स्वप्न विद्या के भारतीय सिद्धान्त
संस्कृत वाङ्मय मे स्वप्न विद्या को परा विद्या का अंग माना गया है । अतः स्वप्न के माध्यम से सृष्टि के रहस्यों को जानने का प्रयास भारतीय ऋषि, मुनि ओर आचार्यो ने किया है । फलतः भारतीय मनीषियो कौ दृष्टि मे स्वप्न केवल जाग्रत दृश्यों का मानसलोक पर प्रभाव का परिणाम मात्र नही है न तो कामज या इच्छित विकारो का प्रतिफलन मात्र है ।
सामान्य रूप से वेदान्त की विद्या मे कहा जाए तो स्वप्न लोक कौ तरह यह दृश्य लोक क्षणभंगुर है । इससे स्वप्न का मिथ्यात्व सिद्ध होता है । रज्जु मे सर्प का भ्रम कहा जाए तो स्वप्न मे भीखारी का राजा होना भी भ्रम मात्र ही है; परन्तु स्वप्न को आदेश मानकर राजा हरिश्चन्द्र द्वारा अपने राज्य का दान, स्वप्न मे अर्जुन द्वारा पाशुपतास्त्र की दीक्षा प्राप्ति आदि उदाहरण भी भारतीय संस्कृति मे देखने को मिलते है । त्रिजटा ने जो कुछ स्वप मे देखा उसको अपूर्व प्रमाण मानकर श्री हनुमान् जी ने लंका दहन किया । ये सन ऐसे उदाहरण है जो स्वप्न मे विद्या को दैविक आदेश या परा अनुसंधान से जोड़ते है । स्वप्न चिन्तन जब शास्त्र का रूप ग्रहण करता है तो निश्चित ही उसकी चिन्तना पद्धति मूर्तं से अमूर्तं काल मे प्रवेश कर जाती है ।
स्वपनकमलाकर ग्रन्थ मे स्वप को चार प्रकार का माना गया है -(1) दैविक स्वप्न (2) शुभ स्वप्न (3) अशुभ स्वप्न ओर (4) मिश्र स्वप्न ।
दैविक स्वप्न को उच्च कोटि का साध्य मानकर इसकी सिद्धि के लिए अनेक मंत्र ओर विधान भी दिये गये है । स्वप्न उत्पत्ति के कारणों पर विचार करते हुए आचार्यो ने स्वप्न के नौ कारण भी दिये है- (1) श्रुत (2) अनुभूत (3) दृष्ट (4) चिन्ता (5) प्रकृति (स्वभाव) (6) विकृति (बीमारी आदि से उत्पन्न) 7) देव (8) पुण्य और (9) पाप ।
प्रकृति ओर विकृति कारण मे काम (सेक्स) और इच्छा आदि का अन्तर्भाव होगा । दैवी आदेश वाले स्वप्न उसी व्यक्ति को मिलते है जो वात, "पित्त, कफ त्रिदोष से रहित होते है । जिनका हृदय राग द्वेष से रहित ओर निर्मल होता है ।
देव, पुण्य और पाप भाव वाले तीन प्रकार के स्वप्न सर्वथा सत्य सिद्ध होते है । शेष छः कारणों से उत्पन स्वप्न अस्थायी एवं शुभाशुभ युक्त होते हैं ।
मैथुन, हास्य, शोक, भय, मलमूत्र ओर चोरी के भावों से उत्पन्न स्वप्न व्यर्थं होते हैं-
रतेहसिाच्च शोकाच्च भयान्मूत्रपुरीषयोः ।
प्रणष्टवस्तुचिन्तातो जातः स्वप्नो वृथा भवेत् ।।
बृहस्पति के मतानुसार दश इन्द्रियं ओर मन जब निश्चेष्ट होकर सांसारिक चेष्टा से, गतिविधियों से पृथक् होते हैं तो स्वप्न उत्पन्न होते है । इस परिभाषा के अनुसार विदेशी विचारकों के इस कथन को बल मिलता है जिसमे वे स्वप्न का मुख्य कारण जाग्रत अवस्था के दृश्यों को मानते है ।
सर्वेन्द्रियाण्युपरतौ मनो ह्युपरतं यदा ।
विषयेभ्यस्तदा स्वप्नं नानारूपं प्रपश्यति ।।१।।
