स्वप्नतंत्र के रहस्य -1
उन्हें,
जो विश्व, राष्ट्र एवं मनुष्य के
कल्याण का
शुभ एवं सुमंगल
स्वप्न देखते रहे हैं ।
ॐनमो देव्ये महाशक्त्यै स्वप्नसष्स्यै तथेव च ।
लोकनिर्माणरूपायै स्वणधात्रूयै नमो नमः ॥
उश्शिवाय स्वणनरूपाय महेशाय कपदिने ।
शक्त्यै तरंगभूतायै शिवायै च नमो नमः ॥
ॐपरमाणुर्महादेवः शकितस्तरंगधारिणी ।
शिवशकितस्वरूपाय स्वणलोकाय ते नमः ॥
उ्नमोऽजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने ।
वामाय विश्वरूपाय स्वणाधिपतये नमः ॥
ॐनमः सकललोकाय विष्णवे प्रभविष्णवे ।
विश्वाय विश्वरूपाय स्वणाधिपतये नमः ॥
स्वप्नकमलाकरः
प्रथमः कल्लोलः
मंगलम् वस्तुनिर्देशात्मकम् --
श्रीनृसिंहं रमानाथं गोकुलाधीश्वरं हरिम् ।
वन्दे चराचरं विश्वं यस्य स्वप्नायितं भवेत् ।।९।।
स्वप्नाध्यायं प्रवक्ष्यामि मुह्यन्ते यत्र सूरयः ।
नानामतानि संचिन्त्य यधाबुद्धिबलोदयम् ।।२।।
मैं (ज्योतिर्विद् श्रीधर) भगवान् नृसिंह, श्री रमानाथ (श्री रामचन्द्र) तथा गोकूलपति भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम करता हूँ , जिनकी सत्ता से यह समग्र चर अचर सृष्ट्यात्मक विश्व स्वपनायित हो रहा है । नाना प्रकार के मतो (स्वपन सम्बन्धित सिद्धान्तो) को अपने शास्त्रज्ञान स्वरूप बल तथा बुद्धि के प्रयोग से चयनित कर स्वप्नाध्याय को रचना कर रहा हूं, जिसकी व्याख्या मे बडे-बडे विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं ।
स्वप्नं चतुर्विधं प्रोक्तं दैविकं कार्यसूचकम् ।
द्वितीयं तु शुभस्वप्नं तृतीयमशुभं तथा ।।३।।
मिश्रं तुरीयमाख्यातं मुनिपुंगवकोरिभिः ।
तत्रादौ दैविकस्वप्ने मन्त्रसाधनमुच्यते ।।४।।
स्वप्न चार प्रकार के कहे गये है -- (१) दैविक स्वपन जो कार्यसूचक होता हे (२) शुभ स्वपन (३) अशुभस्वपणन तथा (४) मिश्र स्वपन यानी शुभाशुभ स्वप्न । ऐसा अनेक प्राचीन श्रेष्ठ मुनियो का मत है । |
प्रथम दैविक स्वप्न के लिये मन्त्रो के साधन भूत उपायों को प्रदर्शित किया जा रहा है ।
तदादौ काल-यामानां विचारं कूर्महे वयम् ।
तत्र च प्रथमे यामे स्वप्नं वर्षेण सिध्यति ।।५।।
प्रथमतया स्वपन फल विचार हेतु स्वर्ण-काल का विचार करते है । प्रथम याम में देखा हुआ स्वप्न एक वर्ष में फलीभूत होता है । दिवा-रत्रि मे कूल ८ याम होते है । तीन घन्टे का एक याम होता है । रात्रि के प्रथम याम में देखा हुआ स्वप्न एक वर्ष बीतते-बीतते अपना फल देता है ।
२ स्वप्नकमलाकरः
द्वितीये मासषट्केन षड्भिः पक्षस्तृतीयके ।
चतुर्थे त्वैकमासेन प्रत्यूषे तदनेन च ।।६।।
रात्रि के द्वितीय याम में देखा हुआ स्वप्न छः मास के अन्दर अपना फल देता है ओर तृतीय याम में देखा हुआ स्वप्न तीन मास के अन्दर फलीभूत होता है । रात्रि के चतुर्थ प्रहर में देखा हुआ स्वप्न एक मास के अन्दर प्रत्यक्ष फल देता है । ब्राह्ममुहूर्त का दुष्ट स्वप्न उसी दिन अपना फल दिखाता है ।
