ईश्वर का बाल (एक प्रेम कथा) Part -2
लेखक मनोज पाण्डेय
प्रियतमा की विरह की अग्नि
इसके बाद वह राजा को
वहाँ से उठा कर ले गये, और उसके बिस्तर पर लिटा दिया, और वहाँ बिस्तर पर वह एक
मुर्दे की तरह से काफी समय तक पड़ा रहा, जिससे
उसके कर्मचारियों के शंका सताने लगी कि कही यह भी रानी की तरह से मर तो नहीं गया
है। लेकिन अंत में चिकित्सकों ने अपनी औषधियों के उपयोग के बाद उसको पुनः से सचेत
कर दिया, यद्यपि राजा को होश में लाने के पीछे
जो कारण था वह उसमें फेल हो गये थे, क्योंकि
राजा अभी भी अपनी रानी की मृत्यु के सदमे से उभर नहीं पाया था, जिसके कारण वह लगभग
पागल हो चुका था, और वह जानवरों के समान चिल्लाता, और अपने कपड़ों को फाड़ता इसके
साथ अपने बालों को नोचता और उखाड़ता रहता था। इसी दसा में वह महल में रात दिन घूमता
और अपनी रानी का नाम लेकर पुकारता रहता था, और उसने अपने राज्य स्वयं अपने आपको
अपने सहयोगी कर्मचारियों के हवाले छोड़ रखा था। वही लोग उसकी और उसके राज्य की हर
प्रकार से देख भाल किया करते थे। वह पागलों की तरह से अपने महल में घूमता रहता था
और दीवालों से सर पिट-पिट अपनी मृत पत्नी को पुकारता रहता था, जो भी उसके लिए
समस्या खड़ी करता था या उसको समझाने का प्रयास करता था, तो वह राजा उसको
मारता-पिटता था, इसके अतिरिक्त उसने कितनों की हत्या भी इसलिए कर चुका था। यह सब
देख कर उसके मंत्रियों ने आपस में सलाह मशवरा किया और उन सब ने आपस में निर्णय
किया की राजा को सुधारने के लिए उसके ऊपर कुछ प्रतिबंध लगाया जाये, अर्थात उनका खाने पानी को बंद कर दिया गया, और
राजा के साथ कठोरता पूर्ण व्यवहार किया जाने लगा, जिसके कारण राजा कई दिनों तक बिना खाये पीये ही रहा, जिसके कारण उसको बुखार हो गया, और उसका पूरा
शरीर आग कि तरह से जलने लगा, जैसा
कि उसने इच्छा बना रखी थी कि अपनी पत्नी के मार्ग का ही अनुसरण करेगा, जिस तरह से
उसकी पत्नी ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था, उसी तरह से वह अपनी शरीर का त्याग
कर देगा। इस तरह से वह कई सप्ताह तक ऐसे ही मृत्यु के दरवाजे पर पड़ा रहा। लेकिन
उसके पास कुछ विशेष प्रकार की दिव्य शक्ति थी जिसके कारण वह मृत्यु को ग्रहण करने
में समर्थ नहीं हो सका, और इसके बहुत समय के बाद वह बहुत धिरे-धिरे फिर से होश में
आने लगा, जिससे उसकी हालत में सुधार काफी आ गया। इसके बाद भी जैसे यह सब उसकी
इच्छा के विपरीत हो रहा था। क्योंकि वह स्वयं अपने आप और अपने जीवन से उब चुका था।
इसके थोड़े समय के बाद उसके स्वास्थ्य में सुधार आ गया, और एक बार उसने फिर से
अपने राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना प्रारंभ कर दिया। और एक बार फिर
से अपने टूटते बिखरते हुए राज्य को मार्ग पर लाया, अर्थात सब कुछ व्यवस्थित सक्रिय किया। इसके अतिरिक्त भी उसको ऐसा लग
रहा था, जैसे उसके जीवन के जो श्रेष्ठतम भाग है वह कही लुप्त हो चुका है अर्थात मर
चुका है। वह कभी भी यह नहीं स्वीकार सका की उसकी प्रिय पत्नी मर चुकी है या उससे
अलग हो कर किसी दूसरी दुनिया में जा चुकी है। और उसने अपनी संपूर्ण आत्मा को अपने
पीछे छोड़ दिया है, जो उसे जीवित रहने में सक्षम बनाने के
लिए ज़रूरी था। क्योंकि वह कभी अपने महल से बाहर नहीं निकलता था, अकसर वह अपने कमरे में ऐसे ही गुम-सूम चुप-चाप
निराश-उदास-हराश विवश अपनी आँखों में अपनी पत्नी की मृत्यु के दर्द को छिपाये हुए