बृहस्पति द्वारा प्रदत्त स्वप्न॒ की यह अवस्था सूचित करती है कि प्रत्यक्ष रूप से शरीर का कोई भी भाग जब तक काम करता रहेगा स्वप्न नही आयेगा । यहां तक कौ मन को भी शिथिल होकर निद्रित होना आवश्यक है । बच्चे जब स्वप्न को देखकर हंसते या रोते है तब धीरे से उनके शरीर को छूने मात्र से स्वप्न भंगहो जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि प्रगाढ निद्रा की अवस्था मे स्वपन नही आते । यह सिद्धान्त वाक्य नही है । निद्रा की प्रगाढता मे भी स्वप की तरंगे उठती है ।
स्वप्न देखने कं लिए चाक्षुष प्रत्यक्ष कारणों का होना आवश्यक नही है । यह सत्य है कि स्वप्न . में उन्ही वस्तुओं का दर्शन होता है जिन्द हम जाग्रत अवस्था म कभी न कभी देखे हुए होते है, परन्तु दुर्लभ ही सही पर वैसे भी स्वप्न आते है जिन्हे हम कभी पूर्व प्रत्यक्ष नही मान सकते उदाहरण कं तौर पर अदुष्ट पूर्व भूमि, दूसरे लोक के दृश्य, आकाश गंगा आदि । स्वप्नं का अवतरण मानस लोक से ही होता है, पर दैविक स्वप्न म मन उपकरण बनता है । अतः स्वप्न को मानस से अतिरिक्त व्यापार या मानस का व्यापार दोनों ही नही कह सकते । ऋषियों ने स्वप्न को उतना ही सहज माना है जितना प्राकृतिक घटनाओं को जैसे- सूर्योदय, सूर्यास्ति । पाप पुण्य से उत्पन्न स्वप्न "अपूर्व घटना' की कोटि में आते है ।
स्वप्न में आवाज आती है । इन अवाजों को दृश्य विहीनता के वावजुद स्वप्न कोटि मे रखा जा सकता है और ये आवाज कभी-कभी पूर्ण सत्य भी सिद्ध होती है । एसे स्वप्नं को कर्णेन्द्रिय प्रधान स्वप्न कह सकते है । स्वप्न देखने मे सर्वाधिक विम्ब चाक्षुष ही होते हैं । शेष इन्द्रियों चाक्षुष विम्बों का सहयोग मात्र करती हैं । अतः प्रयोग नता है स्वप्द्रष्टा, स्वपजीवी, स्वलोक आदि । जन्मान्ध व्यक्तियों को जो स्वप्न आते है या आयेगे वे अधिक मात्रा में दृश्यविहीन होगे । स्वप्न लाल, पीले, काले, नीले, उजले रंगों से युक्त भी हो सकते है और रंगविहीन भी । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि दुष्य प्रतीकों के बिना भी स्वप्न आ सकते है । स्वप का दर्शन, स्वप्न का श्रवण और स्वप्न का स्परन भी हो सकता है । स्वप्न में हम महसूस कर सकते है कि हमारे बगल में कोई सोया हआ है ओर कभी-कभी उसे स्वप्न मेें ही छूकर आश्वस्त. भी हो लेते है । स्वप्न सृष्टि के उस अवस्था विशेष का नाम है जो जाग्रत या चेष्टित अवस्था के विपरीत काल में ही अवतरित होता है । स्वप्न अवतरण के काल अपना विशेष महत्व रखते है । जिस काल मे स्वपन आ रहा है वह काल उस स्वप्न की चरितार्थता को सिद्ध करता है । अतः काल के क्षण, घंटे, प्रहर, संधिरयों भविष्यत् अनुमान या कथन के लिए महत्वपूर्णं नियामक बनती है । एक रात को चार खण्ड मे बांट कर स्थूलतः तीन तीन घंटे का एक याम या खण्ड मान सकते है । रात्रि का प्रविभाग निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं-
(1). प्रदोषकाल से तीन घंटे तक
(2). अर्द्धरात्नि से पूर्वं तीन घंटे तक
(3). अर्द्धरत्रि के बाद के तीन घंटे तक और
(4). सूर्योदय से पूर्वं तीन घंटे तक
