वृद्धा की
सीख
सिकंदर की महत्त्वाकांक्षा थी कि वह सभी देशों को जीतकर विश्व विजेता का
सम्मान प्राप्त करे । उसने सेना के बल पर अनेक छोटे- छोटे देशों को युद्ध की
चुनौती दे डाली । खून - खराबा कर उसने कई देशों पर अधिकार कर लिया । लोग सिकंदर को
क्रूर और खूनी समझकर उसके नाम से काँप उठते थे। एक वृद्धा जब सिकंदर की क्रूरता सुनती, तो उसे बहुत दुःख होता । वह कहा करती , दूसरे का खून बहाकर इकट्ठा की गई संपत्ति से
कभी सुख शांति नहीं मिलती । कोई सिकंदर को यह बात क्यों नहीं बताता ?
एक दिन सिकंदर ने एक नगर को चारों तरफ से घेर लिया । जब उसे भूख लगी , तो उसने एक मकान का दरवाजा खटखटाया । दरवाजा
एक वृद्धा ने खोला । सैनिक वेष में खड़े व्यक्ति को देखकर ही वह समझ गई कि यह
सिकंदर है ।
सिकंदर ने कहा, माँ , मैं भूखा
हूँ , कुछ खाने को दो ।
वृद्धा अंदर गई और कपड़े से ढकी थाली लेकर लौटी ।
सिकंदर ने कपड़ा हटाया, तो भोजन की जगह सोने के जेवरात देख बोला, मैंने खाना माँगा था । क्या ये मेरी भूख मिटा सकते हैं ?
वृद्धा ने निर्भीकता से कहा , यदि तुम्हारी भूख रोटियों से मिटती, तो तुम अपना घर व देश छोड़कर यहाँ संपत्ति
लूटने क्यों आते ? मेरे जीवन
की कमाई का यह सोना ले जाओ, पर मेरे नगर पर चढ़ाई न करो । वृद्धा के शब्दों ने सिकंदर को झकझोर दिया ।
वह उनके चरणों में झुक गया । वृद्धा ने प्रेम से उसे भरपेट भोजन कराया । सिकंदर उस
नगर को जीते बिना ही वापस चला गया ।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know