घुमा करता था। हमेशा मौन और अकेला ही रहता था अपने सर को अपने छाती पर लटकाये हुए, मातम में डुबा हुआ कभी भी उसके चेहरे पर हंसी
या रंगत नहीं आती थी। क्योंकि अपनी मृत पत्नी की छाया को वह हर जगह देखता और महसूस
करता था जो उसके साथ दिन रात उसको छला करती थी। वह अपनी पत्नी की मधुरता को नहीं
भुला पा रहा था, जो कभी वापिस नहीं आने वाली थी, वह उसके हृदय में उसकी यादें दर्द भरें कांटे की तरह से चुभ रही थी।
जिसने राजा के हृदय को जैसे गोद ले लिया हो, अथवा जो उसको कुचलने और बर्बाद करने
के लिए मतवाली हो रही थी, और उसकी आत्मा को उसके शरीर से निकाल कर दूर फेंकना
चाहती हो, उसकी आँखें जंगली जानवर के समान हो गई
थी, इस स्थिति में जो भी राजा को देखता था
तो वह उससे भयभीत हो जाता था, जिसके
कारण कोई भी उसके सामने उपस्थित होने में असमर्थ सिद्ध होता था, क्योंकि राजा बहुत गंभीर रूप से दुःख और
प्रसन्नता के मध्य भाव आक्रामकता पूर्ण स्वभाव का हो चुका था। इस समय उसे देख कर
ऐसा लग रहा था कि जैसे वह नहीं जानता है कि वह क्या कर रहा है, वह उसी प्रकार से खतरनाक हो चुका था जिस प्रकार
से किसी जंगली हाथी के बच्चे को छिनने के लिए कोई उस हाथी के पास जाये, और वह
जंगली हाथी जैसा व्यवहार करता है। वैसा ही व्यवहार राजा का हो चुका था। इसी प्रकार
के जीवन जीते हुए राजा के सर में काले बालों के स्थान पर मटमैले बाल आ गये, समय से
पहले, जिससे ऐसा लग रहा था जैसे कि वह स्वयं
को धिरे-धिरे अपनी पत्नी की विरह की अग्नि में जला कर अपने आप को राख में तबदील
करने के लिए आमादा हो चुका हो, और
जैसे उसकी आत्मा इस अवसर के ही तलाश में थी, जिसके
कारण मौका पाते है उसके चेहरे पर अशिष्ट झुर्रियाँ और चिन्ता की रेखाएँ खिच गई
चेहरे और पलकों के ऊपर नीचे और एक गहरा गड्ढा बना दिया, उसके मौन होंठों के एक किनारे पर।
इसके बाद एक दिन ऐसा हुआ
जब महेश्वर भगवान अपनी पत्नी उमा को अपनी बाँहों में लेकर आकाश मार्ग से भ्रमण कर
रहें थे चन्द्रमा के पास से तभी अचानक उनके कानों में एक प्रेमी का अपने प्रियतमा
के विरह में व्याकुल प्राणी की आह की आवाज में पड़ी, जिससे उनको ऐसा लग रहा था जैसे कि चकवा नदी के एक किनारें से दूसरे
किनारे पर स्थित अपने प्रियतमा के विरह में आहें भर-भर उसको याद कर रहा हो, जिसमें अथाह हृदय के दर्द की भीनी- भीनी खुशबु
आ रही थी।
अफसोस! आह! यह सुनते ही
वह अपने स्थान पर जहाँ के तहां पर खड़े हो गये, और वहीं से नीचे पृथ्वी पर उतर आये, जहाँ ठंडी हवा के हिलकोरे चल रहे थे, यह हिमालय की तराई और एक चंदन और कपूर का घना
जंगल था। जिसमें से उसकी खुशबु निकल कर चारों तरफ के वातावरण को रोमांच से सराबोर
हो रहा था, उसी के आस-पास कहीं से आवाज आ रही थी।
उसी दिशा में भगवान शिव अपनी पत्नी उमा के साथ आग बढ़ते रहे, और कुछ दूर जाने पर
ही उनके सामने अचानक एक सिद्धि नामक औरत बैठी हुई दिखाई दी। जो एक बड़े चंदन के
वृक्ष के तने के सहारे अपने सिर को लगाये बैठी थी, जिसके गहरी नीली आँखों में से
आँसुओं की धारा निकल रही थी इसके साथ उसके काले बादलों के समान बाल उसके कंधों से
होते हुए उसके सफेद नग्न स्तन और छाती तक फैले हुए थे, जिसके साथ दोनों विशाल स्तन उसकी साँसों के साथ
ऊपर नीचे हो रहें थे, सागर की अनुपस्थिति में भी लहरों की भाती
उठते और गिरते हुए प्रतीत हो रहे थे। इसको देख कर उमा के हृदय में उसके प्रति
करुणा और जिज्ञासा का भाव भर आया, जिसकी वजह से उन्होंने कहा इसका मतलब क्या है? और किस कारण से एक सिद्ध औरत इस
प्रकार से आहें भर रही है?