(1) इस खण्ड में देखा गया स्वप्न एक वर्ष के अंदर अपना फल देता है ।.(2) इस खण्ड मे देखा गया स्वप छः मास के अंदर अपना फल देता है । (3) इस खण्ड मे देखा गया स्वप्न तीन मास के अंदर मे अपना फल देता है (4) इस खण्ड मे देखा गया स्वप्न एक मास के अंदर अपना फल देता हे । ब्राह्ममुहूर्त मे देखा गया स्वप्न उसी दिन अपना फल देता है ।
अनिष्टकारी स्वप्नां को देख कर जो व्यक्ति सो जाता है और बाद में शुभ स्वप्नों को देखता है वह अशुभ फल नही प्राप्त करता । अतः अनिष्ट स्वप्न को देख कर फिर से सो जाना चाहिए-
अनिष्टं प्रथमं दृष्ट्वा तत्पश्चात्स स्वपेत् पुमान् ।
बृहस्पति के मतानुसार रत्रि कं द्वितीय प्रहर म देखा गया स्वप्न आठ मास के अंदर तथा अरुणोदय बेला या ब्राह्ममुहूर्त मे देखा गया स्वप्न दश दिन के अंदर अपना फल देता है-
स्वप्ने तु प्रथमे यामे संवत्सरविपाकिनः ।
द्वितीये चाष्टभिमसिस्त्रिभिमसिस्तृतीयके ।।
चतुर्थयामे यः स्वप्नो मासे स फलदः स्मृतः ।
अरुणोदयवेलायां दशाहेन फलं भवेत् ।।
सूर्योदय काल मे स्वप्न देखकर जाग जाने के बाद वह स्वप्न अपना तत्काल फल देता है । दिन में मन में सोच कर सोने के बाद यदि उसी का स्वप्न निर्देशात्मक आया तो समझना की यह स्वप शीघ्र ही अपना फल देगा ।
प्रातः स्वप्नश्च फलदस्ततक्षणं यदि बोधितः ।
दिने मनसि यद् दष्टं तत्सर्वज्च लभेद् धुवम् ।।ब्र.वै.७७/७
कफ प्रधान प्रकृति वाला व्यकित जल तथा जलीय पदार्थो का सर्वाधिक स्वप्न देखता है । वातप्रधान प्रकृति वाले व्यक्ति हवा में उडता है और ऊंचाई पर चढ़ता तथा ऊंचाई से कूदता है । पित्त प्रकृति वाला व्यक्ति अग्नि की लपट ओर स्वर्ण तथा ज्वलित चीजों को देखता है ।
भारतीय स्वपन विद्या की विशेषता-
भारतीय स्वप्नविदों ने दुःस्वप्न नाशन कं लिए कुछ अपूर्वं मंत्न तथा उपायोग को खोज रखा है । स्वप्न शास्त्र के सभी ग्रन्थों में प्रायशः ये विधान दिये गये है । रोग और सूक्ष्म आत्माओं के -दुष्टभाव से उत्पन्न दुःस्वप्न नाश के लिए वेदों में भी मंत्र दिये गये ह । इन मंत्रों के प्रभाव से निश्चित ही लाभ मिलता है ।
इन उपायों को देखने मात्र से प्रतीत होता है कि भारतीय ऋषियां ने स्वप्न को दैवत सृष्टि का अंश मान कर उसे मनुष्य के जन्मान्तरार्जित' पुण्य-पापों का प्रदर्शक या सूचक तत्त्व माना है ।
स्वप्न विद्या मे तात्कालिक मृत्यु या शीघ्र आने वाली मृत्यु के लक्षणों को भी दिया गया है । इससे सिद्ध होता है .कि अकालमृत्यु के सूचक लक्षण चाहे वे जिस कारण से उत्पन्न होते हों स्वप्न की परिधि मे आते है । "
दुःस्वप्न, दुःस्वप्न नाश ओर आसन्न मृत्यु लक्षण स्वप्न विद्या के अन्तर्गत आने वाले विषय है । कफ स्वपनो की व्याख्या उनकी प्रकृति के आधार पर की जा सकती है; जैसे-
सभी प्रकार के सफेद पदार्थं स्वप्न मे दिखने पर शुभ फल देते ` है कपास, भस्म, भात और महा को छोड कर । इसी प्रकार काली वस्तुएं गो, हाथी, देवता, ब्राह्मण ओर घोडा को छोडकर सभी प्रकार का अनिष्ट फल देती है |
सर्वाणि शुक्लान्यतिशोभनानि `
कापसि भस्मौद्नतक्रवर्ज्यम् ।
सर्वाणि कृष्णान्यतिनिंदितानि
गोहस्तिदेवद्विजवाजिवर्ज्यम् ।।
