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ईश्वर का बाल (एक प्रेम कथा) Part -1

 ईश्वर का बाल (एक प्रेम कथा) Part -1

लेखक मनोज पाण्डेय 

आधार A hear of God


एक कमल का टुंटा हुआ हृदय


पृथ्वी जीवन की जड़ है और आकाशीय स्वर्ग उसका फल

जीवन की व्यर्थता कीचड़ का दल-दल जिसमें नीला कमल खिला


      जंगल कि भयावहता का आतंक काल रात्रि के समान जहाँ से हजारों साल पहले निकलने वाली गंगा भी अपने रास्ते से भटक जाती है, जहाँ पर चन्द्रमा का प्रकाश भी पहुंच कर तेज हीन हो जाता, है, जब वह देखता हैं भ्रमित करने वाले लाखों चन्द्रमा को खुले जंगल आकाश के शोर-गुल भरे लहरों के मध्य में नाचते हुए जिनके सामने हम सभी अपने प्रेम श्रद्धा के समर्पित करते है।


     विशाल हिमालय के जंगल के दक्षिणी किनारे पर हजारों साल पहले वहाँ पर जब देवी और देवताओं का युग हुआ करता था, उसी समय में इस पृथ्वी पर एक राजा-रानी स्त्री-पुरुष का जोड़ा रहता था जो संसार के सभी ऐश्वर्य को केवल घास-फुस के समान समझते थे, क्योंकि वह स्वयं को सूर्य का वंशज मानते थे। जिन्होंने संसार की सभी प्रकार के ऐश्वर्यों कि व्यर्थता का साक्षात्कार कर चुके थे, 'आँख से जो देखा धोखा खाए, दिल जो देखा राह दिखाया' इस लिए उन्होंने अपने आपको परमेश्वर के ध्यान में दिन-रात हमेशा के लिए मग्न कर दिया था। और स्वयं को परमेश्वर के चरणों में समर्पित कर दिया था। तब तक के लिए जब तक स्वयं भगवान महेश्वर ने उस निःसंतान जोड़े पर अपनी अनुकंपा को प्रकट नहीं कर दिया था। एक दिन रात्रि के समय एक साथ दोनों के स्वप्न में तत्काल उपस्थित हुए और उन दोनों से कहा कि अब बताओ कि तुम दोनों क्या चाहते हो? राजा ने सहजता से कहा कि मुझे केवल एक पुत्र की कामना है। लेकिन रानी ने भगवान महेश्वर को अपने वशीभूत करने के लिए और गहरी और कठिन साधना संलग्न हो कर अपनी पुरी शक्ति से कहा ओ वर देने वाले भगवन मुझे मेरा पुत्र आपके द्वारा वह आपके समकक्ष हो, जिसमें एक अणु के समान भी असमानता नहीं हो। मुझे अपने बालों के अंतिम छोर से श्पर्श कीजिये, जिससे मैं छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त हो कर दिव्यांश में परिवर्तित हो जाऊँ। फिर परमेश्वर ने अपने आप से कहा मेरे अस्तित्व का एक भी कण किसी मानव के अस्तित्व से बहुत अधिक शक्तिशाली होगा, जो संपूर्ण विश्व के संतुलन को अस्थिर कर देगा। लेकिन यह फिर भी एक माँ कि इच्छा है और इस औरत ने स्वयं इस प्रकार के पुत्र को प्राप्त करने के लिए कामना किया है। और मैं ने इसको पहले से ही वर देने का भी वादा कर चुका है और मैं भाग्य की प्रबलता के कारण उसके पिछले जन्म के बारे में देख सकता हूँ।