उमा के ऐसा कहने पर महेश्वर भगवान शिव
ने इसके पीछे का सत्य क्या हैं उसको पता किया। फिर भी उन्होंने उमा से कहा तुम
स्वयं उससे पुछ कर पता कर सकती हो, इसके
बाद पार्वती उस सिद्ध औरत के पास जा कर उससे पुछा हे कमल के समान नेत्रों वाली
महिला, तुम्हारी समस्या या परेशानी क्या है? इस पर उस सिद्ध औरत ने कहा हे पर्वत की पुत्री
मैं ने अपनी योग्यता के अनुसार अपनी साधना से एक सिद्ध की उपाधि प्राप्त कर ली, जो मेरे लिए सिर्फ व्यर्थता के कुछ नहीं है,
क्योंकि इसके कारण ही मेरे जीवन में सिवाय दुःख और अप्रसन्नता के कुछ नहीं शेष बचा
है।
क्योंकि मैंने अपनी साधना के द्वारा अपने
पुनर्जन्म के बारे में जान लिया है और मैं देख सकती हूं, अपने पति को जो मेरे
वियोग में दुःख के साथ घोर निराश और शोकग्रस्त भावना से मेरी अनुपस्थिति में
पीड़ित हो रहा है, जिसके कारण ही मेरे जीवन की संपूर्ण
साधना के द्वारा मैंने जिस ज्ञान का अर्जन किया, और बड़े परिश्रम से एकत्रित किया
वह सब उसी प्रकार से गायब हो गया, जैसे कि पलक झपकते ही आँखों के सामने से रोशनी
गायब हो जाती है। मैंने जब से अपने पिछले जीवन को देखा है, मेरे जीवन से मेरा आज
का वर्तमान लुप्त हो चुका है, मैं
अभी भी अपनी अतीत की यादों में निरंतर डुबती जा रही हूँ और अब मेरे स्वामी के बगैर
मेरी उपलब्धियों और मेरी सिद्धियों का कोई उपयोग मेरे लिए नहीं रहा। अथवा मुझे
क्यों मेरे पिछले जन्म में मेरे स्वामी से बिछड़ने का श्राप दिया गया, और वह सब
मुझको क्यों फिर से याद आ गया? या
इससे बड़ा और क्या मेरी अचेतनता का मेरे लिए पुरस्कार हो सकता है। पिछले जन्म की
मेरी यादों ने मेरी आत्मा को पूर्णरूपेण बांध लिया है, यह उसी प्रकार से है जैसे लाल जलती हुई सलाखें
मृत आनंद की अग्नि ज्वालाओं से जुड़ गई हो।
तब पार्वती ने व्यक्तिगत
रूप से भगवान शिव से कहा क्या आप इस सुंदर सिद्ध औरत के लिए कुछ भी नहीं कर सकते
है? इस पर भगवान महेश्वर ने उत्तर दिया,
यही तो औरत की प्रकृति है कि वह अपने अकेले प्रियतम के लिए तीनों लोकों के ऐश्वर्य
की हत्या कर देती है। यद्यपि इस पर दया करने की संभावना ही क्या हो क्योंकि यह तो
सार्वभौमिक ब्रह्माण्ड के संविधान का नियम है? अथवा
कैसे समय को फिर से वापिस किया जा सकता है, और किस प्रकार से सब कुछ किसी भ्रम के
लिये फेंका जा सकता है, या फिर सिर्फ इसके लिये कैसे आज्ञा
दिया जा सकता है? कि दो मूर्ख प्रेमी आपस में फिर से एक
हो जाये, इसलिए इसमें ऐसा कुछ करने जैसा नहीं है
यह सब व्यर्थ है। लेकिन यह सुनने के बाद भी उमा भगवान शिव को बहलाने और फुसलाने
लगी क्योंकि वह अच्छी तरह से अपने पति के सफेद दो भुजाओं की शक्ति से परिचित थी।
इस सब के बाद भगवान शिव ने उमा को खुश करने के लिए अंत में कहा कि निश्चित रूप से
