलिङ्गन बद्ध हुए एक दूसरे के साथ प्रेम में मग्न होते हैं। जिनका प्रेमापुरित चेहरा लाल अंगुर के शराब के गिलासों में प्रतिबिंबित होता है। और वह जब सांस लेते हैं, तो एक दूसरे के हृदय में जैसे चंदन की खुशबु भर जाती है। जिस प्रकार से उत्तरीय पर्वत हिमालय से सर्द हवायें और समन्दर की गर्म हवा आकाश मार्ग से भ्रमण करती हुई उनका चुंबन करने के लिए लालाइत होकर उनके चारों तरफ पंखे के समान झल कर उनको राहत और परमानंद की अनुभूति करा कर स्वयं को अभिभूत करते हुए गौरवान्वित महसूस करती हैं। जहाँ पर वह एक दूसरे के साथ प्रेम लीला करते हैं। और एक दूसरे के शरीर पर आच्छादित नीले गहरे चमकीले रुबी की माला उन्हें और अधिक सौम्य और सांस्कृतिक सभ्य बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं। जिन मणियों को महासागर या समन्दर का मंथन करने के बाद उनकी तलहटी से निकाला गया था। जहाँ पर नदीयां और उसका रेत भी पहुंच कर हमेशा के लिए सुनहरे हो जाते हैं। धीरे-धीरे शांति के साथ केकड़े अपनी लंबी लाइनों का प्रवाह करते हुए चलते हैं। और जहां सफेद चांदी के समान मछलियाँ अपने आपको को लेकर सागर के किनारे पर पहुंचने के लिए दौड़ती हैं। जहाँ पर सच्चे और ईमानदार सज्जन पुरुष सत्य के साथ रहते हैं। और जहाँ पर हमेशा उनकी सेवीकायें उनको प्यार किया करती हैं और जहाँ पर कमल का फूल कभी नहीं मुरझाता है।

 

 

     और जैसे ही उसने सुना, राजा की आंखों से आँसू बहना शुरू हो गया और उसने कहा ऐ! सेविका, मुझे अपने साथ ले चलो, अगर तुम ऐसा कर सकती हो, उस भूमि पर जहाँ प्यार कभी बूढ़ा नहीं होता है। लेकिन चेतना ने उसे अपनी आंखों के प्रेम से देखा और उसने राजा के पैरों पर चमेली के खिलते हुए फुलो को रख दिया और जंगल में पेड़ों के माध्य में से जल्दी-जल्दी वहाँ से दूर चले गई। जबकि राजा ने उसे काफी देर तर उसको जाते हुए देखता रहा, जब तक कि वह उसकी दृष्टि से गायब नहीं हो गई। और फिर वह प्रेम से नीचे झुक चमेली के फूलों को उठा लिया, और उसने कहा, चमेली तुम्हारी सुगंध तुलना से परे मीठा है और फिर भी यह इस छोटी लड़की की आवाज़ के संगीत के रूप में स्वादिष्ट नहीं हैं। और फिर भी हाँ! वह एक महिला है। और दूसरी महिलाओं अलग अद्वितीय है! क्योंकि मैंने सोचा था कि मैं अपने दिल से उसके आकर्षण के बहुत से बीज को उखाड़ फेंकने में सफल रहा हूँ, और अब यह सुंदर चेतना आती है और मेरे सभी परिचालन को नष्ट कर देती है, जैसा कि उसके चालाक सुगंधित होंठ के दरवाजे से सांस के साथ निकलने वाले कुछ सम्मानित शब्द जो मेरे संकल्प की प्रबलता को ऐसे नष्ट कर देते हैं। जैसे रेगिस्तान में विशाल पर्वत के समान रेत के ढेर को हवा का एक झोंका उनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर कर देता है। फिर उसने फूल और झील को देखा और उसने कहा, हे फूल, मैं तुम्हें तब तक नहीं फेंकुगा जब तक की तुम मुरझा नहीं जाते, क्योंकि तुम्हारे साथ एक अद्भुत चेतना के आकर्षण का स्वाद जुड़ा हैं जो मेरे रंगहीन जीवन में रंग भरने की तैयारी कर रहा है, क्योंकि यह मेरे लिए शर्म की बात होगी। और वह अपने हाथ में फूलों को लेकर, मंदिर में वापस चला गया, उसके दिमाग में चेतना की यादें और उसके दुःख की याद के बीच अंतर्द्वंद्व चल रहा था।

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