क्या मैं
मानव जाती की आखिरी कड़ी हूं,
आप स्वयं देख सकते हैं, कि हम जिस समाज या संसार में रहते
हैं यहां पर जो वस्तु समाज के बाजार में अधिक बिकती है, उसी सामान की बाजार में बाढ़ आ जाती
है, हमारे बाजार में
लोगों की मांग को ध्यान में रख कर माल का उत्पादन किया जाता है, लोगों की मांग सस्ती वस्तु की बहुत
अधिक होती है, लोग
गुणवत्ता से अधिक सस्ता वस्तु को अधिक पसंद करते हैं, क्योंकि लोग अपने धन को बचाना चाहते
हैं, दूसरी बात लोगों
के पास बहुत अधिक धन भी नहीं है। इसी प्रकार से आप मनुष्य जो जितना अधिक घटिया गुण
वाला होगा, उसके
उतने ही अधिक मित्र होगे, और उसके उतने ही अधिक सहायक भी होगे।
यह मैंने अनुभव किया है, कि हम जिस समाज में रहते हैं, वहां पर लोग मनुष्य को उसके गुणों
से नहीं पहचानते हैं, यद्यपि उस मनुष्य के दिखावे या उसके रहन सहन और पहनावे से पहचानते हैं, मेरी बाते को सिद्ध करने के लिए
मुझे एक कहानी याद आती है, एक बार एक महापुरुष थे जिनकी प्रसिद्धि बहुत अधिक समाज में थी क्योंकि वह
बहुत विद्वान थे, उनकी
प्रसिद्धि को सुन कर एक धनी व्यक्ति ने उनको अपने यहां पर भोजन के लिए एक दिन
निमंत्रित किया। विद्वान महोदय उसके यहां खाने के लिए शाम को जब पहुंचे, तो
उन्होंने फटे पुराने कपड़े को पहन रखा था, जिसको देख कर धनी व्यक्ति ने उनको पहचानने से ही इनकार कर
दिया, और अपने यहां से वापिस कर दिया, लेकिन जब विद्वान महोदय अच्छे कपड़े को पहने कर गए, तब धनी
आदमी ने उनका बहुत अधिक स्वागत सत्कार करके अपने अमीर मित्रों के साथ उनको भी भोजन
के लिए ऊंचे आसन पर ले जाकर बैठाया, और उनके लिए अच्छे - अच्छे स्वादिष्ट भोजन को परोसा गया।
लेकिन विद्वान महोदय ने खाने को स्वयं खाने के बजाय, अपने खाने को अपने सुन्दर
अच्छे कपड़े को खिलाने लगे। जिसको देख कर धनी आदमी और उसके मित्रों ने विद्वान
महोदय को टोकते हुए कहा की आप अपने कपड़े को क्यों खाने से खराब कर रहें हैं, तब विद्वान महोदय ने कहा की आप ने
इन कपड़ों को ही खाने के लिए आमंत्रित किया है, मुझे तो आप ने वापिस कर दिया था जब मैं फटे पुराने कपड़े पहन
कर आया था। तब धनी ने कहा मुझसे भूल हो गई था कृपया मुझ क्षमा करें, हमें किसी व्यक्ति की पहचान उसके
कपड़ों से नहीं करना चाहिए।
मेरा कहानी कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना था
की यह दुनिया ऐसा ही करती है यहां लोगों
को उनकी मूर्खता पूर्ण कृत्यों के लिए ही पहचाना जाता है, लोगों ने विद्वान को केवल अपमानित
करने के लिए ही मूर्खों की बहुत बड़ी फौज को खड़ी कर रखा है।
हमारा समाज आज अपनी बहुमूल्यता को इस लिए
समाप्त करता जा रहा है, क्योंकि लोग मूर्खता पूर्ण वस्तु के आदि हो चुके हैं, सज्जनता सादगी ईमानदारी सत्यता
ज्ञान आदि केवल ढोंग और दिखावा बन कर ही रह गया है। लोगों में सत्य को या फिर
