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सत्य ही ईश्वर है

 

सत्य ही ईश्वर है

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम समय- समय पर लक्ष्मण, सीता और हनुमानजी को खुशहाल जीवन जीने के उपदेश दिया करते थे। एक दिन उन्होंने उपदेश देते हुए कहा , जगत में सत्य ही ईश्वर है । धर्म की स्थिति सत्य के आधार पर टिकी रहती है । सत्य से बढ़कर दूसरा कोई पुण्य कार्य नहीं है । दान, यज्ञ, होम, तपस्या और वेद सबका आश्रय सत्य है, इसलिए सबको सत्यपरायण होना चाहिए ।

राजा के धर्म पर प्रकाश डालते हुए श्रीराम ने कहा , सत्य का पालन करना और दया करना राजा के प्रधान कर्म हैं । सत्य में ही संपूर्ण जगत प्रतिष्ठित है । इसीलिए समस्त धर्मशास्त्रों व ऋषि- मुनियों ने सत्य पर अटल रहने की प्रेरणा दी है ।

जगज्जननी सीता को संबोधित करते हुए प्रभु कहते हैं , हे सीते , माता -पिता और गुरु प्रत्यक्ष देवता हैं । इनकी अवहेलना कर अदृश्य देवताओं की आराधना कैसे लाभकारी हो सकती है ? जिनकी सेवा से अर्थ, धर्म और काम तीनों की प्राप्ति होती है, उन माता -पिता के समान इस संसार में दूसरा कोई भी नहीं है । श्रीराम कहते हैं , जो माता पिता और आचार्य (विद्वानों ) का अपमान करता है, वह यमराज के वश में पड़कर पाप का फल भोगता है ।

जीवन के प्रति आसक्ति त्यागने की प्रेरणा देते हुए प्रभु कहते हैं , मृत्यु साथ ही चलती है और साथ ही बैठती है । जीवन सदा उसके वश में होता है । इसलिए हर क्षण काल को याद रखते हुए सत्कर्मों में लीन रहना चाहिए ।


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