गोरेणुच्छुरणे चाथ तत्कालं जायते फलम् ।
स्वप्नं दृष्टं निशि प्रातर्गुरवे विनिवेदयेत् ।।७।।
गौव के चरने जाते समय (सूर्योदय से तत्काल पूर्व) देखा हुआ स्वप्न तत्काल फल देता है । रात्रि में देखे हुए स्वप्न को प्रातः काल अपने गुरु से शुभाशुभ ज्ञान हेतु कहना चाहिए।
तमन्तरेण मन्त्रज्ञः स्वयं स्वप्नं विचारयेत् ।
यानि कृत्यानि भावीनि ज्ञानगम्यानि तानि तु ।।८।।
यदि गुरु (स्वप्वेत्ता) न हो तो स्वयं मंत्र व्यक्ति को स्वप्न फल का विचार करना चाहिए। भविष्य मे घटने वाली घटनाय ज्ञान द्वारा जानी जाती है ।
आत्मन्ञानाप्तये तस्माद् यतितव्यं नरोत्तमैः ।
कर्मभिर्देवसेवाभिः कामाद्यरिगणक्षयात् ।1९।।
अतः आत्मज्ञान के लिये श्रेष्ठ व्यक्ति को अनवरत प्रयत्नशील रहना चाहिए। यह आत्मज्ञान कर्म, देव सेवा ओर कामादि शत्रुओं के समूह के दमन से प्राप्त होता है
नैष्ठिक कर्म (नित्यनैमित्तिकसन्ध्यावन्दनादि), देव सेवा (पूजा, यजन, तपस्या, व्रतोपवास, श्रुतिपरायणता) में वृद्धि से ओर कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, क्लेश) के नाश से मनुष्य शुद्धचित्त होता है । तत्पश्चात् शनैः शनैः ध्यान, धारणा तथा आत्म चिंतन से आत्मोपलब्धि करता है ।
चिकौर्षुं देवतोपास्तिमादौ भावि विचिन्तयेत् ।
स्नानदानादिकं कूत्वा स्मृत्वा हरिपदाम्बुजम् ।। १0।।
शयीत कशशय्यायां प्रार्थयेद् वृषभध्वजम् । |
देवता की उपासना करके दैविकस्वप्न का भावी फल विचारना चाहिए । स्नानादि कृत्य सम्पन्न करके भगवान् विष्णु के पदारविन्द का चिन्तन करते हुए कृशशय्या पर शयन करे तथा भगवान् शिव की प्रार्थना करें ओर उनके स्वपफलनिरेश के मन्न का १०८ बार जप करं ।
स्वप्नप्रदः शिवमंत्रः -
“ॐ हिलि हिलि शूलपाणये स्वाहा '
(इमं म॑नरमष्योत्तरशतवारं जपित्वा कृताञ्जलिः संप्रार्थयेत् ।)
स्वपमकमलाकरः ३
शिव का स्वर्णफल दर्शक मन्त्र इस प्रकार है - * ॐ हिलि हिलि शूलपाणये स्वाहा। ' इसका जप करके अञ्जलि में पुष्पं को लेकर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे तथा निम्नलिखित मन्त्रो से शिव की प्रार्थना करें ।
प्रार्थना मंत्र -
ॐ भगवन् देवदेवेश शूलभृद् वृषभध्वज ।
इष्टानिष्टे समाचक्ष्व मम सुप्तस्य शश्वत ।। ११।।
नमोऽजाय त्रिनेत्राय पिंगलाय महात्मने ।
वामाय विश्वरूपाय स्वप्नाधिपतये नमः ।।१२।।
भगवान् देवाधिदेव! शूलधारी! वृष चिह्न युक्त ध्वजावाले! शाश्वत । शयन अवस्था मे स्व मे इष्ट अनिष्ट फल कहे । अज (कभी न उत्यनन होने वाले) को प्रणाम है । त्रित्र, पिंगल, महात्मा, वाम, विश्वरूप, स्वपाधिपति आदि नाम से युक्त प्रभु आपको प्रणाम है ।