ज्ञान को अथवा मनुष्य को पहचाने की शक्ति का हरास हो रहा है, जिसके कारण ही हमारे समाज में ऐसा
वातावरण तैयार हो रहा है जहां पर ऐसे मनुष्यों
को तैयार किया जा रहा जिनकी मांग हमारे समाज में अधिक है, गलत लोगों की मांग हमेशा से अधिक
हमारे समाज में रही है, सहीं लोग को हमारा समाज स्वीकार ही नहीं पाता है, इसका मतलब यह नहीं है की सही लोग मूल्यहीन
है, इसका मतलब सिर्फ
इतना है, की सच्चे
हीरे को पहचानने वालो की कमी है अर्थात जौहरी नहीं रहें जो मनुष्यों को पहचान पाए।
आज हम जिस दुनिया में रहते हैं, यहां सत्य असत्य से किसी को कुछ भी
लेना देना नहीं है, लोग आज
सिर्फ यह देखते हैं, ऐसा कौन
सा कार्य है जिसको करने से लोग उनकी कीमत अधिक देंगे, इसको ही ध्यान में रख कर लोग स्वयं
को तैयार कर रहे हैं, उदाहरण के लिए आज इस दुनिया में अच्छे दासों की और मूर्खों की जरूरत है, जिसकी मांग को देख कर लोग स्वयं को
एक अच्छा दास और मूर्ख बनाने के लिए बड़ी ही तीव्रता के साथ कार्य कर रहें हैं।
हमारे भारत में ऋषियों महर्षियों ने जिस
कार्य को करने के लिए हम सब को दिशा निर्देशित किया हैं आज हम सब वहीं कार्य नहीं करने में ही स्वयं को गौरवान्वित महसूस
करते हैं, उदाहरण
के लिए वेद गीता उपनिषद दर्शन इत्यादि जो ज्ञान की धरोहर है, उसको मानने वाले और उस मार्ग पर
चलने वाले आज शायद लाखों में कोई एक व्यक्ति मिल जाए, इसके विपरीत लोग तरह - तरह के आडंबर
और मूर्खता पूर्ण कृत्य करने और कराने के लिए अपनी पुरी सामर्थ्य से लगे रहते हैं।
मैंने वैदिक विद्यालय की स्थापना के लिए अपना
जीवन समर्पित कर रखा है, और मैं चाहता हूं की लोग हमारे ऋषि महर्षियों के ज्ञान विज्ञान और
ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़े, और इस कार्य को आगे बढ़ाने में सहयोग करें, लेकिन लोग मुझे ही गलत सिद्ध करने में
लगे रहते हैं, सहयोग
देने की बात को छोड़े, वह तो ऐसा प्रयास करते हैं की मैं किस तरह से अपने कार्य को समाप्त करके
उनके मूर्ख पूर्ण कृत्यों को सही कहूं और उनका समर्थन करूं। ऐसा मुस्लिम और धर्मों
में नहीं होता है, वह लोग
अपने समाज और अपने धर्म को आगे बढ़ाने में भरपूर सहयोग करते हैं, लेकिन हमारे हिन्दू धर्म में ऐसा
नहीं है, मुझे आज
तक कोई एक भी आदमी नहीं मिला जो मेरे इस कार्य में मेरा सहयोग कर सके, मैं अकेले ही अपने इस कार्य को कर
रहा हूं, और मैं
अपने समाज और देश को आगे बढ़ाने चाहता हूं, लेकिन सामाजिक कार्य को करने के लिए समाज के सहयोग की जरूरत
होती है, जो नहीं
होते हैं, तो वह
कार्य बाधित होता है, आज लोगों के मन में ऐसी भावना ने घर कर लिया है की किसी वैदिक
विश्वविद्यालय की जरूरत ही क्या है? क्योंकि हमारे पास पहले से बहुत अधिक विश्वविद्यालय हैं, जहां पर लोगों को ज्ञान दिया जाता
है, लेकिन लोगों को
यह नहीं समझ में आता की हमारे आधुनिक विश्वविद्यालय जिस को अपनी मान्यता दे कर