       और तब भगवान महेश्वर ने अपने शीर के बाल में एक छोटा-सा टुकड़ा को तोड़ लिया, और उसको अपने हाथ से और कई टुकड़ों में विभक्त करके एक टुकड़े को उस औरत के हाथों में रख दिया। इसके बाद वह वहाँ से अदृश्य हो गये और तब शाही स्त्री पुरुष को जोड़ा अपने निद्रा से जागृत हुआ और उत्सुकता के साथ जिज्ञासा पूर्वक अपने स्वप्नों का एक दूसरे के स्वप्न से तुलना की जिसमें उन दोनों ने विशेष रूप से समरूपता को पाया और जब उन्होंने नीचे तेजी से रानी की हथेली में देखा जिसमें एक अकेला बाल का टुकड़ा चमक रहा था-था जैसे वह की अग्नि का सूक्ष्म तागा हो। फिर वह दोनों आनंद से भर गये और परमेश्वर की विधिवत पुजा और प्रार्थना की और उस बाल के टुकड़े को एक सुनहरे पात्र में रख कर उसको जमीन गाड़ दिया। और उसके चारों तरफ एक बहुत बड़ी मंदिर का निर्वाण करा दिया, और मंदिर के गर्भ गृह में भगवान महेश्वर की अद्भुत प्रतिमा को स्थापित कर दिया। और जब रानी के गर्भ का समय पूरा हो गया, तो रानी ने एक बहुत सुंदर बालक को जन्म दिया, और उस बालक और उसके व्यक्तित्व के अनुरूप उसका नाम रुद्रेश रखा। और समय के साथ जैसे ही बच्चा बढ़ कर लड़के रूप में हो गया, वह अपने नाम के बिल्कुल विपरीत स्वभाव वाला था। क्योंकि उसके बाल काले घने सीधे और नुकीले के साथ जिनका किनारा लाल रंग के चमकदार थे, वह ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो सूर्य अपनी किरणों के साथ बालों के किनारे से आग को प्रकट कर रहा हो। और जैसे ही वह लड़का बढ़ कर आदमी के रूप में परिवर्तित हो गया, तो वह आदमियों में घोड़े के समान था। उसकी शक्ति में आश्चर्यजनक अचानक बहुत अधिक इजाफा हो गया था। और उसके मनोभाव का झुकाव जंगलीपन के साथ वहसीपना और अत्यधिक क्रोधाग्नि से वह भरा रहता था यह सब उसकी शक्ति के समाना रुप थे, और वह ऐसा था जैसे कोई भी उसके ऊपर शासन नहीं कर सकता था, और ना ही कोई भी उसको किसी भी प्रकार से अपने बश में ही कर सकता था, वह एक अद्भुत किस्म का युवा था जिसकी आत्मा के भाव बहुत अधिक श्रेष्ठ थे और जो पूर्ण रूप से स्वच्छंद हठात वाले स्वभाव का था और उसका ताकत वर मस्तिष्क से उसकी दृढ़ इच्छा प्रबलता पूर्वक बलवती होती थी। यह सब देख कर एक दिन उसके पिता ने व्यक्तिगत रूप से उसकी माँ और अपनी पत्नी से कहा तुमने जो भगवान महेश्वर से उनके बाल के टुकड़े को प्राप्त किया था, उसके बाद ही यह हमारा पुत्र जन्म लिया था, यह स्वयं महान महेश्वर ने जन्म नहीं लिया है, यद्यपि यह हमारा पुत्र तो उनके बैल नंदी जैसा प्रतीत होता है।