स्वप्ने कथय मे तथ्यं सर्वकार्येष्वशोषतः ।
क्रियासिद्धि विधास्यामि-त्वतप्रसादान्महेश्वर ।।१३।।
स्वप्न मे मुझसे सभी कार्यों के अशेष तथ्यों को कहे । मैं आपकी कृपा से क्रियासिद्धि प्राप्त करूंगा ।
ॐ नमः सकललोकाय विष्णवे प्रभविष्णवे ।
विश्वाय विश्वरूपाय स्वप्नाधिपतये नमः ।।१४।।
प्रणवस्वरूप समग्रविश्वरूप विष्णु (पालनकर्ता) प्रभविष्णु, व्यापक, व्यापकस्वरूप स्वप्न के अधिपति आपको प्रणाम है ।
इति मन्त्रान् सकूज्जपित्वा नत्वा च प्राक्शिराः स्वपेत् ।
दक्षिणं पाश््वमानम्य स्वप्नं चाथ परीक्षयेत् ।। १५।।
इस मंत्र को एक बार जप करके और विष्णु स्वरूप भगवान को प्रणाम कर पूर्व की ओर सिर कर शयन करें तथा दाहिने करवट सोते. हुए स्वप्न की परीक्षा करें ।
अथापरः स्वलणप्रदः श्रीरूद्रमन्रः --
ॐ नमो भगवते रूद्राय मम कर्णरन्ध्रे प्रविश्य अतीतानागतवर्तमानं सत्यं ब्रूहि त्रि स्वाहा ॥
प्रणवस्वरूप भगवान् रुद्र मेरे कानों में प्रविष्ट होकर भूत भविष्य और वर्तमान को सत्य-सत्य उद्घाटित कीजिए, आपको हवि प्रदान करता हूँ ।
४ स्वप्नकमलाकरः
इमं मन्त्रं समुच्चार्यायुतवारं दशांशतः ।
तिलान् हत्वा सिद्धमन्त्रो रात्रौ दभीसने शुचिः ।।१६।।
इस मंत्र को दस हजार बार जप कर इसके दशाश से तिल से हवन कर मंत्र को सिद्ध कर लेना चाहिये तथा कशा के आसन पर पवित्र होकर शयन करना चाहिए ।
जप्त्वा वामं पाश्वमधः कृत्वा धृतमनोरथः ।
शयीत स्वप्न आगत्य देवः सर्वं ब्रवीति तम् ।।१७।।
ऊपर कहे मन्त्र को जप कर बायै करवट लेटे तथा अपने मनोववृत्ति को ध्यान में रखकर शयन करें । ऐसा करने से भगवान् रद्र स्वप्न में सबकुछ बताते ।
अथापरः स्वपप्रदो गणपतिमन्त्रः --
ॐ त्रिजट लम्बोदर कथय कथय हुं फट् स्वाहा ।
हे त्रिजटाधारी, लम्बोदर (गणेश) स्वप्न से सम्बन्धित तथ्यों को मुझसे कहिए । "हुंकार! ओर "फट्" तत्त्वस्वरूप को हवि अर्पित है ।
कार्य ˆ विचिन्त्य प्रजपादष्टोत्तरशतं नरः ।
शयीत पश्चादशुभं शुभं कथयेद् विभुः ।।१८।।
स्वप्न सम्बन्धी कार्य को सोचकर १0८ बार उक्त मन्त्र का जपकर शयन करें । भगवान् गणेश शुभ या अशुभ फल को स्वप्न में संकेत कर देते है ।
अथापरः स्वप्नप्रदो विष्णुमन्त्रः --
कार्णण्येतिमन्त्रस्यार्जुन ऋषिः, दण्डकं छन्दः, श्रीकृष्णो देवता (अमुक)
कार्याकार्यविवेकस्वप्नपरीक्षार्थं जपे विनियोगः ।
मन्त्रः-- ॐ कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसमूढचेताः ।
यच्छयः स्यान्निशिचितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मौ त्वौ प्रपन्वम् ।
उक्त्वा मन्त्रपदान्यङ्गपंचकं विन्यसेद् बुधः ।
ध्यानं च कूर्याद् विधिवद् एकाग्रेणैव चेतसा ।।१९।।
अब स्वणफल बताने वाला दूसरा विष्णु मन्त्र बतलाते है -- “कार्पण्येति!