समाज में भेज रहे हैं, वह केवल नौकरी के लिए परेशान है, और अधिक अपने व्यवसाय के लिए परेशान है, कुल मिला कर जितने भी लोग
विश्वविद्यालय से निकल रहें हैं, वह सभी केवल धनार्जन करना फिर विवाह करना और काम सेक्स की दुनिया में
प्रवेश करते हैं, जिसका
परिणाम यह होता है की वह भी किसी सामान्य गृहस्थी की बन कर तरह - तरह के कृत्यों
को करके अपने जीवन को व्यतीत कर देते है, क्या मुझे कोई बता सकता है की हमारे विश्वविद्यालय ने कितने
स्वतंत्र पुरुषों को तैयार कर करें निकाला है, जो समाज में वैराग्य, सन्यास, धर्म योग और ब्रह्मचारी की तरह से जीवन व्यतीत करते हैं, और कितने व्यक्ति अपने आश्रम बनाकर
अपने समाज के लोगों को हमारे ऋषि महर्षि की शिक्षा ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान के
विस्तार के लिए कार्य करते हैं। ऐसा देखने पर हमें शायद ही कोई व्यक्ति मील सके, जो आज स्वयं को साधु संत फकीर कह
रहें हैं, वह सभी
इसी समाज से निकले हैं, वह भी सत्य ज्ञान से बहुत दूर तक कोई संबंध नहीं रखते हैं, वह लोगों की पसंद को देख कर बोलते
हैं, जो लोगों को पसंद
हैं वहीं बोलते है, जरूरी
नहीं है लोगों को जो पसंद हैं वह सभी सत्य और ज्ञान पूर्ण हैं, क्योंकि आज लोगों को पार्टी में
जाना धूम धड़ाका डीजे आर्केस्ट्रा में नाचना लड़कियों के साथ अश्लील गाना के साथ
ज्यादा पसंद हैं, जिसको
देख कर हमारे तथा कथित धर्मात्मा भी उसी धुन पर भजन और कीर्तन बना कर गा रहे हैं, और अपने जीविकोपार्जन के धंधा को
आगे बढ़ा रहें हैं। इससे समाज के कल्याण के स्थान पर अकल्याण ही हो रहा है। मान ले
की एक आदमी बीमार है, उसको ठीक करने के लिए उसकी जो गलत आदतें हैं ,उसको रोकर उसके स्थान पर उसकी सही आदत को
विकसित करना होता है,
लेकिन जब चिकित्सक स्वयं ही बीमार हैं, तो वह दूसरे को कैसे स्वस्थ कर सकता
है, आज जो धर्मात्मा
और साधु योगी है, वह स्वयं
खुद किसी साधारण गृहस्थ की तरह से रहते हैं, और कई - कई औरतों से अपने सेक्स संबंध बनाते हैं, और अपनी कथा वार्ता में भी वहीं
चर्चा करते हैं, नाम तो
धर्म यज्ञ रखते हैं, करते
बिल्कुल इसके विपरीत कार्य हैं, अधर्म का प्रचार प्रसार जब धर्मात्मा का आवरण पहन कर लोग करते हैं, तो बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाती
है, इसलिए लोगों में
उनके प्रती सम्मान भी झुठा होता है, लोगों का आज इसकी वजह से ही सत्य के प्रती ज्ञान के प्रती
वितृष्णा की भावना पैदा हो चुकी है।
आज जिस समाज में रहते हैं, इसमें ना कोई साधु ही पैदा हो रहा
है, ना कोई वैरागी
पैदा हो रहा है और ना ही कोई संत ही पैदा हो रहा है, आज तथाकथित साधु संत राजनीति कर रहें हैं, कोई हनुमान चालीसा पर तो कोई अजान
पर कर रहा है, चाणक्य
ने एक स्थान पर कहा है की राजनीति का कार्य वेश्यावृत्ति के कार्य के समान