इस सार्वभौमिक संविधान के नियमों की मैं अवहेलना किसी भी शर्त पर नहीं कर सकता हूं, फिर भी मैं इनके लिए जो भी संभावनीय है वह मैं
कर सकता हूं जिससे यह दोनों बिछड़ें हुए अप्रसन्न प्रेमी एक बार फिर से मिल
जायेंगे, और एक साथ रह कर अपने छोटे नाटकीय आनंद का मिल कर भोग कर सकेंगे और दुबारा
अमृत का स्वाद लेने में समर्थ हो पायेंगे। जिस प्रेम के लिए यह अत्यधिक प्रायश्चित
की पीड़ा में जल रहे हैं, लेकिन यह सब सिर्फ अपने स्वप्न में ही कर सकते है। इस
प्रकार से स्रष्टा ने उन दोनों को उनके स्वप्नों में स्थापित कर दिया, जिसमें वह दोनों एक साथ मिल कर अपरिवर्तनीय प्राकृतिक
जीवन के यथार्थ का अनुभव कर पायेंगे।
जैसा कहा गया है इनके
साथ ऐसा ही होगा, यह दोनों प्रेमी ना तो किसी स्वप्न को
फिर से याद कर सकते हैं, और ना ही उसको भूल पायेंगे, ना ही उसको बदल सकेंगे, जो
कुछ भी स्वप्न में होगा और फिर भी यह युगल प्रेमी काफी बुद्धिमान और समझदार होंगे, जो कहीं भी अकेले अपने स्वप्नों में अपने मिलन
का आनंद लेंगे और जो वस्तु जैसी है उसको वैसा ही छोड़ देंगे। क्योंकि यह दोनों
अपने दुःख को और अधिक बढ़ायेंगें, क्योंकि
इसका मतलब हैं वह इस विरह की अग्नि को कम करना चाहते हैं। लेकिन यह सिर्फ वैसा हो
सकता है जैसा कि कोई स्वप्न हो सकता है।
इसके बाद फिर भगवान
शिव उस सिद्ध औरत के पास गये और उसके ऊपर एक प्रेम भरी दृष्टि को डालते हे कहा मूर्ख
औरत जो इस त्रिलोक में सबसे अधिक बुद्धिमान है वह अब तुझे सांत्वना देता है
क्योंकि जिसके लिए तू इतना अधिक शोक ग्रस्त हो और बिरह की अग्नि में जल रही हो, जो तुम्हारे हृदय का भगवान हैं उससे तुम जल्दी
ही पृथ्वी और स्वर्ग के मध्य का जो मार्ग है, उसी मार्ग पर अर्थात अपने स्वप्न में
मिलोगी।
इसको सुनते ही सिद्ध औरत
महेश्वर के चरणों में गीर पड़ी और उनके चरणों को हाथों से चूमने लगी, और अपने
हाथों को अपने सीने पर लगा कर कहा हे ईश्वर आप भवसागर की लहरों के बीच में डुबने
वाले मेरे जीवन के नाव के रक्षक, मुझे
जल्दी से जल्दी मेरे स्वामी के पास भेज दे, क्योंकि
मेरी स्थिति ऐसी ही जैसे किसी प्यासे पथिक की रेगिस्तान में होती है, क्योंकि मैं अपने स्वामी के नीले बाँहों के
सागर में दम तोड़ने की अभिलाषा रखती हूँ।
और ठीक इसी समय के पलो
में, पृथ्वी पर उसका पति अपने महल के एक
बड़े हाल में बैठा था और उसकी यादों में खोया हुआ था, जिसके साथ अपने अतीत का सपना देख रहा था, उसके पास में ही संगीतकारों का समूह बैठ कर
अपने वाद्ययंत्र पर मधुर स्वरलहरीयों को बजा रहे थे, जिसको वह सुन रहा था। जब वह बैठा था और उसके संगीत कार अपने वाद्ययंत्र
को बजा रहे थे। जैसे ही उन्होंने एक नई स्वर लहरी को छेड़ा, भाग्य के रूप में, वे एक हवा के झोंके साथ, राजा के हृदय में बहुत गहरे तक उतर गये और उसके
हृदय को एक जहर की सुई की तरह छेद दिया, क्योंकि
