पतन के कारण
पांडवों को समय-समय पर भगवान् श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता था। युधिष्ठिर धर्मशास्त्रों के अनुसार आचरण करने के कारण ही 'धर्मराज' कहलाते थे। वे अपने छोटे भाइयों को धर्मशास्त्रों का उपदेश देते हुए प्रायः कहते थे 'अहंकार पतन का सबसे प्रमुख कारण होता है अतः कभी भी अहंकार को पास नहीं फटकने देना चाहिए।'
अंत समय में पांडव महाप्रस्थान के लिए हिमालय की ओर चले, तो एक-एक करके सभी पृथ्वी पर गिर पड़े। भूमि पर पड़े भीम ने अपने अग्रज युधिष्ठिर से इसका कारण जानना चाहा। युधिष्ठिर ने बताया, 'भ्राता भीम, जिसकी जैसी करनी होती है, जिसे अहंकार हो जाता है, उसे फल तो भोगना ही पड़ता है। अर्जुन के प्रति विशेष पक्षपात होने के कारण द्रौपदी के पुण्य क्षीण हो गए। सहदेव अपने जैसा विद्वान् और बुद्धिमान किसी को नहीं समझता था। नकुल किसी को भी अपने समान सुंदर नहीं समझता था। अर्जुन को अपनी वीरता का अधिक अभिमान था और भीम, तुम अपना सच भी जान लो दूसरों को कुछ न समझकर समय-समय पर अपने मुँह से अपने बल की डींग हाँकने के कारण तुम्हारे तमाम पुण्य क्षीण हुए तथा तुम्हारा पतन हुआ।'
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