     और जब उसका पुरुषत्व पूर्ण हो गया, तो वह इस प्रकार से हो गया था। जैसे वारिस के समय में नदी में बाढ़ आने पर होता है और वह हर प्रकार के अपने किनारों को तोड़ देती है, जिसमें गांव के गांव और शहर के शहर तबाह होने लगते हैं। इसी प्रकार से उसके सामने कोई भी स्त्री पुरुष स्वयं को खड़ा करने का साहस नहीं कर पाते थे, वह अपने सामने खड़े होने वाले प्रतिद्वंद्वी को आसानी से पराजित कर देता था। वह पुरुषों के मध्य में उसी प्रकार से रहता था जैसे मधुमक्खियों के मध्य में काली रानी मधुमक्खियों और फूलों के मध्य में रहती है। जिस प्रकार से रानी मधुमक्खियों के अपने पीछे-पीछे रखती है। उसी प्रकार से रुद्रेश अपने पीछे राज्य की सभी सुंदर औरतों को रखता था और अपनी सद्गुणों से सभी को तृप्त करता था और उन सब चिड़ियां के बीच में बाज के समान रहता था। तब तक जब तक कि उसके लाल बाल उसके साथ शरारत नहीं करने लगे, जिसके कारण उसके माता-पिता अत्यधिक दुःखी और सफेद पड़ गये, फिर उन दोनों ने अपने पुत्र राजकुमार रुद्रेश का विवाह करने का निश्चय किया। और आपस में कहा कि इसके विवाह के बाद इसके स्वभाव में बिल्कुल परिवर्तन निश्चित आ जायेगा। जिस प्रकार से पुरानी से पुरानी शराब समय के साथ शुद्ध और नशीली हो जाती है। इसी प्रकार से यह हमारा पुत्र अपने कार्य भार को अपने कंधों पर उठा लेगा, और यह हमारे राज्य का एक मजबूत स्तंभ के समान होगा। लेकिन जैसे ही राजा और रानी ने उसके सामने उसके विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह अपने मात-पिता के चेहरे को देख कर मुसकुराने लगा और चिग्घाड़ते हुए शेर के समान कहा कि कौन ऐसा है? जो मुरझाये हुए फूलों को अपने पास रखना चाहते हैं, क्योंकि औरत भी एक फूल के समान है, जिस प्रकार से फूल माले में ही अच्छे लगते हैं, जिनको कुछ समय तक पहने के बाद अपने से दूर फेंक देते हैं। उसी प्रकार से औरत भी सुंदर दिखती है, जब तक वह फूल की तरह से खिलती नहीं है, तभी तक उसका एकांक घंटे तक उपभोग करने के बाद मुरझाये कमल पुष्प की तरह से अपने से दूर फेंक देना चाहिए। और वहीं एक बुद्धिमान आदमी है माना जाता हैं जो बिना मधुमक्खियों के डंक को खाये ही, अच्छी तरह मधुमक्खियों के छत्ते से मधु को प्राप्त करता हैं, और जब एक कुंआरी स्त्री के पास ही मधु होता है, और जो विवाहित स्त्री पत्नी के रूप में होती है उसके पास सिवाय भिनभिनाने वाले पंख और डंक के कुछ भी शेष नहीं होता है। हलांकि औरतें खड़ी पहाड़ियों, विषैले सर्प और आग के समान, जो दूर से दिखने पर मृगमरीचिका के समान दिखती हैं। और पास पहुंचने पर कुछ नहीं हैं, जिसके लिये अच्छा यहीं होगा, की उनसे दूर ही रहा जाये और वे उसी प्रकार से हैं