यह उसकी बिछड़ी हुई रानी की पसंदीदा स्वर लहरी थी, और जैसे ही उसने सुना, उसकी आंखों में आँसू घूमते हुए, प्यार-लालसा और निराशा की श्वेतता के साथ उसको
अंधा करने लगे, और वह जोर-जोर से बुलाना शुरू कर दिया, गरज की आवाज़ के साथ दूर
करो! इसको दूर मुझसे हटाएँ! दुःख, क्या
तुमने हम दोनों अपना दिल तोड़ने के लिए एक साथ साजिश रची हैं? और तुरन्त, उन दुर्भाग्य
पूर्ण संगीतकारों ने घबराहट और भय के आतंक में अपने संगीत बजाना बंद कर दिया, और
राजा के क्रोध से पहले ही वहां से दूर भाग गए, और जैसे ही उसके सामने सब झुक गया, तभी एक घरेलू पुरोहित राजा के सामने आया और
विनम्रता पूर्वक कहा हे राजा, कुछ
आभूषण व्यापारी (जौहरी) आये हुए है, जिन्होंने
यहां आने के लिए और आपसे मिलने की आज्ञा पहले से ही ले रखी हैं, जो आपके पैरो पर अपने गहनों को रखने के लिए
इंतजार कर रहे हैं।
तब राजा ने कहा, एक श्वास के साथ आह भरते हुए मेरे लिए यह सभी
रत्न किस काम के हैं? और फिर भी, कोई फर्क नहीं पड़ता: उन सभी को अंदर आने दो।
तो इसके बाद वह सभी
व्यापारियों के राजा के पास आये और राजा को उनके पास जो कुछ भी गहना था उसे
दिखाया। तब राजा ने अपनी उदारता के साथ ऊपर नीचे होकर उन सभी गहने को देखा और अपने
आप से कहा अब हर खुशी एक दर्द है, और हर खुशी, एक
दुख है। मेरे लिए यह गहनों का क्या मतलब है। क्योंकि अब तो वहीं नहीं जिनको इन
गहनों को पहनना है, यदि वह होती तो मैं उसके भार के समान
गहने उसके शरीर पर सजा देता और फिर, अपनी
प्रेयसी की याद के विडंबना में, उसने
गहनों को लिया और उन्हें खुद पहनना शुरू कर दिया। सभी गहनों को व्यापारियों से ले
कर उसने स्वयं सारे गहनों को पहन लिया, जिसमें भव्य रत्नों के साथ, पन्ना, रूबी, मोती, मुंगा, गोमेद, बिल्लौर, हीरे, नीलमणि
जिनको एक दूसरे पत्थर के साथ करके एक माला में पिरो कर पहन लिया, जब तक की वह एक हज़ार रंगों के साथ चमकने नहीं
लगे थे, जो विकार ग्रस्त समुद्र के किसी दैवी
के अवतार के सदृश्य दिख रहा था।
इस तरह से जब वह एक व्यापारी
से दूसरे व्यापारी के पास गया, जो
अपने-अपने बहुमूल्य गहनों के संग्रह को जोड़कर थोड़ी- थोड़ी दूरी पर बैठ हुए थे, जिससे राजा एक दूसरे व्यापारियों के पास से आगे
बढ़ते हुए अचानक एक वृद्ध व्यापारी के पास आया, जो
बाकी से थोड़ा अलग खड़ा था,
बेचने के लिए जिसके पास कुछ भी नहीं
दिख रहा था और उसका सिर विशाल आकार का और नंगा था, जिसके शीर्ष पर गंजा था, और उसके चारों तरफ से लंबे मोटे सफेद बाल
उसके कंधों पर नीचे तक झुल रहे थे, उसकी दाढ़ी के साथ मिलकर जो एक विचित्र और
अनोखी आकृति उस व्यापारी की बना रहे थे। जिसकी त्वचा एक सूखे फल की त्वचा की तरह, थी, उसका
चेहरा पूरी तरह से झुर्रियों वाला था। जिसके पास राजा रुक गया और उसने उस व्यापारी
को बड़े ध्यान से देखा कि क्योंकि उसके सिर के असाधारण आकार पर वह चकित हो रहा था, जो एक राक्षसी तुमड़ी जैसा दिखता था और फिर