मंत्र के ऋषि अर्जुन है । दण्डक छन्द है । श्रीकृष्ण देवता है । अमुक विशेष कार्याकार्य विवेक स्वप्न परीक्षा के लिए निम्नलिखित मन्त्र का विनियोग कर रहा हूं । ऐसा कहकर भूमि पर जल छोडे । मंत्र है --कार्पण्यदोष के कारण नष्ट स्वभाव, धर्मविषयक ज्ञान में मृदु धी मैं आपसे श्रेय (कल्याण) को पाता हूं । तुम्हारा शिष्य हूं, शरणागत हँ, कल्याणमार्गं को निश्चित तौर पर मुझसे कहे । मेरा शासन करें (शिक्षा दे) ।
स्वप्नकमलाकरः ५
इस मंत्र के पदो का अंगन्यासं कर, करन्यास कर, एकाग्र चित्त हो ध्यान करें (जपे) ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये श्रीकृष्णं प्रति फाल्गुनः ।
शस्त्रास्त्राणि करानन्यस्याप्राक्षीदवे प्रपदग्रतः ।। २०।।
इति ध्यात्वा च तुलसीमूले पंचोपचारकैः ।
शालग्रामं सुसंपूज्य मलयागरूधृपकैः ।। २१।।
प्रज्वाल्यं घृतदीपं च ताम्बूलादिभिरुत्तमेः ।
ततः कुशासने स्थित्वा मन्त्रमष्टोत्तरंशतम् ।। २२।।
जपित्वा प्रस्वपेत् स्वस्थः सुमना दक्षपाश्वके ।
स्वपे कृष्णः समागत्य ब्रूयात् तस्य शुभाशुभम् ।२३।।
दोनों सेनाओं के बीच श्रीकृष्ण के प्रति अर्जुन ने इसे कहा ओर शस्त्र-अस्त्र का परित्याग कर उनके सम्मुख हो विनयपूर्वक पूछा । इस आशय का ध्यान कर तुलसी के मूल मे पंचोपचार से शालिग्राम (विष्णु) की विधिपूर्वक पूजा मलय, अगर और धूपादि से करें । घी का दीपक जला कर ताम्बूलादि अर्पित कर के आसन (शय्या) पर \ बैठकर मन्त्र (कार्षण्यदोष...)का १०८ बार जप करें । जप के पश्चात् स्वस्थ मन से दाहिने पाश्वं के बल सोय । स्वप्न में भगवान् कृष्ण आकर उस स्वप्न का शुभ-+अशुभ फल बतलाते है ।
अथापरः स्वप्नप्रदः स्वप्नवाराहीमन्त्र :-
ॐ नमो भगवति कूमारवाराहि गुग्गुलगन्धप्रिये सत्यवादिनि
लोकाचारप्रचाररहस्यवाक्यानि मम स्वप्ने वद वद सत्यं ब्रूहि-त्रूहि आगच्छ आगच्छ
ही वौषट् ॥ '* एतन्मन्त्रस्य सहस्रजपात्सद्धि॥२४॥
पूर्वोक्त मंत्रो के पश्चात् स्वप्नफल सूचित करने वाले स्वप्नवाराही मंत्र का आख्यान किया जा रहा है । "ॐ नमो भगवति....' मंत्र के एक हजार जप से सिद्धि होती है । (इस मंत्र का अर्थ है--हे भगवती कमार वाराही, गुग्गुल के गन्ध को प्रिय मानने वाली, सत्यवादिनि, लोक व्यवहार के गृढु रहस्यों को मुझसे स्वप्न में कहो..., सत्य बोलो...,आओ-आ इत्यादि!)