जैसे, ऊबड़-खाबड़ जमीन हो, या फिर जो काटने के लिये तैयार है और जो काम अग्नि में जलाने के लिए आग को प्रज्वलित करती है, वह मानव के विनाश के लिए लुभावने आकर्षण के साथ पुरुष के बहुत करीब आती हैं। इसलिये यह सारी वस्तु व्यर्थ हैं। जो औरत को प्राप्त करने की कामना पैदा करती हैं। हर महिला एक राजा की तरह है, जो अकेले पुरुष पर शासन करने की इच्छा रखती है और अपने सपने में भी प्रतिद्वंद्वी के नाम को सहन करने में पूरी तरह से असमर्थ होती है। इस तरह से प्रत्येक पति की पत्नी, या तो एक निराशाजनक जुलूस है, या एक दुश्मन की भी दुश्मन है, जिनके लिए कुछ भी खुश या शांत को देने वाला नहीं हो सकता है। लेकिन फिर भी यह पूर्ण रूप से सिवाय उनके शिकार होने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। अर्थात यह औरत की गुलामी से कुछ भी अधिक नहीं है और इस प्रकार उसकी ज़िन्दगी उसकी पत्नी के अस्तित्व में चली जाती है और वह अपने पति के पूर्ण धिरे-धिरे चूस जाती है, जब तक कि वह पूरी तरह से गायब न हो जाए, जैसे कि एक विशाल वृक्ष को अमरबेल लता उसको अपने गले लगा कर अपने प्रेम के धोखे में डाल कर, उसके जीवन को धिरे-धिरे खत्म कर देती है। और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि फूल कितना गौरवशाली है, मैं इस प्रकार का कोई वृक्ष नहीं बनूंगा जिससे कोई औरत अमरबेल के समान मेरे शरीर पर चढ़कर मेरे जीवन का संहार करें, और इसलिए ही मैं किसी पत्नी की कामना नहीं करता हूं। क्या वह औरत राधा से दश हजार गुणा और अधिक सुंदर होगी? जो एक दिन के लिये भी किसी पुरुष को अपना गुलाम बना लेती है और औरत के लिए इतनी प्यारे जीवन का भुगतान करने की क्या ज़रूरत है, जो हमेशा कुछ भी नहीं छोड़ने के लिए तैयार हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर खरीदे जाने से वह स्वयं को अपने से दूर कर देंगी? क्योंकि महिलाएँ हमेशा खुद को दूर करने के लिए उत्सुक होती हैं और केवल उन पुरुषों के लिए ही स्वयं की देखभाल करती हैं। जिन्हें वे नहीं जानती हैं, सभी दयालुता को भूलना और दायित्व से अनजान होना और अपने पति को उनके दोषों के अलावा कुछ भी नहीं दिखना। जबकि प्रत्येक गुजरने वाले अजनबी के पास उनके दिल होते हैं, जैसे ही वह प्रकट होता है, बस जब तक वह अजीब होता है। प्यार के लिए वह खुद एक अजनबी की तरह से हैं, और प्रेम होने के बाद किसी औरत से परिचित नहीं हो सकते हैं। और महिला अकेले प्यार के लिए रहती हैं, फूलों की तरह, उनके उपकरणों के अलावा उनके पास अपना कुछ भी नहीं हैं और वह एक आकाश और घास की समान हैं। जहाँ पर दोनों विद्यमान हो अर्थात उनमें निकृष्टता की अंधकार घाटियाँ और पर्वत की तरह आकाश को छूने का व्यर्थ आमंत्रण है।