उसने कहा हां! व्यापारी क्या तुम निष्क्रिय हो? तुम्हारे
पास कुछ भी बेचने के लिए नहीं है। या आपका कीमती सामान कहाँ हैं और आपकी वस्तु
क्या है? निस्संदेह, यह एक खजाना होना चाहिए, जिसे आप सामान्य आंखों से इतनी सावधानी से लपेट
कर या ढक कर रखते हो। फिर भी आओ और इसे मुझे दिखाओ जिससे कि मैं तुम्हारे अनमोल
रत्न को इन रत्नों के मध्य में जोड़ सकूँ। फिर व्यापारी ने कहा ये सब काफी अच्छे
हैं और फिर भी, जिस चीज को मैंने राजा के लिए लाया हूं
वह सब से अधिक है और फिर भी, कम
से कम भी है। तब राजा ने कहा तो, क्या
आप एक विक्रेता हैं? और व्यापारी ने कहा हे राजा, हाँ मैं सपनों का विक्रेता हूँ।
और राजा ने उसे थोड़ी देर
देखा और अचानक हंसी के साथ जब्त कर लिया गया, और उसने कहा यह क्या है और जो भी
सपनों के विक्रेता के बारे में सुना है? क्या
आप पागल हैं, या आप केवल एक पुरानी भैंस के समान है
जिसके पास अक्ल नाम की वस्तु नहीं होती है? तब
उस पुराने वृद्ध व्यापारी ने राजा पर अपनी आंखें तय कीं और उसने कहा हे राजा, जो आपके स्वप्नों को बता सकता है, चाहे वह पागल हो या नहीं? इससे किसी दूसरे को फर्क पड़ सकता हैं, लेकिन मेरे लिए किसी प्रकार का फर्क नहीं पड़ता
है, क्योंकि मुझे पता है कि मेरा कोई आम
सपना नहीं है, लेकिन वे ऐसे हैं जैसे कई लोग अपने पास
थे और सपने देखने के लिए उनके पास जितना अधिक था। क्योंकि मैं अतीत को प्रस्तुत कर
सकता हूँ और जो खो गये हैं उसे प्राप्त करा सकता हैं और उनको उसके साथ में शामिल
करा सकता हूं, जिसके साथ जिसने अपना पिछला समय बिताया
है, जिसको अपने प्रियतम के साथ खुशी से
हँसने के लिए खेद है, उनके टूटे हुए दिल को मैं बदल सकता हूँ, इसके साथ उनके प्यार की भयंकर भावना को वापस ला
सकता हूँ, उनके जुनून और रोमांच के फीके फूलों की
सुगंध को फिर से उनके हृदय के गलियारे में फैला या बिखेर सकता हूं, मैं आपके पुराने मीठे सपने जो खुशबु के समान थे
उनको फिर से खिलने के लिये सांसे दे सकता हूँ और उनको जीवित कानों में गूंजने के
लिए तैयार कर सकता हूं। जो लंबे समय पहले हो चुके हैं। उन होंठों के संगीत को फिर
गूंजा सकता हूँ।
जैसे ही वह व्यापारी इस
प्रकार से बोल रहा था और राजा उसके सामने खड़ा हुआ था, जिसको सुनते ही उसका हृदय जैसे उसके मुंह में आ
गया। वह ज़्यादा समय तक उस वृद्ध व्यापारी की बातों को सुन नहीं सका क्योंकि यह
उसके लिए इसी प्रकार से थे जैसे किसी मछली के गले में कांटा फंस जाता है उसी
प्रकार से व्यापारी की इस प्रकार की बातें कांटे उसे हृदय में चुभ रहा था जिसमें
उसका प्राण लटका हुआ था और उसकी आत्मा में उसी पत्नी की स्मृति पुनः आकर्षित हो कर
काम के बाड़ के समान उसको तड़पाने लगे, जिससे
उसकी आत्मा ऐसे बह रही थी जैसे हवा बहती है। ऐसा होते ही राजा ने उस वृद्ध