है।
तो इस तरह से लोग वेश्या वृत्ति के कार्य में
बहुत तन्मयता के साथ जुड़े है, इस प्रकार से हम स्वयं समझ सकते हैं, की जो हमारे अग्रणी नेता ही वेश्यावृत्ति के कार्य को करने
स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं, तो साधारण मजबूर जनता क्यों नहीं वेश्यावृत्ति के कार्य का अनुसरण नहीं
करेगी, वेश्या कभी नहीं
चाहेगी की उसका व्यापार घाटे में चले, लोग अपने व्यापार में फायदा चाहते हैं, लेकिन संसार का क्या होगा जिस समाज
की जो ऋढ़ की हड्डी ही टूट जाएगी, तो वह समाज धरासाई हो जाएगा। आज यही हो रहा है, हमारे समाज की ऋढ़ की हड्डी कोई और
नहीं हैं हमारे मनुष्य ही हैं जो सात्विक साधु और योगी वैरागी ब्रह्मचारी हैं, यह तबका पुरी तरह से हमारे समाज से
लुप्त हो रहा है, आने वाले
समय में हमारा समाज अपंग हो जाएगा, तथा कथित जो लोग हैं, वह केवल पाखंड को बढ़ावा दे रहें हैं, हमारे विश्वविद्यालय केवल इस मजबूत
कड़ी को तोड़ने के लिए ही युद्ध स्तर पर कार्य रत हैं, अभी मैं देख रहा था की हिन्दू
विश्वविद्यालय के नाम से प्रचलित काशी का विश्वविद्यालय जहां पर ऐसे नारे लगाए जा
रहे थे, ब्राह्मण
तेरी कब्र खुदेगी, और
हिन्दू धर्म के खिलाफ वहां के जो कलपती है वहीं शामिल इसमें ऐसे कुछ संकेत मिल रहे
हैं, बहरहाल यह हमारा
विषय नहीं है, मुख्य
बात यह है की इस विश्वविद्यालय को भी हिन्दू धर्म के बारे में कुछ भी पता नहीं है, क्योंकि वहां पर गंगा जल को छिड़क
कर शुद्ध किया जा रहा था। यह कैसी मूर्खता है, आप के अज्ञान और मूर्खता को हम किसी जल से शुद्ध कर सकते हैं, यह कैसे संभव है, जैसा की भारत में बहुत से लोग है, जो यह समझते हैं कि गंगा में स्नान
करने से उनके पाप धुल जाते हैं, यदि ऐसा होता तो कितनों के पाप धुल चुके होते, लेकिन हो इसके विपरीत ही हो रहा है
लोग और अधिक पापी बन रहे हैं, कोई कहता है की काशी में प्रवेश मात्र से लोग मुक्त हो जाते हैं, तो जो लोग काशी में रहते हैं वह सभी
मुक्त हो चुके हैं, नहीं कोई
मुक्त नहीं हैं, सभी मूर्खता
के शिकार है, तथाकथित
हमारे धर्म ग्रन्थ के नाम पर हम सभी को बहुत अधिक मात्रा में मूर्खता का ही पाठ
पढ़ाया जा रहा इसलिए ही हमने शुद्ध वैदिक ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान के विस्तार के
लिए इस वैदिक विश्वविद्यालय की स्थापना की है, लेकिन मुझे इसको आगे बढ़ाने के लिए लोगों की सहायता की जरूर
है, जिसको लिए लोगों
को आगे आना होगा, यदि लोग
आगे आते हैं, तो यह
कार्य आगे बढ़ेगा अन्यथा मेरे साथ ही मेरा कार्य भी समाप्त हो जायेगा।
जैसा कि सभी चाहते हैं कि उनका कार्य आगे
बढ़े ऐसा मैं भी चाहती हूं, की यह कार्य आगे बढ़े, लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है की कोई एक भी व्यक्ति आज तक इस कार्य