विधि
शुक्रवारे शुचिर्भूत्वा निशीथे कलशं शुभम् ।
संस्थाप्यो तदुपरि नागवल्लीदलं न्यसेत् ।। २५।।
हरिद्रापिण्डरचितो देवीं तस्योपरि न्यसेत् ।
वाराह्यै नम इत्येतन्नाममन्त्रणे भक्तितः ।। २६।।
स्वप्नकमलाकरः
प्राणप्रतिष्ठा कूत्वाथोन्मत्तद्रव्यं निवेदयेत् ।
सागपूजां विधायाथ मन्त्रमष्टोत्तरं शतम् ।।२७।।
जपित्वैकमना देव्या अग्रे कूत्वा च मस्तकम् ।
शयीत तस्य सा देवी प्रव्रवीति शुभाशुभम् ।।२८।।
शुक्रवार को पवित्र होकर अर्धरात्रि मे कलश की सुस्थापना करके उसके ऊपर पान के पत्तों को सजाये । भगवती वाराही की हरिद्रामूर्ति बनाकर उस कलश के ऊपर स्थापित कर --“ वाराह्यै नमः' इस र्मत्र से भक्ति पूर्वक प्रणाम करते हुए प्राणप्रतिष्ठा करके उन्मत्त पूजाद्रव्यो से भगवती की पूजा करें । अंग पूजा करके ऊपरलिखित मंत्र का १0८ बार जप करे । एकाग्र मन से जप करके भगवती के आगे (पास) सिर कर सोने से रात्रि में भगवती उसे स्वप्नों का शुभाशुभ फल बतलाती हैं ।
अथापरः स्वप्नप्रदः पुलिन्दिनी मन्त्र :-
विनियौगः-- नमो भगवतीति मन्त्रस्य शंकर ऋषिः, जगतीछन्दः, श्री पुलिन्दिनी
देवता, ई बीजम्, स्वाहा शक्तिः, पुलिन्दिनी प्रसादसिद्ध्य्थं जपे विनियोगः ।।
(आचमनीय से पृथ्वी पर जल छोडं।)
ॐ इत्यादि करषडंगन्यासौ विधाय ध्यानं कूर्यात् ।
ध्यानम्--
बहपीडकुचाभिरामचिकूरो बिम्बोज्वलच्चन्दिका
गुज्जाहारलतशुजालविलसदग्रीवामधोरेक्षणाम् ।
आकल्पद्रुमपल्लवारुणपदां कून्देन्दुबिम्बाननो
देवीं सर्वमयी प्रसननहदयां ध्यायेत् किरातीमिमाम् ।।
इति ध्यात्वा ई ॐ नमो भगवति श्रीशारदादेवि अत्यन्तातुले भोज्य देहि देहि
एहि एहि आगच्छ आगच्छ आगन्तुकहदिस्थं (अमुकं) कार्य सत्यं ब्रूहि ब्रूहि पुलिन्दिनी ई ॐ स्वाहा ।।
अस्य मन्त्रस्य पञ्चसहस्रजपात् सिद्धिः । तद् दशाशतः तिलानां हवनं कार्यम् ।।
कार्याकार्यविवेकार्थं रात्रावष्टोत्तरं शतम् ।
जप्त्वा शयीत तस्याशु देवी स्वप्नेऽखिलं वदेत् ।।२९।।
साधकस्तद्वचः श्रुत्वा तदैवान्वाहमाचरेत् ।
नास्ति तस्य भयं क्वापि सर्वकालं सुखी भवेत् ।। ३0।।
उपरोक्त स्वप्न मन्त्र के बाद पुलिन्दिनी देवी का स्वप्न मन्त्र दिया जा रहा है । इस मन्त्र का विनियोग इस प्रकार है -- इस मन्त्र के ऋषि शंकर भगवान्
स्वप्कमलाकरः ।
हे, जगती छन्द, पुलिन्दिनी देवता, ईम् बीज तथा स्वाहा शक्ति है। करन्यास-ईम् ॐ
नमो भगवति श्रीशारदाये अंगुष्ठाभ्यां नमः, अत्यन्तातुले भोज्यं देहि देहि - तर्जनीभ्याम्
नमः, एहि एहिं मध्यमाभ्यां नमः, आगच्छ आगच्छ कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ईम् ॐ स्वाहा
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