व्यापारी के गले को अपने हाथों से जकड़ लिया और भंयकर क्रोध से आवेशित हो कर उसको
मरोड़ने लगा, व्यापारी के सिर को ऐसे झटके साथ फेंक
दिया जैसे वह किसी वृक्ष का पत्ता हो। इसके साथ उसकी वाणी में अत्यधिक आवेश में आ गया
था, जिसमें उसने व्यापारी को कहा मूर्ख
वृद्ध, क्या तू मुझे मूर्ख समझता है तेरे इस
सारी कही हुई बातों का मैं बिना किसी प्रमाण के स्वीकार लूंगा? सावधान! तू खतरनाक आग से खेलने का प्रयास कर
रहा है, जिससे तू उसी प्रकार से भस्म हो जायेगा
जिस प्रकार सुखी घास के तिनके होते हैं।
फिर वृद्ध व्यापारी ने
लड़खड़ाते और स्वयं को सम्हालते हुए राजा से हंसते और अपनी झुर्रीदार आँखों से
देखते हुए कहा हे राजा जिस प्रकार से किसी बीमार बच्चे में यह समझ नहीं होती है कि
वह किसी चिकित्सक को समझ सके, जिसके
कारण ही वह अपने चिकित्सक के साथ नफरत करता है और उससे झगड़ने लगता है, क्योंकि वह नहीं जानता है कि चिकित्सक उसकी बीमारी
को जानता है, और वह उसकी बीमारी को स्वस्थ करने के लिए ही उसको औषधि को देने का प्रयास
करता है। इसी प्रकार से मैं एक प्रकार का चिकित्सक हूं यद्यपि मैं शरीर की नहीं
आत्मा की चिकित्सा करता हूं, इस
प्रकार से आप अपने इच्छा के बारे में बताइए कि आप किस प्रकार के स्वप्न को मुझसे
खरीदना चाहते या नहीं? तब राजा ने कुछ देर तक उस व्यापारी की आंखों
में देखा और उसने एक गहरी सांस को अपने मुंह से बाहर छोड़ा, जिसके साथ उसकी आँखों में आँसू आ गये और उसने
कहा मुझे सचमुच एक सपना बेच दो, जैसे
मेरी इच्छा है और जिसका आपने वर्णन किया है और मैं आपको यह बताता हूँ कि मैं कीमत
पर आपके साथ घबराऊंगा नहीं। तब बूढ़ा आदमी धीरे-धीरे हँसा और उसने कहा महाराज, जो कोई भी सामान देखकर और कोशिश करने से पहले
कीमत की बात करता है तो यह ठीक नहीं है।
सबसे पहले, आपको यह निश्चित करना होगा कि आप कौन-सा सपना
देखना चाहेंगे और कीमत सपने के अनुसार ही होगी, हम
इसे आप पर छोड़ देंगे, और अंत में आप इसका दाम देंगे। शायद, मैं आप बारे में जानता हूं, कि आप बिल्कुल अपने मन पसंद सपने को खरीदने में संकोच नहीं करेंगे।
फिर उसने अपना हाथ अपने
कपड़े के पीछे छाती में डाल कर एक छोटी-सी सीसे की चमकती हुई बोतल को निकाल लिया,
और वह हवा में उस छोटे चमकदार बोतल को करके प्रकाश की किरण में उसमें से कुछ
तलाशने लगा, और जब वह उसे उस चमकदार बोतल में नहीं मिला, तो वह बूढ़ा आदमी अपनी सांस को रोक कर
प्रार्थना करने लगा कि हो सूर्य, देव
मुझे एक अपनी किरण भेजो और उसी पल कमरे में तत्काल प्रकाश की एक किरण सूर्य से उतर
आई, जिसने उस छोटे से चमकदार सीसे की बोतल
में एक झटके के साथ प्रवेश कर लिया, और फिर उस बूढ़े आदमी ने कहा हे राजा, देखो! यह ठंडे हुए चंद्रमा के अमृत के बहुत सार
का एक छोटा-सा सार है, जहाँ मैं आज सुबह गया था, इसे जड़ी बूटियों के भगवान से लाने के लिए, और