के सहयोग के लिए आगे नहीं आ रहा है, इसमें दो बाते हो सकती है, पहली बात की लोग इससे बहुत अधिक डरते हैं, की इस कार्य के विकसित होने से उनके
पाखंड के धंधे पर असर पड़ेगा, दूसरी बात यह भी हो सकती है की लोगों को इसके बारे में ज्ञात ही नहीं है
की वास्तव में हमारे वैदिक वांगमय की सत्यता क्या है? मैं अपने पिछले 30 साल के शोध में
पाया है की हमारे वैदिक वांगमय ही हमें हमारे जीवन की सारी समस्या से मुक्त कर
सकते हैं, और इस
पृथ्वी को सच में स्वर्ग बना सकते हैं, क्योंकि उनका आधार त्याग तपस्या वैराग्य ब्रह्मचर्य और निष्काम
की भावना के साथ मर्यादित जीवन स्वयं के ऊपर संयम या नियंत्रण को विकसित करने की
है।
समस्या मेरे लिए नहीं है, समाज मानव जाती के अस्तित्व को ऊपर
आए हुए संकट के लिए है, क्योंकि जो इस विश्व की सबसे श्रेष्ठ मानव जाती है उसके अस्तित्व को
समाप्त करने के लिए बहुत बड़ा सड़यंत्र हमारे ही समाज के लोग रच रहें हैं, इसको मैंने समझा है, इस लिए मैं लोगों की आँख में तिनके
की तरह से चुभ रहा हूं, और लोग मुझे और मेरे काम को समाप्त कर के लिए अपनी पुरी शक्ति को झोंक
दिया है। फिर भी मैं अभी तक मैं इनके बीच में इनके मुंह पर तमाचा जड़ने के लिए
उपस्थित हूं यहीं मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैंने लोगों से और सरकार से इस कार्य
को लिए कई बार आयोदन किया, लेकिन हर बार मेरे कार्य को मना कर दिया जा रहा है, लोग हर प्रकार के घटिया से घटिया से
कार्य को करने के लिए हर प्रकार का सहयोग कर रहें हैं, और मेरी लोग हत्या करना चाहते हैं, तो अवश्य ही मुझे में और मेरे ज्ञान
में कुछ विशेषता है, जो मुझे
इन लोगों से अलग करता है, मेरे में एक दोष है, जो मैं सत्य बोलता हूं, लोगों को मेरा सत्य बोलना ठीक नहीं लगता है, लोग मुझसे अपनी चाटुकारिता की उम्मीद
करते हैं, जो करना
मुझे नहीं आता जिसके कारण ही लोग मेरे विरोधी बन जाते हैं। लेकिन हमारे ऋषि
महर्षियों का ज्ञान मेरा सहयोग करता है, और वहीं मुझे अन्तः प्रेरणा देता है की कार्य को आगे बढ़ाओ
कोई ना कोई सुरमा अवश्य मिलेगा, जो इस कार्य को आगे ले चलने में मेरा साथी बनेगा।
सबसे बड़ा साथी मेरा परमेश्वर है वहीं मुझे हमेशा
से आगे बढ़ने के लिए आंदोलित करता है, क्योंकि मैं एक अनाथ के समान प्रारंभ से रहा और वहीं मेरा
नाथ रहा, और उसने
मुझे कष्ट भी दिए तो मुझे उससे कुछ शिक्षा भी दिया हो सकता हमारे समाज को भी किसी
भंयकर कष्ट को प्राप्त करने पर हि शिक्षा मिले, यद्यपि मेरी ऐसी भावना नहीं हैं, मैं चाहता हूं समय रहते हमें अपने
आने वाली समस्याओं के निदान के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि एक छोटी सी बीमारी धीरे - धीरे हमारे जीवन का नाश कर
देती है, इसी
प्रकार से जिस प्रकार से दिल्ली के विश्वविद्यालय और काशी के विश्वविद्यालय कार्य
रहें हैं यह संकेत ठीक नहीं हैं, इससे संपूर्ण मानव जाती को बहुत बड़ी हानि तो उठानी होगी ही सबसे तथाकथित