संसार मे जितने शुभ पदार्थ है वे आवश्यक नही कि स्वप्न में दिखलायी पड़ने पर शुभ फल ही दे । ठीक इसी तरह सभी प्रकार के अशुभ पदार्थ स्वप में दुष्ट होने पर प्रायशः शुभ फल के सूचक होते हैं
लौकिक व्यवहारे ये पदार्थाः प्रायशः शुभाः ।
सर्वथैव शुभास्ते स्युरिति नैव विनिश्चयः ।।
परन्तु ते शतपथः शुभं दद्युः फलं सदा ।
अशुभा अपि ये कचित्तेऽपि सत्फलदायिनः ।।
चिता के ऊपर जलते हुए मनुष्य को स्वप्न में देखने से स्वप्न द्रष्टा अकस्मात् विपत्तियों में फंसता है । एक व्यक्ति इस स्वप्न को देखकर विपत्तियों में फंस गया था जिसे विपत्ति से निकलने हेतु तीन वर्षो तक अनवरत शताक्षरा गायत्री तथा महामृत्युञ्जय मन्त्र का जप करना पड़ा । एक महिला ने स्वप्न देखा कि उसके पूजन घर में चल रहा यन्त्र देवता को शान्ति मँ बाधक है । अतः उसे वहाँ से हटा दिया जाये । जब तक यन्त्र हटा नही चल नही सका । एक प्रशासनिक ने देखा कि उसकं घर से गाय अपने बछड़े के साथ निकलकर चली गयी । उस अधिकारी कं यहाँ से लक्ष्मी ऐसी गायब हयी कि वे दाने-दाने कं लिए मोहताज हो गये । एक महिला ने स्वप्न मेें देखा कि एक पीत वस्त्रधारी महात्मा उन्हें दो फल दे रहे है । कालान्तर मे उन्हे दो जुडवे पुत्रं की प्राप्ति हुयी । एक महिला ने कन्या प्राप्ति हेतु भगवती की आराधना की । स्वपन में श्रीमाँ ने भव्य महिला के रूप में दरशन देकर मुस्करा दिया । उन्हें कन्या रत की प्राप्ति हुयी । मेरे एक परिचित व्यक्ति को रात्रि में एक सर्पं का दर्शन हुआ जिसकी लम्बी पुछ थी और वह क्रोध से उन्हे देख रहा था । कुछ ही दिनों बाद वे घोर बीमारियों से ग्रस्त हो गये । ग्रह जप एवं महामृत्युञ्जय मन्त्र जप से उनको रक्षा हो सकी । एक वृद्ध व्यकित को बार-बार स्वप्न में अनेक ऋषि गण दिखायी पडते थे । उन्होने कहा कि मै एकादशी को मर जाऊंगा और ठीक उसी तिथि को उनकी मृत्यु हो गयी । एक युवा लड्के ने स्वप्न में लगभग चार बजे भोर मे देखा कि कुछ लोग उसे ईट पत्थर से पीट-पीट कर मार डाले है । जागने के बाद उसने अपने एक मित्रो से फोन कर सूचित किया और अपने मनोभय को भी बतलाया । उसने रात मे ही अपने सारे चेकबुक्स पत्नी कं नाम कर दिये । जरह -जहयौ धन था उसकी सूची बनाकर रख दी । दो दिन बाद एक समझौते के दौरान उस बलिष्ठ युवक को कुछ लोगों ने घेर कर मार डाला । एक महिला ने स्वप्न में देखा कि एक लाल वस्नं पहनी महिला उसके हाथो से कंगन एवं मंगलसूत्र छीन रही है ।उस महिला ने स्वपन मे ही ज्जगडा कर उस लाल वस्त्र धारिणी महिला को भगा दिया। कुछ दिनों बाद महिला के पति रात मे लौट रहे थे। उन्हं घेर कर लोगों ने मारना चाहा परन्तु वे किसी तरह जीवित बच गये । उनकी पत्नी ने बटुक भैरव का प्रयोग कर अपने पति की रक्षा कर ली । काश्मीर के प्रायशः विस्थापित ने पलायन के पूर्वं भयावह दृश्यो वाले स्वप्न को देखा था ।एक महिला ने रात में एक दिव्य पुरुष को देखा जो देखने से साधक लग रहे थे। उन्होने उसे कपड़े में लिपटे लड्डु को दिया। कुछ दिनो बाद उस महिला को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी। वह बालक शान्त एवं तेजस्वी है । एक साइकलाजिस्ट महिला ने स्वप्न में देखा कि उसके सिर के सारे बाल सफेद हो गये है । बार-बार डाई करने पर भी वे काले नही हो रहे थे । कुछ ही दिनों नाद उस आध्यापिका महिला के घर विपत्तियों की श्रुखला शुरु हुयी । पिता की मूत्यु एवं अन्य आपदाये आयी । एक छात्रा ने स्वप्न मे अपना परीक्षा फल प्रकाशित देखा । यहां तक कि उसने अपने अंकों को भी स्वप्न मे देखा । पता करने पर यह स्वपन पूर्ण सत्य निकला ।