इसी प्रकार से हदयादिन्यास भी करना चाहिये । हदयाय नमः, शिरसे स्वाहा, शिखायै वषट्, नेत्रत्रयाय वौषट्, कवचाय हुम्, अस्त्राय फट् । इन छः स्थानों पर करन्यास वाले मन्त्रो का अध्याहार करं । तत्पश्चात् “ईम् ॐ भगवति श्री शारदादेवि' आदि मंत्र का पच हजार बार जप करे । तिल से दशोश हवन करं । एसा करने से मंत्र सिद्ध होता है । जब कार्य या अकार्य के ज्ञान हेतु आवश्यकता पडे तो रात्रि में ९०८ बार जप करके सोने से पुलिन्दिनी देवी स्वप्नफल बतलाती है । इस मंत्र की साधना से स्वप्नभय नष्ट हो जाता है । व्यक्ति सुखी रहता है ।
अथापरः स्वप्नप्रदः स्वप्नेश्वरी मन्त्र :-
ॐ अस्य श्रीस्वपणेश्वरीर्म॑त्रस्य उपमन्यु ऋषिः ल्ृहतीछन्दः, स्वप्नश्वरी देवता,
स्वपे कार्याकार्यपरिज्लानाय जपे विनियोगः । (आचमनीय से एक बार पृथ्वी पर जल छोडें ।)
अस्य मंत्रस्य द्वयक्षरचतुरक्षरदयक्षरैकाक्षर चतुराक्षरदयक्षरतः करन्यासांगन्यासौ कृत्वा ध्यानं
कूर्यात् ।
ध्यानम् :-
वराभये पद्मयुगं दधानां करैश्चतुर्भिः कनकासनस्थाम् ।
सिताम्बरा शारदचन्द्रक्रान्तिं स्वप्नेश्वरीं नौमि विभूषणाढ्याम् ।।
मंत्र :- ॐ कर्ली स्वेश्वरीं कार्या मं कद क्द स्वाहा //
एतन्मन्त्रस्य लक्षजपं कृत्वा तद् दशोशतो बिल्वदलैर्हवनात् सिद्धिः ।
पूर्वोदिते यजेत् पीठे षडंगत्रिदशायुधैः ।
रात्रौ संपूज्य दवेशीमयुतं पुरतो जपेत् ।।३२।।
शयीत ब्रह्मचर्येण भूमौ दभसिने शुभे ।
देव्यै निक्दय स्वं कार्यं सा स्वपे वदति शुनम् ।।३२।।
इसके बाद स्वप्नफल बताने वाले स्वणेश्वरी मंत्र को बतला रहे है । इस स्वप्नेश्वरी मंत्र के उपमन्यु ऋषि है, छन्द बृहती ओर देवता स्वप्नेश्वरी है । इन्हीं विधियो से विनियोग करें । करन्यास इस प्रकार होगा --
ॐ कलीम् अङ्गुष्ठाभ्यां नमः, स्वप्नश्वरी तर्जनीभ्यां नमः कार्यं मध्यमाभ्यां नमः, मे
अनामिकाभ्यां नमः वद वद कनिष्ठिकाभ्यां नमः, स्वाहा करतल करपृष्ठाभां नमः ।
८ स्वप्नकमलाकर्ः
ठीक इसी प्रकार से अङ्गन्यास (हृदय, शिर, शिखा, नेत्नत्रय, कवच ओर अस्त्राय फट्) भी करे । “वरदाभये' मत्र से ध्यान करे। “ॐ क्लीम्... आदि मंत्र का एक लाख जप करके इसके दशांश (दशहजार) से बिल्वपत्र से हवन करने से सिद्धि मिलती है । ध्यान मंत्र का अर्थं इस प्रकार है -- वर, मुद्रा, अभय मुद्रा, तथा कमलद्य को चार हाथो से धारण कर स्वर्णं के आसन पर विराजमान, श्वेतवस्त्रधारिणी, शरच्चन्द्र को तरह कान्तिमती, आभूषणों से युक्त भगवती स्वर्णेश्वरी को प्रणाम करता हूं । रात्रि में जप करें तथा सूर्यं के उदित होने पर पीठस्थ देवी का आयुधो के साथ तथा अंग देवताओं सहित नमन करें । देवी के समक्ष दशहजार मंत्र का जप करें । रात्रि में ब्रह्मचर्य धारण करें तथा भूमि पर कुशा के आसन पर शयन करें । देवी से अपने कार्य का निवेदन करें । वे स्वप्न में फल बतलाती हैं ।
अथापरः स्वप्नप्रदः सिद्धिलोचनामंत्रः-
“ ॐ स्वप्नविलोकि सिद्धिलोचने स्वप्ने मे शुभाशुभं कथय स्वाहा ।।