राजा ने देखा और देखता ही रह गया! उस छोटी-सी सीसे की बोतल में शराब के नशे में
मदहोश हँसी और बुलबुले के साथ नाचती हुई आँखों को और उस आँख का गहरा नीला रंग उसकी
मृत पत्नी की आंखों के रंग जैसा ही था। और उनके जैसे उस आँखों को हाव-भाव भी थे, वह उस पर मुसकुरा रही थी, जिसके साथ वह इधर उधर-घूम भी रही थी वास्तविक
आँखों की तरह से राजा ने देखा छोटे सीसे की बोतल में से वह आँखें सिधा उसकी आंखों
में ही देख रही था, तभी राजा ने अचानक अपना हाथ आगे बढ़ा
कर वृद्ध व्यापारी के हाथ में से वह चमकती हुई छोटी-सी सीसे की बोतल को जल्दी से
छिन लिया, और उसके मुंह में डाल कर मुंह को बंद कर लिया, जिससे उस छोटे चमकदार सीसी में से एक प्रकार की
खुशबु निकलने लगी, और वह राजा के घ्राणेन्द्रिय के पास पहुंची वह इत्र उसी प्रकार
का था, जिस प्रकार के इत्र को राजा की मृत पत्नी अपने बालों में प्रायः लगाया करती
थी। जिससे उसका सर चकराने लगा, जिससे
उसने जल्दी से उस चमकदार सीसी के अंदर इत्र को पीने के लिए उस अपने होंठों से लगा
लिया, और ऐसा जैसे ही हुआ तभी अचानक राजा के दिमाग में एक विचार आया। तब राजा ने
अपनी आँखों के कोने से उस वृद्ध व्यापारी को देखा और इत्र को पीने से स्वयं को रोक
दिया, और उसने समझा की हो सकता है कि यह वृद्ध व्यापारी मेरे उन शत्रुओं से मिला
हुआ हो, जिनको मैंने युद्ध में पराजित किया है,
और यह उन सब शत्रुओं का मुझको इस जहर से मारने कि एक कोई बेहतरीन चाल कि तरह से हो, जिसमें यह वृद्ध व्यापारी साथ दे रहा हो? फिर राजा ने अपने आप से कहा यदि ऐसा भी है तो
भी कोई बात नहीं, मुझे जल्दी से इसको पी जाना चाहिए,
क्योंकि जितना ही खतरनाक जहर होगा उतना ही मेरे लिए अच्छा होगा, जिससे मैं अपने प्रेयसी के विरह की वेदना सहने
से बच जाऊंगा और मरने के बाद हम फिर से एक हो जायेंगे।
और फिर राजा ने एक ही घुट
में उस चमकदार सीसी के अंदर विद्यमान सारा इत्र पी लिया, और तत्काल वह उस इत्र के
नशे में डुब गया, और वह अपने बिस्तर पर जा कर लेट गया, जिस पर उसने एक प्रकार की
जादुई निद्रा को महसूस किया।
लेकिन जैसे ही
व्यापारी ने देखा, कि राजा सो चुका है, वह
वृद्ध व्यापारी धड़ाम से जमीन पर गीर गया, और जल्दी से वह अपने शरीर के अंगों को
सिकोड़ कर जमीन पर बैठ गया,
जिसमें उसके दोनों हाथ उसके पैरो के
बीच में जमीन पर पड़े थे, और उसके घुटने उसके कानों तक पहुंच रहे थे और वहाँ पर वह
ऐसी ही अवस्था में बैठा रहा उस खाली पड़े चमकीले छोटी सिसे की बोतल को देखते हुए,
जो एक तरफ सोफे पर पड़ी थी,
जैसे पानी के अंदर अपने आहार को देखते
हुए बकुले कि स्थिति होती है, वैसी ही कुछ स्थिति उस व्यापारी की भी थी उसके साथ
उसकी स्थिति कुछ सी थी, जैसे कि उसे किसी दीवार पर चित्रित
किया गया हो।
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