हिन्दू जाती का अस्तित्व खतरे में आग गया है, इसलिए एक बार पुनः अपने अस्तित्व की रक्षा और अपने इतिहास से
शिक्षा लेना होगा, जिस
प्रकार से मुहम्मद गौरी ने 17 बार गुजरात के मंदिर को लुटा था और हिन्दू अपनी
रक्षा करने में असमर्थ सिद्ध हुए थे ऐसा आगे पुनः फिर होने के संभावना मुझे दिखाई
दे रही है, क्योंकि
हिन्दू जाती की जड़ मंदिर नहीं हैं, यह तो झूठी जड़ हैं, जिसको हिन्दू जाती के दुश्मनों ने हिन्दुओं को मूर्ख बनाने
के लिए बनाया है, असली जड़
तो हमारे वेद और उनके सहयोगी शास्त्र हैं, जिसके प्रती भी द्वेष भावना के साथ उनके अस्तित्व को खत्म
करने का सड़यन्त्र किया जा रहा है, यदि समय रहते नहीं जागे तो इनका अस्तित्व समाप्त होने में
ज्यादा समय नहीं लगेगा। क्योंकि जिस प्रकार से एक कटी पूंछ वाला जानवर दूसरे जानवर
की भी पूंछ को काटता है, उसी प्रकार से अज्ञानी मूर्खों के समाज को विस्तारित करने वाले भी ज्ञान
और ज्ञान की जड़ा को काटना और हमेशा के लिए उसको समाप्त करना चाहते हैं, इसके लिए हमें हमारे वेदों को पढ़ने
और पढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय चाहिए, इस मांग को जोर से उठाना होगा और हमें इसके निर्माण के लिए
स्वयं आग बढ़ना होगा तभी हमारा अस्तित्व बचेगा और हम अपने आने वाली पीढ़ी के भविष्य
को सुरक्षित रखने में सफल हो सकते हैं, क्योंकि हम तक वेदों को पहुंचने के लिए हमें एक मार्ग बनाना
होगा, पुराने सभी वेद
के मार्गों को ध्वस्त करके उनके स्थान पर जो मार्ग बनाये गए हैं, वह हमारी जड़ों को उखाड़ने के लिए
सहायक सिद्ध हो रहें हैं। इनसे अलग हमें अपने मार्ग बनाना होगा या यूं कहे की बहुत
पुराना एक प्राचीन मार्ग है, जो अब सिर्फ पगडंडियों जैसा ही बचा है, उस पर हमें चलना होगा, अन्यथा वह मार्ग भी जंगली घास फुस द्वार समाप्त कर दिया
जाएगा, क्योंकि जिस
मार्ग पर लोग यात्रा नहीं करते हैं वह मार्ग समाप्त हो जाता है। सिर्फ वह मार्ग ही
नहीं समाप्त होता है यद्यपि वह भी समाप्त हो जाते हैं, जो उस पर यात्रा करने वाले थे। उदाहरण के लिए पहले लोग पैदल ही विश्व की
यात्रा करते थे, अब वह
मार्ग भी नहीं है, और वह
लोग भी नहीं है। जिस प्रकार से मार्ग समाप्त हो रहा है, उसी प्रकार से लोग भी समाप्त हो रहे
हैं।
जैसा की मैंने कहा की मुझे आज तक कोई भी एक
आदमी नहीं मिला इसका मतलब है, यहीं है कि मैं अभी अकेला ही इस मार्ग पर चलने वाला हूं, इसलिए मैं कहता हूं की मेरे साथ ही
यह मार्ग भी समाप्त ना हो जाए, क्या मैं इस मार्ग पर चलने वाला आखिरी मानव हूं, यदि यह बात है, तो इससे ज्यादा खतरनाक और कोई दूसरी
बात इस दुनिया के लिए और दूसरी क्या हो सकती है।
मनोज पाण्डेय अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान
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