" इमं मन्त्रमयुतं जपित्वा मन्त्रसिद्धिः ।
कार्याकार्यविवेका्थं रात्रावष्ोत्तरं शतम् ।
जप्त्वा शयीत स्वप्ने सर्वं देवी ब्रवीति तम् ।।३३।।
इसके बाद स्वप्नफल बतलाने वाला सिद्धिलोचना देवी का मन्त्र कहा जा रहा है--'“ ॐ स्वप्विलोकि"" आदि मंत्र का दशहजार आवृत्ति (जप) कर मन्त्रसिद्ध कर ले । कार्य अकार्य के विवेक के लिए पुनः रत्रि मे १०८ बार जपं करके शयन करने से स्वप्न मे देवी सब कुछ बतलाती है ।
अथापरः स्वपचक्रेश्वरी मन्त्र :-
““ ॐ ह्वी श्रीं ए ॐ चक्रेश्वरि चक्रधारिणि शङ्खचक्रगदाधारिणि मम स्वप्नं प्रदर्शय
प्रदर्शय स्वाहा ।। " एतन्मन्त्रस्याष्टोत्तरशताधिकेकसहस्रजपात्सिद्धि।
रात्रावष्टोत्तरं जप्त्वा शतं स्वापो विधीयताम् ।
स्वप्नेश्वरी समागत्य ब्रूयात्स्वपे शुभाशुभम् ।।३४।।
इसके बाद स्वपफल बतलाने वाला स्वपनचक्रेश्वरीमन्त्र का आख्यान किया जा रहा है -- की श्री ठं ॐ चक्रश्वरि चक्रधारिणि शङ्खचक्रगदाशारिणि मम स्वनं प्रदशयि श्रदरव स्वाह्*“ का ११०८ बार जप करने से सिद्धि होती है। रात्रि में प्रयोग करने हेतु १०८ बार जप करके सोने पर स्वणचक्रेश्वरी देवी स्वप्न मे आकर स्वपन के शुभ अशुभ फल को बतलाती है ।
अथापरः स्वप्नप्रदो घण्टयकर्णमिन्त्रः-
स्वप्नक मलाकरः ९
*" ॐ नमो यक्षिणि आकर्षिणि घण्टाकर्णं महापिशाचिनि मम स्वपनं देहि देहि
स्वाहा । 1." इमं मंत्रं शयनसमये रात्रावेकविंशतिवारञ्जपित्वा शयीत जपकालमारभ्य
प्रातःकालपर्यन्तं किञ्चिदपि न वदेत् । प्रातःकाले उत्थानसमये पुनेकविंशतिवाराज्जपेत्।
ततो मोनैविर्सजयेत् । एवं प्रकारेणेकविंशतिदिनपर्यन्तमविच्छिन्नं साधयेत् । यदि मध्य एव
धृतस्यास्य व्रतस्य विच्छेदः स्यात्तदा पुनरप्यक्तप्रकारेणेवैकविंशतिदिनपर्यन्तं साधयेत् ।।
कार्यं विचिन्त्य निपुणो रात्रौ जप्त्वैकविंशतिम् ।
शयीत स्वप्नमध्ये तु स पश्येदशुभं शुभम् ।। ३५।।
इसके बाद स्वप्नफल बतलाने वाला घण्टयकणीं मन्त्र बतलाया जा रहा है । "ॐ नमो यक्षिणि' आदि मत्र को रात्रि मे सोते समय २१९ बार जपे । मंत्र जप काल से लेकर प्रातः काल तक मौन रहे । इस प्रकार इक्कीस दिनों तक अविच्छिन्न क्रम से साधना चलनी चाहिए । बीच मे त्रत खण्डित हो जाता है तो फिर नये सिरे से त्रतारम्भ ओर साधनाक्रम जारी करना चाहिए । यानि २९१ दिन जप ओर मौन सतत चलना चाहिए । इक्कीस दिन का अनुष्ठान पूरा होने के पश्चात् रात्रि मे इक्कीस बार जप कर शयन करने पर स्वप्न में घण्टाकर्णं शुभ या अशुभ फल को स्वल में निरदृरित करती है ।
अथापरः स्वप्नप्रदो विद्यामंत्र :-
ॐ ही मानसे स्वपनं सुविचार्य विद्ये वद् वद् स्वाहा ।।
शुचिर्भूत्वा हविष्याने भूक्त्वा जप्त्वायुतं मनुम् ।
संध्यायां भारतीपूजां कूत्वा स्वापो विधीयताम् ।।२६।।
महाविद्या समागत्य स्वपे ब्रूयात् शुभाशुभम् ।।३७।।