इस प्रकार से सामान्य स्वप्नो द्वारा विशिष्ट सूचनार्एं भूल है । आराधना बल एवं -स्वप्न सिद्धि के माध्यम से अनेक दृश्यों को देखा एवं जाना जा सकता है । देश विप्लव एवं भूकम्प आदि के भी सूचक स्वप्न होते है । बार-बार फटी पृथ्वी को देखना तथा नगर को अग्नि की लपटो से धिरा देखना सामूहिक विपत्ति का सूचक होता है । फलतः स्वप्न मनुष्य की आन्तरिक तपस्विता एवं इच्छा शक्ति से परित होकर मार्ग दर्शन के कारक तत्वत भी बन जाते है । एक महिला ने तो स्वप्न मे ही विदेश गमन किया तथा भीड़ में अपने पति को देखा । उस डाक्टर महिला -ने बहुत दिनों बाद विदेश यात्रा की और अपने पति को भीड मे स्वप्न से मिलती आकृति के कारण पहचान लिया । बाद मे दोनों का जीवन अत्यन्त सुखमय हो गया । मैने स्वयं ही अनेक लोगों को अभिचोर एवं अभिचार जनित बीमारियों से स्वप्न के माध्यम से बचने के लिए अभ्युपाय बतलाये है । स्वप्न के माध्यम से पूर्वं जन्म कौ भी कुछ बातों को जाना जा सकता है । यद्यपि यह कार्य बहुत कठिन है पर असम्भव नही है । स्वप्न विद्या के साधक प्रायशः नही मिलते परन्तु ग्रन्थो में स्वप्न साधना के अनेक विधान उपलब्ध हैं । भारतीय स्वप्न विद्या आध्यात्मिक साधना में सुगमता लाने हेतु प्रयुक्त हुयी है । इसके अनेकं उल्लेख तन्त्र ग्रन्थो में प्राप्त होते हैं।
इस ग्रन्थ को तैयार करने मे प्राचीन ग्रन्थों से पूर्णं सहयोग लिया गया है । धर्मसिन्धु एवं अन्य फुटकर ग्रन्थो मे जहां स्वप्न की चर्चा आयी है वह पुराण एवं स्वप्न ग्रन्थो की पुनरावृत्ति मात्र है । अतः जहां अत्यधिक पुनरावृत्ति हुयी है उन संदर्भो को छोड. दिया गया है । यदि एक-एक व्यक्ति से स्वप्न संकलन किया जाये और उसके परिणामों पर गहन विचार किया जाये तो यह कार्य अपने आप म एक शोध कार्य हो जायेगा । फिर भी इस कार्य का अपना एक अलग महत्व है । यह कार्य स्वप्न के सिद्धान्त को एक स्थान पर उपलब्ध कराने हेतु अपना महत्त्व रखता रहै ।
अपनी धर्म पत्नी रेखा उपाध्याय को इस कार्य म इन्डेक्स बनाने में सहयोग करने हेतु धन्यवाद देने से अपने को रोक नही सकता हुं। इस महत् कार्य कं पीछे मुझे प्रेरित करने वालो मे श्री प्रदीप कौल तथा ¦ शशिकला सिंह (वरिष्ठ प्रवक्ता मनोविज्ञान, का० हि वि0 वि ) मुख्य रूप से स्मरणीय है । मैं इनके प्रति अपनी कृतज्ञचा प्रकट करता हू । आर्ष ग्रन्था के प्रणेता ऋषियों एवं आचार्यो को शतशः प्रणाम करता. हू ; जिन्होंने इस गृह्य विद्या को सर्व सुलभ किया ।
विदापुनरागमनाय
कार्तिकिपूर्णिमा कमिव कपा्यय
सम्वत् २०५३ ९. ११. ६४६६
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