      राजा-रानी ने जब अपने पुत्र के इस प्रकार के विचार को सुना तो वह उस समय कुछ नहीं कह पाये, फिर भी उन्होंने प्रयास करना नहीं छोड़ा वह जितना ही रुद्रेश के ऊपर उसके विवाह को लिए जोर देते वह उतना उनकी एक भी बात मानने के लिए तैयार नहीं हुआ। और इस प्रकार से उसका उसके माता-पिता के साथ गुत्थी संबंध की गुत्थी  उलझती गई, और वह दोनों उससे बहुत अधिक भयभीत होने के साथ अत्यधिक दुःखी हो गये, और यह उनके लिये हृदय घात का रूप ले लिया, जिसके कारण उन दोनों ने अपने पुत्र को अविवाहित छोड़ कर अपने सामराज्य के साथ अपने प्राणों को त्याग कर दिया। 


     इसके साथ उनका साम्राज्य और उनके पूर्वज और स्वयं भी बर्बाद और नष्ट होने के कगार पर पहुंच गये, इसके पीछे कारण था कि उनकी संतति को आगे बढ़ाने वाला कोई भी नहीं था और उनके पुत्र ने इस संतति की जड़ को काट दिया था। और फिर इसके बाद जैसे कि वह राजकुमार अपने माता पिता के मरने का इंतजार ही कर रहा था, उसके माता पिता के मरते ही अर्थात जब-जब उसके माता पिता ऐसे यात्रा पर निकल गये जिस मार्ग से लौट कर कोई कभी इस पृथ्वी पर नहीं आता है। फिर उनका विवाह से नफरत करने वाला पुत्र जंगल में शिकार करने के लिए गया, और उसने अपने घोड़े को अपने आत्मा के समान तीव्र गति से दौड़ाया, जिसके कारण उसके सहयोगी कर्मचारी और अंगरक्षक आदि उससे बहुत पीछे छूट गये, और वह घन जंगल के अंदर चला गया, जहाँ पर उसने एक बहुत सुंदर एक तपस्वी साधु की पुत्री को देखा, जो उसके भाग्य ने उसके लिए पहले से नियत कर के रखा था। जिसकी सुंदरता खतरनाक विष को धारण करने वाले सांप के समान थी। जिसके कारण उसको देखते ही रुद्रेश उसी पल उसके प्रेम से घायल हो गया, अर्थात काम देव ने उसको मूर्छित कर दिया, और उसके अंदर से विवाह ना करने की इच्छा तत्काल अंतर्ध्यान हो गई। और जिस प्रकार से बच्चा किसी विषैले सांप को देख कर उसपर मोहित हो जाता है, उसी प्रकार से वह उसको प्राप्त करने के लिए पागल हो गया। और वह अपने आपको बिल्कुल भूल गया, फिर वह उसके पास गया, और उससे अपनी असमर्थता को व्यक्त किया, जिसके बाद वह तपस्वी की पुत्री उसके साथ विवाह करने के लिए तैयार हो गई, जिसकी वजह से राजकुमार ने उस औरत से विवाह कर के उसको अपनी रानी बना लिया। और कुछ एक दिन के बाद अपने घोड़े पर बैठा कर, अपने महल में उसको ले कर आया।


     और उस औरत ने राजकुमार को पुरी तरह से बदल दिया, जिससे वह सिर्फ अपनी पत्नी का गुलाम बन कर रह गया, वह जो भी कहती थी वह वहीं करता था, इतना ज़्यादा कि वह उसे एक ही क्षण के लिए भी अपनी दृष्टि से ओझल नहीं छोड़ सकता था, और वह अर्ध नारी की एक छवि की तरह थी, वह अपनी पत्नी से अविभाज्य हो चुका था, रात और दिन अपनी बाँहों में उसे पकड़ कर रखता था, जैसे एक पिंजरे में भोजन के बिना रखे जंगली जानवर की तरह वह रहता था। जिससे वह स्वयं भी चकित हो गया था। उसकी इतनी अधिक आसक्ति को देख कर स्वयं कामदेव का तीर भी हंसने लगा, और अपने आप से धिरे कहा एक परिवर्तित बेहया, आखिरकार, सबसे अच्छा दर्शक है, यहाँ तक कि एक बहुत चालाक हंस इस दूध और पानी को अलग करने में विफल रहेगा। लेकिन राजा इस विषय भोग में बहुत अधिक खुश था और उन्होंने कहा अब, उसके माता-पिता खुश होंगे, और यदि उसका जुनून इतना हिंसक है, तो वर्तमान में यह पूरी तरह से अपने राजा के कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, जिससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। जब यह वृद्ध होगा, तो यह अपने संतति या पीढ़ी में सबसे अधिक विलासी पुरुषों के श्रेणी में आयेगा। जिस प्रकार से आभूषणों के मध्य में कोहीनूर सबसे श्रेष्ठ होता है।