अब दूसरे प्रकार का स्वप्नफल बतलाने वाला विद्यामत्र कहा जा रहा है -- " ॐ ही मानसे' आदि मंत्र की सिद्धि हेतु अत्यन्त पवित्र होकर खीर खाकर दशा हजार जप करकें सौध्यवेला में सरस्वती की पूजा कर रात में शयन करना चाहिए । रात्रि में स्वप्न में महाविद्या आकर शुभ अशुभ का संकेत् देती है । किसी-किसी के मत से इसे चौदह (मनु) दिन सिद्ध करना चाहिए ।
अथापरं मन्त्रवरं ब्रह्मवैवर्तभाषितम् ।
ब्रवीमि सद्यः फलदमनुभावकरं परम् ।।३८।।
ॐ ञी श्री क्लीं पर्वदुगिनाशिन्यै महमायायै स्वाहया // ”“ `
कल्पवृक्षो हि भूतानां मन्त्रः सप्तदशाक्षरः ।
शुचिश्च दशधा जप्त्वा दुष्टस्वप्नं न पश्यति ।।३९।।
शतलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिभ्विन्नृणाम् ।
सिद्धमन्त्रश्च लभते सर्वसिद्धिं च वाञ्छिताम् ।। ४0।।
१० स्वप्नकमलाकरः
अब अन्य प्रकार का श्रेष्ठ मंत्र बतलाया जा रहा है जिसे ब्रह्मवैवर्त पुराण मे कहा गया है । यह सद्यः फलदायक ओर अनुभवसिद्ध यानी प्रतीतिकारक है । ॐ हीं श्री क्ली, आदि मंत्र हे । पवित्र होकर मात्र दस बार जप करने से दुष्ट स्वप्न नही दिखते । सौ लाख (एक करोड) जप करने से मनुष्यों को यह मंत्र सिद्ध हो जाता है । जिसको यह मंत्र सिद्ध हो जाता है वह सभी वांछिति कार्यों को सिद्ध कर लेता है ।
अथापरः स्वप्नप्रदो मृत्युज्जयमन्त्र :-
गुतुज्जयाय स्वाहया // ”“ इमं मन्त्रं दशलक्षं जपित्वा मन्त्रसिद्धिः ।
दृष्ट्वा च मरणं स्वप्ने शतायुश्च भवेन्नरः ।
पूर्वोत्तरमुखो भूत्वा स्वप्नं प्राज्ञे प्रकाशयेत् ।। ४१।।
इति नानामन्त्रशास्त्राण्यालोङ्य स्वप्नमन्त्रकम् ।
कत्वैकत्र कृतो ग्रन्थो लोकानां हितकाम्यया ।।४२।।
"कलौ चतुर्गुणं प्रोक्तं" महर्षीणामिदं वचः ।
स्मृत्वा नरस्तथा कूर्याद् विश्वस्तः फलकर्मणि ।।४२।।
नाविश्वस्तस्य सिद्धिः स्यादित्युषीणो मतं मतम् ।।४४।।
स्वणफल को कहने वाले दूसरे मन्त्र मत्युज्जयमन्त्र को कह रहे है --
ॐ मृत्युञ्जयाय स्वाहा" मन्त्र का दशलाख जप करने से सिद्धि होती है । स्वन मे अपनी मृत्यु को देखकर व्यक्ति शतायु होता है ।पूर्व ओर उत्तर (ईशान) मुख होकर स्वप का निवेदन बुद्धिमान् से करना चाहिए । यह नाना प्रकार के मन्त्र शास्त्र का आलोडन कर मन्त्रो को प्रकाशित करने वाला लोक कल्याण हेतु ग्रन्थ लिखा गया है । कलियुग मे कथित जप संख्या का चतुर्गुणित अधिक जप करने से सिद्धि होती है ऐसा महर्षियो का कहना है । अतः इसका विश्वास कर मन्त्रसिद्धि कसे से फल मिलता है ।अविश्वासी को मन्त्रसिद्धि होती ही नही--शंसयात्मा विनश्यति । ऐसा ऋषियों का निश्चित मत है । इस प्रथम कल्लोल में स्वणनफल विधायक तेरह मत्र दिये गये है ।
इति ज्योतिर्विच्छीधरसंगृहीतस्वणकमलाकरे ।
दैविकस्वणप्रकरणकथनं नाम प्रथमः कल्लोलः ।।१।।
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