     और फिर इसके बाद जब वह पूर्ण रूप से अपनी नई नवेली चन्द्रमा के समान पत्नी के आकर्षण में पुरी तरह खोकर उसके गुलाम की तरह से हो कर जीवन को व्यतीत कर रहा था। इसी बीच इस प्रकार की हरकतों से उसके विरुद्ध ताकते जो उसके पड़ोसी राज्य में थे, वह उससे बहुत अधिक शत्रुता रखते थे, उन्होंने इस अवसर का फायदा उठाना चाहा, और विचार किया की इस समय राजा अपनी पत्नी का गुलाम बन चुका है, जिससे उसके ऊपर आक्रमण करके उसके राज्य को जीतना उनके लिए आसान होगा, यही विचार करके और अपने लिए एक अच्छा अवसर जानकर उन सब ने एक साथ मिल कर रुद्रेश के राज्य पर अचानक आक्रमण कर दिया। और थोड़े समय के बाद ही उन्होंने रुद्रेश के राज्य की सीमाओं के नजदीक शहरों को नष्ट कर दिया, और उसपर अपना अधिकार कर लिया। और जिसके कारण उन नगरों से कर आना बंद हो गया, इस प्रकार से जब उसने जाना की अब उसके लिए युद्ध के मैदान में जाना बहुत आवश्यक हो चुका है, तो उसने अपनी पत्नी से आह भरते हुए कह इसमें उसकी कोई भा सहायता नहीं करने वाला है, जिसके लिये मुझको स्वयं तुमको कुछ समय के लिए छोड़ कर युद्ध के मैदान में जाना होगा, और आताताईयों को अपने राज्य से भगा कर, कुछ समय के बाद फिर तुम्हारे पास आ जाऊंगा। क्योंकि वह हमारी जड़े और शाखा को काट कर हमारी राज्य और हमें कमजोर कर के नष्ट करना चाहते हैं, और यदि मैं युद्ध के मैदान में नहीं गया, तो वह सारे मेरे शत्रु मेरे इस राज्य को पूर्ण रूप से नष्ट कर के, हमेशा के लिये मुझसे छिन लेंगे। इसमें मुझको बहुत थोड़ा ही समय लगेगा, जैसे मैं गया और फिर वहाँ से आ गया।


    और फिर उसने अपनी सेना को एकत्रित करके, उनको युद्ध के लिए उत्साह के साथ तैयार किया, और उन सब का स्वयं को सेनापति बना कर, उसने अपने शत्रुओं पर एक साथ बहुत भयानक आक्रमण कर दिया, और उन सब राजाओं को ऐसे बिखेर दिया जैसे कि तूफान जंगल में एकत्रित पत्तों के ढेर को अलग-अलग कर देता है। और उन सब को उसने अपने भयंकरतम क्रोध के साथ पराक्रम और युद्ध के कला कौशल से मजबूर कर दिया, उन सब राजाओं को उससे क्षमा और दया मांगने कि लिए, और जब उसने देखा कि अब उसका कोई अधिक शत्रु नहीं बचा हुआ था, उससे लड़ने के लिए, अर्थात जब युद्ध का मैदान उसके खिलाफ लड़ने वाला नहीं दिखा। तो उसको अपनी पत्नी का याद आई जिसको अपनी इच्छा के विरुद्ध उसने अपने से दूर कुछ समय के लिए कर दिया था, और फिर उसने अपने घोड़े को तीव्रता से दौड़ाते हुए, अपने सभी राज्य को फिर एक सूत्र में बांध कर, अपने सेना की कुछ टुकड़ियों का उन इलाकों में छावनियों को डलवा कर, वहाँ पर एक रात्रि तक विश्राम किया। और प्रातःकाल वह फिर अपने घोड़े पर सवार हो गया, अपने एक सहयोगी कर्मचारी को अपने साथ लेकर, जलते हुए हृदय में कामना के साथ अपनी बिछड़ी पत्नी से मिलने के लिये। अर्थात युद्ध मैदान से वापिस अपने महल में शीघ्र पहुंचने के लिए चल पड़ा।




     इस तरह से वे अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर, पूरे दिन पर अपने घोड़ों को उनकी पुरी शक्ति के साथ दौड़ाते रहे, ज़रूरत पड़ने पर केवल घोड़ों को बदलने के लिए ही रास्ते में कुछ क्षण के लिये ही रुकते थे, केवल इतने समय के लिए मात्र जितने समय में एक घोड़े पर से उतर कर दूसरे घोड़े के ऊपर सवार होने तक के लिए। क्योंकि राजा अपनी प्राण प्रिया से मिलने के लिए अत्यधिक व्याकुल था और वह चाहता था कि सूर्य को अस्त होने से पहले वह अपने राज्य में पहुंच जाये, जिसका साथ देने में असमर्थ उसका साथी भूख-प्यास और थकान से लगभग मरने की स्थिति में पहुंच चुका था। क्योंकि वह राजा की ज्वलंत इच्छा को पूर्ण करने में या उनका साथ देने में स्वयं को कमजोर पा रहा था। यद्यपि राजा अपने साथी से बेखबर घोड़े पर ऐसी सवारी कर रहा था जैसे कि वह अपने किसी स्वप्न में यात्रा कर रहा हो, जिसके कारण उसको आकाश के क्षितिज पर अपनी पत्नी के चेहरे के अतिरिक्त कुछ भी ना दिखाई दे रहा था। और ना ही कुछ महसूस ही हो रहा था और जब दिन पूर्णतः अस्त होने लगा, और सूर्य अपने गृह में आराम के लिए प्रवेश करने लगा था, जिससे उसकी रोशनी धीमी पड़ने लगी थी उस समय वे अपने राजधानी के करीब पहुंच गया, और उन्होंने अपने सामने नगर की दीवाल देखा, कुछ दूरी पर से जब वह मैदानों के मध्य में थे। और तब राजा ने चिल्ला कर अपने घोड़े को पीटते और भड़काते हुए, वह एक बाज के समान जमीन पर घोड़े से साथ उड़ता हुआ सभी प्रकार से वृक्षों, फलों, फूलों से भरे मैदान को अपने पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ गया। उसने अपने नगर के मध्य में ऐसे प्रवेश किया जैसे कोई बवंडर किसी रेगिस्तान में प्रवेश करता है, नगर की सड़कों पर लोगों को कुचलते और उनके झुंड को बिखेरते हुए, और लोगों को अपने घोड़े के पैर से दूर फेंकते हुए, इसके साथ ही अंत में वह अपने महल के दरवाजे से अंदर अपने दरबार में घोड़े पर सवार होकर ही पहुंच गया। और तत्काल वह स्वयं जमीन पर कुंद पड़ा, और जब वह महल के दरबार की जमीन पर खड़े होकर, प्रसन्नता के साथ बड़े तेज आवाज से उसने अपने कर्मचारियों को बुलाया और कहा जल्दी जाओ और हमारी रानी से बोलो की मैं युद्ध से वापिस आ चुका हूं, और मैं केवल उनसे मिलने के लिए आज्ञा का इंतजार कर रहा हूं, उसके कमल के समान पैरो पर अपने घुटने को टेकने के लिए।


     और तब महल के आंतरिक भाग के रक्षक, जो चारों को देखते हुए वहाँ शांत चुप्पी को साधे हुए निराशा के साथ राजा और एक-दूसरे आश्चर्यचकित होकर, और जैसा कि वे सब किसी का इंतजार कर रहे थे, राजा के पास एक पुराना महल के अंदर कार्य करने वाला कर्मचारी आया, जो उसके सामने हाथ से जुड़े हुए, और झुका हुआ था जिसका चेहरा डर से भूरा हो चुका था। उसने कहा, धिरे से हकलाते हुए आवाज़ के साथ कहा, राजा कृपया हम पर दया करो। क्या वह संदेश वाहक आपसे नहीं मिला है? जिसके द्वारा यह संदेश भेजा गया था, केवल तीन दिन पहले रानी बुखार से जलते हुए मर चुकी हैं। इसको सुनते ही राजा पृथ्वी पर गिर गया, जैसा कि किसी ने उसे लोहे मजबूत कुंदे से उसके सिर पर मार दिया हो।



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